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महफ़िल ए कहकशां - 17, मेरा दिल तड़पे दिलदार बिना.. राहत साहब की दर्दीली आवाज़ में इस ग़मनशीं नज़्म का असर हज़ार गुणा हो जाता है

महफ़िल ए कहकशाँ 17   राहत फ़तेह अली खान दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ में एक पंजाबी नगमा|  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-2)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-2 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। अगले पाँच सप्ताह, हर शनिवार हम आपके लिए लेकर आएँगे वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। आइए इस लघु श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज चर्चा करते हैं उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए मार्च और अप्रैल के महीनों में। 2016 के हिन्दी फ़िल्म गीत समीक्षा की पहली कड़ी आकर पिछले सप्ताह रुकी थी ’बॉलीवूड डायरीज़’ पर। मार्च का महीना शुरु हुआ फ़िल्म ’ज़ुबान’ से। इस फ़िल्म में तीन संगीतकार थे - आशु पाठक, मनराज पातर और इश्क बेक्टर। वरुण ग्रोवर और आशु पाठक का लिखा रशेल वरगीज़ का गीत "म्युज़िक इ

परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी

कहकशाँ - 25 अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी    "परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की

"सातों बार बोले बंसी" और "जाने दो मुझे जाने दो" जैसे नगीनों से सजी है आज की "गुलज़ार-आशा-पंचम"-मयी महफ़िल

कहकशाँ - 24 गुलज़ार, पंचम और आशा ’दिल पड़ोसी है’ में    "दिल पड़ोसी है, मगर मेरा तरफ़दार नहीं..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी

"इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत...”, बटालवी के इस कविता की क्यों ज़रूरत आन पड़ी ’उड़ता पंजाब’ में?

एक गीत सौ कहानियाँ - 99   ' इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों,  हम  रोज़ाना  रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'|  इसकी 99-वीं कड़ी में आज जानिए 2016 की फ़िल्म ’उड़ता पंजाब’ के मशहूर गीत "इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत ग़ुम है

"या तो अभी शुरु में संघर्ष कर लो और बाद में आराम से रहो, या फिर अभी आराम कर लो और बूढ़े होने के बाद संघर्ष करो"

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 18   सोनू निगम ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं।  आज का यह अंक केन्द्रित है सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक सोनू निगम पर।      सो नू निगम का जन्म फ़रिदाबाद में हुआ था, परवरिश उनकी दिल्ली में, और बाद में मुम्बई में हुई। पिता मात

अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा

कहकशाँ - 23 गुलज़ार, पंचम और आशा ’दिल पड़ोसी है’ में    "भीनी भीनी भोर आई..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ।  आज प