Skip to main content

Posts

Showing posts with the label tum mere paas hote ho

सुनिए शिशिर पारखी से ग़ज़ल "तुम मेरे पास होते हो गोया...जब कोई दूसरा नही होता....."

आवाज़ की नई पहल - "एहतराम... उस्ताद शायरों को सलाम." (अंक ०१) ७ अजीम शायरों का आवाज़ पर एहतराम करने से पहले ग़ज़ल के इतिहास पर एक नज़र डालें, बरिष्ट ब्लॉगर अनूप शुक्ला जी(फुरसतिया) ने डॉ अरशद जमाल के इस आलेख को पहली बार इन्टरनेट पर प्रस्तुत किया था, आवाज़ के पाठक / श्रोता भी इससे लाभान्वित हो इस के लिए हम इसे पुनर्प्रस्तुत कर रहे हैं - फ़ारसी से ग़ज़ल उर्दू में आई। उर्दू का पहला शायर जिसका काव्य संकलन(दीवान)प्रकाशित हुआ है,वह हैं मोहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह। आप दकन के बादशाह थे और आपकी शायरी में फ़ारसी के अलावा उर्दू और उस वक्त की दकनी बोली शामिल थी। पिया बाज प्याला पिया जाये ना। पिया बाज इक तिल जिया जाये ना।। क़ुली क़ुतुबशाह के बाद के शायर हैं ग़व्वासी, वज़ही,बह्‌री और कई अन्य। इस दौर से गुज़रती हुई ग़ज़ल वली दकनी तक आ पहुंची और उस समय तक ग़ज़ल पर छाई हुई दकनी(शब्दों की) छाप काफी कम हो गई। वली ने सर्वप्रथम ग़ज़ल को अच्छी शायरी का दर्जा दिया और फ़ारसी के बराबर ला खड़ा किया। दकन के लगभग तमाम शायरों की ग़ज़लें बिल्कुल सीधी साधी और सुगम शब्दों के माध्यम से हुआ करती थीं। वली के सा