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लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से लक्ष्मी प्यारे..और आज के एल पी तक...एक सुनहरा अध्याय

३७ लंबे वर्षों तक श्रोताओं को दीवाना बनाकर रखने वाले इस संगीत जोड़ी को अचानक ही हाशिये पर कर दिया गया. आखिर ऐसा क्यों हुआ. ५०० से भी अधिक फिल्में, अनगिनत सुपरहिट गीत, पर फ़िर भी संगीत कंपनियों ने और मिडिया ने उन्हें नई पीढी के सामने उस रूप में नही रखा जिस रूप में कुछ अन्य संगीतकारों को रखा गया. गायक महेंद्र कपूर ने एक बार इस मुद्दे पर अपनी राय कुछ यूँ रखी थी- "उनका संगीत पूरी तरह से भारतीय था, जहाँ लाइव वाद्यों का भरपूर प्रयोग होता था. चूँकि उनके अधिकतर गीत मेलोडी प्रधान हैं उनका रीमिक्स किया जाना बेहद मुश्किल है और संगीत कंपनियाँ अपने फायदे के लिए केवल उन्हीं को "मार्केट" करती हैं जिनके गीतों में ये "खूबी" होती है." ये बात काफ़ी हद तक सही प्रतीत होती है. पर अगर हम बात करें हिट्स की तो किसी भी सच्चे हिन्दी फ़िल्म संगीत के प्रेमी को जो थोड़ा बहुत भी बीते सालों पर अपनी नज़र डालने की जेहमत करें वो बेझिझक एल पी के बारे में यह कह सकेगा - "बॉस" कौन था मालूम है जी... चलिए इस बात को कुछ तथ्यों के आधार पर परखें - हिन्दी फिल्मों कि स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर न

हम होंगे कामियाब

कभी कभी छोटी छोटी कोशिशें एक बड़ी सोच का रूप धारण कर लेती है. और फ़िर उस सोच का अंकुर पल्लवित होकर एक बड़ा वृक्ष बनने की दिशा में बढ़ने लगता है और उसकी शाखायें आसमान को छूने निकल पड़ती है. आज से ठीक एक साल पहले २७ अक्टूबर २००७ की शाम को हिंद युग्म ने अपना पहला संगीतबद्ध गीत जारी किया था. दिल्ली, हैदराबाद और नागपुर में बैठे एक गीतकार, एक संगीतकार और एक गायक ने ऑनलाइन बैठकों के माध्यम से तैयार किया था एक अनूठा गीत "सुबह की ताजगी". और इसी के साथ नींव पड़ी एक विचार की जो आज आपके सामने "आवाज़" के रूप में फल फूल रहा है. हिंद युग्म ने महसूस किया कि जिस तरह हमने उभरते हुए कवियों,कथाकारों और बाल साहित्य सृजकों को एक मंच दिया क्यों न इन नए गीतकारों,संगीतकारों और गायकों को भी हम एक ऐसा आधार दें जहाँ से ये बिना किसी बड़े निवेश के अपनी कला का नमूना दुनिया के सामने रख सकें. चूँकि इन्टनेट जुडाव का माध्यम था तो दूरियां कोई समस्या ही नही थी. कोई भी कहीं से भी एक दूसरे से जुड़ सकता था बस कड़ी जोड़नी थी हिंद युग्म के साथ. सिलसिला शुरू हुआ तो एक से बढ़कर एक कलाकार सामने आए. मात्र तीन महीने

वो खंडवा का शरारती छोरा

किशोर कुमार का नाम आते ही जेहन में जाने कितनी तस्वीरें, जाने कितनी सदायें उभर कर आ जाती है. किशोर दा यानी एक हरफनमौला कलाकार, एक सम्पूर्ण गायक, एक लाजवाब शक्सियत. युग्म के वाहक और किशोर दा के जबरदस्त मुरीद, अवनीश तिवारी से हमने गुजारिश की कि वो किशोर दा पर, "आवाज़" के लिए एक श्रृंखला करें. आज हम सब के प्यारे किशोर दा का जन्मदिन है, तो हमने सोचा क्यों न आज से ही इस श्रृंखला का शुभारम्भ किया जाए. पेश है अवनीश तिवारी की इस श्रृंखला का पहला अंक, इसमें उन्होंने किशोर दा के फिल्मी सफर के शुरूवाती दस सालों पर फोकस किया है, साथ में है कुछ दुर्लभ तस्वीरें भी. किशोर कुमार ( कालावधी १९४७ - १९६० )- वो खंडवा का शरारती छोरा यह एक कठिन प्रश्न है कि किशोर कुमार जैसे हरफनमौला व्यक्तित्व के विषय में जिक्र करते समय कहाँ से शुरुवात करें आइये सीधे बढ़ते है उनके पेशेवर जीवन ( प्रोफेसनल करिअर ) के साथ , जो उनकी पहचान है बात करते है उनके शुरू के दशक की, याने १९४७ - १९६० तक की बड़े भाई अशोक कुमार के फिल्मों में पैर जमाने के बाद छोटे भाई आभास यानी हमारे चहेते किशोर और मझले भाई अनूप बम्बई ( मुम्बई )