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"माँ तो माँ है...", माँ दिवस पर विश्व की समस्त माँओं को समर्पित एक नया गीत

यूँ तो यह माना जाता है कि कवि किसी भी विषय पर लिख सकता है, अपने भाव व्यक्त कर सकता है और अमूमन ऎसा होता भी है। लेकिन दुनिया में अकेली एक ऎसी चीज है जिसे आज तक कोई भी शब्दों में बाँध नहीं सका है। और उस शय का नाम है "माँ"। माँ....जो बच्चे के मुख से निकला पहला शब्द होता है और शायद अंतिम भी, माँ जो हर रोज सुबह को जगाती है और शाम को चादर दे सुला देती है, माँ जो हर कुछ में है लेकिन ऎसा व्यक्त करती है मानो कुछ में भी न हो। माँ.......जो पिता का संबल है, बेटे की जिद्द है और बेटी की रीढ है ... माँ जो निराशा में आशा की एक किरण है, चोट में मलहम है, धूप में गीली मिट्टी है और ठण्ड में हल्की सी धूप है, माँ .....जो और कुछ नहीं, बस माँ है... बस माँ!! मिट्टी पे दूब-सी, कुहे में धूप-सी, माँ की जाँ है, रातों में रोशनी, ख्वाबों में चाशनी, माँ तो माँ है, चढती संझा, चुल्हे की धाह है, उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है। माँ...खुद में हीं बेपनाह है । ....ऎसी मेरी , उनकी, आपकी, हम सबकी माँ है। ये शब्द हैं कवि और गीतकार, विश्व दीपक "तन्हा" के. पर क्या शब्दों में बांधा जा सकता है "माँ" क

इन्टरनेट पर बना पहला इंडो रशियन मैत्री गीत - द्रुज़्बा

"सर पे लाल टोपी रूसी, फ़िर भी दिल है हिन्दुस्तानी...." जब राज कपूर ने चैपलिन अंदाज़ में इस गीत पर कदम थिरकाए, तब वो रूस में इतने लोकप्रिय साबित हुए कि वो और उनकी पूरी टीम रूस में हिन्दुस्तानी भाषा, कला और संस्क्रति की पहचान ही बन गए. १९५० में राजनितिक आवश्यकताओं और व्यापार उद्देश्यों के चलते दोनों देशों के बीच जिस रिश्ते की बुनियाद पड़ी थी कालांतर में संगीत और कला के आदान प्रदान ने उसे एक आत्मीय दोस्ती में तब्दील कर दिया. रूस की झलक फिल्मों में भी खूब रही, राज कपूर की ही "मेरा नाम जोकर" और अभी हालिया प्रर्दशित "दसविदानिया" में भी रुसी कनक्शन देखने को मिला है. एक ऐसा ही मौका हिंद युग्म को भी मिला, जब दिल्ली स्थित रशियन कल्चरल सेंटर ने हिंद युग्म के गीत संगीत प्रभाग से भारत रूस दोस्ती पर एक गीत बनाने का आग्रह किया. हर बार की तरह युग्म की टीम एक बार फ़िर उम्मीदों पर खरी उतरी, और फरवरी के पहले सप्ताह में जो गीत हमने सेंटर को भेजा समीक्षा के लिए, उसे १९ तारिख को होने वाले एक भव्य समारोह के लिए चुन लिया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि इस गीत की सी डी को उसी कार्यक्

एक गीत उन सब के नाम जो आतंक के ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत रखते हैं...

दूसरे सत्र के २३ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज पिछले ७-८ दिनों में हमने क्या क्या नही देखा. देश की व्यवसायिक राजधानी पर आतंकी हमला, बंधक बने देशी-विदेशी नागरिक, खौफ का नया चेहरा लेकर सर उठाता आतंकवाद, स्तब्ध और सहमा हुआ आम आदमी, एक तरफ़ बेसुराग अंधेरों में स्वार्थ की रोटियां सेकते हमारे कर्णधार तो दूसरी तरफ़ अपनी जान पर खेल कर आतंकियों से लोहा लेते हमारे जांबाज़ देशभक्तों की फौज. इन सब अव्यवस्थाओं के बीच भी कुछ ऐसा हुआ जिसने बुझती उम्मीदों को एक नई रोशनी दे दी. इस राष्ट्रीय आपदा में जैसे पूरा देश, जिसे चंद स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने टुकड़े टुकड़े करने में कोई कसर नही छोडी थी, फ़िर से एक जुट हो गया. जातवाद, प्रांतवाद, धरम और भाषा के नाम पर देश को बांटने वाले देश के अंदरूनी दुश्मनों को पार्श्व में धकेलते हुए पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, हिंदू मुस्लिम, अमीर गरीब, सब की संवेदनायें जैसे एक मत हो गई. एक बेहद अनचाही परिस्थिति से गुजरकर ही सही पर ये क्या कम है की एक सोये हुए देश की अवाम फ़िर से जागृत हो गई. ये हमला सिर्फ़ मुंबई या हिंदुस्तान पर नही है, समस्त इंसानियत के दामन पर है. मानवता

मेरी आगोश में आज है...कहकशां....

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ चटख नीली नसों से भरे और उंगलियों में भरी हुई उड़ान मैं सोचता हूँ तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप और उसकी गर्म आंचश मैं जीत्ताता हूँ तुमको तुम्हारे व्याकरण और नारीत्व की शर्तो के साथ मैं हारता हूँ एक पूरी उम्र तुम्हारे एवज में! हिंद युग्म के इस माह के यूनिकवि डॉ मनीष मिश्रा की इन पक्तियों में छुपे कुछ भाव लिए है हमारे दूसरे सत्र का ये २२ वां गीत जहाँ "जीत के गीत" की तिकडी ऋषि एस , बिस्वजीत नंदा और सजीव सारथी लौटे हैं लेकर एक नया गीत "तू रूबरू" लेकर. सुनिए ये ताज़ा तरीन गीत और अपने विचार देकर हमारा मार्गदर्शन/ प्रोत्साहन करें. The composer singer and lyricist trio Rishi S , Biswajith Nanda , and Sajeev Sarathie of super successful "jeet ke geet" fame is back again with their new creation called "tu ru-ba-ru". This time the mood is much more romantic with a bit sufiayana feel in it. so enjoy this brand new offering from the awaaz team, and leave your valuable comments. Lyrics- गीत के बोल तू रूबरू.... चार सू....सिर्फ़ तू...

जीत के गीत संग, मनाएं जश्न -ऐ- आज़ादी

दूसरे सत्र के सातवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. सभी संगीत प्रेमियों को आज़ाद भारत की ६१ वीं सालगिरह मुबारक. कुछ तो है बात जो, हस्ती मिटती नही हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा. महंगाई की मार से बेहाल, आतंकवादी हमलों से सहमे, सांप्रदायिक हिंसा से खौफ खाये, एक बेहद मुश्किल दौर से गुजरते आम आदमी के चेहरे पर तब मुस्कराहट लौट आती है जब दूर बीजिंग से ख़बर आती है, कि एक २४ वर्षीय युवा ने ओलंपिक में तिरंगा लहराया है. अपनी तमाम चिताएं, और परेशानियों को भूलकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर भारतीय फ़िर एक बार भारतीय होने का गर्व महसूस करने लगता है. आज हमें एक नही, दो नही हजारों, करोड़ों अभिनव बिंद्रा चाहिए, जो असंख्य देश प्रेमियों की, अनगिनत कुर्बानियों की बदौलत मिले इस आज़ादी के तोहफे का मान रख सके. आज हिंद युग्म, देश के युवाओं से अपील करता है कि वो आगे बढ़ें और कमान संभालें, राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें, अपने लिए सही राह चुनें, जीत के लक्ष्य को लेकर चलें, और अपने भीतर छुपे "अभिनव" को बाहर लेकर आयें. कुछ ऐसे ही भावों से ओत प्रेत है, हमारा आज के ये गीत भी. इस गीत के माध्यम से एक ब

हमेशा लगता है, कि यह गीत और बेहतर हो सकता था....

दोस्तो, आवाज़ पर इस हफ्ते के "फीचर्ड कलाकार" है, युग्म के संगीत खजाने को पाँच गीतों से सजाने वाले ऋषि एस . संगीतकार ए आर रहमान के मुरीद, ऋषि हमेशा ये कोशिश करते हैं कि वो हर बार पहले से कुछ अलग करें. उनके हर गीत को अब तक युग्म के श्रोताओं ने सर आँखों पे बिठाया है, कभी मात्र शौकिया तौर पर वोइलिन बजाने वाले ऋषि, अब बतौर संगीतकार भी ख़ुद को महत्त्व देने लगे हैं, युग्म ने की ऋषि एस से एक ख़ास बातचीत. ( ऋषि मूल रूप से हिन्दी भाषी नही हैं, पर उन्होंने हिन्दी में अपने जवाब लिखने की कोशिश की है, तो हमने उनकी भाषा में बहुत अधिक संशोधन न करते हुए, यहाँ रखा है, ऋषि हिन्दी को शिखर पर देखने की, हिंद युग्म की मुहीम के पुरजोर समर्थक है, और युग्म के लिए वार्षिक अंशदान भी देते हैं ) हिंद युग्म - स्वागत है ऋषि, "मैं नदी..." आपका ५ वां गीत है, कैसे रहा अब तक का सफर युग्म के संगीत के साथ ? ऋषि -सबसे पहले मैं हिंद युग्म को शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, मेरे जैसे "amateur" संगीतकारों को अपना "talent" प्रदर्शन करने का मौका दिया है. हर गाने का "feedback" पढ़कर न

आज के हिंद के युवा का, नया मन्त्र है - " बढ़े चलो ", WORLD WIDE OPENING OF THE SONG # 02 "BADHE CHALO"

जुलाई माह का दूसरा शुक्रवार, और हम लेकर हाज़िर हैं सत्र का दूसरा गीत. पिछले सप्ताह आपने सुना, युग्म के साथ सबसे नए जुड़े संगीतकार निखिल वर्गीस का गीत " संगीत दिलों का उत्सव है ", और आज उसके ठीक विपरीत, हम लाये हैं युग्म के सबसे वरिष्ठ संगीतकार ऋषि एस का स्वरबद्ध किया, नया गीत, अब तक ऋषि, युग्म को अपने तीन बेहद खूबसूरत गीतों से नवाज़ चुके हैं, पर उनका यह गीत उन सब गीतों से कई मायनों में अलग है, मूड, रंग और वाद्य-संयोजन के आलावा इसमें, उन्हें पहले से कहीं अधिक लोगों की टीम के साथ काम करना पड़ा, तीन गीतकारों, और दो गायकों के साथ समन्वय बिठाने के साथ साथ उन्होंने इस गीत में बतौर गायक अपनी आवाज़ भी दी है, शायद तभी इस गीत को मुक्कमल होने में लगभग ६ महीने का समय लगा है. गीत का मूल उद्देश्य, हिंद युग्म की विस्तृत सोच को आज के युवा वर्ग से जोड़ कर उन्हें एक नया मन्त्र देने का है - "बढ़े चलो" के रूप में. गीत के दोनों अंतरे युग्म के स्थायी कवि अलोक शंकर द्वारा लिखी एक कविता, जिसे युग्म का काव्यात्मक परिचय भी माना जाता है , से लिए गए हैं. ”बढ़े चलो” का नारा कवि अवनीश गौतम ने दिया