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मेरी आगोश में आज है...कहकशां....

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ चटख नीली नसों से भरे और उंगलियों में भरी हुई उड़ान मैं सोचता हूँ तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप और उसकी गर्म आंचश मैं जीत्ताता हूँ तुमको तुम्हारे व्याकरण और नारीत्व की शर्तो के साथ मैं हारता हूँ एक पूरी उम्र तुम्हारे एवज में! हिंद युग्म के इस माह के यूनिकवि डॉ मनीष मिश्रा की इन पक्तियों में छुपे कुछ भाव लिए है हमारे दूसरे सत्र का ये २२ वां गीत जहाँ "जीत के गीत" की तिकडी ऋषि एस , बिस्वजीत नंदा और सजीव सारथी लौटे हैं लेकर एक नया गीत "तू रूबरू" लेकर. सुनिए ये ताज़ा तरीन गीत और अपने विचार देकर हमारा मार्गदर्शन/ प्रोत्साहन करें. The composer singer and lyricist trio Rishi S , Biswajith Nanda , and Sajeev Sarathie of super successful "jeet ke geet" fame is back again with their new creation called "tu ru-ba-ru". This time the mood is much more romantic with a bit sufiayana feel in it. so enjoy this brand new offering from the awaaz team, and leave your valuable comments. Lyrics- गीत के बोल तू रूबरू.... चार सू....सिर्फ़ तू...

नए राग से बांधे अक्सर बिछडे स्वर टूटी सरगम के...

हिन्दी ब्लॉग जगत पर पहली बार - पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा पुस्तक - साया (काव्य संग्रह) लेखिका - रंजना भाटिया "रंजू" समीक्षक - दिलीप कवठेकर युगों पहले जिस दिन क्रौंच पक्षी के वध के बाद वाल्मिकी के मन में करुणा उपजी थी, तो उनके मन की संवेदनायें छंदों के रूप में उनकी जुबान पर आयी, और संभवतः मानवी सभ्यता की पहली कविता नें जन्म लिया.तब से लेकर आज तक यह बात शाश्वत सी है, कि कविता में करुणा का भाव स्थाई है. अगर किसी भी रस में बनी हुई कविता होगी तो भी उसके अंतरंग में कहीं कोई भावुकता का या करुणा का अंश ज़रूर होगा. रंजना (रंजू) भाटिया की काव्य रचनायें "साया" में कविमन नें भी यही मानस व्यक्त किया है,कहीं ज़ाहिर तो कहीं संकेतों के माध्यम से. इस काव्यसंग्रह "साया" का मूल तत्व है - ज़िंदगी एक साया ही तो है, कभी छांव तो कभी धूप ... मुझे जब इस कविता के पुष्पगुच्छ को समीक्षा हेतु भेजा गया, तो मुझे मेरे एहसासात की सीमा का पता नहीं था. मगर जैसे जैसे मैं पन्ने पलटता गया, अलग अलग रंगों की छटा लिये कविताओं की संवेदनशीलता से रु-ब-रु होने लगा, और एक पुरुष होने की वास्तविकता का और उन

अमर उजाला पर आवाज़ भी

हिन्द-युग्म के बाल-उद्यान पृष्ठ को अमर-उजाला में आप कई बार पढ़ भी चुके हैं। अब बारी है हिन्द-युग्म के संगीत-पृष्ठ की। २५ नवम्बर के हिन्दी दैनिक अमर उजाला के 'ब्लॉग कोना' स्तम्भ में आवाज़ पर सलिल चौधरी के बारे में २४ नवम्बर २००८ को प्रकाशित आलेख 'सलिल दा के बहाने येसुदास की बात' के कुछ अंश प्रकाशित हुए हैं। आप भी पढ़ें-

षड़ज ने पायो ये वरदान - एक दुर्लभ गीत

येसू दा का जिक्र जारी है, सलिल दा के लिए वो "आनंद महल" के गीत गा रहे थे, उन्हीं दिनों रविन्द्र जैन साहब भी अभिनेता अमोल पालेकर के लिए एक नए स्वर की तलाश में थे. जब उन्होंने येसू दा की आवाज़ सुनी तो लगा कि यही एक भारतीय आम आदमी की सच्ची आवाज़ है, दादा(रविन्द्र जैन) ने बासु चटर्जी जो कि फ़िल्म "चितचोर" के निर्देशक थे, को जब ये आवाज़ सुनाई तो दोनों इस बात पर सहमत हुए कि यही वो दिव्य आवाज़ है जिसकी उन्हें अपनी फ़िल्म के लिए तलाश थी. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास बना. चितचोर के अविस्मरणीय गीतों को गाकर येसू दा ने राष्टीय पुरस्कार जीता और उसके बाद दादा और येसू दा की जुगलबंदी ने खूब जम कर काम किया. वो सही मायनों में संगीत का सुनहरा दौर था. जब पूरे पूरे ओर्केस्ट्रा के साथ हर गीत के लिए जम कर रिहर्सल हुआ करती थी, जहाँ फ़िल्म के निर्देशक भी मौजूद होते थे और गायक अपने हर गीत में जैसे अपना सब कुछ दे देता था. येसू दा और रविन्द्र दादा के बहाने हम एक ऐसे ही गीत के बनने की कहानी आज आपको सुना रहे हैं. येसू दा की माने तो ये उनका हिन्दी में गाया हुआ सबसे बहतरीन गीत है. पर दुखद ये है कि न

"दासेएटन" (येसुदास) के हिन्दी गीतों की मिठास भी कुछ कम नहीं...

कल हमने बात की सलिल दा की और बताया की किस तरह उन्होंने खोजा दक्षिण भारत से एक ऐसा गायक जो आज की तारीख में मलयालम फ़िल्म संगीत का दूसरा नाम तो है ही पर जितने भी गीत उन्होंने हिन्दी में भी गाये वो भी अनमोल साबित हुए. आज हम बात करेंगे ४०.००० से भी अधिक गीतों को अपनी आवाज़ से संवारने वाले गायकी के सम्राट येसुदास की. लगभग ४ दशकों से उनकी आवाज़ का जादू श्रोताओं पर चल रहा है, और इस वर्ष १० जनवरी को उन्होंने अपने जीवन के ६० वर्ष पूरे किये हैं. उनके पिता औगेस्टीन जोसफ एक मंझे हुए मंचीय कलाकार एवं गायक थे, जो हर हाल में अपने बड़े बेटे येसुदास को पार्श्वगायक बनाना चाहते थे. उनके पिता जब वो अपनी रचनात्मक कैरिअर के शीर्ष पर थे तब कोच्ची स्थित उनके घर पर दिन रात दोस्तों और प्रशंसकों का जमावडा लगा रहता था. पर जब बुरे दिन आए तब बहुत कम थे जो मदद को आगे आए. येसुदास का बचपन गरीबी में बीता, पर उन्होंने उस छोटी सी उम्र से अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे, ठान लिया था की अपने पिता का सपना पूरा करना ही उनके जीवन का उद्देश्य है. उन्हें ताने सुनने पड़े जब एक इसाई होकर वो कर्नाटक संगीत की दीक्षा लेने लगे. ऐसा भी

सलिल दा के बहाने येसुदास की बात

बीते १९ तारीख को हम सब के प्रिय सलिल दा की ८६ वीं जयंती थी, लगभग १३ साल पहले वो हम सब को छोड़ कर चले गए थे, पर देखा जाए इन्ही १३ सालों में सलिल दा की लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है, आज की पीढी को भी उनका संगीत समकालीन लगता है, यही सलिल दा की सबसे बड़ी खासियत है. उनका संगीत कभी बूढा ही नही हुआ. सलिल दा एक कामियाब संगीतकार होने के साथ साथ एक कवि और एक नाटककार भी थे और १९४० में उन्होंने इप्टा से ख़ुद को जोड़ा था. उनके कवि ह्रदय ने सुकांता भट्टाचार्य की कविताओं को स्वरबद्ध किया जिसे हेमंत कुमार ने अपनी आवाज़ से सजाया. लगभग ७५ हिन्दी फिल्मों और २६ मलयालम फिल्मों के अलावा उन्होंने बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजरती, मराठी, असामी और ओडिया फिल्मों में अच्छा खासा काम किया. सलिल दा की पिता डाक्टर ज्ञानेंद्र चौधरी एक डॉक्टर होने के साथ साथ संगीत के बहुत बड़े रसिया भी थे. अपने पिता के वेस्टर्न क्लासिकल संगीत के संकलन को सुन सुन कर सलिल बड़े हुए. असाम के चाय के बागानों में गूंजते लोक गीतों और और बांग्ला संगीत का भी उन पर बहुत प्रभाव रहा. वो ख़ुद भी गाते थे और बांसुरी भी खूब बजा लेते थे. अपने पि

संगीत जगत की नई सुर्खियाँ

भारत-पाक रॉक बैंड समागम हिंदुस्तान के हिन्दी रॉक बैंड "यूफोरिया" (धूम पिचक और माये री से मशहूर) ने पाकिस्तानी बैंड स्ट्रिंग्स के साथ जोड़ बनाने के बाद अब एक और पाकिस्तानी बैंड "नूरी" के साथ अपने नए एल्बम पर काम शुरू कर दिया है. पाकिस्तान में हुए एक सम्मान समारोह में यूफोरिया के सदस्य नूरी के अली नूर और अली हमजा बंधुओं से मिले थे. अगस्त में नूरी की टीम भारत दौरे पर भी आई थी. पाकिस्तान के इस बेहद मशहूर बैंड के साथ काम कर यूफोरिया के सदस्य काफ़ी उत्साहित हैं. एक गीत "वो क़समें" है जो आधा भारत और आधा पाकिस्तान में फिल्माया जाएगा. पहली बार पाकिस्तान की किसी बड़ी कंपनी द्वारा किसी हिन्दुस्तानी रॉक बैंड का एल्बम निकला जा रहा है, जो कि निश्चित ही एक अच्छी शुरुआत है. जेथ्रो तुल और अनुष्का की बेजोड़ जुगलबंदी मशहूर ब्रिटिश रॉक समूह जेथ्रो तुल अपने एक सप्ताह के भारत दौरे पर हैं, ३० नवम्बर को दिल्ली के प्रगति मैदान में सितार वादिका अनुष्का शर्मा के साथ जुगलबंदी के बाद ये ६ सदस्यया समूह कोलकत्ता, मुंबई, बंगलोरु और हैदराबाद की यात्रा करेगा. १९६७-६८ में गठित हुए इस समूह