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तूने ये क्या कर दिया ...ओ साहिबा...

दूसरे सत्र के १८ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज " जीत के गीत " और " मेरे सरकार " गीत गाकर अपनी आवाज़ का जादू बिखेरने वाले बिस्वजीत आज लौटे हैं एक नए गीत के साथ, और लौटे हैं कोलकत्ता के सुभोजित जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपनी प्रतिभा से हर किसी को प्रभावित किया है. सजीव सारथी के लिखे इस नए गीत में प्रेम की पहली छुअन है जिसका बिस्वजीत अपने शब्दों में कुछ इस तरह बखान करते हैं - "कुछ गाने ऐसे होते है जिनमें खो जाने को मन करता है. "साहिबा" ऐसा एक गाना है. सच बताऊँ तो गाने के समय एक बार भी मुझे लगा नहीं कि मैं गा रहा हूँ. ऐसे लगा जैसे इस कहानी में मैं ही वो लड़का हूँ जिस पर कोई लड़की जादू कर गई है, कुछ पल की मुलाक़ात के बाद और चंद लम्हों में मेरी साहिबा बन चुकी है. तड़प रहा हूँ मैं दूरी से, जो दिल में बस गई है उसके ना होने से. सजीव जी के शब्दों ने मुझे मजबूर कर दिया उस तड़प की गहराइयों को महसूस करने के लिए. सुभोजित का म्यूजिक भी लाजवाब है. आशा कर रहा हूँ ये गाना भी सभी को पसंद आएगा" आप भी सुनें सुभोजित का स्वरबद्ध और बिस्वजीत का गाया ये नया गीत

देखो, वे आर डी बर्मन के पिताजी जा रहे हैं...

सचिन देव बर्मन साहब की ३३ वीं पुण्यतिथि पर दिलीप कवठेकर का विशेष आलेख - सचिन देव बर्मन एक ऐसा नाम है, जो हम जैसे सुरमई संगीत के दीवानों के दिल में अंदर तक जा बसा है. मेरा दावा है कि अगर आप और हम से यह पूछा जाये कि आप को सचिन दा के संगीतबद्ध किये गये गानों में किस मूड़ के, या किस Genre के गीत सबसे ज़्यादा पसंद है, तो आप कहेंगे, कि ऐसी को विधा नही होगी, या ऐसी कोई सिने संगीत की जगह नही होगी जिस में सचिन दा के मेलोड़ी भरे गाने नहीं हों. आप उनकी किसी भी धुन को लें. शास्त्रीय, लोक गीत, पाश्चात्य संगीत की चाशनी में डूबे हुए गाने. ठहरी हुई या तेज़ चलन की बंदिशें. संवेदनशील मन में कुदेरे गये दर्द भरे नग्में, या हास्य की टाईमिंग लिये संवाद करते हुए हल्के फ़ुल्के फ़ुलझडी़यांनुमा गीत. जहां उनके समकालीन गुणी संगीतकारों नें अपने अपने धुनों की एक पहचान बना ली थी, सचिन दा हमेशा हर धुन में कोई ना कोई नवीनता देने के लिये पूरी मेहनत करते थे. इसीलिये, उनके बारे में सही ही कहा है, देव आनंद नें (जिन्होने अपने लगभग हर फ़िल्म में - बाज़ी से प्रेम पुजारी तक सचिन दा का ही संगीत लिया था)- He was One of the Most Cultu

मुसाफिर...जाएगा कहाँ...यादें एस डी बर्मन की

महान संगीतकार एस. डी. बर्मन की पुण्यतिथि पर सुनिए उन्हीं के गाये 7 अमर गीत कोलकाता के संगीत प्रेमियों में "सचिन कारता", मुम्बई के संगीतकारों के लिये "बर्मन दा", बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के रेडियो श्रोताओं में "शोचिन देब बोर्मोन", सिने जगत में "एस.डी. बर्मन" और "जींस" फिल्मी फ़ैन वालों में "एस.डी"-उनके गीतों ने हर किसी के दिल में अमिट छाप छोड़ी है। उनके गीतों में विविधता थी। उनके संगीत में लोक गीत की धुन झलकती, वहीं शास्त्रीय संगीत का स्पर्श भी था। उनका अपरंपरागत संगीत जीवंत लगता था। नौ भाई-बहनों में एक सचिन देव बर्मन का जन्म १ अक्तूबर,१९०६ में त्रिपुरा में हुआ। सचिन देव ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता व सितार-वादक नबद्वीप चंद्र देव बर्मन से ली। उसके बाद वे उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय के यहाँ शिक्षित हुए और इसी शिक्षा से उनमें शास्त्रीय संगीत की जड़ें पक्की हुई जो उनके संगीत में बाद में दिखा भी। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात वे घर से निकल गये और असम व त्रिपुरा के जंगलों में घूमें। जहाँ उन्हें बंगाल व आसपास

गीत में तुमने सजाया रूप मेरा

मिलिए संगीत का नया सितारा 'कुमार आदित्य' से हिन्द-युग्म ने 'आवाज़' का बीज इंटरनेट रूपी जमीन में पिछले वर्ष इसलिए बोया ताकि इससे उपजने वाले वटवृक्ष की छाया तले नई प्रतिभाएँ सुस्ताएँ, कुछ आराम महसूस करें, इसकी घनी छायातले सुर-साधना कर सकें। २७ अक्टूबर को आवाज़ ने अपनी पहली वर्षगाँठ भी मनाई। और पिछले एक साल में जिस तरह इस वृक्ष को खाद-पानी मिलता रहा उससे यह लगने लगा कि इसकी जड़ें बहुत गहरी जायेंगी और छाया भी घनी से अत्यधिक घनी होती जायेगी। कुमार आदित्य आज हम आपको एक और नये कलाकार से मिलवाने जा रहे हैं। इस सत्र में आप हमारे अब तक रीलिज्ज़ १७ गीतों के संगीतकारों के अतिरिक्त ग़ज़ल-नज़्म गायक-संगीतकार रफ़ीक़ शेख़ , शिशिर पारखी से मिल चुके हैं। आज सुगम संगीत गायक कुमार आदित्य से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं। आदित्य कुमार हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ॰ महेन्द्र भटनागर के सुपुत्र हैं। संगीत एवं कला की नगरी ग्वालियर के एक सुप्रसिद्ध सुगम संगीत गायक हैं। इनकी ईश्वरीय प्रदत्त मधुर आवाज़ के कारण श्रोताओं और चाहने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अपनी मधुर आवाज़ में गज़ल गायक क

दीपावली गली गली बन के खुशी आई रे...

आवाज़ के सभी साथियों और श्रोताओं को दीपावली के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाये,हमारे नियमित श्रोता गुरु कवि हकीम ने हमें इस अवसर पर अपना संदेश इस कविता के माध्यम से दिया - दीप जले प्यार का जीत का ना हार का हर किसी के साथ का हर किसी के हाथ का दीप जले प्यार का तोड़ दे दीवार कों बीच में जो है खडी स्नेह निर्मल की भीत तो दीवार से भी है बड़ी ये दीप ना थके कभी प्रकाश ना रुके कभी ये दीप ना बुझे कभी हर किसी के द्वार का दीप जले प्यार का जीत का ना हार का ............. सुधि से सबके मन खिले सिहर सिहर से ना मिले पलक भीगी ना रहे अलक झीनी ना रहे उज्जवल विलास बन के वो लौ ज्वाला की धार का दीप जले प्यार का जीत का ना हार का.... हिंद युग्म के आंगन में आज हमने कविताओं के दीप जलाये हैं. २४ कवियों की इन २४ कविताओं में गजब की विविधता है. अवश्य आनंद लें. बच्चों की आँखों से भी देखें दिवाली की जगमग . आवाज़ पर हम अपने श्रोताओं के लिए लाये हैं, एक अनूठा गीत. टेलिविज़न पर एक संगीत प्रतियोगिता में चुने गए टॉप १० में से ५ प्रतिभागियों ने मिलकर दीपावली पर अपने श्रोताओं को शुभकामनायें देने के उद्देश्य से इस गीत को रचा. इ

हम होंगे कामियाब

कभी कभी छोटी छोटी कोशिशें एक बड़ी सोच का रूप धारण कर लेती है. और फ़िर उस सोच का अंकुर पल्लवित होकर एक बड़ा वृक्ष बनने की दिशा में बढ़ने लगता है और उसकी शाखायें आसमान को छूने निकल पड़ती है. आज से ठीक एक साल पहले २७ अक्टूबर २००७ की शाम को हिंद युग्म ने अपना पहला संगीतबद्ध गीत जारी किया था. दिल्ली, हैदराबाद और नागपुर में बैठे एक गीतकार, एक संगीतकार और एक गायक ने ऑनलाइन बैठकों के माध्यम से तैयार किया था एक अनूठा गीत "सुबह की ताजगी". और इसी के साथ नींव पड़ी एक विचार की जो आज आपके सामने "आवाज़" के रूप में फल फूल रहा है. हिंद युग्म ने महसूस किया कि जिस तरह हमने उभरते हुए कवियों,कथाकारों और बाल साहित्य सृजकों को एक मंच दिया क्यों न इन नए गीतकारों,संगीतकारों और गायकों को भी हम एक ऐसा आधार दें जहाँ से ये बिना किसी बड़े निवेश के अपनी कला का नमूना दुनिया के सामने रख सकें. चूँकि इन्टनेट जुडाव का माध्यम था तो दूरियां कोई समस्या ही नही थी. कोई भी कहीं से भी एक दूसरे से जुड़ सकता था बस कड़ी जोड़नी थी हिंद युग्म के साथ. सिलसिला शुरू हुआ तो एक से बढ़कर एक कलाकार सामने आए. मात्र तीन महीने

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - अक्टूबर २००८

डॉक्टर मृदुल कीर्ति कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन । लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है अक्टूबर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। अगस्त और सितम्बर २००८ की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति  ने। इस बार हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हम आप सभी के सहयोग और प्रेम के लिए आपके आभारी हैं। हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें समयाभाव के कारण इस कार्यक्रम में स्थान न पा सकीं एवं कुछ रिकॉर्डिंग ठीक न होने की वजह से। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें विभिन्न देश, आयु-वर्ग, एवं पृष्ठभूमि के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की शोभा को बढाया है फ़रीदाबाद से