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परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९९ सि तारों के आगे जहाँ और भी हैं, अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं| अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं| गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं| हमारे यहाँ कुछ शायर ऐसे हुए हैं, जिन्हें हमने उनकी कुछ ग़ज़लों (कभी-कभी तो महज़ एक ग़ज़ल या एक नज़्म) तक हीं बाँधकर रखा है। ऐसे हीं एक शायर हैं, "मोहम्मद इक़बाल"। अभी हमने ऊपर जो शेर पढे, उन शेरों में से कम-से-कम एक शेर तो (पहला शेर हीं) अमूमन हर इंसान की जुबान पर काबिज़ है ,लेकिन ऐसे कितने हैं, जिन्हें इन शेरों के शायर का नाम पता है। हाँ, "इक़बाल" के नाम से सभी वाकिफ़ हैं, लेकिन कितनों की इसकी जानकारी है कि "सितारों के आगे... " कहकर लोगों में आशा की एक नई लहर पैदा करने वाला शायर "इक़बाल" हीं है। हमारे लिए तो इक़बाल बस "सारे जहां से अच्छा" तक हीं सीमित हैं। और यही कारण है कि जब हम बड़े शायरों की गिनती करते हैं तो ग़ालिब के दौर के शायरों को गिनने के बाद सीधे हीं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ तक पहुँच जाते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि इन दो