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रोको आत्महत्याएँ....जगाओ आत्मविश्वास... अभिजीत सावंत और पल्लव पाण्डया की संगीतमयी पहल

दोस्तों नए फनकारों को एक मंच देने आवाज़ का परम उद्देश्य है. इसी कोशिश में आज एक कड़ी और जुड़ रही है. मिलिए संगीतकार, गायक और परामर्शदाता पल्लव पाण्डया से. दुनिया भर में प्रतिवर्ष हजारों लोग जीवन से हताश होकर अपनी जीवन लीला स्वयं समाप्त कर देते हैं और इश्वर के दिए इस अनमोल तोहफे को यूंही जाया कर देते हैं. अधिकतर मामलों में आत्महत्या लम्बे समय से चल रहे घुटन का नतीजा होती है जिसे रोका जा सकता है यदि सही समय पर उस व्यक्ति की मनोदशा को समझने वाला या सिर्फ सुनने वाला ही कोई मिल जाए. हमारे आज के कलाकार पल्लव प्रतिदिन ५ से १० व्यक्तियों में अपनी "कौन्सिलिंग" से जीवन को वापस जीने का उत्साह भरते हैं. वो इस आंकडे को और बढ़ाना चाहते हैं ताकि आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों की तादाद घटे. अपनी इसी कोशिश को संगीत के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने का नेक इरादा लेकर पल्लव ने इस गीत को लिखा और संगीतबद्ध किया. इस नेक काम से जुड़े पहले इंडियन आइडल रहे अभिजीत सावंत भी जिन्होंने इस गीत को अपनी आवाज़ दी. पल्लव संगीत के असर को, उसके महत्त्व को बखूबी समझते हैं, इसीलिए आज आवाज़ के माध्यम स

मैं बांगाली छोरा करूँ प्यार को नामोश्काराम....बंगाल और मद्रास के बीच छिडी प्यार की जंग आशा और किशोर के मार्फ़त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 196 क्या आप के ज़हन में है दोस्तों कि आज तारीख़ कौन सी है? आज है ८ सितंबर। और ८ सितंबर का दिन है हमारी, आपकी, हम सब की चहीती गायिका आशा भोंसले जी का जन्मदिन । आज ८ सितंबर २००९ को आशा जी मना रहीं हैं अपना ७८-वाँ जन्म दिवस। पिछले ६ दशकों से उनकी आवाज़ हमारी ज़िंदगियों में रस घोलती चली आ रही है। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बूढ़े, हर किसी के दिल पर छायी हुई है आशा जी की दिलकश आवाज़। यह वो आवाज़ है दोस्तों जिस पर समय का कोई असर नहीं है। आशा जी ने फ़िल्म संगीत के कई बदलते दौर देखे हैं, और हर दौर में उन्होने अपनी आवाज़ का जादू कुछ इस क़दर बिखेरा है कि हर दौर में उन्होंने सुनने वालों के दिलों पर राज किया है। मैं अपनी तरफ़ से, 'आवाज़' की तरफ़ से और पूरे 'हिंद युग्म' परिवार की तरफ़ से आशा जी को दे रहा हूँ ढेरों शुभकामनाएँ। आशा जी के जन्मदिवस को केन्द्र कर हम इन दिनों सुन रहे हैं उनके युगल गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला '१० गायक और एक आपकी आशा'। क्योंकि आज आशा जी का बर्थडे है, तो क्यों न आज थोड़ी से मस्ती की जाए, थोड़े हँसी मज़ाक के साथ आज के 'ओल

दीपक राग है चाहत अपनी, काहे सुनाएँ तुम्हें... "होशियारपुरी" के लफ़्ज़ों में बता रही हैं "शाहिदा"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४३ यूँ तो पिछली महफ़िल बाकी के महफ़िलों जैसी हीं थी। लेकिन "प्रश्न-पहेली" के आने के बाद और दो सवालों के जवाब देने के क्रम में कुछ ऐसा हुआ कि एकबारगी हम पशोपेश में पड़ गए कि अंकों का बँटवारा कैसे करें। इससे पहले हमारी ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी। तो हुआ यूँ कि सीमा जी ने प्रश्नों का जवाब तो सबसे पहले दिया लेकिन दूसरे प्रश्न में उनका आधा जवाब हीं सही था। इसलिए हमने निश्चय कर लिया था कि उन्हें ३ अंक हीं देंगे। फिर शरद जी सही जवाबों के साथ महफ़िल में हाज़िर हुए। इस नाते उनको २ अंक मिलना तय था(और है भी)। लेकिन शरद जी के बाद सीमा जी फिर से महफ़िल में तशरीफ़ लाईं और इस बार उन्होंने उस आधे सवाल का सही जवाब दिया। अब स्थिति ऐसी हो गई कि न उन्हें पूरे अंक दे सकते थे और न हीं ३ अंक पर हीं छोड़ा जा सकता था। इसलिए "बुद्ध" का मध्यम मार्ग निकालते हुए हम उन्हें आधे जवाब के लिए आधा अंक देते हैं। इस तरह सीमा जी को मिलते हैं ३.५ अंक और शरद जी को २ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| आज की कड़ी से हम नियमों में थोड़ा बदलाव कर रहे हैं। तो ये रहे प्रतियोगिता के बदले हुए नियम औ

तू हुस्न है मैं इश्क हूँ, तू मुझमें है मैं तुझमें हूँ....साहिर, रवि, आशा और महेंद्र कपूर वाह क्या टीम है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 195 आ शा भोंसले ने जिन जिन पार्श्व गायकों के साथ सब से ज़्यादा लोकप्रिय गानें गाये हैं, उनमें किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी के बाद, मेरे ख़याल से महेन्द्र कपूर का नाम आना चाहिए। बी. आर. चोपड़ा कैम्प के सदस्यों में संगीतकार रवि और गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ साथ आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर ने भी एक लम्बे समय तक काम किया है। आशा जी और महेन्द्र कपूर के गाए युगल गीतों में 'नवरंग', 'धूल का फूल', 'हमराज़', 'गुमराह', 'आदमी और इंसान', 'वक़्त', 'पति पत्नी और वो', और 'दहलीज़' जैसी मशहूर फ़िल्मों के गानें रहे हैं। आज हम जिस गीत को आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म 'हमराज़' का, "तू हुस्न है मैं इश्क़ हूँ, तू मुझ में है मैं तुझ में हूँ"। करीब करीब ७ मिनट २७ सेकन्ड्स के इस गीत में इतिहास की मशहूर प्रेम कहानियों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से साहिर साहब ने ज़िंदा किया है। सोहनी-महिवाल, सलीम-अनारकलि तथा रोमियो जुलियट की दास्तान का बयान हुआ है इस गीत में। १९६७ में बनी फ़िल्म 'हमराज़' बी. आर. चोपड

फुल टू एटीटियुड, दे दे तू ज़रा....अपनी नयी आवाज़ में हिमेश बजा रहे हैं मन का रेडियो

ताजा सुर ताल (20) ताजा सुर ताल में आज हिमेश लौटे हैं नयी आवाज़ में नए गीत के साथ सुजॉय - सजीव, एक गायक संगीतकार ऐसे हैं आज के दौर में जिनके बारे में इतना कहा जा सकता है कि चाहे लाख विवादों से वो घिरे रहे हों, लेकिन उनके गीत संगीत हमेशा कामयाब रहे हैं। कभी उनकी टोपी पहनने की अदा को लेकर लोगों ने मज़ाक बनाया, तो कभी उनके नैसल गायिकी पर लोगों ने समालोचना की। उनके संगीत को सुन कर गुजरात के किसी गाँव में भूतों के सक्रीय हो जाने की भी ख़बर फैली थी। और एक बार तो इन्होने ख़ुद ही आफ़त मोल ली थी एक बड़े संगीतकार के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी कर के। सजीव - मैं तुम्हारा इशारा समझ गया, तुम हिमेश रेशमिया की ही बात कर रहे हो ना? सुजॉय - बिल्कुल! कहते हैं ना कि 'any publicity is good publicity', तो इन सब कारणों से हिमेश को फ़ायदा ही हुआ। वैसे भी हिमेश जानते हैं कि इस पीढ़ी के जवाँ दिलों पर किस तरह से असर किया जा सकता है। तभी तो उनकी फ़िल्में चले या ना चले, उनका संगीत ज़रूर हिट हो जाता है। शायद ही उनका कोई ऐसा फ़िल्म हो जिसके गानें कामयाब न रहे हों! सजीव - बिल्कुल ठीक कहा तुमने। बहुत दिनों क

देखो माने नहीं रूठी हसीना....रूठी आशा जी को मनाने की कोशिश कर रहे हैं गायक जगमोहन बख्शी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 194 '१० गायक और एक आपकी आशा' की चौथी कड़ी में आज एक कमचर्चित गायक की बारी। ये गायक भी हैं और संगीतकार भी। बद्‍क़िस्मती से ये ना तो गायक के रूप में मशहूर हो सके और ना ही संगीतकार के रूप में। आशा जी के साथ आज अपनी आवाज़ मिला रहे हैं गायक जगमोहन बक्शी जिन्होने सपन सेनगुप्ता के साथ मिलकर बनाई संगीतकार जोड़ी सपन-जगमोहन की। दोस्तों, १९५४ में एक फ़िल्म आयी थी 'टैक्सी ड्राइवर' जिसमें आशा भोंसले और जगमोहन बक्शी का गाया हुआ एक छेड़-छाड़ भरा युगल गीत था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ था। वही गीत आज यहाँ पेश है। गुरु दत्त की फ़िल्म 'आर पार' कहानी थी एक टैक्सी ड्राइवर कालू की जो अमीर बनने के लिए अंडरवर्ल्ड से जुड़ जाता है। 'आर पार' की सफलता से प्रेरित हो कर नवकेतन फ़िल्म्स के आनंद भा‍इयों ने 'टैक्सी ड्राइवर' के शीर्षक से ही एक और फ़िल्म बना डालने की ठानी। फ़िल्म को निर्देशित किया चेतन आनंद ने, कहानीकार थे विजय आनंद, और मुख्य भूमिका में थे देव आनद, जिन्होने मंगल, टैक्सी ड्राइवर की भूमिका निभाई। कल्पना कार्तिक उनकी नायिका थीं इस फ़िल्म में। इस

रविवार सुबह की कॉफी और यादें गीतकार गुलशन बावरा की (१५)

सच कहा गया है कि कल्पना की उडान को कोई नहीं रोक सकता. कल्पनाएँ इंसान को सारे जहान की सैर करा देती हैं. ये इंसान की कल्पना ही तो है की वो धरती को माँ कहता है, तो कभी चाँद को नारी सोंदर्य का प्रतीक बना देता है. आसमान को खेल का मैदान, तो तारों को खिलाड़ियों की संज्ञा दे देता है. तभी तो कहते है कल्पना और साहित्य का गहरा सम्बन्ध है. जिस व्यक्ति की सोच साहित्यिक हो वो कहीं भी कोई भी काम करे, पर उसकी रचनात्मकता उसे बार-बार साहित्य के क्षेत्र की और मोड़ने की कोशिश करती है. गुलशन बावरा एक ऐसा ही व्यक्तित्व है जो अपनी साहित्यिक सोच के कारण ही फिल्म संगीत से जुड़े. हालांकि पहले वो रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन उनकी कल्पना कि उड़ान ने उन्हें फिल्म उद्योग के आसमान पर स्थापित कर दिया, जहाँ उनका योगदान ध्रुव तारे की तरह अटल और अविस्मर्णीय है. १२ अप्रैल १९३८ पकिस्तान(अविभाजित भारत के शेखुपुरा) में जन्मे गुलशन बावरा जी का असली नाम गुलशन मेहता है. उनको बावरा उपनाम फिल्म वितरक शांति भाई पटेल ने दिया था. उसके बाद सभी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. हिंदी फिल्म उद्योग के ४९ वर्ष के सेवाकाल में बावरा जी ने २५०