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मैं इबादत करूँ...या मोहब्बत करूँ.....

दूसरे सत्र के सोलहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज - सूफी संगीत की मस्ती का आलम कुछ अलग ही होता है. आज आवाज़ पर हम आपको जिस संगीत टीम से मिलवा रहे हैं उनका संगीत भी कुछ युहीं डुबो देने वाला है. भोपाल मध्य प्रदेश की यह संगीत टीम अब तक आवाज़ पर पेश हुई किसी भी संगीत टीम से बड़ी है, सदस्यों की संख्या के हिसाब से. आप कह सकते हैं कि ये एक मुक्कमल संगीत टीम है, जहाँ गायक, संगीत संयोजक गीतकार और सभी सजिंदें एक टीम की तरह मिल कर काम करते हैं. टीम की अगुवाई कर रहे हैं गायक अरेंजर और रिकोरडिस्ट कृष्णा पंडित और निर्देशक हैं चेतन्य भट्ट . साथ में हैं गीटारिस्ट सागर , रिदम संभाला है हेमंत ने गायन में कृष्णा का साथ दिया है अभिषेक और रुद्र प्रताप ने. इस सूफियाना गीत के बोल लिखे हैं गीतकार संजय दिवेदी ने. पूरी टीम ने मिलकर एक ऐसा समां बंधा है की सुनने वाला कहीं खो सा जाता है. तो सुनकर आनंद उठायें इस बेहद मदमस्त गीत का और इस दमदार युवा संगीत टीम को अपना आशीर्वाद और प्रेम देकर हौसला अफजाई दें. गीत को सुनने के लिए नीचे वाले प्लेयर पर क्लिक करें - A complete sufi band is here to present the 16th song of

कोशिश जब तेरी हद से गुज़र जायेगी...मंजिल ख़ुद ब ख़ुद तेरे पास चली आएगी

पिछले लगभग एक हफ्ते से हम आपको सुनवा रहे हैं एक ऐसे गायक को जिसने अपनी खनकती आवाज़ में संगीतमय श्रद्धाजंली प्रस्तुत की अजीम ओ उस्ताद शायरों को,जिसे आप सब ने सुना और बेहद सराहा भी. , लीजिये आज हम आपके रूबरू लेकर आये हैं उसी जबरदस्त फनकार को जिसकी आवाज़ में सोज़ भी है और साज़ भी और जिसका है सबसे मुक्तलिफ़ अंदाज़ भी. आवाज़ की खोजी टीम निरंतर नई और पुरकशिश आवाजों की तलाश में जुटी है, और हमें बेहद खुशी और फक्र है की हम कुछ नायाब आवाजों को आपके समक्ष लाने में सफल रहे हैं. आवाज़ की टीम आज गर्व के साथ पेश कर रही है गायन और संगीत की दुनिया का एक बेहद चमकता सितारा - शिशिर पारखी. इससे पहले कि हम शिशिर जी से मुखातिब हों आईये जान लें उनका एक संक्षिप्त परिचय. एक संगीतमय परिवार में जन्में शिशिर को संगीत जैसे विरासत में मिला था. उनकी माँ श्रीमती प्रतिमा पारखी संगीत विशारद और बेहद मशहूर संगीत अध्यापिका होने के साथ साथ पिछले ३५ वर्षों से आल इंडिया रेडियो की ग्रेडड आर्टिस्ट भी हैं. स्वर्गीय पिता श्री शरद पारखी बोकारों के SAIL प्लांट में चीफ आर्किटेक्ट होने के साथ साथ एक बेहतरीन संगीतकार और संगीत प्रेमी थे, द

एहतराम की अंतिम कड़ी- मीर तकी 'मीर' की ग़ज़ल

एहतराम - अजीम शायरों को सलाम इस श्रृंखला में अब तक हम ६ उस्ताद शायरों का एहतराम कर चुके हैं. आज पेश है शिशिर पारखी साहब के आवाज़ में ये आखिरी सलाम अजीम शायर मीर के नाम, सुनिए ये लाजवाब ग़ज़ल- हस्ती अपनी हुबाब की सी है । ये नुमाइश सराब की सी है ।। नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए, हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है । चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर, याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है । बार-बार उस के दर पे जाता हूँ, हालत अब इज्तेराब की सी है । मैं जो बोला कहा के ये आवाज़, उसी ख़ाना ख़राब की सी है । ‘मीर’ उन नीमबाज़ आँखों में, सारी मस्ती शराब की सी है । हुबाब=bubble; सराब=illusion, mirage इज्तेराब=anxiety, नीमबाज=half open मीर तकी 'मीर' आगरा में रहने वाले सूफी फ़कीर मीर अली मुत्तकी की दूसरी पत्नी के पहले पुत्र मुहम्मद तकी, जिन्हें उर्दू शायरी की दुनिया में मीर तकी 'मीर' के नाम से जाना जाता है का जन्म वर्ष अंदाज़न 1724 ई. माना गया है. वैसे एकदम सही जन्म वर्ष का भी कहीं लेखा जोखा नहीं मिलता. ख़ुद मीर तकी 'मीर' ने अपनी फारसी पुस्तक 'जिक्रे मीर' अपना संक्षिप्त सा परिचय दिया