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प्रातःकाल के राग : SWARGOSHTHI – 301 : MORNING RAGAS

स्वरगोष्ठी – 301 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 1 : दिन के प्रथम प्रहर के राग ‘जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए...’   "रेडियो प्लेबैक इण्डिया" के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हम एक नई श्रृंखला- ‘राग और गाने-बजाने का समय’ आरम्भ कर रहे हैं। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात, संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बा

प्रातःकाल के राग : SWARGOSHTHI – 232 : MORNING RAGA

स्वरगोष्ठी – 232 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 1 : दिन के प्रथम प्रहर के राग ‘जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हम एक नई श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ आरम्भ कर रहे हैं। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सू

रागमाला गीत – 1 : प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट

  प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 1 राग बहार, बागेश्री, यमन कल्याण, केदार, भैरव और मेघ मल्हार के रंग बिखेरता रागमाला गीत ‘मधुर मधुर संगीत सुनाओ...’ फिल्म : संगीत सम्राट तानसेन  संगीतकार : एस.एन. त्रिपाठी  गायक : पूर्णिमा सेठ, पंढारीनाथ कोल्हापुरे और मन्ना डे आलेख : कृष्णमोहन मिश्र  स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन

रागमाला के रंग एस एन त्रिपाठी के सुरों के संग

स्वरगोष्ठी – 111 में आज रागमाला – 1 ‘मधुर मधुर संगीत सुनाओ...’ : संगीतकार एस.एन. त्रिपाठी जन्मशती पूर्णता पर विशेष ‘स्वरगोष्ठी’ की एक नई श्रृंखला- ‘रागमाला’ के नए अंक के साथ आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। इस लघु श्रृंखला के लिए हमें अनेक संगीत-प्रेमियों के, विशेष रूप से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों की कई फरमाइशें प्राप्त हुई हैं। कुछ संगीत-प्रेमियों ने तो रागमाला के कुछ अपनी पसन्द के गीत भी भेजे हैं। उन सभी संगीत-प्रेमियों के प्रति आभार प्रदर्शित करते हुए हम यह आश्वासन देते हैं कि इस श्रृंखला में हम इन्हें उनके नाम के साथ प्रकाशित/प्रसारित करेंगे। श्रृंखला का आज के पहले अंक का रागमाला गीत लखनऊ के चार संगीत के विद्यार्थियों- गुंजा सिंह, आरती खत्री, यश शुक्ला और सैयद आमिर अली ने उपलब्ध कराया है और रागमाला श्रृंखला में शामिल करने का अनुरोध किया है। इनके अनुरोध पर आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘संगीत सम्राट तानसेन’ का बेहद चर्चित रागमाला गीत। फि