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राग बागेश्री : SWARGOSHTHI – 377 : RAG BAGESHRI

स्वरगोष्ठी – 377 में आज राग से रोगोपचार – 6 : रात्रि के दूसरे प्रहर का राग बागेश्री असामान्य मनःस्थितियों को दूर भगाता है राग बागेश्री विदुषी मालिनी राजुरकर मन्ना डे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, इस श्रृंखला के लेखक, संगीतज्ञ और इसराज तथा मयूरवीणा के सुविख्यात वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मानव का शरीर प्रकृति की अनुपम देन है। बाहरी वातावरण के प्रतिकूल प्रभाव से मानव के तन और मन में प्रायः कुछ विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन विकृतियों को दूर करने के लिए हम विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों की शरण में जाते हैं। पूरे विश्व में रोगोपचार की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित है। भारत में हजारों वर्षों से योग से रोगोपचार की परम्परा जारी है। प्राणायाम का तो पूरा आधार ही श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होता है। संगीत में स्वरोच्चार भी श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होते हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल

संगीत के प्रचार, प्रसार और संरक्षण में संलग्न एक साधक

स्वरगोष्ठी – 171 में आज व्यक्तित्व – 1 : पण्डित विश्वनाथ श्रीखण्डे   ‘छवि दिखला जा बाँके साँवरिया ध्यान लगे मोहे तोरा...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आपके प्रिय स्तम्भ की आज से एक नई लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ आरम्भ हो रही है। इस श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ ऐसे संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे जिन्होंने मंच अथवा विभिन्न प्रसारण माध्यमों पर प्रदर्शन से इतर संगीत के प्रचार, प्रसार, शिक्षा, संरक्षण या अभिलेखीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हम भारतीय संगीत के उच्चकोटि के कलाकार होने के साथ ही संगीत के शास्त्रीय और प्रायोगिक पक्ष के विद्वान पण्डित विश्वनाथ वि. श्रीखण्डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे। वर्ष 1983 से 1993 तक उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में सचिव पद पर रहते हुए उन्होने भारतीय संगीत के प्रचार-प्रसार के साथ ही अभिलेखीकरण का उल्लेखनी

तंत्रवाद्य मयूर वीणा की विकास यात्रा

स्वरगोष्ठी – 165 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 3 तत और वितत जाति के वाद्यों का अनोखा गुण है तंत्रवाद्य मयूर वीणा में मयूर वीणा ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का उल्लेख करेंगे। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक प्राचीन भारतीय तंत्रवाद्य की चर्चा कर रहे हैं, जो वर्तमान में लुप्तप्राय है। आज हमारी चर्चा में लुप्तप्राय तंत्रवाद्