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तेरे नैनों के मैं दीप जलाऊँगा....नेत्र दान महादान, जिन्दा रखिये अपनी आँखों को सदा के लिए

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 56 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नम्स्कार! दोस्तों, भगवान से इन्सान और पशुओं को जितनी भी अनमोल चीज़ें मिली हैं, उनमें सबसे अनमोल देन है आँखें। आँखें, जिनसे हम दुनिया को देखते हैं, अपने प्रियजनों को देखते हैं। अपने संतान को बड़ा होते देखने में जो सुख है, वह शायद सबसे सुखद अनुभूति है, और यह भी हम अपनी आँखों से ही देखते हैं। पर ज़रा सोचिए उन लोगों के बारे में जिनकी आँखों में रोशनी नहीं है, जो नेत्रहीन हैं। कितनी अन्धेरी, कितनी बेरंग होती होगी उनकी दुनिया, क्या इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं! पर मैं और आप अपने एक छोटे से प्रयास से कम से कम एक नेत्रहीन को नेत्र ज़रूर प्रदान कर सकते हैं। २५ अगस्त से ४ सितम्बर भारत में 'राष्ट्रीय नेत्रदान सप्ताह' के रूप में पालित किया जाता है। आइए आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में इसी पर चर्चा की जाए। चर्चा क्या दोस्तो, आइए आपको एक कहानी सुनाता हूँ जो मुझे इंटरनेट पर ही प्राप्त हुई थी। यह एक सत्य घटना है अनीता टेरेसा अब्राहम के जीवन की। I don't remember my grandfath

फिर मत कहना कि सिस्टम ख़राब है...

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 55 ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नम्स्कार! दोस्तों, अभी इसी हफ़्ते हमनें अपने देश की आज़ादी का ६५-वाँ वर्षगांठ मनाया। हम अक्सर इस बात पर ख़ुश होते हैं कि विदेशी ताक़तों नें जब भी हम पर आक्रमण किया या जब भी हमें ग़ुलाम बनाने की कोशिशें की, तो हर बार हमनें अपने आप को आज़ाद किया, दुश्मनों की धज्जियाँ उड़ाईं। पर 'स्वाधीनता दिवस' की ख़ुशियाँ मनाते हुए या कारगिल विजय पर नाज़ करते हुए हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि हम अब भी ग़ुलाम हैं हमारी सरज़मीन पर ही पनपने वाले भष्टाचार के। क्या आप यह जानते हैं कि अंग्रेज़ों नें २०० साल में इस देश को इतना नहीं लूटा जितना इस देश के भ्रष्टाचारियों ने इन ६४ सालों में लूट लिया। इन दिनों देश के हर शहर में, हर गाँव में, हर कस्बे में एक नई क्रान्ति की लहर आई है जिसकी चर्चा हर ज़बान पर है। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' के ज़रिए हम आप तक पहुँचाना चाहते हैं एक अपील। "अगर हम अपनी प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करने को तैयार नहीं है तो हम आज़ादी के हकदार भी नहीं है। देश सेवा एक क़ुर्बा

वे एक स्वाभिमानी गीतकार थे, जिसने नैतिकता के विरुद्ध कभी समझौता नहीं किया

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 53- गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की जन्म-शती पर स्मरण 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी पाठकों-श्रोताओं को कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है, आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। आज के इस साप्ताहिक विशेषांक में हम हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार-पत्रकार, फिल्मों के चर्चित गीतकार और उत्तर छायावाद के अनूठे कवि गोपाल सिंह नेपाली का स्मरण करेंगे। इस वर्ष कवि-गीतकार श्री नेपाली का जन्मशती वर्ष है। 11 अगस्त, 1911 को बिहार के चम्पारण जिलान्तर्गत बेतिया नामक स्थान में हुआ था। यह वही क्षेत्र है जहाँ से महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन का प्रारम्भ किया था। यह इस भूमि का ही प्रभाव था कि 1962 में चीन के आक्रमण के दिनों में कवि गोपाल सिंह नेपाली ने सैनिकों की प्रशस्ति में और देशवासियों में जन-चेतना जागृत करने के लिए देशभक्ति से ओतप्रोत अनेक गीतों की रचना की थी। उनकी उस दौर की रचनाओं में सर्वाधिक चर्चित और प्रभावशाली रचना थी- "बर्फों में पिघलने को चला है लाल सितारा, चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा..."। वे एक स्वाभिमानी गीतकार

रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजली एक चित्र-प्रदर्शनी के ज़रिये, चित्रकार हैं श्रीमती मधुछंदा चटर्जी

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 52 ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ७०० अंक पूरे कर चुका है, और अब देखते ही देखते 'शनिवार विशेषांक' भी आज अपना एक साल पूरा कर रहा है। पिछले साल ३१ जुलाई की शाम हमनें इस साप्ताहिक स्तंभ की शुरुआत की थी 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के रूप में, और उस पहले अंक में हमनें गुड्डो दादी का ईमेल शामिल किया था जो समर्पित था गायिका सुरिंदर कौर को। आज ३० जुलाई 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेषांक' की ५२ वी कड़ी में हम नमन कर रहे हैं गायकी के बादशाह मोहम्मद रफ़ी साहब को, जिनकी कल ३१ जुलाई को पुण्यतिथि है। लेकिन उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने का ज़रिया जो हमने चुना है, वह ज़रा अलग हट के है। हम न उन पर कोई आलेख प्रस्तुत करने जा रहे हैं और न ही उन पर केन्द्रित कोई साक्षात्कार लेकर आये हैं। बल्कि हम प्रस्तुत कर रहे हैं एक चित्र-प्रदर्शनी। यह रफ़ी साहब के चित्रों की प्रदर्शनी ज़रूर है, लेकिन यह प्रदर्शनी खींची हुई तस्वीरो

OIG - शनिवार विशेष - 51 - "किशोर दा के कई गीतों में पिताजी का बड़ा योगदान था"

पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) अपने पिता व विस्मृत संगीतकार भोला श्रेष्ठ को याद करते हुए... Bhola Shreshtha (PC: Minal Rajendra Misra) ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, १९३१ से लेकर अब तक फ़िल्म-संगीत संसार में न जाने कितने संगीतकार हुए हैं, जिनमें से बहुत से संगीतकारों को अपार सफलता और शोहरत हासिल हुई, और बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जिन्हें वो मंज़िल नसीब नहीं हुई जिसकी वो हक़दार थे। कभी छोटी बजट की फ़िल्मों में मौका पाने की वजह से तो कभी स्टण्ट या धार्मिक फ़िल्मों का ठप्पा लगने की वजह से, कभी व्यक्तिगत कारणों से और कभी कभी सिर्फ़ क़िस्मत के खेल की वजह से ये प्रतिभाशाली संगीतकार गुमनामी में रह कर चले गए। पर फ़िल्म-संगीत के धरोहर को अपनी सुरीली धुनों से समृद्ध कर गए। ऐसे ही एक कमचर्चित पर गुणी संगीतकार हुए भोला श्रेष्ठ। आज की पीढ़ी के अधिकतर नौजवानों को शायद यह नाम कभी न सुना हुआ लगे, पर गुज़रे ज़माने के सुरीले संगीत में दिलचस्पी रखने वालों को भोला जी का नाम ज़रूर याद होगा।

अदभुत प्रतिभा की धनी गायिका मिलन सिंह से बातचीत

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 50 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, यूं तो यह साप्ताहिक विशेषांक है, पर इस बार का यह अंक वाक़ई बहुत बहुत विशेष है। इसके दो कारण हैं - पहला यह कि आज यह स्तंभ अपना स्वर्ण जयंती मना रहा है, और दूसरा यह कि आज हम जिस कलाकार से आपको मिलवाने जा रहे हैं, वो एक अदभुत प्रतिभा की धनी हैं। इससे पहले कि हम आपका परिचय उनसे करवायें, हम चाहते हैं कि आप नीचे दी गई ऑडिओ को सुनें। मेडली गीत कभी मोहम्मद रफ़ी, कभी किशोर कुमार, कभी गीता दत्त, कभी शम्शाद बेगम, कभी तलत महमूद और कभी मन्ना डे के गाये हुए इन गीतों की झलकियों को सुन कर शायद आपको लगा हो कि चंद कवर वर्ज़न गायक गायिकाओं के गाये ये संसकरण हैं। अगर ऐसा ही सोच रहे हैं तो ज़रा ठहरिए। हाँ, यह ज़रूर है कि ये सब कवर वर्ज़न गीतों की ही झलकियाँ थीं, लेकिन ख़ास बात यह कि इन्हें गाने "वालीं" एक ही गायिका हैं। जी हाँ, यह सचमुच चौंकाने वाली ही बात है कि इस गायिका को पुरुष और स्त्री कंठों में बख़ूबी गा सकने की अ

ओल्ड इस गोल्ड -शनिवार विशेष - संगीतकार दान सिंह को भावभीनी श्रद्धाजंली

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। फ़िल्म-संगीत के सुनहरे दौर के बहुत से ऐसे कमचर्चित संगीतकार हुए हैं जिन्होंने बहुत ही गिनी चुनी फ़िल्मों में संगीत दिया, पर संख्या में कम होने की वजह से ये संगीतकार धीरे धीरे हमारी आँखों से ओझल हो गये। हम भले इनके रचे गीतों को यदा-कदा सुन भी लेते हैं, पर इनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है। यहाँ तक कि कई बार इनकी खोज ही नहीं मिल पाती, ये जीवित हैं या नहीं, सटीक रूप से कहा भी नहीं जा सकता। और जिस दिन ये संगीतकार इस जगत को छोड़ कर चले जाते हैं, उस दिन उनके परिवार वालों के सहयोग से किसी अख़्बार के कोने में यह ख़बर छप जाती है कि फ़लाना संगीतकार नहीं रहे। पिछले महीने एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकार हमसे हमेशा के लिए जुदा हो गये। लीवर की बीमारी से ग्रस्त, ७८ वर्ष की आयु में संगीतकार दान सिंह नें १८ जून को अंतिम सांस ली। दान सिंह का नाम लेते ही फ़िल्म 'माइ लव' के दो गीत "वो तेरे प्यार का ग़म" और "ज़िक्र होता है जब क़यामत का&quo

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 46 - "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत - भाग-2 पहले पढ़ें भाग १ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। पिछले शनिवार से हमनें इसमें शुरु की है शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है', जो कि केन्द्रित है सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई हमारी बातचीत पर। आइए आज प्रस्तुत है इस शृंखला की दूसरी कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, एक बार फिर हम आपका स्वागत करते है 'आवाज़' पर, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, पिछले हफ़्ते हमारी बातचीत आकर रुकी थी पंडित जी के आयुर्वेद ज्ञान की चर्चा पर। साथ ही आपनें पंडित जी के शुरुआती दिनों के बारे में बताया था। आज बातचीत हम शुरु करते हैं उस मोड़ से जहाँ पंडित जी मुंबई आ पहुँचते हैं। हमने सुना है कि पंडित जी ३० वर्ष की आयु में बम्बई आये थे भगवती चरण वर्मा के साथ। यह बताइए कि इससे पहले उनकी क्या क्या उपलब्धियाँ थी बतौर कवि और साहित्यिक। बम्बई आकर फ़िल्म जगत से जुड़ना क्यों ज़रूरी हो गया? लावण्या जी -

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 45 "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत भाग-१ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। शनिवार की इस साप्ताहिक प्रस्तुति होती है ख़ास, आम प्रस्तुतियों से ज़रा हट के, जिसमे हम कभी साक्षात्कार, कभी विशेषालेख, और कभी आप ही के भेजे ई-मेल शामिल करते हैं। आज इस इस स्तंभ में हम शुरु कर रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार, उत्तम साहित्यकार, कवि, दार्शनिक, आयुर्वेद के ज्ञाता और विविध भाषाओं के महारथी, स्व: पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से की हुई लम्बी बातचीत पर आधारित लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है'। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की पहली कड़ी। लावण्या जी से ईमेल के माध्यम से लम्बी बातचीत की है आपके इस दोस्त सुजॉय नें। सुजॉय - लावण्या जी, आपका बहुत बहुत स्वागत है 'आवाज़' पर, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते, सुजॉय भाई, आपका व 'हिंद-युग्म' का आभार जो आपने आज मुझे याद किया। सुजॉय - यह हमारा सौभाग्य है आपको पाना, और आप से आपके पापाजी, यानी पंडित जी के बारे में जानना। युं तो आप नें उन

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 44 - 'उषा मंगेशकर से ट्विटर पर छोटी सी मुलाक़ात और उनके गाये चंद असमीया फ़िल्मी गीत'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, शनिवार विशेषांक के साथ मैं, आपका दोस्त सुजॉय, हाज़िर हूँ। पिछले दिनों 'हिंद-युग्म' नें मुझे 'लोकप्रिय गोपीनाथ बार्दोलोई हिंदी सेवी सम्मान' से जब सम्मानित किया था, तो मेरी ख़ुशी की सीमा न थी। यह ख़ुशी सिर्फ़ इस बात की नहीं थी कि मैं पुरस्कृत हो रहा था, बल्कि इस बात की भी थी कि यह पुरस्कार उस महान शख़्स के नाम पर था जो उसी जगह से ताल्लुख़ रखते थे जहाँ से मैं हूँ। जी हाँ, आसाम की सरज़मीं। आसाम, जहाँ मेरा जन्म हुआ, जहाँ से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की, और जहाँ से मेरी नौकरी जीवन की शुरुआत हुई। उस रोज़ मैं उस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए यह सोच रहा था कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिये मुझे यह पुरस्कार दिया गया है, तो क्यों न 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक विशेषांक असमीया फ़िल्म संगीत को लेकर की जाये! तभी मुझे याद आया कि पिछले साल, जून के महीने में, जब तीनों मंगेशकर बहनों का ट्विटर पर आगमन हुआ, उस वक़्त मैंने लता जी और उषा जी से कुछ सवाल पूछे थे, जिनमें से कुछ के उन दोनों ने जवाब भी दिये थे। आपको याद होगा लता जी से की हुई बातचीत को ह

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 43 - बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले तीन हफ़्तों से इसमें हम आप तक पहुँचा रहे हैं फ़िल्म जगत के सफलतम गीतकारों में से एक, आनन्द बक्शी साहब के सुपुत्र राकेश बक्शी से की हुई बातचीत पर आधारित लघु शृंखला 'बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनन्द बक्शी'। इस शृंखला की पिछली तीन कड़ियाँ आप नीचे लिंक्स पर क्लिक करके पड्ज़ सकते हैं। भाग-१ भाग-२ भाग-३ आइए आज प्रस्तुत है इस ख़ास बातचीत की चौथी व अंतिम कड़ी। सुजॉय - नमस्कार राकेश जी, और फिर एक बार स्वागत है 'हिंद-युग्म' के 'आवाज़' मंच पर। राकेश जी - नमस्कार! सुजॉय - पिछले सप्ताह हमारी बातचीत आकर रुकी थी बक्शी साहब के गाये गीत पर, "बाग़ों में बहार आई"। बात यहीं से आगे बढ़ाते हैं, क्या कहना चाहेंगे बक्शी साहब के गायन प्रतिभा के बारे में? राकेश जी - बक्शी जी को गायन से प्यार था और अपने आर्मी और नेवी के दिनों में अपने साथियों को गाने सुना कर उनका मनोरंजन करते थे। और आर्मी में रहते हुए ही उनके साथियों नें उनको गायन के लिये प्रोत्साहित किया। उन साथियों नें

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 42 - बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी

अब तक आपने पढ़ा भाग १ भाग २ नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, शनिवार की इस ख़ास प्रस्तुति को पिछले दो हफ़्तों से हम ख़ास बना रहे हैं फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार आनंद बक्शी के बेटे राकेश बक्शी के साथ बातचीत कर। पिछली दो कड़ियों में आपनें जाना कि किस तरह का माहौल हुआ करता था बक्शी साहब के घर का, कैसी शिक्षा/अनुशासन उन्होंने अपने बच्चों को दी, उनकी जीवन-संगिनी नें किस तरह का साथ निभाया, और भी कई दिल को छू लेने वाली बातें। आइए बातचीत के उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है शृंखला 'बेटे राकेश बक्शी की नज़रों में गीतकार आनंद बक्शी' की तीसरी कड़ी। सुजॉय - राकेश जी, नमस्कार! मैं, हिंद-युग्म की तरफ़ से आपका फिर एक बार स्वागत करता हूँ। राकेश जी - नमस्कार! सुजॉय - राकेश जी, आज सबसे पहले तो मैं आपको यह बता दूँ कि यह जो हमारी और आपकी बातचीत चल रही है, यह हमारे पाठकों को बहुत पसंद आ रही है। और यही नहीं, इसकी इंटरव्यु की चर्चा मीडिया तक पहुँच चुकी है। पिछले सोमवार को 'हिंदुस्तान' अखबार में इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए थे। यह हमार