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किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी...गीत दत्त के स्वरों में हेलन ने बिखेरा था अपना मदमस्त अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 277 इ न दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गीता दत्त के गाए हुए गीतों की ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली', जिसके अन्तर्गत दस ऐसे गानें बजाए जा रहे हैं जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। आज जिस अभिनेत्री को हमने चुना है वो नायिका के रूप में भले ही कुछ ही फ़िल्मों में नज़र आईं हों, लेकिन उन्हे सब से ज़्यादा ख्याति मिली खलनायिका के किरदारों के लिए। सही सोचा आपने, हम हेलेन की ही बात कर रहे हैं। वैसे हेलेन पर ज़्यादातर मशहूर गानें आशा भोसले ने गाए हैं, लेकिन ५० के दशक में गीता दत्त ने हेलेन के लिए बहुत से गानें गाए। आज हमने जिस गीत को चुना है वह है १९५७ की फ़िल्म 'दुनिया रंग रंगीली' से "किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी, कि मेरा दिल तुझे पुकारा अरे अभी अभी"। राजेन्द्र कुमार, श्यामा, जॉनी वाकर, चाँद उस्मानी, जीवन व हेलेन अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे जान निसार अख़्तर ने और संगीत था ओ. पी. नय्यर साहब का। 'आर पार' की सफलता के बाद गीता दत्त को ही श्यामा के पार्श्वगायन के लिए चुना गया। इस फ़िल्म में श्यामा के नायक थे जॉनी

जब बादल लहराया...झूम झूम के गाया...अभिनेत्री श्यामा के लिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 276 जि स तरह से गीता दत्त और हेलेन की जोड़ी को अमरत्व प्रदान करने में बस एक सुपरहिट गीत "मेरा नाम चिन चिन चू" ही काफ़ी था, जिसकी धुन बनाई थी रीदम किंग् ओ. पी. नय्यर साहब ने, ठीक वैसे ही गीता जी के साथ अभिनेत्री श्यामा का नाम भी 'आर पार' के गीतों और एक और सदाबहार गीत "ऐ दिल मुझे बता दे" के साथ जुड़ा जा सकता है। जी हाँ, आज 'गीतांजली' में ज़िक्र गीता दत्त और श्यामा का। श्यामा ने अपना करीयर शुरु किया श्यामा ज़ुत्शी के नाम से जब कि उनका असली नाम था बेबी ख़ुर्शीद। 'आर पार' में अपार कामयाबी हासिल करने से पहले श्यामा को एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा था। उन्होने अपना सफ़र १९४८ में फ़िल्म 'जल्सा' से शुरु किया था। वो बहुत सारी कामयाब फ़िल्मों में सह-अभिनेत्री के किरदारों में नज़र आईं जैसे कि 'शायर' में सुरैय्या के साथ, 'शबनम' में कामिनी कौशल के साथ, 'नाच' में फिर एक बार सुरैय्या के साथ, 'जान पहचान' में नरगिस के साथ और 'तराना' में मधुबाला के साथ। अनुमान लगाया जाता है कि गीता रॉय की आवाज

इश्क़ की रस्म को इस तरह निभाया हमने...."अदा" के तखल्लुस से गज़ल कह रहे हैं शहरयार साहब

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५७ आ ज की महफ़िल में हम हाज़िर हैं सीमा जी की पसंद की आखिरी गज़ल लेकर। सीमा जी की पसंद औरों से काफ़ी अलहदा है। अब आज की गज़ल को हीं ले लीजिए। लोग अमूमन मेहदी हसन साहब, गुलाम अली साहब या फिर जगजीत सिंह जी की गज़लों की फ़रमाईश करते हैं, लेकिन सीमा जी ने जिस गज़ल की फ़रमाईश की है, उसे आशा ताई ने गाया है। इस गज़ल की एक और खासियत है और खासियत यह है कि आज की गज़ल और आज से दो कड़ी पहले पेश की गज़ल (जिसकी फ़रमाईश सीमा जी ने हीं की थी) में दो समानताएँ हैं। दो कड़ी पहले हमने आपको "गमन" फिल्म की गज़ल सुनाई थी और आज हम "उमराव जान" फिल्म की गज़ल लेकर आप सबके सामने हाज़िर हैं। इन दोनों फ़िल्मों का निर्माण मुज़फ़्फ़र अली ने किया था और इन दोनों गज़लों के गज़लगो शहरयार हैं। ऐसा लगता है कि मुज़फ़्फ़र अली हमारी महफ़िल के नियमित मेहमान बन चुके हैं। अब चूँकि मुज़फ़्फ़र अली और शहरयार के बारे में हम बहुत कुछ कह चुके हैं, इसलिए क्यों न आज आशा ताई के बारे में बातें की जाएँ। ८ सितम्बर १९३३ को जन्मी आशा ताई अब ७६ साल की हो चुकी हैं, लेकिन उन्हें सुनकर उनकी उम्र का तनिक भी भान

मैं बांगाली छोरा करूँ प्यार को नामोश्काराम....बंगाल और मद्रास के बीच छिडी प्यार की जंग आशा और किशोर के मार्फ़त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 196 क्या आप के ज़हन में है दोस्तों कि आज तारीख़ कौन सी है? आज है ८ सितंबर। और ८ सितंबर का दिन है हमारी, आपकी, हम सब की चहीती गायिका आशा भोंसले जी का जन्मदिन । आज ८ सितंबर २००९ को आशा जी मना रहीं हैं अपना ७८-वाँ जन्म दिवस। पिछले ६ दशकों से उनकी आवाज़ हमारी ज़िंदगियों में रस घोलती चली आ रही है। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बूढ़े, हर किसी के दिल पर छायी हुई है आशा जी की दिलकश आवाज़। यह वो आवाज़ है दोस्तों जिस पर समय का कोई असर नहीं है। आशा जी ने फ़िल्म संगीत के कई बदलते दौर देखे हैं, और हर दौर में उन्होने अपनी आवाज़ का जादू कुछ इस क़दर बिखेरा है कि हर दौर में उन्होंने सुनने वालों के दिलों पर राज किया है। मैं अपनी तरफ़ से, 'आवाज़' की तरफ़ से और पूरे 'हिंद युग्म' परिवार की तरफ़ से आशा जी को दे रहा हूँ ढेरों शुभकामनाएँ। आशा जी के जन्मदिवस को केन्द्र कर हम इन दिनों सुन रहे हैं उनके युगल गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला '१० गायक और एक आपकी आशा'। क्योंकि आज आशा जी का बर्थडे है, तो क्यों न आज थोड़ी से मस्ती की जाए, थोड़े हँसी मज़ाक के साथ आज के 'ओल

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 144 म जरूह सुल्तानपुरी, क़मर जलालाबादी, प्रेम धवन आदि गीतकारों के साथ काम करने के बाद सन् १९५८ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर को पहली बार मौका मिला शायर साहिर लुधियानवी के लिखे गीतों को स्वर्बद्ध करने का। फ़िल्म थी 'सोने की चिड़िया'। इस्मत चुगतई की लिखी कहानी पर आधारित फ़िल्म कार्पोरेशन ऒफ़ इंडिया के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था शाहीद लतीफ़ ने, और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे बलराज साहनी, नूतन और तलत महमूद। जी हाँ दोस्तों, यह उन गिनी चुनी फ़िल्मों में से एक है जिनमें तलत महमूद ने अभिनय किया था। इस फ़िल्म में तलत साहब और आशा भोंसले के गाये कम से कम दो ऐसे युगल गीत हैं जिन्हे अपार सफलता हासिल हुई। इनमें से एक तो था "सच बता तू मुझपे फ़िदा कब हुआ और कैसे हुआ", और दूसरा गाना था "प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ"। और यही दूसरा गीत आज के इस महफ़िल की शान बना है। साहिर साहब के क़लम से निकला हुआ, और प्रेमिका से प्यार करने की इजाज़त माँगता हुआ यह नग़मा प्रेम निवेदन की एक अनूठी मिसाल है। इस

बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी...ओल्ड इस गोल्ड के सभी श्रोताओं को समर्पित ये गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 119 हा ल ही में हमने आपको एस. एच. बिहारी के बारे में विस्तार से बताया था कि किस तरह से उन्हे एस. मुखर्जी ने १९५४ की फ़िल्म 'शर्त' में पहला बड़ा ब्रेक दिया था। आगे चलकर उनकी कई और फ़िल्मों में बिहारी साहब ने गीत लिखे, और सिर्फ़ लिखे ही नहीं, उन्हे कामयाबी की बुलंदी तक भी पहुँचाया। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'एक मुसाफ़िर एक हसीना'. जॉय मुखर्जी और साधना अभिनीत इस फ़िल्म में ओ. पी. नय्यर का संगीत था। आशा भोंसले और रफ़ी साहब के गाये इस फ़िल्म के तमाम युगल गीतों में तीन गीत जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुए, वो थे "मैं प्यार का राही हूँ", "आप युँही अगर हम से मिलती रहीं, देखिये एक दिन प्यार हो जायेगा", और तीसरा गीत था "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये". यूँ तो एस. एच. बिहारी ने ही इस फ़िल्म के अधिकतर गानें लिखे, लेकिन "आप युँही अगर" वाला गीत राजा मेहंदी अली ख़ान ने लिखा था। आज इस महफ़िल में सुनिये तीसरा युगल गीत। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह थी कि शादी की रात साधना के घर आतंकवादियों का हमला होता है

आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूँ....चलिए घूम आये हम और आप भी "आशा" के साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 114 १९६८ में कमल मेहरा की बनायी फ़िल्म आयी थी 'क़िस्मत'। मनमोहन देसाई निर्देशित फ़िल्म 'क़िस्मत' की क़िस्मत बुलंद थी। फ़िल्म तो कामयाब रही ही, फ़िल्म के गीतों ने भी खासी धूम मचाई । अपनी दूसरी फ़िल्मों की तरह इस फ़िल्म में भी ओ. पी. नय्यर ने यह सिद्ध किया कि ६० के दशक के अंत में भी वो नयी पीढ़ी के किसी भी लोकप्रिय संगीतकार को सीधी टक्कर दे सकते हैं। उन दिनों नय्यर साहब और रफ़ी साहब के रिश्ते में दरार आयी थी जिसके चलते इस फ़िल्म के गाने महेन्द्र कपूर से गवाये गये। घटना क्या घटी थी यह हम आपको बाद में किसी दिन बतायेंगे जब रफ़ी साहब और नय्यर साहब के किसी गाने की बारी आयेगी। तो साहब, महेन्द्र कपूर ने रफ़ी साहब की कमी को थोड़ा बहुत पूरा भी किया, हालाँकि नय्यर साहब महेन्द्र कपूर को बेसुरा कहकर बुलाते थे। इस फ़िल्म का वह हास्य गीत तो आपको याद है न "कजरा मोहब्बतवाला", जिसमें शमशाद बेग़म ने विश्वजीत का प्लेबैक किया था! फ़िल्म की नायिका बबिता के लिये गीत गाये आशा भोंसले ने। इस फ़िल्म में नय्यर साहब की सबसे ख़ास गायिका आशाजी ने कई अच्छे गीत गा

बूझ मेरा क्या नाव रे....कौन है ये मचलती आवाज़ वाली गायिका....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 87 ओ. पी नय्यर के निर्देशन में जिन तीन पार्श्व गायिकाओं ने सबसे ज़्यादा गाने गाये, वो थे आशा भोंसले, गीता दत्त और शमशाद बेग़म। शमशाद बेग़म के लिए नय्यर साहब के दिल में बहुत ज़्यादा इज़्ज़त थी। शमशादजी की आवाज़ की नय्यर साहब मंदिर की घंटी की आवाज़ से तुलना किया करते थे। उनके शब्दों में शमशादजी की आवाज़ 'टेम्पल बेल' की आवाज़ थी। भले ही आशा भोंसले के आने के बाद गीता दत्त और शमशाद बेग़म से नय्यर साहब गाने लेने कम कर दिये, लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि नय्यर साहब ने ही इन दोनो गायिकायों को सबसे ज़्यादा 'हिट' गीत दिए। १९५२ से लेकर करीब करीब १९५८ तक नय्यर साहब ने इन दोनो गायिकायों से बहुत से गाने गवाये और लगभग सभी के सभी लोकप्रिय भी हुए। जहाँ तक शमशादजी के गाये हुए गीतों का सवाल है, उनकी पंजाबी लोकगीत शैली वाली अंदाज़ को नय्यर साहब ने अपने गीतों के ज़रिए ख़ूब बाहर निकाला और हर बार सफल भी हुए। नय्यर साहब के अनुसार संगीतकार ही गायक गायिका को तैयार करता है, यह संगीतकार के ही उपर है कि वह गायक गायिका से कितना काम ले सकता है और कितनी अच्छी तरह से ले सकता है। इ

मेरी नींदों में तुम...कहा शमशाद बेगम ने किशोर दा से इस दुर्लभ गीत में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 77 दो स्तों, कुछ अभिनेता ऐसे होते हैं जिन्हे परदे पर देखते ही जैसे गुदगुदी सी होने लगती है। और कुछ अभिनेत्रियाँ ऐसी हैं जिनका नाम दर्द और संजीदे चरित्रों का पर्याय है। अब अगर ऐसे एक हास्य अभिनेता के साथ ऐसी कोई संजीदे और दर्दीले चरित्र निभानेवाली अभिनेत्री की जोड़ी किसी फ़िल्म में बना दी जाए तो कैसा हो? जी हाँ, किशोर कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी भी एक ऐसी ही जोड़ी रही है और ये दोनो साथ साथ नज़र आए थे १९५६ में के. अमरनाथ की फ़िल्म 'नया अंदाज़' में। १९५६ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर के संगीत से सजी कुल ८ फ़िल्में आयीं - भागमभाग, सी. आई. डी, छूमंतर, ढाके की मलमल, हम सब चोर हैं, मिस्टर लम्बु, श्रीमती ४२०, और नया अंदाज़। हालाँकी नय्यर साहब और किशोर कुमार का साथ बहुत ज़्यादा नहीं रहा है, बावजूद इसके इन दोनो ने एक साथ कई यादगार फ़िल्में की हैं और तीन फ़िल्में तो इसी साल यानी कि १९५६ में ही आयी थी - भागमभाग, ढाके की मलमल, और नया अंदाज़। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ १९५२ की फ़िल्म 'छम छमा छम' और १९५५ में 'बाप रे बाप' में काम किया था। आज 'ओल्ड इ

देखो कसम से...कसम से, कहते हैं तुमसे हाँ.....प्यार की मीठी तकरार में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 73 दो स्तों, अभी हाल ही में हमने आपको फ़िल्म 'तुमसा नहीं देखा' का एक गीत सुनवाया था रफ़ी साहब का गाया हुआ। आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने इसी फ़िल्म से एक दोगाना चुना है जिसमें रफ़ी साहब के साथ हैं आशा भोंसले। फ़िल्म 'तुमसा नहीं देखा' से संबंधित जानकारियाँ तो हमने उसी दिन आपको दे दिया था, इसलिए आज यहाँ पर हम उन्हे नहीं दोहरा रहे हैं। आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी साहब की जोड़ी ने फ़िल्म संगीत जगत को तीन दशकों तक बेशुमार लाजवाब युगल गीत दिए हैं जो बहुत से अलग अलग संगीतकारों के धुनों पर बने हैं। सफलता की दृष्टि से देखा जाये तो ओ. पी. नय्यर साहब का 'स्कोर' इस मामले में बहुत ऊँचा रहा है। इस फ़िल्म में नय्यर साहब के संगीत में आशाजी और रफ़ी साहब के कई युगल गीत लोकप्रिय हुए थे जैसे कि "सर पर टोपी लाल हाथ मे रेशम का रूमाल हो तेरा क्या कहना", "आये हैं दूर से मिलने हुज़ूर से, ऐसे भी चुप ना रहिए, कहिए भी कुछ तो कहिए दिन है के रात है" और "देखो क़सम से क़सम से कहते हैं तुमसे हाँ, तुम भी जलोगे हाथ मलोगे रूठ के हमसे हाँ&q

जवानियाँ ये मस्त मस्त बिन पिए....रफी साहब की नशीली आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 65 फ़ि ल्म जगत और ख़ास कर फ़िल्म संगीत जगत के लिए १९५५ का साल बहुत महत्वपूर्ण साल रहा है क्योंकि इसी साल एक ऐसी तिकड़ी बनी थी तीन कलाकारों की जिन्होने मिल कर फ़िल्म संगीत को एक नयापन दिया, और फ़िल्मी गीतों को एक नये लिबास, एक नये अंदाज़ में पेश किया। ये तिकड़ी थी अभिनेता शम्मी कपूर, संगीतकार ओ. पी. नय्यर और गायक मोहम्मद. रफ़ी की। ये तीनों पहले से ही फ़िल्म जगत में सक्रीय थे लेकिन अब तक तीनों कभी एक साथ में नहीं आए थे। १९५५ की वह पहली फ़िल्म थी 'मिस कोका कोला' जिसमें शम्मी कपूर के साथ नायिका बनी थीं गीता बाली। और आपको यह भी बता दें कि इसी साल शम्मी कपूर और गीता बाली की शादी भी हुई थी। 'मिस कोका कोला' 'हिट' तो हुई लेकिन बहुत ज़्यादा भी नहीं। जिस फ़िल्म से इस तिकड़ी ने फ़िल्म जगत में हंगामा मचा दिया वह फ़िल्म थी १९५७ की 'तुमसा नहीं देखा'. फ़िल्मिस्तान के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था नासिर हुसैन ने और शम्मी कपूर की नायिका इस फ़िल्म में बनीं अमीता। इसी फ़िल्म से शम्मी कपूर की उन जानी-पहचानी ख़ास अदाओं, और उन अनोखे 'म

जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी...रफी साहब पूछ रहे हैं गीता दत्त से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 64 पु राने ज़माने की फ़िल्मों में नायक-नायिका की जोड़ी के अलावा एक जोड़ी और भी साथ साथ फ़िल्म में चलती थी, और यह जोड़ी हुआ करती थी दो हास्य-कलाकारों की। जॉनी वाकर एक बेहद मशहूर हास्य अभिनेता हुआ करते थे उन दिनो और हर फ़िल्म में निभाया हुआ उनका चरित्र यादगार बन कर रह जाता था। उन पर बहुत सारे गाने भी फ़िल्माये गये हैं जिनमें से ज़्यादातर रफ़ी साहब ने गाये हैं। जॉनी वाकर के बेटे नासिर ख़ान ने एक बार कहा भी था कि उनके पिता के हाव भाव की नक़ल गायिकी में रफ़ी साहब के सिवाय और दूसरा कोई नहीं कर पाता था। कुछ उदहारण देखिये रफ़ी साहब और जॉनी भाई की जोड़ी के गानों की "सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये", "ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ", "ऑल लाइन किलियर", "जंगल में मोर नाचा किसी ने ना देखा", "ये दुनिया गोल है", और "मेरा यार बना है दुल्हा" इत्यादि। ऐसी ही एक और फ़िल्म आयी थी 'मिस्टर ऐंड मिसेस ५५' जिसमें जॉनी वाकर और कुमकुम पर एक बहुत ही मशहूर युगल-गीत फ़िल्माया गया था और जिसमें रफ़ी साहब के साथ गीत दत्त ने आवा

सफल "हुई" तेरी अराधना...शक्ति सामंत पर विशेष (भाग 3)

दोस्तों, शक्ति सामंत के फ़िल्मी सफ़र को तय करते हुए पिछली कड़ी में हम पहुँच गए थे सन् १९६५ में जिस साल आयी थी उनकी बेहद कामयाब फ़िल्म 'कश्मीर की कली'। आज हम उनके सुरीले सफ़र की यह दास्तान शुरु कर रहे हैं सन् १९६६ की फ़िल्म 'सावन की घटा' के एक गीत से। इस फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन, दोनो ही शक्तिदा ने किया था और इस फ़िल्म में भी नय्यर साहब का ही संगीत था। गीत: आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया (सावन की घटा) "आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया, मैं तो आगे बढ़ गयी पीछे ज़माना रह गया"। एस. एच. बिहारी के लिखे इस गीत के बोल जैसे शक्तिदा को ही समर्पित थे। 'हावड़ा ब्रिज', 'चायना टाउन', और 'कश्मीर की कली' जैसी 'हिट' फ़िल्मों के बाद इसमें कोई शक़ नहीं रहा कि शक्तिदा फ़िल्म जगत में बहुत ऊपर पहुँच चुके थे। उनका नाम भी बड़े बड़े फ़िल्म निर्माता और निर्देशकों की सूची में शामिल हो गया। और साल दर साल उनकी प्रतिभा और सफलता साथ साथ परवान चढ़ती चली गयी। 'सावन की घटा' के अगले ही साल, यानी कि १९६७ में एक और मशहूर फ़िल्म आयी 'ऐन ईवनिंग इन पैरिस' ज

बेईमान बालमा मान भी जा...आशा की इस गुहार से बचकर कहाँ जायेंगे...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 54 ओ .पी. नय्यर के गानों में एक अलग ही चमक हुआ करती थी। चाहे गाना ख़ुशरंग हो या फिर ग़मज़दा, नय्यर साहब का हर एक गीत रंगीन है, चमकदार है। उनका संगीत संयोजन कुछ इस तरह होता था कि उनके गीतों में हर एक साज़ बहुत ही साफ़ साफ़ सुनाई पड़ता था। दूसरे संगीतकारों की तरह उन्होने कभी 'वायलिन' से 'हार्मोनी' पैदा करने की कोशिश नहीं की, बल्कि हर साज़ को एकल तरीके से गीतों में पेश किया। फिर चाहे वह सारंगी हो या सितार, 'सैक्सोफ़ोन' हो या फिर बांसुरी। मूड, पात्र और स्थान - काल के आधार पर साज़ों का चुनाव किया जाता था, और इन साज़ों के हर एक पीस को बहुत ही निराले ढंग से पेश किया जाता था। इन साज़ों को बजाने के लिए भी नय्यर साहब ने हमेशा बड़े बड़े साज़िंदों और फ़नकारों को ही नियुक्त किया। इन फ़नकारों के बारे में विस्तार से हम फिर कभी बात करेंगे, चलिये अब आ जाते हैं आज के गीत पर। आज का गीत है फ़िल्म 'हम सब चोर हैं' से, नय्यर साहब का संगीत, मजरूह साहब के बोल, और आशाजी की आवाज़। शम्मी कपूर, नलिनी जयवन्त और अमीता अभिनीत फ़िल्म 'हम सब चोर हैं' आयी

ठंडी हवा काली घटा आ ही गयी झूम के....गीता दत्त की पुकार पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 48 आ ज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम एक ऐसा गीत लेकर आए हैं जिसे सुन कर आप खुश हो जाएँगे. भाई, मुझे तो यह गीत बेहद पसंद है और जब भी कभी मैं इस गीत को सुन लेता हूँ तो दिल में एक खुशी की लहर सी दौड जाती है. आज की परेशानियाँ भरी ज़िंदगी में यह गीत कुछ देर के लिए ही सही लेकिन हमारे होंठों पे मुस्कान लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. ठंडी हवाओं और काली घटाओं पर बहुत सारे गाने आज तक बने हैं, लेकिन यह गीत भीड से अलग अपनी एक मज़बूत पहचान रखता है. मिस्टर & मिसिस 55 फिल्म का यह गीत ओपी नय्यर के संगीत और मजरूह के बोलों से सज़ा है. यूँ तो इस गीत के गायिकाओं में गीता दत्त और साथियों का नाम दर्ज किया गया है, लेकिन इस गीत में शामिल आवाज़ें अपने आप में कई राज़ छुपाये हुए है. इसमें कोई दोराय नहीं कि गीता दत्त की ही आवाज़ मुख्य रूप से सुनाई देती है, लेकिन गौर से अगर आप यह गीत सुने तो कम से कम दो और अलग आवाज़ें भी आप आसानी से महसूस कर सकते हैं, ख़ास कर गीत के शुरूआती मुखड़े में ही. गीत कुछ इस तरह से शुरू होता है... पहली आवाज़: ठंडी हवा दूसरी आवाज़: काली घटा तीसरी आवाज़: आ ही

अरे तौबा ये तेरी अदा...हंसती बिजली गाता शोला ये किसने देखा...अरे तौबा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 34 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं दोस्तों! आज हम आप को एक ऐसा गीत सुनवाने जा रहे हैं जिसे आप ने एक लंबे अरसे से नहीं सुना होगा, और आप में से कई लोग तो शायद पहली बार यह गीत सुनेंगे. यह जो आज का गीत है वो है तो एक चर्चित फिल्म से ही, लेकिन इस गीत को शायद उतना बढावा नहीं मिला जीतने फिल्म के दूसरे गीतों को मिला. इससे पहले कि इस गीत का ज़िक्र हम करें, गीता दत्त के बारे में चंद अल्फ़ाज़ कहना चाहूँगा. गीता दत्त की आवाज़ की ख़ासियत यह थी कि कभी उसमें वेदना की आह मिलती तो कभी रूमानियत की शोखी, कभी भक्ति रस में लीन हो जाती तो कभी अपनी आवाज़ को लंबा खींचकर लोगों को भाव-विभोर कर देती. अपने शुरूआती दिनों में गीता दत्त को केवल भक्ति रचनाएँ ही गाने को मिलते थे. उनकी आवाज़ में भक्ति गीत बेहद सुंदर जान पड्ते. ऐसा लगने लगा था कि गीता दत्त की प्रतिभा को भक्ति रस के खाँचे में ही क़ैद कर दिया जाएगा. लेकिन संगीतकार ओ पी नय्यर ने पहली बार अपनी पहली ही फिल्म "आसमान" में गीता दत्त से गाने गवाए और यहाँ से शुरू हुई एक नशीली लंबी यात्रा. फिर तो जैसे नय्

पिया पिया न लागे मोरा जिया...आजा चोरी चोरी....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 30 दो स्तों, कुछ गीत ऐसे होते हैं जो केवल एक मुख्य साज़ पर आधारित होते हैं. उदाहरण के तौर पर कश्मीर की कली का गाना "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का" केवल 'सेक्साफोन' पर आधारित है. इस गीत के संगीतकार थे ओपी नय्यर. नय्यर साहब ने ऐसे ही कुछ और गीतों में भी सिर्फ़ एक मुख्य साज़ का इस्तेमाल किया है. उनके संगीत की खासियत भी यही थी की वो '7-पीस ऑर्केस्ट्रा' से उपर नहीं जाते थे. इसी तरह का एक गीत था फिल्म "फागुन" में जिसमें केवल बाँसुरी का मुख्य रूप से इस्तेमाल हुआ. फिल्म फागुन के सभी गीतों में बाँसुरी सुनाई पड्ती है जिन्हे बजाया था उस ज़माने के मशहूर बाँसुरी वादक सुमंत राज ने. तो आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आप सुनने जा रहे हैं फिल्म फागुन का वही गीत जिसमें है सुमंत राज की मधुर बाँसुरी की तानें, ओपी नय्यर का दिलकश संगीत, और आशा भोंसले की मनमोहक आवाज़. और अब इस फिल्म के गीत संगीत से जुडी कुछ बातें हो जाए? यह फिल्म बनी थी सन 1958 में. बिभूति मित्रा द्वारा निर्मित एवं निर्देशित इस फिल्म में भारत भूषण और मधुबाला ने मुख्य किरदार निभाए.

मेरी जान तुम पे सदके...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 18 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं. आज की यह शाम थोडी शायराना है, जिसमें थोड़ी सी रूमानियत है, थोड़ी बेचैनी है, थोड़ी सी प्यास भी है, और थोड़ी सी चाहत भी. 60 के दशक के आखिर में संगीतकार ओ पी नय्यर के स्वरबद्ध गीत कम होने लगे थे. लेकिन जब भी किसी फिल्म को उन्होने अपना पारस हाथ लगाया तो वो जैसे सोना बन गया. 1966 में बनी फिल्म "सावन की घटा" आज अगर याद की जाती है तो सिर्फ़ उसके महकते हुए गीत संगीत के लिए. ओ पी नय्यर और एस एच बिहारी इस फिल्म के संगीतकार और गीतकार थे. इस फिल्म के लगभग सभी गीत 'हिट' हुए थे. आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी ने ज़्यादातर गीत भी गाए इस फिल्म में. लेकिन एक गीत ऐसा था जिसे नय्यर साहब ने महेंद्र कपूर से गवाया. इसी गीत का एक दूसरा 'वर्जन' भी था जिसे आशाजी ने गाया था. "मेरी जान तुमपे सदके अहसान इतना कर दो, मेरी ज़िंदगी में अपनी चाहत का रंग भर दो". इसमें कोई शक़ नहीं की महेंद्र कपूर ने इस गीत में अपनी गायकी का वो रंग भरा है जो आज तक उतरने का नाम नहीं लेती. हालाँकि ओ पी नय्यर के चहेते गायक