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रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात दीपाली "दिशा" के साथ

सफलता और शोहरत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर हमारी मेहनत और प्रयास सच्चे व सही दिशा में हों तो व्यक्ति किसी भी उम्र में सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छू सकता है. सोनू निगम एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने सफलता के कई पायदान पार किये हैं. उन्होंने अपने बहुमुखी व्यक्तित्व को प्रर्दशित किया है. गायन के साथ-साथ सोनू निगम ने अभिनय व माडलिंग भी की है. यद्यपि अभिनय में उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली, किन्तु गायन के क्षेत्र में वह शिखर पर विराजित हैं. उन्होंने गायकी छोड़ी नहीं है. वो आज भी संगीतकारों की पहली पसंद हैं. उनकी आवाज में कशिश व गहराई है. वह कई बार गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज में बदलाव भी लाते हैं जो उनके हरफनमौला गायक होने का परिचय देता है. अपनी पहली एल्बम 'तू' के जरिये वो युवा दिलों के सरताज बन गए थे. उसके बाद उनकी एल्बम 'दीवाना' और 'यादें' आयीं, जिनके गीतों और गायकी की छाप आज भी हमारे जहन में है. अगर सोनू निगम द्वारा गाये गीतों की सूची बनाएं तो पायेंगे कि उन्होंने अपने बेहतरीन अंदाज से सभी गीतों में जान डाल दी है. ऐसा लगता है कि वो गीत सोनू की आवाज के

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (११)

नोट - आज से रविवार सुबह की कॉफी में आपकी होस्ट होंगी - दीपाली तिवारी "दिशा" रविवार सुबह की कॉफी का एक और नया अंक लेकर आज हम उपस्तिथ हुए हैं. वैसे तो मन था कि आपकी पसंद के रक्षा बंधन गीत और उनसे जुडी आपकी यादों को ही आज के अंक में संगृहीत करें पर पिछले सप्ताह हुई एक दुखद घटना ने हमें मजबूर किया कि हम शुरुआत करें उस दिवंगत अभिनेत्री की कुछ बातें आपके साथ बांटकर. फिल्म जगत में अपने अभिनय और सौन्दर्य का जादू बिखेर एक मुकाम बनाने वाली अभिनेत्री लीला नायडू को कौन नहीं जानता. उनका फिल्मी सफर बहुत लम्बा तो नहीं था लेकिन उनके अभिनय की धार को "गागर में सागर" की तरह सराहा गया. लीला नायडू ने सन १९५४ में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीता था और "वोग" मैग्जीन ने उन्हें विश्व की सर्वश्रेष्ठ दस सुन्दरियों में स्थान दिया था. लीला नायडू ने अपना फिल्मी सफर मशहूर फिल्मकार ह्रशिकेश मुखर्जी की फिल्म "अनुराधा" से शुरु किया. इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता बलराज साहनी की पत्नि की भूमिका निभायी थी. अनुराधा फिल्म के द्वारा लीला नायडू के अभिनय को सराहा गया और फिल्म को सर्वश्रे

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (7)

क्‍या आपको याद है नाजिया हसन की 1980 में जब एकाएक ही एक नाम संगीत में धूमकेतू की तरह उभरा था और पूरा देश गुनगुना रहा था 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये '' उस समय ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने वर्ष के श्रेष्‍ठ गीत की दौड़ में फिल्‍म आशा के गीत "शीशा हो या दिल हो" को पछाड़ कर बिनाका सरताज का खिताब हासिल कर लिया था । उस समय फिल्‍मी गीतों का सबसे विश्‍वसनीय काउंट डाउन बिनाका गीत माला में लगातार 14 सप्‍ताह तक ये गीत नंबर वन रहा । "कुर्बानी" के इस गीत को गाने वाली गायिका थी नाजिया हसन और संगीत दिया था बिद्दू ने । एक बिल्‍कुल अलग तरह का संगीत जो कि साजों से ज्यादह इलेक्‍ट्रानिक यंत्रों से निकला था उसको लोगों ने हाथों हाथ लिया । नाजिया की बिल्‍कुल नए तरह की आवाज का जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा । नाजिया का जन्‍म 3 अप्रैल 1965 को कराची पाकिस्‍तान में हुआ था । और जब नाजिया ने कुर्बानी फिल्‍म का ये गीत गाया तो नाजिया की उम्र केवल पन्‍द्रह साल थी । इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए बिद्दू ने नाजिया को प्राइवेट एल्‍बम लांच करने का विचार किया

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (4)

दोस्तों, यादें बहुत अजीब होती हैं, अक्सर हम हंसते हैं उन दिनों को याद कर जब साथ रोये थे, और रोते हैं उन पलों को याद कर जब साथ हँसे थे. इसी तरह किसी पुराने गीत से गुजरना यादों की उन्हीं खट्टी मीठी कड़ियों को सहेजना है. यदि आप २५ से ४० की उम्र-समूह में हैं तो हो सकता है आज का ये एपिसोड आपको फिर से जवानी के उन दिनों में ले जाये जब पहली पहली बार दिल पर चोट लगी थी. बात १९९१ के आस पास की है, भारतीय फिल्म संगीत एक बुरे दशक से गुजरने के बाद फिर से "मेलोडी" की तरफ लौटने की कोशिश कर रहा था. सुनहरे दौर की एक खासियत ये थी कि लगभग हर फिल्म में कम से कम एक दर्द भरा नग्मा अवश्य होता था, और मुकेश, रफी, किशोर जैसी गायकों की आवाज़ में ढल कर वो एक मिसाल बन जाता था. मारधाड़ से भरी फिल्मों के दौर में दर्दीले नग्में लगभग खो से चुके थे तो जाहिर है उन दिनों दिल के मारों के लिए उन पुराने नग्मों की तरफ लौंटने के सिवा कोई चारा भी नहीं था. ऐसे में सरहद पार से आई एक ऐसी सदा जिसने न सिर्फ इस कमी को पूरा कर दिया बल्कि टूटे दिलों के खालीपन को कुछ इस तरह से भर दिया, कि सदायें लबालब हो उठी. जी हाँ हम बात कर र