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मोरा गोरा अंग लेई ले....- गुलज़ार, एक परिचय

गुलज़ार बस एक कवि हैं और कुछ नही, एक हरफनमौला कवि, जो फिल्में भी लिखता है, निर्देशन भी करता है, और गीत भी रचता है, मगर वो जो भी करता है सब कुछ एक कविता सा एहसास देता है. फ़िल्म इंडस्ट्री में केवल कुछ ही ऐसे फनकार हैं, जिनकी हर अभिव्यक्ति संवेदनाओं को इतनी गहराई से छूने की कुव्वत रखती है, और गुलज़ार उन चुनिन्दा नामों में से एक हैं, जो इंडस्ट्री की गलाकाट प्रतियोगी वातावरण में भी अपना क्लास, अपना स्तर कभी गिरने नही देते. गुलज़ार का जन्म १९३६ में, एक छोटे से शहर दीना (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ, शायरी, साहित्य और कविता से जुडाव बचपन से ही जुड़ गया था, संगीत में भी गहरी रूचि थी, पंडित रवि शंकर और अली अकबर खान जैसे उस्तादों को सुनने का मौका वो कभी नही छोड़ते थे. ( चित्र में हैं सम्पूरण सिंह यानी आज के गुलज़ार ) गुलज़ार और उनके परिवार ने भी भारत -पाकिस्तान बँटवारे का दर्द बहुत करीब से महसूस किया, जो बाद में उनकी कविताओं में बहुत शिद्दत के साथ उभर कर आया. एक तरफ़ जहाँ उनका परिवार अमृतसर (पंजाब , भारत) आकर बस गया, वहीँ गुलज़ार साब चले आए मुंबई, अपने सपनों के साथ. वोर्ली के एक गेरेज में, ब

समीक्षा के महासंग्राम में, पहले चरण की आखिरी टक्कर

आज हम समीक्षा के पहले चरण के अन्तिम पड़ाव पर हैं, तीसरे समीक्षक की रेटिंग के साथ जुलाई के जादूगरों को प्राप्त अब तक के कुल अंकों को लेकर ये गीत आगे बढेंगें अन्तिम चरण की समीक्षा के लिए, जो होगा सत्र के अंत में यानी जनवरी २००९ में, जिसके बाद हमें मिलेगा, हमारे इस सत्र का सरताज गीत. तो दोस्तों चलते हैं पहले चरण की समीक्षा में, अपने तीसरे और अन्तिम समीक्षक के पास और जानते हैं उनसे, कि उन्होंने कैसे आँका हमारे जुलाई के जादूगर गीतों को - (पहले दो समीक्षकों के राय आप यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं) गीत समीक्षा Stage 01, Third review संगीत दिलों का उत्सव है .... पहला गीत है - संगीत दिलों का उत्सव है... इस गाने की उपलब्धि है मुखड़ा --'संगीत दिलों का उत्सव है- बहुत सुंदर है ये गीत । हालांकि मुझे लगता है कि इस गीत में भी गेय तत्व मुश्किल हो गए हैं । रचना के दौरान कई पंक्तियां लंबी और कठिन बन गयी हैं । पर कुल मिलाकर इन कमियों को इसकी धुन और गायकी में ढक लिया गया है । गायकों की आवाज़ें बढि़या लगीं । और धुन भी । आलाप सुंदर जगह पर रखे गए हैं । गाने का इंट्रोडक्‍शन म्यूजिक बहुत लंबा है पर मधुर है । गि

जीत के गीत संग, मनाएं जश्न -ऐ- आज़ादी

दूसरे सत्र के सातवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. सभी संगीत प्रेमियों को आज़ाद भारत की ६१ वीं सालगिरह मुबारक. कुछ तो है बात जो, हस्ती मिटती नही हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा. महंगाई की मार से बेहाल, आतंकवादी हमलों से सहमे, सांप्रदायिक हिंसा से खौफ खाये, एक बेहद मुश्किल दौर से गुजरते आम आदमी के चेहरे पर तब मुस्कराहट लौट आती है जब दूर बीजिंग से ख़बर आती है, कि एक २४ वर्षीय युवा ने ओलंपिक में तिरंगा लहराया है. अपनी तमाम चिताएं, और परेशानियों को भूलकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर भारतीय फ़िर एक बार भारतीय होने का गर्व महसूस करने लगता है. आज हमें एक नही, दो नही हजारों, करोड़ों अभिनव बिंद्रा चाहिए, जो असंख्य देश प्रेमियों की, अनगिनत कुर्बानियों की बदौलत मिले इस आज़ादी के तोहफे का मान रख सके. आज हिंद युग्म, देश के युवाओं से अपील करता है कि वो आगे बढ़ें और कमान संभालें, राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें, अपने लिए सही राह चुनें, जीत के लक्ष्य को लेकर चलें, और अपने भीतर छुपे "अभिनव" को बाहर लेकर आयें. कुछ ऐसे ही भावों से ओत प्रेत है, हमारा आज के ये गीत भी. इस गीत के माध्यम से एक ब

कृष्णा...अल्लाह...जीसस...

आज़ादी दिवस पर दो नायाब वीडियो खुदा ने इंसान को बनाया, इंसान ने मजहब. और फ़िर मजहबों, खुदाओं और इंसानों ने मिलकर बाँट ली जमीनें, और खींच दी सरहदें दिलों के दरमियाँ...कल ६१ वीं बार आज़ाद भारत में, लहराएगा तिरंगा लालकिले पर, मगर तमाम उपलब्धियों और भविष्य की असीम संभावनाओं के बीच सुलग रहा है, आज भी हिंद. Religion is the reason, the world is breaking up into pieces….everybody wants control, don't hesitate to kill one another.... कहते है लुईस, इस महीने के हमारे विडीयो ऑफ़ दा मंथ में, और कितना सही कहते हैं, ये विडियो आज के हिंद के लिए एक प्रार्थना समान है. Fusion music यानी दो या अधिक तरह के संगीत विधाओं को मिला कर एक नया संगीत रचना, यहाँ ये प्रयोग किया दो महान कलाकारों, हरिहरन और लेसली लुईस ने, भारतीय शास्त्रीय संगीत और वेस्टर्न पॉप को मिलाने का, जब राग यमन कल्याणी को गिटार पर गाया गया तो, युवाओं के मन पर छा गया. गीत का संदेश, बहुत अच्छे रूप में सबके सामने रखने में हाथ रहा है इसके विडियो का भी, black and white फॉर्मेट में चित्रित हुए इस विडियो में एक मार्मिक कहानी बुनी गई है, इस कहानी मे

और दिल जुनून पर है...

राख हो जायेंगे हम, आग का हुस्न फुनून पर है, मोहब्बत बे-इन्तहा है, और दिल जुनून पर है. Love or material needs, whatever you may want is not what you will get. Life moves on & so does your soul. But somewhere deep inside you, there is a place where that vacancy always exists forever & its irreplaceable. ये कहना है सुदीप यशराज का, जो हैं आवाज़ पर इस हफ्ते के, उभरते सितारे. हमने कोशिश की, कि सुदीप भी हमें अपने बारे में हिन्दी में ही लिख कर दें, पर अतिव्यस्तता के चलते वो ऐसा नही कर पाये. तो हमने उनके कथन मूल रूप में ही आपके सामने रख रहे हैं. दिल्ली में जन्मे और पढ़े बढ़े सुदीप इन दिनों मुंबई में हैं. हिंद युग्म पर अपने पहले गीत " बेइंतेहा प्यार. .." को मिले प्रोत्साहन से सुदीप बेहद संतुष्ट हैं. उनका मानना है - Business or music is creative outburst of mind which should achieve satisfaction, life is just a memory if not lived the way you want to. I am not a trained musician & make music for personal satisfaction. I have been lucky to be in the company of some of the gre

लौट चलो पाँव पड़ूँ तोरे श्याम-रफ़ी साहब का एक नायाब ग़ैर फ़िल्मी गीत

विविध भारती द्वारा प्रसारित किया जाने वाला ग़ैर-फ़िल्मी यानी सुगम संगीत रचनाओं का कार्यक्रम रंग-तरंग सुगम संगीत की रचनाओं को प्रचारित करने में मील का पत्थर कहा जाना चाहिये. इस कार्यक्रम के ज़रिये कई ऐसी रचनाएं संगीतप्रेमियों को सुनने को मिलीं हैं जिनके कैसेट अस्सी के दशक में बड़ी मुश्किल से बाज़ार में उपलब्ध हो पाते थे. ख़ासकर फ़िल्म जगत की कुछ नायाब आवाज़ों मो.रफ़ी, लता मंगेशकर, आशा भोसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुरकर, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, उषा मंगेशकर, मनहर, मुबारक बेगम आदि के स्वर में निबध्द कई रचनाएं रंग-तरंग कार्यक्रम के ज़रिये देश भर में पहुँचीं. संगीतकार ख़ैयाम साहब ने फ़िल्मों में कम काम किया है लेकिन जितना भी किया है वह बेमिसाल है. उन्होंने हमेशा क्वॉलिटी को तवज्जो दी है. ख़ैयाम साहब ने बेगम अख़्तर, मीना कुमारी और मोहम्मद रफ़ी साहब को लेकर जो बेशक़ीमती रचनाएं संगीत जगत को दीं हैं उनमें ग़ज़लें और गीत दोनो हैं. सुगम संगीत एक बड़ी विलक्षण विधा है और हमारे देश का दुर्भाग्य है कि फ़िल्म संगीत के आलोक में सुगम संगीत की रचनाओं को एक अपेक्षित फ़लक़ नहीं मिल पाया है. संगीतकार ख़ैयाम ख़ैयाम साहब की संगीतबध्

समीक्षा के अखाडे में दूसरा दंगल

सरताज गीत बनने की जंग शुरू हो चुकी है, जुलाई के जादूगर गीत, जनता की अदालत में हाज़री बजाने के बाद, पहले चरण की समीक्षा की कठिन परीक्षा से गुजर रहे हैं, जैसा की हम बता चुके हैं कि पहले चरण में ३ समीक्षक होंगे और दूसरे और अन्तिम चरण में दो समीक्षक होंगे, समीक्षा का दूसरा चरण सत्र के समापन के बाद यानी जनवरी के महीने शुरू होगा, फिलहाल देखते हैं कि पहले चरण के, दूसरे समीक्षक ने जुलाई के जादूगरों को कितने कितने अंक दिए हैं. इस समीक्षा के अंकों में पहली समीक्षा के अंक जोड़ दिए गए हैं जिसके आधार पर, हमारे श्रोता देख पाएंगे कि कौन सा गीत है, अब तक सबसे आगे. गीत समीक्षा संगीत दिलों का उत्सव है .... पहला गीत है “ संगीत दिलों का उत्सव है …” सभी गीतों में सबसे श्रेष्‍ठ.. गीत संगीत और गायकी सब कुछ एकदम परफेकक्ट ... गीत संगीत और गायकी तीनों पक्षों में ताजगी लगती है। बीच बीच में आलाप बहुत प्रभावित करता है। इस गीत को 8 नंबर दे रहा हूँ। संगीत दिलों का उत्सव है... को दूसरे निर्णायक द्वारा मिले 8/10 अंक, कुल अंक अब तक 14 /20 बढे चलो. दूसरा गीत है “ बढ़े चलो …”, आज के हिन्द का युवा...ठीक कह सकते हैं। बह