दोस्तों लीजिए पेश है वर्ष २०१२ का एक और प्लेबैक ओरिजिनल. ये गीत है वरिष्ठ कवि मेहन्द्र भटनागर का लिखा जिसे स्वरबद्ध किया और गाया है उन्हीं के गुणी सुपुत्र कुमार आदित्य ने, जो कि एक उभरते हुए गायक संगीतकार हैं. सुनें और टिप्पणियों के माध्यम से सम्न्बधित फनकारों तक पहुंचाएं.
गीत के बोल -
नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ नीरव जलने वाले तारो ! मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ अविरल बहने वाली धारो !
सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ मन्थर मुक्त हवा के झोंको ! जिसने चाँद चुराया मेरा उसको सत्वर भगकर रोको ! नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ तरुओ ! पहरेदार हज़ारों, चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने पूरे स्वर से नाम पुकारो ! दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद ! नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ?
बैंगलोर में कार्यरत और मूल रूप से उत्तर भारतीय नितिन दुबे हैं हमारे इस माह के आर्टिस्ट ऑफ द मंथ, जो कि एक गीतकार भी और संगीतकार भी. नितिन कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहते जो पहले हो चुका हो. इसी कोशिश का नतीजा है कि आपको उनकी हर रचना में एक नयापन दिखेगा, फिर वो चाहे उनकी कलम से निकला कोई गीत हो या फिर उनकी बनायीं हुई कोई धुन. एक लंबे अरसे से नितिन अपने ओरिजिनल गीतों से श्रोताओं का मनोरंजन कर रहे हैं, आईये सुनते हैं उन्हीं उनके अब तक के सफर की दास्ताँ, उन्हीं की जुबानी और जानते हैं कि उनकी संगीत यात्रा अब तक किन किन मोडों से होकर गुजरी है. लीजिए दोस्तों, ओवर टू नितिन