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चित्रकथा - 67: हिन्दी फ़िल्मी गीतों में रबीन्द्र संगीत की छाया

अंक - 67 हिन्दी फ़िल्मी गीतों में रबीन्द्र संगीत की छाया "कोई जैसे मेरे दिल का दर खटकाए..."  जहाँ एक तरफ़ फ़िल्म-संगीत का अपना अलग अस्तित्व है, वहीं दूसरी तरफ़ फ़िल्म-संगीत अन्य कई तरह के संगीत पर भी आधारित रही है। शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत और पाश्चात्य संगीत का प्रभाव फ़िल्म-संगीत पर हमेशा से रहा है। उधर बंगाल की संस्कृति में रबीन्द्र संगीत एक अहम धारा है; गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं के बिना बांगला संगीत, नृत्य और साहित्य अधूरा है। समय-समय पर हिन्दी सिने संगीत जगत के संगीतकारों ने भी रबीन्द्र-संगीत को अपने फ़िल्मी गीतों का आधार बनाया है। आगामी 7 मई को कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर के जन्म-जयंती के उपलक्ष्य में आइए आज ’चित्रकथा’ में हम उन हिन्दी फ़िल्मी गीतों पर एक नज़र डालें जो रबीन्द्र संगीत की धुनों से प्रेरित हैं। आज का यह अंक कविगुरु को समर्पित है। (7 May 1861 – 7 August 1941) क विगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर के लिखे गीतों का, जिन्हें हम "रबीन्द्र-संगीत" के नाम से जानते हैं, बंगाल के साहित्य, कल

चित्रकथा - 66: हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-3)

अंक - 66 हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-3) "उतरा ना दिल में कोई उस दिलरुबा के बाद..."  ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! फ़िल्म जगत एक ऐसा उद्योग है जो पुरुष-प्रधान है। अभिनेत्रियों और पार्श्वगायिकाओं को कुछ देर के लिए अगर भूल जाएँ तो पायेंगे कि फ़िल्म निर्माण के हर विभाग में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में ना के बराबर रही हैं। जहाँ तक फ़िल्मी गीतकारों और संगीतकारों का सवाल है, इन विधाओं में तो महिला कलाकारों की संख्या की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। आज ’चित्रकथा’ में हम एक शोधालेख लेकर आए हैं जिसमें हम बातें करेंगे हिन्दी फ़िल्म जगत के महिला गीतकारों की, और उनके द्वारा लिखे गए यादगार गीतों की। पिछले अंक में इस लेख का दूसरा भाग प्रस्तुत किया गया था, आज प्रस्तुत है इसका तीसरा और अंतिम भाग। Rani Malik ’हि न्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार’ की दूसरी कड़ी माया गोविंद पर जा कर समाप्त हुई थी। 90 के दशक में माया गोविंद के अलावा जिन महिला गीतकार ने अपने सुपरहिट गीतों से धूम मच

चित्रकथा - 65: भीमसेन को श्रद्धांजलि - 40 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है फ़िल्म ’घरौंदा’

अंक - 6५ फ़िल्मकार भीमसेन को श्रद्धांजलि 40 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है फ़िल्म ’घरौंदा’  17 अप्रैल 2018 को जानेमाने फ़िल्मकार भीमसेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत में ऐनिमेशन के भीष्म-पितामह का दर्जा रखने वाले भीमसेन 70 के दशक में समानान्तर सिनेमा का आंदोलन छेड़ने वाले फ़िल्मकारों में भी एक सम्माननीय नाम हैं। मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान में) में वर्ष 1936 में जन्में भीमसेन खुराना देश विभाजन के बाद लखनऊ स्थानान्तरित हो गए थे। कलाकारों के परिवार से ताल्लुख़ रखने की वजह से संगीत और कला उन्हें विरासत में ही मिली। ललित कला और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त करने की वजह से जीवन भर वो एक अच्छी जगह पर बने रहे। 1961 में भीमसेन ने बम्बई का रुख़ किया और Films Division में बैकग्राउंड पेन्टर की नौकरी कर ली। वहीं पर उन्होंने ऐनिमेशन कला की बारीकियाँ सीख ली। 1971 में भीमसेन स्वतंत्र रूप से फ़िल्म-निर्माण के कार्य में उतरे और अपनी पहली ऐनिमेटेड लघु फ़िल्म ’The Climb' बनाई जिसके लिए उन्हें Chicago Film Festival में "Silver Hugo award" से सम्मानित किया

चित्रकथा - 64: हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-2)

अंक - 64 हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-2) "प्यार है अमृत कलश अंबर तले..."  ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! फ़िल्म जगत एक ऐसा उद्योग है जो पुरुष-प्रधान है। अभिनेत्रियों और पार्श्वगायिकाओं को कुछ देर के लिए अगर भूल जाएँ तो पायेंगे कि फ़िल्म निर्माण के हर विभाग में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में ना के बराबर रही हैं। जहाँ तक फ़िल्मी गीतकारों और संगीतकारों का सवाल है, इन विधाओं में तो महिला कलाकारों की संख्या की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। आज ’चित्रकथा’ में हम एक शोधालेख लेकर आए हैं जिसमें हम बातें करेंगे हिन्दी फ़िल्म जगत के महिला गीतकारों की, और उनके द्वारा लिखे गए यादगार गीतों की। पिछले अंक में इस लेख का पहला भाग प्रस्तुत किया गया था, आज प्रस्तुत है इसका दूसरा भाग। त्रुटि सुधार ’हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार’ लेख के पहले भाग में हमने जद्दन बाई को प्रथम महिला संगीतकार होने की बात कही थी, जो सही नहीं है। सही नाम है इशरत जहाँ। इशरत जहाँ ने 1934 की फ़िल्म ’अद्ल-ए-जहांगीर’ में संगीत दिया था और जद्द

चित्रकथा - 63: अभिनेता राज किशोर को श्रद्धांजलि

अंक - 63 अभिनेता राज किशोर को श्रद्धांजलि नहीं रहे ’पड़ोसन’ के ’लाहौरी’ फ़िल्म जगत के जानेमाने चरित्र अभिनेता राज किशोर जी का 6 अप्रैल 2018 को 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने बहुत सी फ़िल्मों में छोटी पर यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं। यह अफ़सोसजनक बात है कि आज उनके जाने के बाद अधिकांश लोगों ने केवल ’पड़ोसन’ और ’शोले’ के साथ उनके नाम को जोड़ा जबकि उनके द्वारा अभिनीत फ़िल्मों की सूची बहुत लम्बी है। 1949 से 1997 के बीच राज किशोर जी ने 90 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। आइए आज ’चित्रकथा’ में हम एक नज़र डालें राज किशोर अभिनीत फ़िल्मों पर, और उनके द्वारा निभाए महत्वपूर्ण चरित्रों की बातें करें। ’चित्रकथा’ का आज का यह अंक समर्पित है स्वर्गीय राज किशोर की पुण्य स्मृति को! को ई अभिनेता दर्शकों के दिलों पर राज करे, इसके लिए यह कत‍ई ज़रूरी नहीं है कि उस अभिनेता द्वारा निभाए गए किरदार लम्बी अवधि के हों। अगर अभिनेता में काबिलियत है तो चन्द मिनटों के अभिनय से ही वो बाज़ी मार सकते हैं। फ़िल्म जगत में ऐसे कई चरित्र अभिनेता हुए हैं