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वर्ष के महाविजेता : SWARGOSHTHI – 351 : MAHAVIJETA OF THE YEAR

स्वरगोष्ठी – 351 में आज सभी पाठकों और श्रोताओं को नववर्ष 2018 के पहले अंक में अभिनन्दन महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1 चौथे महाविजेता डॉ. किरीट छाया और पाँचवीं महाविजेता विजया राजकोटिया की प्रस्तुतियाँ महाविजेता विजया राजकोटिया महाविजेता डॉ. किरीट छाया ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नववर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ आठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत सात वर्षों से असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है। इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत सात वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सम्पादक और संचालक मण्डल के सभी सदस्यों- सजीव सारथी, सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक, संज्ञा ट

ठुमरी भैरवी : SWARGOSHTHI – 340 : THUMARI BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 340 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 7 : ठुमरी भैरवी पण्डित भीमसेन और सहगल के स्वर में लौकिक और आध्यात्मिक भाव का बोध कराती कालजयी ठुमरी – “बाबुल मोरा...” कुन्दनलाल सहगल पण्डित भीमसेन जोशी ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का स

ठुमरी भैरवी : SWARGOSHTHI – 338 : THUMARI BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 338 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 5 : ठुमरी भैरवी लता जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में समर्पित है उन्हीं की गायी श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ लता मंगेशकर और पं. भीमसेन जोशी ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानि

राग सूर मल्हार : SWARGOSHTHI – 329 : RAG SOOR MALHAR

स्वरगोष्ठी – 329 में आज पावस ऋतु के राग – 4 : राग सूर मल्हार पण्डित भीमसेन जोशी और लता मंगेशकर से सुनिए राग सूर मल्हार की रचनाएँ भीमसेन जोशी लता मंगेशकर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। आपको स्वरों के माध्यम से बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गी

राग पूरियाधनाश्री : SWARGOSHTHI – 320 : RAG PURIYADHANASHRI

स्वरगोष्ठी – 320 में आज संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 6 : राग पूरियाधनाश्री राग पूरियाधनाश्री में पण्डित भीमसेन जोशी से खयाल और आशा भोसले से गीत सुनिए ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की छठी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवा रहे हैं और इनके रागों पर चर्चा भी कर रहे हैं। इस परिश्रमी संगीतकार का पूरा नाम रोशन लाल नागरथ था। 14 जुलाई 1917 को तत्क

होरी ठुमरी : SWARGOSHTHI – 311 : HORI THUMARI

स्वरगोष्ठी – 311 में आज फागुन के रंग – 3 : होरी ठुमरी में फाल्गुनी रस पण्डित भीमसेन जोशी के दिव्य स्वर में सुनिए – “होरी खेलत नन्दकुमार...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले दिनों हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। अब तो चैत्र, शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष का शुभा

प्रातःकाल के राग : SWARGOSHTHI – 301 : MORNING RAGAS

स्वरगोष्ठी – 301 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 1 : दिन के प्रथम प्रहर के राग ‘जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए...’   "रेडियो प्लेबैक इण्डिया" के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हम एक नई श्रृंखला- ‘राग और गाने-बजाने का समय’ आरम्भ कर रहे हैं। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात, संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बा