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ये खेल होगा नहीं दुबारा...बड़ी हीं मासूमियत से समझा रहे हैं "निदा" और "जगजीत सिंह"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५० म हफ़िल-ए-गज़ल की जब हमने शुरूआत की थी, तब हमने सोचा भी नहीं था कि गज़लों का यह सफ़र ५०वीं कड़ी तक पहुँचेगा। लेकिन देखिए, देखते हीं देखते वह मुकाम भी हमने हासिल कर लिया। यह आप सबके प्यार और हौसला-आफ़ज़ाई के कारण हीं मुमकिन हो पाया है, नहीं तो हर बार कुछ नया लाना इतना आसान नहीं होता। उम्मीद है कि हम आपकी उम्मीदों पर खड़े उतर रहे हैं। हर बार आपके लिए कुछ नया लाने में हमारा भी बड़ा फ़ायदा है। न जाने ऐसे कितने नगीने हैं जो मिट्टी-तले दबे रहते हैं और उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए हम हर बार आपके सामने आते रहते हैं। आपने जिस तरह हमारा आज तक साथ दिया है, बस यही इल्तज़ा है कि आगे भी साथ बने रहिएगा। इसी दुआ के साथ पिछली कड़ी के अंकों का खुलासा करते हैं। तो हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शामिख जी: २ अंक और शरद जी: १ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: हम आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब आज के या फिर पिछली कड़ियों के आलेख मे

घायल जो करने आए वही चोट खा गए........"गुमनाम" के शब्द और "रेशमा" आपा का दर्द

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४९ ब ड़े दिनों के बाद ऐसा हुआ कि महफ़िल में हाज़िरी लगाने के मामले में सीमा जी पिछड़ गईं और महफ़िल का मज़ा कोई और लूट गया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पिछली महफ़िल की प्रश्न-पहेली की। वैसे अगर शरद जी के लिए कुछ कहना हो तो हम यही कहेंगे कि "बड़े दिनों के बाद उन बेवतनों को याद वतन की मिट्टी आई है।" यूँ तो आप महफ़िल से कभी भी गायब नहीं हुए लेकिन ऐसा आना भी क्या आना कि आने की खबर न हो। वैसे तो हम सीधे-सादे गणित में अंकों का हिसाब लगाया करते हैं, लेकिन इस बार हमने सोचा कि क्यों न अंकों के मायाजाल में थोड़ा उलझा जाए। तो अगर हम ४७वीं कड़ी की प्रश्न-पहेली के अंकों को देखें तो हिसाब कुछ यूँ था: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक और शामिख जी: १ अंक। अब हम इन अंकों को एक चक्रीय क्रम में आगे की ओर सरका देते हैं। फिर जो हिसाब बनता है, वही पिछली कड़ी की अंक-तालिका है यानि कि सीमा जी: १ अंक, शरद जी: ४ अंक और शामिख जी: २ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| तो ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: ५० वें अंक तक हम हर बार आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब उस दिन के या फिर पि

क्या टूटा है अन्दर अन्दर....इरशाद के बाद महफ़िल में गज़ल कही "शहज़ाद" ने...साथ हैं "खां साहब"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४८ पि छली कड़ी में पूछे गए दो सवालों में से एक सवाल था "गुलज़ार" साहब के उस मित्र का नाम बताएँ जिसने गुलज़ार साहब के बारे में कहा था कि "कहीं पहले मिले हैं हम"। जहाँ तक हमें याद है हमने महफ़िल-ए-गज़ल की ३६वीं कड़ी में उन महाशय का परिचय "मंसूरा अहमद" के रूप में दिया था। जवाब के तौर पर सीमा जी, शरद जी और शामिख जी में बस सीमा जी ने हीं "मंसूरा अहमद" लिखा, बाकियों ने "मंसूरा" को शायद टंकण में त्रुटि समझकर "मंसूर" कर दिया। चाहते तो हम "मंसूर" को गलत उत्तर मानकर अंकों में कटौती कर देते, लेकिन हम इतने भी बुरे नहीं। इसलिए आप दोनों को भी पूरे अंक मिल रहे हैं। लेकिन आपसे दरख्वास्त है कि आगे से ऐसी गलती न करें। वैसे अगर आपने कहीं "मंसूर अहमद" पढ रखा है तो कृप्या हमें भी अवगत कराएँ ताकि हमें उनके बारे में और भी जानकारी मिले। अभी तो हमारे पास उन कविताओं के अलावा कुछ नहीं है। हाँ तो इस बात को मद्देनज़र रखते हुए पिछली कड़ी के अंकों का हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक, शामिख जी: १ अंक। अ

ये बात मैं कैसे भूल जाऊँ कि हम कभी हमसफ़र रहे हैं....."बख्शी" साहब और "अनवर" की अनोखी जुगलबंदी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४७ अ मूमन तीन या चार कड़ियों से हमारी प्रश्न-पहेली का हाल एक-सा है। तीन प्रतिभागी (नाम तो सभी जानते हैं) अपने जवाबों के साथ इस पहेली का हिस्सा बनते हैं, उनमें से हर बार "सीमा" जी प्रथम आती हैं और बाकी दो स्थानों के लिए शामिख जी और शरद जी में होड़ लगी होती है। भाईयों बस दूसरे या तीसरे स्थान के लिए हीं होड़ क्यों है, पहले पर भी तो नज़र गड़ाईये। इस तरह तो बड़े हीं आराम से सीमा जी न जाने कितने मतों (यहाँ अंकों) के साथ विजयी हो जाएँगी और आपको बस दूसरे स्थान से हीं संतोष करना होगा। अभी भी ४ कड़ियाँ बाकी हैं (आज को जोड़कर),इसलिए पूरी ताकत लगा दीजिए। इस उम्मीद के साथ कि आज की पहेली में काँटे की टक्कर देखने को मिलेगी, हम पिछली कड़ी के अंकों का खुलासा करते हैं: सीमा जी: ४ अंक, शामिख जी: २ अंक और शरद जी: १ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की, तो कमर कस लीजिए। ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: ५० वें अंक तक हम हर बार आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब उस दिन के या फिर पिछली कड़ियों के आलेख में छुपे होंगे। अगर आपने पिछली कड़ियों को सही से पढा होगा तो आपको जवाब

ये बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो.... महफ़िल में पहली मर्तबा "नुसरत" और "फ़ैज़" एक साथ

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४६ पि छली कड़ी में जहाँ सारे जवाब परफ़ेक्ट होते-होते रह गए थे(शरद जी अपने दूसरे जवाब के साथ कड़ी संख्या जोड़ना भूल गए थे), वहीं इस बार हमें इस बात की खुशी है कि पहली मर्तबा किसी ने कोई गलती नहीं की है। खुशी इस बात की भी है कि जहाँ हमारे बस दो नियमित पहेली बूझक हुआ करते थे(सीमा जी और शरद जी), वहीं इसी फ़ेहरिश्त में अब शामिख जी भी शामिल हो गए हैं। उम्मीद करते हैं कि धीरे-धीरे और भी लोग हमारी इस मुहिम में भाग लेने के लिए आगे आएँगे। अभी भी ५ कड़ियाँ बाकी हैं, इसलिए कभी भी सारे रूझान बदल सकते हैं। इसलिए सभी प्रतिभागियों से आग्रह है कि वे जोर लगा दें और जो अभी भी किसी शर्मो-हया के कारण खुद को छुपाए हुए हैं,वे पर्दा हटा के सामने आ जाएँ। चलिए अब पिछली कड़ी के अंकों का हिसाब करते हैं। इस बार का गणित बड़ा हीं आसान है: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक, शामिख जी: १ अंक। और हाँ, शरद जी आपकी यह बहानेबाजी नहीं चलेगी। महफ़िल-ए-गज़ल में आपको आना हीं होगा और जवाब भी देना होगा। चलिए, अब बारी है आज के प्रश्नों की| तो ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: ५० वें अंक तक हम हर बार आ

एक कोने में गज़ल की महफ़िल, एक कोने में मैखाना हो..."गोरखपुर" के हर्फ़ों में जाम उठाई "पंकज" ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४५ पू री दो कड़ियों के बाद "सीमा" जी ने अपने पहले हीं प्रयास में सही जवाब दिया है। इसलिए पहली मर्तबा वो ४ अंकों की हक़दार हो गई हैं। "सीमा" जी के बाद हमारी "प्रश्न-पहेली" में भागेदारी की शामिख फ़राज़ ने। हुज़ूर, इस बार आपने सही किया. पिछली बार की तरह ज़ेरोक्स मशीन का सहारा नहीं लिया, इसलिए हम भी आपके अंकों में किसी भी तरह की कटौती नहीं करेंगे। लीजिए, २ अंकों के साथ आपका भी खाता खुल गया। आपके लिए अच्छा अवसर है क्योंकि हमारे नियमित पहेली-बूझक शरद जी तो अब धीरे-धीरे लेट-लतीफ़ होते जा रहे हैं, इसलिए आप उनके अंकों की बराबरी आराम से कर सकते हैं। बस नियमितता बनाए रखिए। "शरद" जी, यह क्या हो गया आपको। एक तो देर से आए और ऊपर से दूसरे जवाब में कड़ी संख्या लिखा हीं नहीं। इसलिए आपका दूसरा जवाब सही नहीं माना जाएगा। इस लिहाज़ से आपको बस .५ अंक मिलते हैं। कुलदीप जी, हमने पिछली महफ़िल में हीं कहा था कि सही जवाब देने वाले को कम से कम १ अंक मिलना तो तय है, इसलिए जवाब न देने का यह कारण तो गलत है। लगता है आपने नियमों को सही से नहीं पढा है। अभी भी देर

आज के बाद कोई खत न लिखूँगा तुझको.... "अश्क़" के हवाले से चेता रहे हैं "चंदन दास"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४४ अ गर पिछली कड़ी की बात करें तो उस कड़ी की प्रश्न-पहेली का हमारा अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा। "सीमा" जी जवाबों के साथ सबसे पहले हाज़िर तो हुईं लेकिन उन्होंने फिर से डेढ सवालों का हीं सही जवाब दिया। हमें लगा कि इस बार भी हमें वही करना होगा जो हमने पिछली बार किया था यानि कि उधेड़बुन का निपटारा, लेकिन "सीमा" जी की खेल-भावना ने हमें परेशान होने से बचा लिया। यह तो हुई अच्छी बात लेकिन जिस बुरे अनुभव का हम ज़िक्र कर रहे हैं वह है शरद जी का देर से महफ़िल में हाज़िर होना (मतलब कि पुकार लगाने के बाद) और शामिख जी का शरद जी के जवाबों को हुबहू छाप देना। शामिख जी, यह बात हमने वहाँ टिप्पणी करके भी बता दी थी कि सही जवाबों के बावजूद आपको कोई अंक नहीं मिलेगा। हमारे प्रश्न इतने भी मुश्किल न हैं कि आपको ऐसा करना पड़े। और हाँ, आपने शायद नियमों को सही से नहीं पढा है। हर सही जवाब देने वाले को कम से कम १ अंक मिलना तो तय है। इसलिए आपका यह कहना कि चूँकि सीमा जी ने जवाब दे दिया था इसलिए मैने कोशिश नहीं की, का कोई मतलब नहीं बनता। शरद जी, आपको भी मान-मनव्वल की जरूरत आन पड़ी। आप त

दीपक राग है चाहत अपनी, काहे सुनाएँ तुम्हें... "होशियारपुरी" के लफ़्ज़ों में बता रही हैं "शाहिदा"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४३ यूँ तो पिछली महफ़िल बाकी के महफ़िलों जैसी हीं थी। लेकिन "प्रश्न-पहेली" के आने के बाद और दो सवालों के जवाब देने के क्रम में कुछ ऐसा हुआ कि एकबारगी हम पशोपेश में पड़ गए कि अंकों का बँटवारा कैसे करें। इससे पहले हमारी ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी। तो हुआ यूँ कि सीमा जी ने प्रश्नों का जवाब तो सबसे पहले दिया लेकिन दूसरे प्रश्न में उनका आधा जवाब हीं सही था। इसलिए हमने निश्चय कर लिया था कि उन्हें ३ अंक हीं देंगे। फिर शरद जी सही जवाबों के साथ महफ़िल में हाज़िर हुए। इस नाते उनको २ अंक मिलना तय था(और है भी)। लेकिन शरद जी के बाद सीमा जी फिर से महफ़िल में तशरीफ़ लाईं और इस बार उन्होंने उस आधे सवाल का सही जवाब दिया। अब स्थिति ऐसी हो गई कि न उन्हें पूरे अंक दे सकते थे और न हीं ३ अंक पर हीं छोड़ा जा सकता था। इसलिए "बुद्ध" का मध्यम मार्ग निकालते हुए हम उन्हें आधे जवाब के लिए आधा अंक देते हैं। इस तरह सीमा जी को मिलते हैं ३.५ अंक और शरद जी को २ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| आज की कड़ी से हम नियमों में थोड़ा बदलाव कर रहे हैं। तो ये रहे प्रतियोगिता के बदले हुए नियम औ