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गए दिनों का सुराग लेकर...आशा जी और गुलाम अली

पूरे कायनात की मौसिकी यहां इस परिवार में बसती है... चूँकि इस पूरे माह हम बात कर रहे हैं मंगेशकर बहनों की, जिनकी दिव्य आवाजों ने हिन्दी फ़िल्म संगीत का आकाश सजाया है. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज आवाज़ पर, दिलीप कवठेकर आयें हैं, आशा जी के गुलाम अली साहब के साथ बनी एल्बम "मेराज़-ए-ग़ज़ल" की रिकॉर्डिंग के समय का एक संस्मरण लेकर, पढ़ें और आनंद लें इस बेमिसाल सी ग़ज़ल का. मेरा बचपन का मित्र है, दीपक भोरपकर.इन्दौर में बचपन में साथ साथ गाना बजाना करते थे. वह तबला बजाता था, मै गाना. बडे दिनों बाद लगभग २५ वर्षों बाद पुनर्मिलन हुआ तो पता चला की जनाब मुंबई में है, और हृदयनाथ मंगेशकर के साथ कार्यक्रम में बजाते भी है. यह भी पता चला की वो लताजी और आशा जी को तबले पर रियाज़ भी करवाता है.वे दोनो लगभग रोज़ रियाज़ करती थी उन दिनों में भी. उन दिनों आशा जी का गुलाम अली साहब के साथ जो एलबम निकल रहा था उस के लिए रियाज़ चल रहा था. दीपक उसी में बहुत व्यस्त था. दुर्भाग्यवश ,संभव होते हुए भी मेरा वहां जाने का संयोग नही बन पाया. लेकिन बातों बातों में उन दिनों का यह ताज़ा संस्मरण उसने सुनाया जो आप के लिये प्रस्तुत

जैसे ही देखा मोहिंदर कुमार जी का गीत, लगा कि धुन मिल गयी...

हिंद युग्म की नयी खोज हैं, संगीतकार और गायक कृष्ण राज कुमार , जो हैं आवाज़ पर इस हफ्ते के उभरते सितारे. २२ वर्षीय कृष्ण राज दक्षिण भारत के कोच्ची केरल से हैं, अभी अभी अपनी पढ़ाई पूरी की है इन्होने. संगीत का शौक बचपन से है और पिछले १४ सालों से कर्णाटक संगीत में दीक्षा ले रहे हैं. आवाज़ पर इनका पहला स्वरबद्ध किया और गाया हुआ गीत " राहतें सारी " इस शुक्रवार को ओपन हुआ था और बेहद सराहा भी गया, जिससे कृष्ण कुमार के हौसले यकीनन बढ़े हैं और हमारे श्रोता आने वाले दिनों में उनसे और बेहतर गीतों की उम्मीद रख सकते हैं. दरअसल हर गीत की तरह इस गीत की भी एक कहानी है. आईये जानते हैं ख़ुद कृष्ण कुमार से की कैसे बना ये सुमधुर गीत. (कृष्ण हिंद युग्म से हिन्दी टंकण अभी सीख रहे हैं, पर यहाँ प्रस्तुत उनका यह अनुभव अभी मूल रूप में ही आपके सामने है) First of all I thank God for blessing me, second I thank sajeev ji for giving me an opportunity to showcase my talent and last but not the least I thank Mohinder kumar ji for providing such a wonderful lyrics without which I wouldn’t be able to compose

कोई ना रोको दिल की उड़ान को...

लता संगीत उत्सव की नई प्रस्तुति प्रस्तावना: लता दीदी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ। लता दीदी की प्रसंशा में बहुत कुछ कहा गया है। फिर भी तारीफें अधूरी लगती हैं। मैंने दीदी के लिए सही शब्द ढूँढ़ने की कोशिश की तो शब्दकोष भी सोच में पड़ गया। कहते है, "लोग तमाम ऊँचाइयों तक पहुँचे हैं...पर जिस मुकाम तक लताजी पहुँची हैं...वहाँ तक कोई नहीं पहुँच सकता..." दीदी से रु-ब-रु होने का सौभाग्य तो अब तक प्राप्त नहीं हुआ, पर दीदी के गीत हमेशा साथ रहते है। लता दीदी वो कल्पवृक्ष हैं जो रंग-बिरंगी मीठे मधुर मनमोहक गीत-रूपी फूल बिखीरती रहती है. दीदी के देशभक्ति गीत सुनकर हौसले बुलंद होते हैं, अमर गाथा सुनकर आखों में पानी भर आता है, लोरी सुन कर ममता का एहसास होता है, खुशी के गीत सुनकर दिल को सुकून मिलता है, दर्द-भरे नगमे दिल की गहराई को छू जाते हैं, भजन सुनकर भक्ति भावना अपने शिखर तक पहुँचती है, और प्रेम गीत सुनकर लगता है जैसे प्रेमिका गा रही हो. जब भी लताजी के गीत सुनता हूँ तो मेरा दिल तो कहने लगता है ... "आज फिर जीने की तम्मना है, आज फिर मरने का इरादा है..." "कोई ना रोको द

शिवानी सिंह की कविताओं का एल्बम सुनें

हिन्द-युग्म की शिवानी सिंह जिनकी एक ग़ज़ल 'ये ज़रूरी नहीं' हिन्द-युग्म के पहले म्यूजिक एल्बम 'पहला सुर' में भी शामिल थी, और जिनकी दूसरी ग़ज़ल 'चले जाना' को हमने पिछले महीने आवाज़ पर रीलिज किया था, पहला सुर में रूपेश ऋषि की आवाज़ में रिकॉर्डेड कविताओं को सुनकर उनसे इतना प्रभावित हुईं कि इन्होंने अपने कविताओं का एक एल्बम ही बनाने का मन बना लिया। रूपेश जी से संपर्क साधा और आठ गीतों से सजे एक काव्यमयी, साहित्यिक एल्बम का जन्म हुआ। इस एल्बम को शिवानी जी ने 'मेरे ज़ज़्बात' नाम दिया है। आठ कविताओं को एक साथ सुनें और बतायें कि शिवानी जी का यह प्रयास कैसा है। 1. तन्हाई 2. आदत 3. दिलकश तराना 4. मन की वेदना 5. एक बूँद 6. जिंदगी-एक सवाल 7. जीवन यात्रा 8. रेत के घर संगीत और गायन रुपेश जी का है। दिलकश तराना में अनुराधा ने अपनी आवाज़ दी है। शिवानी सिंह को 'पहला सुर' की कविताओं को सुनकर लगा कि पढ़ने और सुनने में बहुत अंतर होता है, कविता सुनने में अपना प्रभाव अधिक डालती है। नीचे के प्लेयर से सुनें, यह प्ले होते ही ५ सेकेण्ड के समय-अंतराल के साथ सभी कविताएँ प्ले

अहमद फ़राज़ साहब को हिंद युग्म की संगीतमय श्रद्धांजलि

१ सितम्बर, अहमद फ़राज़ साहब के इन्तेकाल के ठीक ७ दिन बाद हमने आवाज़ पर फ़राज़ साहब की २३ ग़ज़लों की रिकॉर्डिंग उन्ही की आवाज़ में प्रस्तुत कर उन्हें पहली श्रद्धांजलि अर्पित की थी. मगर हम चाहते थे कि हमारी संगीत टीम भी उनकी किसी ग़ज़ल को अपने अंदाज़ में स्वरबद्ध कर उन्हें याद करें. दुर्भाग्य वश हमारे सभी ग़ज़ल संगीतकार दूसरे आयोजनों में व्यस्त होने के कारण समय नही निकल पा रहे थे, तभी आवाज़ पर ऋषि एस के किसी गीत को सुनकर एक नए संगीतकार/ गायक रफ़ीक शेख की आमद हुई. अब ये सौभाग्य की ही बात थी कि उनके पास फ़राज़ साहब की एक ग़ज़ल की धुन तैयार भी थी, हमारे आग्रह पर उन्होंने इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ में गाकर हमें भेजा, जिसे हम आज आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं. हम आपको बता दें कि रेफ़ीक़ शेख के रूप में हिंद युग्म आवाज़ को एक और नायाब हीरे की प्राप्ति हुई है, आने वाले किसी शुक्रवार को हम इस उभरते हुए गायक/ संगीतकार की ताज़ी ग़ज़ल भी आपको सुनवायेंगे. फिलहाल तो आनंद लेते हैं अहमद फ़राज़ साहब की इस खूबसूरत ग़ज़ल का, और याद करते हैं एक बार फ़िर इस सदी के उस अजीम शायर को जिसके कलाम ने शायरी को नए

आज हिन्दी पर 3:30 घण्टे ऑनलाइन चर्चा हुई

आज यानी १४ सितम्बर २००८ को हिन्द-युग्म ने एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' ने की। हिन्द-युग्म ने स्काइपी (Skype) पर ऑनलाइन परिचर्चा करके इस दिशा में अनूठी पहल की। परिचर्चा के लिए सुबह १० से शाम ४ बजे तक का समय निर्धारित था। लेकिन चूँकि पहला प्रयास था, बहुत से लोगों के माइक में समस्याएँ थीं, सरल ट्यूटोरियल उपलब्ध कराने के बाद भी लोग स्काइपी का ठीक तरह से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे, इसलिए हम परिचर्चा को सुबह १० बजकर ५० मिनट से दोपहर २ बजकर ३० मिनट तक करा पाये। चूँकि हमने इसकी शुरूआत हिन्दी दिवस से की, इसलिए चर्चा के केन्द्र में 'हिन्दी का वर्तमान और भविष्य' रहा। दिल्ली में बम ब्लॉस्ट होने और रविवार की छुट्टी होने की वजह बहुत से ऐसे परिचर्चाकार भी नहीं आ पाये जिन्होंने आवेदन फॉर्म भरकर भाग लेने की पुष्टि की थी। हमने वाराणसी की डॉ॰ शीला सिंह , दिल्ली से सुनीता शानू , दिल्ली से ही सजीव सारथी , शैलेश भारतवासी और रोहतक से डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' के साथ इस कार्यक्रम की शुरूआत की। फिर हमसे अमेरिका से रिपुदमन पच

अगस्त के अश्वारोहियों की दूसरी भिडंत में जबरदस्त उठा पटक

जैसे जीवन के कुछ क्षेत्रों मे हमेशा असंतोष बना रहता है वैसे ही संगीत की दुनिया में कुछ लोग इस तरह की चर्चा करते हैं कि संगीत में तो अब वह बात नहीं रही. हक़ीक़त यह है कि समय,काल,परिवेश के अनुसार संगीत बदला है. चूँकि उसका सीधा ताल्लुक मनुष्य से है जिसका स्वभाव ही परिवर्तन को स्वीकारना है तो संगीत का दौर और कलेवर कैसे स्थायी रह सकता है वह भी बदलेगा ही और हमें उसे बदले रंगरूप में भी स्वीकार करने का जज़्बा पैदा करना पड़ेगा. आवाज़ एक सुरीला ब्लॉग है जहा नयेपन की बयार बहती रहती है.नई आवाज़ें,नये शब्द और नयापन लिये संगीत.इस बार भी पाँच प्रविष्टियाँ मेरे कानों पर आईं और तरबतर कर गईं. मुश्किल था इनमें से किसे कम कहूँ या ज़्यादा. लेकिन जो भी समझ पाया हूँ आपके सामने है. १) नदी हूँ मैं पवन हूँ,मैं धरा या गगन: शब्द अप्रतिम,गायकी अच्छी है शब्द की सफ़ाई पर ध्यान दिया जाने से ये आवाज़ एक बड़ी संभावना बन सकती है,उन्हें गायकी का अहसास है.कम्पोज़िशन मौके के अनुकूल है और मन पर असर करती है. गीत:4.5/5 संगीत:4/5 आवाज़:3/5 कुल प्रभाव 3.5/5 15/20 7.5/10 कुल अंक अब तक 13.5 / 20 २) बेइंतहा प्यार रचना सुन्दर बन पड़ी है.आवाज़ भी