Skip to main content

Posts

TST की सिकंदर बनी सीमा जी की पसंद के गीतों के संग उतरिये आज नव वर्ष के स्वागत जश्न में

सजीव : सुजॉय, आज साल का अंतिम दिन है और इस दशक का भी. पिछले कुछ दिनों से हम इस साल के संगीत की समीक्षा करते आ रहे हैं और आज इस 'सीरीस' की अंतिम कड़ी है. सुजॉय : बिल्कुल, और हमें पूरी उम्मीद है कि इन समीक्षाओं के ज़रिए हमारे वो पाठक जिन्होने बहुत ज़्यादा ध्यान से सन 2009 के फिल्मी गीतों को 'फॉलो' नहीं किया होगा, उन्हे भी एक अंदाज़ा हो गया होगा इस साल जारी हुए गीतों का सजीव : और आज इस अंतिम कड़ी में हम वो दस गाने सुनने जा रहे हैं जिनके लिए हमें फरमाइश लिख भेजी हैं 'ताज़ा सुर ताल' शृंखला के विजेता सीमा गुप्ता जी ने. सीमा जी को 'आवाज़' की तरफ से हार्दिक बधाई! सुजॉय : बधाई मेरी तरफ से भी. वाक़ई, सीमा जी ने शुरू से ही इस शृंखला में गहरी दिलचस्पी दिखाई है. हम उन्हे बधाई के साथ साथ धन्येवाद भी देते हैं. सजीव : सुजॉय, हम सीमा जी के पसंदीदा गीतों को सुनने के साथ साथ उनसे इन गीतों के बारे में उनकी राय भी जाँएंगे. तो सीमा जी, स्वागत है आप का इस साल की आखिरी महफ़िल में. सीमा : धन्येवाद आप सभी का सजीव : तो सीमा जी, बताइए किस गीत से शुरुआत की जाए इस सुहाने शाम की? सीमा

संगीत अवलोकन २००९, वार्षिक संगीत समीक्षा में फिल्म समीक्षक प्रशेन क्वायल लाये हैं अपना मत

२००९ हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में प्रायोगिकता के लिए मशहूर होगा. साल के शुरुआत में ही देव डी जैसे धमाकेदार प्रायोगिक फिल्म के म्यूजिक ने तहलका मचा दिया. बधाई हो फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप को जिन्होंने एक नए म्यूजिक डिरेक्टर को मौका देकर उन्हें पुरी स्वतंत्रता दी कि वो कुछ नया कर पाए. अंकित त्रिवेदी, जिन्होंने ये संगीत दिया है उन्होंने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए ऐसे चौके छक्के मारे है के शायद ही कोई और प्रस्थापित संगीतकार ये कर पाता. फिर आई दिल्ली ६ जिसमे संगीत के महारथी ए. आर. रहमान ने अपना लोहा फिर से मनवाया. प्रसून और रहमान का ये संगीत प्रयोग बेतहाशा सफल रहा और सारा भारत झूम के गाने लगा "मसकली मसकली". पर सबसे बड़ा प्रयोग था स्त्रियों के लोकसंगीत को जो आज तक उनके बीच सीमित था उसे हीप हॉप के साथ मिक्स कर के पेश करना. रहमान ने "गेंदा फूल" में वही किया और सभी गेंदा फूल बनकर पूछने लगे "अरे ये पहले क्यों नहीं हुआ. और ये नयी गायिका कौन है भाई ?" वह गायिका है "रेखा भारद्वाज"! विशाल भारद्वाज की धर्मपत्नी. ऐसे नहीं के रेखाजी के कोई गाने पहले नहीं

खुसरो कहै बातें ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब... शोभा गुर्टू ने फिर से ज़िंदा किया खुसरो को

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६४ पि छली ग्यारह कड़ियों से हम आपको आपकी हीं फ़रमाईश सुनवा रहे थे। सीमा जी की पसंद की पाँच गज़लें/नज़्में, शरद जी और शामिख जी की तीन-तीन पसंदीदा गज़लों/नज़्मों को सुनवाने के बाद हम वापस अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए हैं। तो हम आज जिस गज़ल को लेकर इस महफ़िल में हाज़िर हुए हैं, उसका अंदाज़ कुछ अलहदा है। अलहदा इसलिए है क्योंकि इसे लिखा हीं अलग तरीके से गया है और जिसने लिखा है उसकी तारीफ़ में कुछ कहना बड़े-बड़े ज्ञानियों को दुहराने जैसा हीं होगा। फिर भी हम कोशिश करेंगे कि उनके बारे में कुछ जानकारियाँ आपको दे दें..वैसे हम उम्मीद करते हैं कि आप सब उनसे ज़रूर वाकिफ़ होंगे। इस गज़ल के गज़लगो हीं नहीं बल्कि इस गज़ल की गायिका भी बड़ी हीं खास हैं। यह अलग बात है कि गज़लगो मध्य-युग से ताल्लुक रखते हैं तो गायिका बीसवीं शताब्दी से..फिर भी दोनों अपने-अपने क्षेत्र में बड़ा हीं ऊँचा मुकाम रखते हैं। हम गज़लगो के बारे में कुछ कहें उससे पहले क्यों न गायिका से अपना और आप सबका परिचय करा दिया जाए। इन्हें "ठुमरी क़्वीन" के नाम से जाना जाता रहा है। ८ फरवरी १९२५ को कर्नाटक के बेलगाम में ज