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"नवलेखन ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना मेरे लेखन यात्रा का टर्निंग पॉइंट रहा" - पंकज सुबीर II एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 48 निर्देशक कृष्ण कान्त पंडया की आने वाली फिल्म "बियांबान - the curse of women" आधारित है जाने माने साहित्यकार पंकज सुबीर की कहानी 'दो एकांत' पर. इस कहानी और इस फिल्म की मेकिंग पर बातचीत करने के लिए आज हमारे साथ है पंकज सुबीर. प्ले का बट्टन दबाएँ और सुनें इस दिलचस्प बातचीत को.... ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें मिलिए इन जबरदस्त कलाकारों से भी - राशिद खान , दिग्विजय सिंह परियार ,  राकेश चतुर्वेदी ओम , अनवर सागर ,  संजीवन लाल ,  कुणाल वर्मा ,  आदित्य शर्मा ,  निखिल कामथ ,  मंजीरा गांगुली , रितेश शाह , वरदान सिंह , यतीन्द्र मिश्र , विपिन पटवा , श्रेया शालीन , साकेत सिंह , विजय अकेला , अज़ीम शिराज़ी , संजोय चौधरी , अरविन

लव जिहाद उर्फ़ उदास आँखों वाला लड़का

बोलती कहानियां : एक नया अनुभव - 01  बो लती कहानियां के नए संस्करण में आज प्रस्तुत है पंकज सुबीर की कालजयी रचना "लव जिहाद उर्फ़ उदास आँखों वाला लड़का". प्रमुख स्वर है अनुज श्रीवास्तव का, और संयोजन है संज्ञा टंडन का. सुनिए और महसूस कीजिये इस कहानी के मर्म को, जो बहुत हद तक आज के राजनितिक माहौल की सच्चाई को दर्शाता है. " लड़का बहुत कुछ भूल चुका है। बहुत कुछ। उसके मोबाइल में अब कोई गाने नहीं हैं। न सज्जाद अली, न रामलीला, न आशिक़ी 2। जाने क्या क्या सुनता रहता है अब वो। दिन भर दुकान पर बैठा रहता है। मोटर साइकिल अक्सर दिन दिन भर धूल खाती है। कहीं नहीं जाता। आप जब भी उधर से निकलोगे तो उसे दुकान पर ही बैठा देखोगे। अब उसके गले में काले सफेद चौखाने का गमछा परमानेंट डला रहता है और सिर पर गोल जालीदार टोपी भी। दाढ़ी बढ़ गई है। बढ़ी ही रहती है। " - इसी कहानी से लेखक का परिचय पंकज सुबीर उपन्यास ये वो सहर तो नहीं को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2009 का ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार । उपन्यास ये वो सहर तो नहीं को इंडिपेंडेंट मीडिया सोसायटी (पाखी पत्रिका) द्वारा वर्ष 2011 क

बोलती कहानियाँ: एक रात (रेडियो ड्रामा)

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुभव प्रिय की आवाज़ में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की कहानी "शत्रु" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध कथाकार पंकज सुबीर की कहानी " एक रात ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।  कहानी "एक रात" का कुल प्रसारण समय 11 मिनट 6 सेकंड है। इस बार हमने इस प्रसारण  में कुछ नये प्रयोग किये हैं। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वो गंजा गंजा सा फलाना आदमी, जो अब तक खुद को जिंदा समझता था, कल रात सचमुच में मर गया।  ~ पंकज सुबीर हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी बरसात इतनी तेज़ रफ़्तार से हो रही है कि वाइपर की फुल स्पीड के बाद भी विंडस्क्रीन साफ़ नहीं

सुनो कहानी: पंकज सुबीर की कहानी तुम लोग

तुम लोग - पंकज सुबीर 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हरिशंकर परसाई की दर्दनाक कहानी " बाबू की बदली " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की कहानी "तुम लोग" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 15 मिनट 58 सेकंड। प्रस्तुत कहानी का टेक्स्ट सुखनवर पत्रिका के मार्च-अप्रैल अंक में उपलब्ध है। पंकज सुबीर की कहानियां पलाश और ईस्ट इंडिया कम्पनी आप पहले ही आवाज़ पर सुन चुके हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। एक एक रंग को खूबसूरती के साथ सजाया है प्रकृति ने इसकी पंखुरियों पर, बीच में ज़र्द पीले रंग का छींटा, फ़िर सिंदूरी और किनारों पर कहीं कहीं चटख़ लाल, संपूर्णता का एहसास लिये। ~ पंकज सुबीर हर शनिवार क

१० बेहद दुर्लभ गीत गुलज़ार साहब के, चुने हैं पंकज सुबीर ने

सम्‍पूरन सिंह कालरा नाम के इस शख्‍स का जन्‍म 18 अगस्‍त 1936 को दीना नाम की उस जगह में हुआ जो कि आजकल पाकिस्‍तान में है । ये शख्‍स जिसको कि आजकल हम गुलज़ार के नाम से जानते हैं । गुलज़ार जो कि अभी तक 20 फिल्‍मफेयर और 5 राष्‍ट्रीय पुरुस्‍कार अपने गीतों के लिये ले चुके हैं । साथ ही साहित्‍य अकादमी पुरुस्‍कार और जाने कितने सम्‍मान उनकी झोली में हैं । सिक्‍ख धर्म में जन्‍म लेने वाले गुलज़ार का गाने लिखने से पहले का अनुभव कार मैकेनिक के रूप में है। आज हम बात करेंगें उन्‍हीं गुलज़ार साहब के कुछ उन गीतों के बारे में जो या तो फिल्‍म नहीं चलने के कारण उतने नहीं सुने गये या फिर ऐसा हुआ कि उसी फिल्‍म का कोई गीत बहुत जियादह मकबूल हो गया और ये गीत बहुत अच्‍छा होने के बाद भी बरगद की छांव तले होकर रह गया । मैंने आज जो 10 गीत छांटे हैं वे सारे गीत लता मंगेशकर तथा गुलज़ार साहब की अद्भुत जुगलबंदी के गीत हैं । सबसे पहले हम बात करते हैं 1966 में आई फिल्‍म सन्‍नाटा के उस अनोखे प्रभाव वाले गीत की । गुलज़ार साहब के गीतों को सलिल चौधरी जी, हेमंत कुमार जी और पंचम दा के संगीत में जाकर जाने क्‍या हो जाता है । वे

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (7)

क्‍या आपको याद है नाजिया हसन की 1980 में जब एकाएक ही एक नाम संगीत में धूमकेतू की तरह उभरा था और पूरा देश गुनगुना रहा था 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये '' उस समय ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने वर्ष के श्रेष्‍ठ गीत की दौड़ में फिल्‍म आशा के गीत "शीशा हो या दिल हो" को पछाड़ कर बिनाका सरताज का खिताब हासिल कर लिया था । उस समय फिल्‍मी गीतों का सबसे विश्‍वसनीय काउंट डाउन बिनाका गीत माला में लगातार 14 सप्‍ताह तक ये गीत नंबर वन रहा । "कुर्बानी" के इस गीत को गाने वाली गायिका थी नाजिया हसन और संगीत दिया था बिद्दू ने । एक बिल्‍कुल अलग तरह का संगीत जो कि साजों से ज्यादह इलेक्‍ट्रानिक यंत्रों से निकला था उसको लोगों ने हाथों हाथ लिया । नाजिया की बिल्‍कुल नए तरह की आवाज का जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा । नाजिया का जन्‍म 3 अप्रैल 1965 को कराची पाकिस्‍तान में हुआ था । और जब नाजिया ने कुर्बानी फिल्‍म का ये गीत गाया तो नाजिया की उम्र केवल पन्‍द्रह साल थी । इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए बिद्दू ने नाजिया को प्राइवेट एल्‍बम लांच करने का विचार किया

पतझर सावन बसंत बहार...अनुराग शर्मा के काव्य संग्रह पर पंकज सुबीर की समीक्षा

पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा पुस्तक - पतझर सावन बसंत बहार (काव्य संग्रह) लेखक - अनुराग शर्मा और साथी (वैशाली सरल, विभा दत्‍त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्‍ता, प्रदीप मनोरिया) समीक्षक - पंकज सुबीर पिट्सबर्ग अमेरिका में रहने वाले भारतीय कवि श्री अनुराग शर्मा का नाम वैसे तो साहित्‍य जगत और नेट जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है । किन्‍तु फिर भी यदि उनकी कविताओं के माध्‍यम से उनको और जानना हो तो उनके काव्‍य संग्रह पतझड़, सावन, वसंत, बहार को पढ़ना होगा । ये काव्‍य संग्रह छ: कवियों वैशाली सरल, विभा दत्‍त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्‍ता, प्रदीप मनोरिया और अनुराग शर्मा की कविताओं का संकलन है । यदि अनुराग जी की कविताओं की बात की जाये तो उन कविताओं में एक स्‍थायी स्‍वर है और वो स्‍वर है सेडनेस का उदासी का । वैसे भी उदासी को कविता का स्‍थायी भाव माना जाता है । अनुराग जी की सारी कविताओं में एक टीस है, ये टीस अलग अलग जगहों पर अलग अलग चेहरे लगा कर कविताओं में से झांकती दिखाई देती है । टीस नाम की उनकी एक कविता भी इस संग्रह में है ’’एक टीस सी उठती है, रात भर नींद मुझसे आंख मिचौली करती है ।‘’ अनुराग जी की कविताओ

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (3)

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीतों की सौगात लेकर हम फिर से हाज़िर हैं. आज आपके लिए कुछ ख़ास लेकर आये हैं हम सबके प्रिय पंकज सुबीर जी. हमें उम्मीद ही नहीं यकीन है कि पंकज जी का ये नायाब नजराना आप सब को खूब पसंद आएगा. असमिया संगीतकार और गायक श्री भूपेन हजारिका का गीत "ओ गंगा बहती हो क्‍यों" जब आया तो संगीत प्रेमियों के मानस में पैठता चला गया । हालंकि भूपेन दा काफी पहले से हिंदी फिल्‍मों में संगीत देते आ रहे हैं किन्‍तु उनको हिंदी संगीत प्रेमियों ने इस गाने के बाद हाथों हाथ लिया । यद्यपि 1974 में आई फिल्‍म "आरोप" जिसके निर्देशक श्री आत्‍माराम थे तथा जिसमें विनोद खन्‍ना और सायरा बानो मुख्‍य भूमिकाओं में थे उस फिल्‍म का एक गीत जो लता जी तथा किशोर दा ने गाया था वो काफी लोकप्रिय हुआ था । गीत था- "नैनों में दर्पण है दर्पण में कोई देखूं जिसे सुबहो शाम" । इस फिल्‍म के संगीतकार भी भूपेन दा ही थे । भूपेन दा और गुलजार साहब ने मिलकर जब "रुदाली" का गीत संगीत रचा तो धूम ही मच गई । रुदाली में इस जादुई जोड़ी के साथ त्रिवेणी के रूप में आकर मिली लता जी की आव

नवलेखन पुरस्कार वितरण समारोह की रिकॉर्डिंग

हिन्द-युग्म महत्वपूर्ण सार्वजनिक साहित्यिक समारोहों की रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराता रहा है ताकि कार्यक्रम का आनंद वे लोग भी ले सकें जो सशरीर समारोह उसमें सम्मिलित नहीं हो सकते। सबसे पहले हमने उदय प्रकाश का कहानीपाठ सुनवाया। फिर तेजेन्द्र शर्मा और गौरव सोलंकी के कथापाठ की रिकॉर्डिंग सुनवाई थी। आज सुनिए १४ मार्च २००९ को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा आयोजित नवलेखन पुरस्कार वितरण समारोह की रिकॉर्डिंग। इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता की भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान २००६ से सम्मानित कवि कुँवर नारायाण। इसके अलावा इस कार्यक्रम में अतिथि के दौर पर अजित कुमार, कैलाश वाजपेयी, अशोक वाजपेयी, ऋता शुक्ल, रवीन्द्र कालिया उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में १३ नई साहित्यकि पुस्तकों का विमोचन हुआ। जिसमें हिन्द-युग्मी विमल चंद्र पाण्डेय और पंकज सुबीर के पहले कहानी-संग्रहों का विमोचन भी शामिल था। शुरू के ५० सेकेण्ड की रिकॉर्डिंग हमारे पास उपलब्ध नहीं है। कुल समयः २ घण्टे १५ मिनट सुनें- आप भी अपने इर्द-गिर्द के होने वाले इस तरह के साहित्यिक आयोजनों की रिकॉर्डिंग podcas

पंकज सुबीर के कहानी-संग्रह 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' का विमोचन कीजिए

दोस्तो, आज सुबह-सुबह आपने भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित कथा-संग्रह 'डर' का विमोचन किया और इस संग्रह से एक कहानी भी सुनी । अब बारी है लोकप्रिय ब्लॉगर, ग़ज़ल प्रशिक्षक पंकज सुबीर के पहले कहानी-संग्रह 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के विमोचन की। गौरतलब है कि इस पुस्तक के साथ-साथ १२ अन्य हिन्दी साहित्यिक कृतियों के विमोचन का कार्यक्रम आज ही हिन्दी भवन सभागार, आईटीओ, नई दिल्ली में चल रहा है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित कवि कुँवर नारायण कर रहे हैं। सभी पुस्तकों का विमोचन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों होना है। लेकिन घबराइए नहीं। हम आपको ऑनलाइन और पॉडकास्ट विमोचन का नायाब अवसर दे रहे हैं, जिसके तहत आप इस कहानी-संग्रह का विमोचन अपने हाथों कर सकेंगे, वह भी शीला दीक्षित से पहले। साथ ही साथ हम इस कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी भी सुनवायेंगे। तो कर दीजिए लोकार्पण अनुराग शर्मा की आवाज़ में इस संग्रह की शीर्षक कहानी 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' नीचे के प्लेयर से सुनें: - यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रह

सुनो कहानी: पलाश (होली पर विशेष)

होली के शुभ अवसर पर पंकज सुबीर की रोचक कहानी पलाश 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने नीलम मिश्रा की आवाज़ में कुर्रत-उल-ऐन हैदर की रचना ' 'फोटोग्राफर' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज होली के शुभ अवसर पर हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की रोचक कहानी "पलाश" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 18 मिनट। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। 'मेड़ पर पड़े हुए पेड़ के कटे हुए हिस्से पर बैठ कर फाल्गुनी पलाश के फूलों पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी, कितने मुलायम हैं ये फूल मखमल की तरह । एक एक रंग को खूबसूरती के साथ सजाया है प्रकृति ने इसकी पंखुरियों पर, बीच में ज़र्द पीले रंग का छींटा, फ़िर सिंदूरी और किनारों पर कहीं कहीं चटख़ लाल, संपूर्णता का एहसास लिये ।

अँधेरी रात का सूरज - राकेश खंडेलवाल के बहुप्रतीक्षित काव्य संग्रह का ऑनलाइन विमोचन

कौन हूँ मैं, ये मैं भी नहीं जानता, आईने का कोई अक्स बतलायेगा असलियत क्या मेरी, मैं नहीं मानता..." अपने ब्लॉग गीत कलश पर ये परिचय लिखने वाले राकेश खंडेलवाल जी ख़ुद को जाने या न जाने पर समस्त ब्लॉग्गिंग जगत उन्हें उनकी उत्कृष्ट कविताओं के माध्यम से जानता भी है और पहचानता भी है. आज उनकी प्रतीक्षित पुस्तक "अँधेरी रात का सूरज" का लोकार्पण है. चूँकि राकेश जी का प्रवास अमेरिका में है तो औपचारिक विमोचन आज राजधानी मंदिर औडीटोरियम में, वर्जीनिया और वाशिंगटन हिन्दी समिति द्वारा शाम ६.३० बजे डा० सत्यपाल आनंद (उर्दू,हिन्दी,पंजाबी और अंग्रेजी के विश्व प्रसिद्ध लेखक व कवि ), कनाडा से समीर लाल, न्यू जर्सी से अनूप एवं रजनी भार्गव, राले (नार्थ केरोलाइना) से डा० सुधा ढींगरा, न्यू जर्सी से ही सुरेन्द्र तिवारी, फिलाडेल्फिया से घनश्याम गुप्ता की उपस्थिति में होना है, जहाँ स्थानीय कवि एवं साहित्यकारों में श्री गुलशन मधुर ( भारत में विविध भारती के उद्घोषक रहे हैं ) मधु माहेश्वरी, डा० विशाखा ठाकर, बीना टोडी, रेखा मैत्र, डा० सुमन वरदान, डा० नरेन्द्र टंडन भी उपस्तिथ रहेंगे ऐसी सम्भावना है. उधर सीह

लता संगीत पर्व- महीने भर चला संगीत प्रेमियों का उत्सव

आवाज़ पर आयोजित लता संगीत उत्सव पर एक विशेष रिपोर्ट और सुनें लता जी के चुने हुए २० गीत एक साथ. जब हमने लता संगीत उत्सव की शुरुवात की थी इस माह के पहले सप्ताह में, तब दो उद्देश्य थे, एक भारत रत्न और संगीत के कोहिनूर लता मंगेशकर पर हिन्दी भाषा में कुछ सहेजनीये आलेखों का संग्रह बने और दूसरा लता दी के चाहने वाले इंटरनेटिया श्रोताओं को हम प्रेरित करें की वो लता जी के बारे में हिन्दी भाषा में लिखें. जहाँ तक दूसरे उद्देश्य का सवाल है, हमें बहुत अधिक कमियाबी नही मिल पायी है. कुछ लिखते लिखते रह गए तो कुछ जब तक लिखना सीख पाते समय सीमा खत्म हो चली. प्रतियोगिता की दृष्टि से मात्र एक ही प्रवष्टि हमें मिली जिसे हम आवाज़ पर स्थान दे पाते. नागपुर के २२ वर्षीय अनूप मनचलवार ने अपनी मुक्कम्मल प्रस्तुति से सब का मन मोह लिया, सुंदर तस्वीरें और slide शो से अपने आलेख को और सुंदर बना दिया. हमारे माननीय निर्णायक श्री पंकज सुबीर जी ने अनूप जी को चुना है लता संगीत पर्व के प्रथम और एक मात्र विजेता के रूप में, अनूप जी को मिलेंगीं ५०० रुपए मूल्य की पुस्तकें और "पहला सुर" एल्बम की एक प्रति. अनूप जी का आलेख आ

पंकज सुबीर की कहानी "शायद जोशी" में लता मंगेशकर

(ये आलेख नहीं है बल्कि मेरी एक कहानी ''शायद जोशी'' का अंश है ये कहानी मेरे कहानी संग्रह ''ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी'' की संभावित कहानियों में से एक है ।) - पंकज सुबीर अचानक उसे याद आया कल रात को रेडियो पर सुना लता मंगेशकर का फिल्म शंकर हुसैन का वो गाना 'अपने आप रातों में' । उसे नहीं पता था कि शंकर हुसैन में एक और इतना बढ़िया गाना भी है वरना अभी तक तो वो 'आप यूं फासलों से गुज़रते रहे' पर ही फिदा था । हां क्या तो भी शुरूआत थी उस गाने की 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं, चौंकते हैं दरवाज़े सीढ़ियाँ धड़कती हैं' उफ्फ क्या शब्द हैं, और कितनी खूबसूरती से गाया है लता मंगेशकर ने । 'अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं चौंकते हैं दरवाज़े सीढियां धड़कती हैं अपने आप.....' और उस पर खैयाम साहब का संगीत, कोई भारी संगीत नहीं, हलके हल्‍के बजते हुए साज और बस मध्यम मध्यम स्वर में गीत । और उसके बाद 'अपने आप' शब्दों को दोहराते समय 'आ' और 'प' के बीच में लता जी का लंबा सा आलाप उफ्फ जानलेवा ही तो है । एक तो फिल्म का नाम ही कितना

लता संगीत उत्सव ( १ ) - पंकज सुबीर

रूह की वादियों में बह रही दिलरुबा नदी ख़ैयाम साहब ने जितना भी संगीत दिया है वो भीड़ से अलग नज़र आता है । उनके गीत अर्द्ध रात्रि का स्वप्न नहीं हो कर दोपहर की उनींदी आंखों का ख्वाब हैं जो नींद टूटने के बाद कुछ देर तक अपने सन्नाटे में डुबोये रखते हैं । आज जिस गीत की बात हो रही है ये गीत फ़िल्म "शंकर हुसैन" का है । "शंकर हुसैन" जितना विचित्र नाम उतने ही मधुर गीत । दुर्भाग्य से फ़िल्म नहीं चली और बस गीत ही चल कर रह गये । फ़िल्म में ''कैफ भोपाली'' का लिखा गीत जो लता मंगेशकर जी ने ही गाया था ''अपने आप रातों में '' भी उतना ही सुंदर था जितना कि ये गीत है, जिसकी आज चर्चा होनी है । हम आगे कभी ''अपने आप रातों में '' की भी बातें करेंगें लेकिन आज तो हमको बात करनी है ''आप यूं फासलों से ग़ुज़रते रहे दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही'' की । लता जी की बर्फानी आवाज़, जांनिसार अख्तर ( जावेद जी के पिताजी) के शबनम के समान शब्दों को, खैयाम साहब की चांदनी की पगडंडी जैसी धुन पर इस तरह बिखेरती हुई गुज़र जाती है कि समय भी उस आवाज़