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राग छायानट - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग छायानट  एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं संयोजन - संज्ञा टंडन 

राग मालकौंस - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

राग पहाड़ी -एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ : राग पहाड़ी स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्रा 

राग भीमपलासी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

सुर सप्तक और राग जैजैवन्ती

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट - 22

राग गारा - एक संगीतमय चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट 22

राग जौनपुरी और बातें बीन की - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट 21  नमस्कार दोस्तों, आज के इस साप्ताहिक ब्रोडकास्ट में हम आपके लिए लाये हैं राग जौनपुरी की चर्चा और बातें बीन की. प्रस्तुति है आपकी प्रिय होस्ट संज्ञा टंडन की, स्क्रिप्ट है कृष्णमोहन मिश्र की.

५ थाट और राग असवारी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट २०  नमस्कार दोस्तों, आज की महफ़िल में आपकी होस्ट संज्ञा टंडन लेकर आयीं हैं एक बार फिर जानकारी थाठों की. आज जिक्र है थाट मारवा, काफी, तोड़ी, भैरवी, और असवारी की. साथ ही चर्चा है राग असवारी पर आधारित फ़िल्मी गीतों की, तो आनंद लीजिए इस अनूठे ब्रोडकास्ट का.  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

राग भैरव और थाठों की जानकारी संज्ञा टंडन के साथ

   प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट - १९ प्रस्तुति - संज्ञा टंडन स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

राग रंग - संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक ब्रोडकास्ट (१८)- राग रंग

शास्त्रीय रागों में समय प्रबंधन

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (17) हर राग को गाये जाने  के लिए एक समय निर्धारित होता है, इनका विभाजन बेहद वैज्ञानिक है. दिन के आठ पहर और हर पहर से जुड़े हैं रागों के विभिन्न रूप. आज के ब्रोडकास्ट में इसी राग आधारित समय प्रबंधन पर एक चर्चा हमारी नियमित पॉडकास्टर संज्ञा टंडन के साथ. अवश्य सुनें और अपनी राय हम तक पहुंचाएं  

रविन्द्र संगीत (2 )- एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (15) कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के लिखे गीतों का, जिन्हें हम "रवीन्द्र संगीत" के नाम से जानते हैं, बंगाल के साहित्य, कला और संगीत पर जो प्रभाव पड़ा है, वैसा प्रभाव शायद शेक्सपीयर का अंग्रेज़ी जगत में भी नहीं पड़ा होगा। ऐसा कहा जाता है कि टैगोर के गीत दरअसल बंगाल के ५०० वर्ष के साहित्यिक और सांस्कृतिक मंथन का निचोड़ है। धनगोपाल मुखर्जी ने अपनी किताब 'Caste and Outcaste' में लिखा है कि रवीन्द्र-संगीत मानव-मन के हर भाव को प्रकट करने में सक्षम हैं। कविगुरु में छोटे से बड़ा, गरीब से धनी, हर किसी के मनोभाव को, हर किसी की जीवन-शैली को आवाज़ प्रदान की है। गंगा में विचरण करते गरीब से गरीब नाविक से लेकर अर्थवान ज़मिंदारों तक, हर किसी को जगह मिली है रवीन्द्र-संगीत में। समय के साथ-साथ रवीन्द्र-संगीत एक म्युज़िक स्कूल के रूप में उभरकर सामने आता है। रवीन्द्र-संगीत को एक तरह से हम उपशास्त्रीय संगीत की श्रेणी में डाल सकते हैं। अपने लिखे गीतों को स्वरबद्ध करते समय कविगुरु ने शास्त्रीय संगीत, बांग्ला लोक-संगीत और कभी-कभी तो पाश्चात्य संगीत का भी सहारा

रबिन्द्र संगीत (पहला भाग) - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१४) रबिंद्रसंगीत एक विशिष्ट संगीत पद्धति के रूप में विकसित हुआ है। इस शैली के कलाकार पारंपरिक पद्धति में ही इन गीतों को प्रस्तुत करते हैं। बीथोवेन की संगीत रचनाओं(सिम्फनीज़) या विलायत ख़ाँ के सितार की तरह रबिंद्रसंगीत अपनी रचनाओं के गीतात्मक सौन्दर्य की सराहना के लिए एक शिक्षित, बुद्धिमान और सुसंस्कृत दर्शक वर्ग की मांग करता है। १९४१ में गुरूदेव की मृत्यु हो गई परन्तु उनका गौरव और उनके गीतों का प्रभाव अनन्त है। उन्होंने अपने गीतों में शुद्ध कविता को सृष्टिकर्त्ता, प्रकृति और प्रेम से एकीकृत किया है। मानवीय प्रेम प्रकृति के दृश्यों में मिलकर सृष्टिकर्त्ता के लिए समर्पण (भक्ति) में बदल जाता है। उनके 2000 अतुल्य गीतों का संग्रह गीतबितान(गीतों का बागीचा) के रूप में जाना जाता है। (पूरा टेक्स्ट यहाँ पढ़ें ) आईये आज के ब्रोडकास्ट में शामिल होईये संज्ञा टंडन के साथ, रविन्द्र संगीत पर इस चर्चा के पहले भाग में. स्क्रिप्ट है सुमित चक्रवर्ती की और आवाज़ है संज्ञा टंडन की    या फिर यहाँ से डाउनलोड करें

छोटे परदे की कहानियाँ और पुराने फ़िल्मी गीत

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१३) रोज छोटे परदे पर नज़र आने वाले धारावाहिक, अधिकतर भारतीय परिवारों के लिए एक साथ बैठकर रात का भोजन खाने और तमाम गुफुत्गुओं के उस समय सफर के हमसफ़र होते हैं. कब जाने अनजाने ही इन धारावाहिकों के किरदार हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं और कब उनकी कहानियों में कहीं हम खुद को भी ढूँढने लगते हैं, पता ही नहीं चलता.  ऐसे में इन धारवाहिकों के निर्माताओं पर भी दबाब होता है कि नयी और अनूठी कहानियों को नए अंदाज़ में पेश करें, और इन कहानियों को दर्शकों से जोड़ने के लिए अगर वो पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों का सहारा लेते हैं तो हैरत नहीं होनी चाहिए. पर कहीं न कहीं पिछले कुछ दिनों में ये चलन बहुत तेज़ी से बढ़ा है, इसी पर एक पड़ताल है हमारा आज का ब्रोडकास्ट....सुनिए और अपनी राय देकर इस चर्चा को सार्थक बनायें.

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट -वर्षाकालीन राग (भाग २)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१२) कृष्ण मोहन जी के लिखे वर्षाकालीन रागों को चित्रित करते आलेख को अपनी आवाज़ और गीतों से सजा कर पेश कर रहीं हैं संज्ञा टंडन. इस प्रस्तुति का पहला भाग आपने सुना पिछले सप्ताह. आज सुनिए इस प्रस्तुति का दूसरा और अंतिम भाग. 

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट -वर्षा कालीन राग (पहला भाग)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट के इस ग्यारहवें एपिसोड के साथ आज हम अपने बोर्ड में शामिल कर रहे हैं हमसे जुडी नयी हमसफ़र संज्ञा टंडन जी को. संज्ञा जी १९७७ में रायपुर आकाशवाणी केंद्र की पहली भुगतान प्राप्त बाल कलाकार हैं. १९८६ से १९८८ तक आप युववाणी उद्गोषिका रही,  तत्पश्चात १९९१ से बिलासपुर आकाशवाणी की निमेत्तिक उद्गोषिका हैं. संज्ञा जी ने छत्तीसगढ़ के लगभग सभी आकशवाणी केन्द्रों के लिए प्रायोजित कार्यक्रमों का निर्माण किया है. हर प्रकार के कार्यक्रमों के मंच संचालन में माहिर संज्ञा जी एक सफल ऑनलाईन वोईस ओवर आर्टिस्ट भी हैं. आईये सुनें उनकी आवाज़ में आज वर्षा कालीन राग कार्यक्रम का ये पहला भाग. स्क्रिप्ट है स्वर गोष्टी के संचालक कृष्णमोहन मिश्र जी की.