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रविवार सुबह की कॉफी और यादें गीतकार गुलशन बावरा की (१५)

सच कहा गया है कि कल्पना की उडान को कोई नहीं रोक सकता. कल्पनाएँ इंसान को सारे जहान की सैर करा देती हैं. ये इंसान की कल्पना ही तो है की वो धरती को माँ कहता है, तो कभी चाँद को नारी सोंदर्य का प्रतीक बना देता है. आसमान को खेल का मैदान, तो तारों को खिलाड़ियों की संज्ञा दे देता है. तभी तो कहते है कल्पना और साहित्य का गहरा सम्बन्ध है. जिस व्यक्ति की सोच साहित्यिक हो वो कहीं भी कोई भी काम करे, पर उसकी रचनात्मकता उसे बार-बार साहित्य के क्षेत्र की और मोड़ने की कोशिश करती है. गुलशन बावरा एक ऐसा ही व्यक्तित्व है जो अपनी साहित्यिक सोच के कारण ही फिल्म संगीत से जुड़े. हालांकि पहले वो रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन उनकी कल्पना कि उड़ान ने उन्हें फिल्म उद्योग के आसमान पर स्थापित कर दिया, जहाँ उनका योगदान ध्रुव तारे की तरह अटल और अविस्मर्णीय है. १२ अप्रैल १९३८ पकिस्तान(अविभाजित भारत के शेखुपुरा) में जन्मे गुलशन बावरा जी का असली नाम गुलशन मेहता है. उनको बावरा उपनाम फिल्म वितरक शांति भाई पटेल ने दिया था. उसके बाद सभी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. हिंदी फिल्म उद्योग के ४९ वर्ष के सेवाकाल में बावरा जी ने २५०

रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात दीपाली "दिशा" के साथ

सफलता और शोहरत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर हमारी मेहनत और प्रयास सच्चे व सही दिशा में हों तो व्यक्ति किसी भी उम्र में सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छू सकता है. सोनू निगम एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने सफलता के कई पायदान पार किये हैं. उन्होंने अपने बहुमुखी व्यक्तित्व को प्रर्दशित किया है. गायन के साथ-साथ सोनू निगम ने अभिनय व माडलिंग भी की है. यद्यपि अभिनय में उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली, किन्तु गायन के क्षेत्र में वह शिखर पर विराजित हैं. उन्होंने गायकी छोड़ी नहीं है. वो आज भी संगीतकारों की पहली पसंद हैं. उनकी आवाज में कशिश व गहराई है. वह कई बार गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज में बदलाव भी लाते हैं जो उनके हरफनमौला गायक होने का परिचय देता है. अपनी पहली एल्बम 'तू' के जरिये वो युवा दिलों के सरताज बन गए थे. उसके बाद उनकी एल्बम 'दीवाना' और 'यादें' आयीं, जिनके गीतों और गायकी की छाप आज भी हमारे जहन में है. अगर सोनू निगम द्वारा गाये गीतों की सूची बनाएं तो पायेंगे कि उन्होंने अपने बेहतरीन अंदाज से सभी गीतों में जान डाल दी है. ऐसा लगता है कि वो गीत सोनू की आवाज के

रविवार सुबह की कॉफी और आपकी पसंद के गीत (13)

"है नाम ही काफी उनका और क्या कहें, कुछ लोग तआर्रुफ के मोहताज नहीं होते" गुलजार उन्ही चंद लोगों में से एक हैं जिन्हें किसी परिचय की जरुरत नहीं है. गुलज़ार एक ऐसा नाम है जो उत्कृष्ट और उम्दा साहित्य का पर्याय बन गया है. आज अगर कही भी गुलज़ार जी का नाम आता है लोगों को विश्वास होता है कि हमें कुछ बेहतरीन ही पढ़ने-सुनने को मिलेगा. आवाज हो या लेखन दोनों ही क्षेत्रों में गुलजार जी का कोई सानी नहीं. गुलजार लफ्जों को इस तरह बुन देते है कि वो आत्मा को छूते हैं. शायद इसीलिए वो बच्चों, युवाओं और बूढों में समान रूप से लोकप्रिय है. गुलज़ार जी का स्पर्श मात्र ही शब्दों में प्राण फूँक देता है और ऐसा लगता है जैसे शब्द किसी कठपुतली की तरह उनके इशारों पर नाचने लगे है. उनकी कल्पना की उडान इतनी अधिक है कि उनसे कुछ भी अछूता नहीं रहा है. वो हर नामुमकिन को हकीकत बना देते हैं. उनके कहने का अंदाज बिलकुल निराला है. वो श्रोता और पाठक को ऐसी दुनिया में ले जाते है जहां लगता ही नहीं कि वो कुछ कह रहे है ऐसा प्रतीत होता है जैसे सब कुछ हमारे आस-पास घटित हो रहा है. कभी-कभी सोचती हूँ, गुलजार जी कोई एक व्

रविवार सुबह की कॉफी और आपकी पसंद के गीत (12)

जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं साहित्य, कला और संगीत ऐसे तीन स्तम्भ हैं जो हमारे देश की आन, बान और शान का प्रतीक हैं. इन तीनों ही के योगदान ने देश को सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाया है. इतिहास गवाह है कि साहित्य और संगीत के द्वारा हमारे साहित्यकारों ने देश के लोगों को जागरूक करने का काम किया है. चाहें गुलामी की जंजीरों से आजाद होने की प्रेरणा हो या फिर टुकडों में बँटे देश को जोड़ने का प्रयास, इन साहित्यकारों ने अपना योगदान बखूबी दिया है. इनकी कलम से निकले शब्दों ने पत्थर हृदयों में भी स्वाभिमान और देशप्रेम का जज़्बा पैदा कर दिया. कहते है कि "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुचे कवि". अर्थात कवियों की कल्पना से कोइ भी अछूता नहीं है. जो काम अन्य लोगों को असंभव दिखा वो कार्य इन कवियों ने अपनी कलम की ताकत के द्वारा कर दिखाया. भारतीय रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी को कौन नहीं जानता. उनके द्वारा लिखे "वन्दे मातरम" गीत ने करोड़ों भारतीयों के सीने में अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य और प्रेम के भाव को जागृत कर दिया. यही

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (११)

नोट - आज से रविवार सुबह की कॉफी में आपकी होस्ट होंगी - दीपाली तिवारी "दिशा" रविवार सुबह की कॉफी का एक और नया अंक लेकर आज हम उपस्तिथ हुए हैं. वैसे तो मन था कि आपकी पसंद के रक्षा बंधन गीत और उनसे जुडी आपकी यादों को ही आज के अंक में संगृहीत करें पर पिछले सप्ताह हुई एक दुखद घटना ने हमें मजबूर किया कि हम शुरुआत करें उस दिवंगत अभिनेत्री की कुछ बातें आपके साथ बांटकर. फिल्म जगत में अपने अभिनय और सौन्दर्य का जादू बिखेर एक मुकाम बनाने वाली अभिनेत्री लीला नायडू को कौन नहीं जानता. उनका फिल्मी सफर बहुत लम्बा तो नहीं था लेकिन उनके अभिनय की धार को "गागर में सागर" की तरह सराहा गया. लीला नायडू ने सन १९५४ में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीता था और "वोग" मैग्जीन ने उन्हें विश्व की सर्वश्रेष्ठ दस सुन्दरियों में स्थान दिया था. लीला नायडू ने अपना फिल्मी सफर मशहूर फिल्मकार ह्रशिकेश मुखर्जी की फिल्म "अनुराधा" से शुरु किया. इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता बलराज साहनी की पत्नि की भूमिका निभायी थी. अनुराधा फिल्म के द्वारा लीला नायडू के अभिनय को सराहा गया और फिल्म को सर्वश्रे

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (10)

पराग सांकला जी से हमारे सभी नियमित श्रोता परिचित हैं. इन्हें हम आवाज़ पर गीता दत्त विशेषज्ञ कहते हैं, सच कहें तो इनके माध्यम से गीता दत्त जी की गायिकी के ऐसे अनछुवे पहलूओं पर हम सब का ध्यान गया है जिसके बारे में शायाद हम कभी नहीं जान पाते. एक बार पहले भी पराग ने आपको गीता जी के गाये कुछ मधुर और दुर्लभ प्रेम गीत सुनवाए थे, इसी कड़ी को आज आगे बढाते हुए आज हम सुनते हैं गीता जी के गाये १४ और प्रेम गीत. ये हिंद युग्म परिवार की तरह से भाव भीनी श्रद्धाजंली है गायिका गीता दत्त को जिनकी कल ३७ वीं पुण्यतिथि है. पेश है पराग जी के नायाब संकलन में से कुछ अनमोल मोती इस रविवार सुबह की कॉफी में गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे. सन १९४८ में पंजाब के जाने माने संगीतकार हंसराज बहल के लिए फिल्म "चुनरिया" के लिए गीता ने गाया था "ओह मोटोरवाले बाबू मिलने आजा रे, तेरी मोटर रहे सलामत बाबू मिलने

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (९)

जून २५, २००९ को संगीत दुनिया का एक आफताबी सितारा हमेशा के लिए रुखसत हो गया. माइकल जोसफ जैक्सन जिन्हें लोग प्यार से "जैको" भी कहते थे, आधुनिक संगीत के एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्तम्भ थे, जिन्हें "किंग ऑफ़ पॉप" की उपाधि से भी नवाजा गया. एक संगीतमय परिवार में जन्में जैक्सन ने १९६८ में अपने पूरे परिवार के सम्मिलित प्रयासों से बने एल्बम "जैक्सन ५" से अपना सफ़र शुरू किया. १९८२ में आई उनकी एल्बम "थ्रिलर" विश्व भर में सबसे अधिक बिकने वाली एल्बम का रिकॉर्ड रखती है. "बेड", "डेंजरस" और "हिस्ट्री" जैसी अल्बम्स और उनके हिट गीतों पर उनके अद्भुत और अनूठे नृत्य संयोजन, उच्चतम श्रेणी के संगीत विडियो, संगीत के माध्यम से सामाजिक सरोकारों की तरफ दुनिया का ध्यान खीचना, अपने लाइव कार्यक्रमों के माध्यम से अनूठे प्रयोग कर दर्शकों का अधिकतम मनोरंजन करना आदि जैको की कुछ ऐसी उपलब्धियां हैं, जिन्हें छू पाना अब शायद किसी और के बस की बात न हो. जैको का प्रभाव पूरे विश्व संगीत पर पड़ा तो जाहिर है एशियाई देशों में भी उनका असर देखा गया. उनके नृत्य की नक

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (8)

केतन मेहता एक सुलझे हुए निर्देशक हैं. मिर्च मसाला जैसी संवेदनशील फिल्म बनाकर उच्च कोटि के निर्देशकों में अपना नाम दर्ज कराने के बाद १९९३ में केतन लेकर आये -"माया मेमसाब". एक अनूठी फिल्म जो बेहद बोल्ड अंदाज़ में एक औरत के दिल की गहराइयों में उतरने की कोशिश करती है. फिल्म बहुत जटिल है और सही तरीके से समझने के लिए कम से कम दो बार देखने की जरुरत पड़ सकती है एक आम दर्शक को पर यदि फिल्म क्राफ्ट की नज़र से देखें तो इसे एक दुर्लभ रचना कहा जा सकता है. हर किरदार नापा तुला, सच के करीब यहाँ तक कि एक फ़कीर के किरदार, जो कि रघुवीर यादव ने निभाया है के माध्यम से भी सांकेतिक भाषा में बहुत कुछ कहा गया है फिल्म में. माया हिंदी फिल्मों की सामान्य नायिकाओं जैसी नहीं है. वह अपने तन और मन की जरूरतों को खुल कर व्यक्त करती है. वो मन को "बंजारा' कहती है और शरीर की इच्छाओं का दमन भी नहीं करती. वह अपने ही दिल के शहर में रहती है, थोडी सी मासूम है तो थोडा सा स्वार्थ भी है रिश्तों में. माया के इस जटिल किरदार पर परदे पर साकार किया दीपा साही ने जो "तमस" धारावाहिक से पहले ही अपने अभिनय का

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (7)

क्‍या आपको याद है नाजिया हसन की 1980 में जब एकाएक ही एक नाम संगीत में धूमकेतू की तरह उभरा था और पूरा देश गुनगुना रहा था 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये '' उस समय ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने वर्ष के श्रेष्‍ठ गीत की दौड़ में फिल्‍म आशा के गीत "शीशा हो या दिल हो" को पछाड़ कर बिनाका सरताज का खिताब हासिल कर लिया था । उस समय फिल्‍मी गीतों का सबसे विश्‍वसनीय काउंट डाउन बिनाका गीत माला में लगातार 14 सप्‍ताह तक ये गीत नंबर वन रहा । "कुर्बानी" के इस गीत को गाने वाली गायिका थी नाजिया हसन और संगीत दिया था बिद्दू ने । एक बिल्‍कुल अलग तरह का संगीत जो कि साजों से ज्यादह इलेक्‍ट्रानिक यंत्रों से निकला था उसको लोगों ने हाथों हाथ लिया । नाजिया की बिल्‍कुल नए तरह की आवाज का जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा । नाजिया का जन्‍म 3 अप्रैल 1965 को कराची पाकिस्‍तान में हुआ था । और जब नाजिया ने कुर्बानी फिल्‍म का ये गीत गाया तो नाजिया की उम्र केवल पन्‍द्रह साल थी । इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए बिद्दू ने नाजिया को प्राइवेट एल्‍बम लांच करने का विचार किया