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मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो....दर्द और मुकेश की आवाज़ का था एक गहरा नाता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 183 '१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय' लघु शृंखला के अंतर्गत आप सुन रहे हैं मुकेश की गाए हुए उन गीतों को जो उनके दिल के बहुत करीब थे। इसमे कोई दोराय नहीं कि ये गानें सिर्फ़ उन्ही को नहीं, हम सभी को अत्यंत प्रिय हैं, और तभी तो इतने दशकों बाद भी लोगों की ज़ुबाँ पर अक्सर चढ़े हुए मिलते हैं। विविध भारती के वरिष्ठ उद्‍घोषक कमल शर्मा के शब्दों में, "मुकेश के स्वर में नैस्वर्गिक मिठास थी, सोज़ और मधुरता तो थी ही, साधना और लगन से उन्होने उसमें और निखार ले आए थे। चाहे शृंगार रस हो या मस्ती भरा कोई गीत, या फिर टूटे हुए दिल की सिसकियाँ, हर मूड को बख़ूबी पेश करने की क्षमता रखते थे मुकेश। लेकिन सच तो यही है कि मुकेश ने प्रेम से ज़्यादा विरह और वेदना के गीत गाए हैं। एक ज़माना था जब प्रेम निवेदन मे एक शालीनता हुआ करती थी। और प्यार में नाकामी में भी कुछ ऐसी ही बात थी। ऐसे ही टूटे हुए किसी दिल की दुनिया में ले जाते हैं मुकेश की आवाज़। रात के गभीर सन्नाटे मे जब ये आवाज़ हौले हौले गूँजती है तो बेचैन कर देती है मन को।" एक ऐसा ही बेचैन कर देने वाला गीत अज पेश-ए-ख़िदमत

झूमती चली हवा याद आ गया कोई...संगीतकार एस एन त्रिपाठी के लिए भी गाये मुकेश ने कुछ बेहरतीन गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 182 '१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय', इस शृंखला की दूसरी कड़ी में मुकेश और शैलेन्द्र की जोड़ी तो बरकरार है, लेकिन आज के गीत के संगीतकार हैं एस. एन. त्रिपाठी, जिनका नाम ऐतिहासिक और पौराणिक फ़िल्मों में सफल संगीत देने के लिए श्रद्धा से लिया जाता है फ़िल्म जगत में। त्रिपाठी जी के अनुसार, "मुकेश जी ने मेरे गीत बहुत ही कम गाए हैं, मुश्किल से १५ या २०, बस! मगर यह बात देखने लायक है कि उन्होने मेरे लिए जो भी गीत गाये हैं, वो सब 'हिट' हुए हैं, जैसे "नैन का चैन चुराकर ले गई" (चंद्रमुखी), "आ लौट के आजा मेरे मीत" (रानी रूपमती), "झूमती चली हवा याद आ गया कोई" (संगीत सम्राट तानसेन), इत्यादि इत्यादि।" दोस्तों, इन्ही में से फ़िल्म 'संगीत सम्राट तानसेन' का गीत आज हम आप को सुनवा रहे हैं, जो मुकेश जी को भी अत्यंत प्रिय था। १९६२ के इस फ़िल्म का निर्माण व निर्देशन स्वयं एस. एन. त्रिपाठी ने ही किया था। बैनर का नाम था 'सुर सिंगार चित्र'। भारत भूषण और अनीता गुहा अभिनीत यह फ़िल्म अपने गीत संगीत की वजह से आज भी लोगों क

खुद-बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे...... तलत अज़ीज़ साहब की एक और फ़रियाद

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३९ आ ज का अंक शुरू करने से पहले हम पिछले अंक में की गई एक गलती के लिए माफ़ी माँगना चाहेंगे। यह माफ़ी सिर्फ़ एक इंसान से है और उस इंसान का नाम है "शरद जी"। दर-असल पिछले अंक में हमने आपको जनाब अतर नफ़ीस की लिखी जो नज़्म सुनाई थी, वह है तो यूँ बड़ी हीं खुबसूरत, लेकिन उसकी फ़रमाईश शरद जी ने नहीं की थी। हुआ यूँ कि शरद जी की पसंद की तीन गज़लें/नज़्में और "आज जाने की ज़िद न करो" एक हीं जगह संजो कर रखी हुई थी, अब उस फ़ेहरिश्त से दो गज़लें हम आपको पहले हीं सुना चुके थे तो तीसरे के रूप में हमारी नज़र "आज जाने की ज़िद न करो" पर पड़ी और जल्दीबाजी में आलेख उसी पर तैयार हो गया। चलिए माना कि हमने इस नाम से नज़्म पोस्ट कर दी कि यह शरद जी की पसंद की है, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि खुद शरद जी ने इस गलती की शिकायत नहीं की। शायद वो कहीं अन्यत्र व्यस्त थे या फिर वो खुद हीं भूल चुके थे कि उन्होंने किन गज़लों की फ़रमाईश की थी। जो भी हो, लेकिन यह गलती हमारी नज़र से छिप नहीं सकी और इसलिए हमने यह फ़ैसला किया है कि महफ़िल-ए-गज़ल की ४०वीं कड़ी (जो यूँ भी फ़रमाईश

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है...शायद ये गीत काफी करीब था मुकेश की खुद की सोच से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 181 "ह म छोड़ चले हैं महफ़िल को, याद आए कभी तो मत रोना, इस दिल को तसल्ली दे लेना, घबराए कभी तो मत रोना।" आज से लगभग ३५ साल पहले, २७ अगस्त १९७६ को, दुनिया की इस महफ़िल को हमेशा के लिए छोड़ गए थे फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक और एक बेहतरीन इंसान मुकेश। मुकेश उस आवाज़ का नाम है जिसमें है दर्द, मोहब्बत, और मस्ती भी। आज उनके गए ३५ साल हो गए हैं, लेकिन उनके गाए अनगिनत नग़में आज भी वही ताज़गी लिए हुए है, समय असर नहीं कर पाया है मुकेश के गीतों पर। मुकेश का नाम ज़हन में आते ही सुर लहरियों की पंखुड़ियाँ ख़ुद ब ख़ुद मचलने लग जाती हैं, दुनिया की फिजाओं में ख़ुशबू बिखर जाती है। २७ अगस्त को मुकेश की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम शुरु कर रहे हैं मुकेश को समर्पित १० विशेषांकों की एक ख़ास लघु शृंखला '१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय'। जी हाँ, ये वो १० गीत हैं, जो मुकेश को बहुत पसंद थे और जिन्हे वो अपने हर शो में गाते थे। इस शृंखला की शुरुआत हम कर रहे हैं जीवन दर्शन पर आधारित फ़िल्म 'तीसरी क़सम' के एक मशहूर गीत से - &

पतवार पहन जाना... ये आग का दरिया है....गीत संगीत के माध्यम से चेता रहे हैं विशाल और गुलज़ार.

ताजा सुर ताल (16) ता जा सुर ताल में आज पेश है फिल्म "कमीने" का एक थीम आधारित गीत. सजीव - मैं सजीव स्वागत करता हूँ ताजा सुर ताल के इस नए अंक में अपने साथी सुजॉय के साथ आप सब का... सुजॉय - सजीव क्या आप जानते हैं कि संगीतकार विशाल भारद्वाज के पिता राम भारद्वाज किसी समय गीतकार हुआ करते थे। जुर्म और सज़ा, ज़िंदगी और तूफ़ान, जैसी फ़िल्मों में उन्होने गानें लिखे थे.. सजीव - अच्छा...आश्चर्य हुआ सुनकर.... सुजॉय - हाँ और सुनिए... विशाल का ज़िंदगी में सब से बड़ा सपना था एक क्रिकेटर बनने का। उन्होप्ने 'अंडर-१९' में अपने राज्य को रीप्रेज़ेंट भी किया था। हालाँकि उनके पिता चाहते थे कि विशाल एक संगीतकार बने, उन्होने अपने बेटे को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका। सजीव - ठीक है सुजॉय मैं समझ गया कि आज आप विशाल की ताजा फिल्म "कमीने" से कोई गीत श्रोताओं को सुनायेंगें, तभी आप उनके बारे में गूगली सवाल कर रहे हैं मुझसे....चलिए इसी बहाने हमारे श्रोता भी अपने इस प्रिय संगीतकार को करीब से जान पायेंगें...आप और बताएं ... सुजॉय - जी सजीव, जाने माने गायक और सुर साधक सुरेश वाडकर ने विशाल

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों....साहिर ने लिखा यह यादगार गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 180 श रद तैलंग जी के फ़रमाइशी गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं उनकी पसंद के पाँचवे और अंतिम गीत पर, और साथ ही हम छू रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के १८०-वे अंक को। आज का गीत है निर्माता-निर्देशक बी. आर चोपड़ा की फ़िल्म 'गुमराह' का "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनो", जिसे महेन्द्र कपूर ने गाया है। इससे पहले भी हम ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इसी फ़िल्म का एक और गीत आप को सुनवाया था महेन्द्र कपूर साहब का ही गाया हुआ, "आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया" । इस फ़िल्म के बारे में तमाम जानकारी आप उस आलेख में पढ़ सकते हैं। आज चलिए बात करते हैं महेन्द्र कपूर की। अभी पिछले ही साल २७ सितंबर के दिन महेन्द्र कपूर का देहावसान हो गया। वो एक ऐसे गायक रहे हैं जिनकी गायकी के कई अलग अलग आयाम हैं। एक तरफ़ अगर ख़ून को देश भक्ति के जुनून से गर्म कर देनेवाले देशभक्ति के गीत हैं, तो दूसरी तरफ़ शायराना अंदाज़ लिए नरम-ओ-नाज़ुक प्रेम गीत, एक तरफ़ जीवन दर्शन और आशावादी विचारों से ओत-प्रोत नग़में हैं तो दूसरी तरफ़ ग़मगीन टूटे दिल की सदा भी उनकी आ

रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात दीपाली "दिशा" के साथ

सफलता और शोहरत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर हमारी मेहनत और प्रयास सच्चे व सही दिशा में हों तो व्यक्ति किसी भी उम्र में सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छू सकता है. सोनू निगम एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने सफलता के कई पायदान पार किये हैं. उन्होंने अपने बहुमुखी व्यक्तित्व को प्रर्दशित किया है. गायन के साथ-साथ सोनू निगम ने अभिनय व माडलिंग भी की है. यद्यपि अभिनय में उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली, किन्तु गायन के क्षेत्र में वह शिखर पर विराजित हैं. उन्होंने गायकी छोड़ी नहीं है. वो आज भी संगीतकारों की पहली पसंद हैं. उनकी आवाज में कशिश व गहराई है. वह कई बार गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज में बदलाव भी लाते हैं जो उनके हरफनमौला गायक होने का परिचय देता है. अपनी पहली एल्बम 'तू' के जरिये वो युवा दिलों के सरताज बन गए थे. उसके बाद उनकी एल्बम 'दीवाना' और 'यादें' आयीं, जिनके गीतों और गायकी की छाप आज भी हमारे जहन में है. अगर सोनू निगम द्वारा गाये गीतों की सूची बनाएं तो पायेंगे कि उन्होंने अपने बेहतरीन अंदाज से सभी गीतों में जान डाल दी है. ऐसा लगता है कि वो गीत सोनू की आवाज के