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"केसरिया बालमा..", मांड एक - फनकार अनेक

राजस्थान के राजाओं की रूमानी कहानियों पर आधारित लोक गीत हैं जिन्हें मांड कहा जाता है. रेगिस्तान की मिटटी में रचे बसे इस राग पर जाने कितनी रचनाएँ बनी, जब भी किसी गायक/गायिका ने मांड को स्वर दिया सुनने वालों के जेहन में ऊंठों के गुजरते काफिलों पर गाते बंजारों की यायावरी जीवंत हो गई. मांड ने हमेशा से संगीत प्रेमियों के के दिलों पर राज किया है. देशी- विदेशी सब पर इसने अपना जादू चलाया है. सही मायनों में मांड राजस्थानी लोक संस्कृति की सच्ची पहचान है. मांड के बारे में में संजय पटेल भाई ने हमें जानकारी दी कि पंडित अजय चक्रवर्ती के शोधों के अनुसार मांड के कई रंग होते है,और तक़रीबन सौ तरह की माँडें गाई बजाई जातीं रहीं हैं. "केसरिया बालमा..." की धुन से हर संगीत प्रेमी परिचित है. ये लोक गीत मांड का एक शुद्धतम रूप है. बरसों बरस जाने कितने फनकारों ने इसे अपनी आवाज़ में तराशा. इसे गाने बजाने के मोह से शायद ही कोई बच पाया हो. यहाँ तक कि आज के पॉप गायक/ गायिकाएं भी इसके सम्मोहन में डूबे नज़र आए हैं. चलिए अब बातों को विराम देते हैं और आपको सुनवाते हैं मुक्तलिफ़ गायक /गायिकाओं की आवाज़ में "के

एक आम आदमी जिसने भोजपुरी को बना दिया खास...

भिखारी ठाकुर की जयंती पर हमारी संगीतमयी प्रस्तुति भिखारी ठाकुर एक आम आदमी के सतह से शिखर तक की बेजोड़ मिसाल हैं भिखारी ठाकुर... बहुत कम लोग होते हैं जो जीते-जी विभूति बन जाते हैं... दरअसल, इस भिखारी ठाकुर की जीवन-यात्रा भिखारी से ठाकुर होने की यात्रा ही है...फर्क सिर्फ यह है कि लीजेंड बनने की यह यात्रा भिखारी ने किसी रुपहले पर्दे पर नहीं असल ज़िंदगी में जिया. भोजपुरी के नाम पर सस्ता मनोरंजन परोसने की परंपरा भी उतनी ही पुरानी है, जितना भोजपुरी का इतिहास....18 दिसंबर 1887 को छपरा के कुतुबपुर दियारा गांव में एक निम्नवर्गीय नाई परिवार में जन्म लेने वाले भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया.....उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामीजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी...आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहाँ-तहाँ भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है.... value="transparent"> भिखारी ठाकुर के स्वर में उन्हीं की कविता 'डगरिया जोहता ना" . यह काव्यपाठ 'बिदेसिया' फिल्म

केरवा जे फरेला घवद से : सुनिए छठ के अवसर पर ये लोक गीत

आज छठ पर्व है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक श्रृद्धालु डूबते सूरज को अर्घ्य दे चुके होंगे और कल भोर में दूसरा अर्घ्य उगते सूरज को दिया जाएगा। छठ का नाम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे पावन पर्वों में शुमार होता है। विश्व में जहाँ कहीं भी इन प्रदेशों के लोग गए हैं वो अपने साथ इसकी परंपराओं को ले कर गए हैं। छठ जिस धार्मिक उत्साह और श्रृद्धा से मनाया जाता है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब तीन चौथाई पुलिसवालों के छुट्टी पर रहते हुए भी बिहार जैसे राज्य में इस दौरान आपराधिक गतिविधियाँ सबसे कम हो जाती हैं। अब छठ की बात हो और छठ के गीतों का जिक्र ना आए ये कैसे हो सकता है। बचपन से मुझे इन गीतों की लय ने खासा प्रभावित किया था। इन गीतों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि ये एक ही लए में गाए जाते हैं और सालों साल जब भी ये दिन आता है मुझे इस लय में छठ के गीतों को गुनगुनाने में बेहद आनंद आता है। यूँ तो शारदा सिन्हा ने छठ के तमाम गीत गा कर काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है पर आज जिस छठ गीत की मैं चर्चा कर रहा हूँ उसे मैंने टीवी पर भोजपुरी लोक गीतों की गायिका देवी की आवाज में सुना था और इतने

छठ पर्व और शारदा सिंहा, कविता पौडवाल, अनुराधा पौडवाल, सुनील छैला बिहारी आदि के गाये गीत

भारत पर्व प्रधान देश है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों छठ पूजा की धूम है। इस अवसर हम आपके लिए गीत-संगीत से सजा आलेख लेकर आये हैं। छठ गीत की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है, जिसपर लिखे बोलों को बहुत से गायक और गायिकाओं ने अपनी आवाज़ दी है। आलेख की शुरूआत पहले हम इसी पारम्परिक धुन पर पद्मश्री शारदा सिंहा द्वारा गाये एक गीत 'ओ दीनानाथ' को सुना कर करना चाहेंगे। पद्मश्री शारदा सिंहा को बिहार की कोकिला भी कहा जाता है। यह मशहूर लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी की शिष्या थीं। सुख-समृद्धि और और सूर्य उपासना का पर्व है 'छठ' सूर्य नमन इस वर्ष ४ नवम्बर को मनाई जा रही सूर्य षष्ठी गायत्री साधको के लिए अनुदानों का अक्षय कोष है। गायत्री महामंत्र के अधिष्ठाता भगवन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। सूर्य देव की आराधना एवं उपासना से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति एवं अध्यात्मिक अनुदान-वरदान की उपलब्धि होती है। सूर्योपासना के लिए निर्धारित तिथि को

पिया मेहंदी लियादा मोती झील से...जाके सायिकील से न...

मिट्टी के गीत में- कजली गीत मिर्जापुर उत्तर प्रदेश में एक लोक कथा चलती है, कजली की कथा. ये कथा विस्थापन के दर्द की है. रोजगार की तलाश में शहर गए पति की याद में जल रही है कजली. सावन आया और विरह की पीडा असहनीय होती चली गयी. काले बादल उमड़ घुमड़ छाए. कजली के नैना भी बरसे. बिजली चमक चमक जाए तो जैसे कलेजे पर छुरी सी चले. जब सखी सहेलियां सवान में झूम झूम पिया संग झूले, कजली दूर परदेश में बसे अपने साजन को याद कर तड़प तड़प रह जाए. आह ने गीत का रूप लिया. काजमल माई के चरणों में सर रख जो गीत उसने बुने, उन्ही पीडा के तारों से बने कजरी के लोकप्रिय लोक गीत. सावन में गाये जाने वाले ये लोकगीत अमूमन औरतों द्वारा झुंड बना कर गाये जाते हैं (धुनमुनिया कजरी). कजरी गीत गावों देहातों में इतने लोकप्रिय हैं की हर बार सावन के दौरान क्षेत्रीय कलाकारों द्वारा गाये इन गीतों की cd बाज़ार में आती है और बेहद सुनी और सराही जाती है. आसाम की वादियों और कश्मीर की घाटियों की सैर के बाद आईये चलते हैं विविधताओं से भरे पूरे प्रदेश, उत्तर प्रदेश की तरफ़. कण कण में संगीत समेटे उत्तर प्रदेश में गाये जाने वाले सावन के गीत कजरी क

मिट्टी के गीत ( ३), कश्मीर की वादियों में महकता सूफी संगीत

उस्ताद गुलाम मोहमद साज़नवाज़ का जादूई संगीत असाम के मिटटी की महक लेने के बाद आईये चलते हैं, हिमालय की गोद में बसे धरती के स्वर्ग कश्मीर की खूबसूरत वादियों में. यहाँ तो चप्पे चप्पे में संगीत है, बहते झरनों में कहीं संतूर की स्वरलहरियाँ मिलेंगीं तो कहीं चनारों के बीच बहती हवाओं में बजते सितारों के स्वर मिलेंगे आपको, कहीं रबाब तो कहीं नगाडा, कहीं "रौफ" पर थिरकती कश्मीरी सुंदरियाँ तो कहीं पानी का भरा प्याला सर पर रख कर "नगमा" पर नाचते लड़के. कश्मीर के संगीत में सूफियाना संगीत रचा बसा है.सूफियाना कलाम कश्मीरी संगीत की आत्मा है. गुलाम मोहमद साज़नवाज़ कश्मीरी सूफी संगीत के एक "लिविंग लीजेंड" कहे जा सकते हैं. आईये उन्ही की आवाज़ और मौसिकी का आनंद लें इस विडियो में, जो हम तक पहुँचा कश्मीर निवासी और कश्मीरी सूफी संगीत के बहुत बड़े प्रेमी साजिद हमदानी की बदौलत, तो सुनते हैं उस्ताद को और घूम आते हैं संगीत के पंखों पर बैठकर दिलकश कश्मीर की मस्त फ़िज़ाओं में. Indian Folk Music Series, Kashmeeri Sudiyana Sangeet, Ustad Ghulam Md. Saaznawaaz

मिटटी के गीत ( २ ), लोक गीतों की अनमोल धरोहर संभाले हैं - ये संगीत युगल

लोक गीतों की बात चल रही है, और हम है आसाम की हरियाली वादियों में, जुबीन की मधुर आवाज़ में हम सुन चुके हैं ये भोरगीत , आसाम के लोकगीतों को मुख्यता दो प्रकारों में बांटा जा सकता है. कमरुपिया और गुवाल्पोरिया, आज हम आपको सुनाते हैं एक कमरुपिया लोक गीत, आवाजें हैं आसाम के बेहद मशहूर लोकगीत गायक दम्पति, रामेश्वर पाठक और धनादा पाठक की, This perfect couple continued making waves with their magnificent renderings of the folk tunes in never before styles. Dhanada Pathak originally comes from a culturally enlightened family of Barpeta who owned a Jatra party in their home called "The Rowly Opera". Her elder brothers were actively associated with the opera in many ways. They acted, sang, played instruments like the dotora, flute and others and initiated the functioning of the opera. So when she got married to Sri Rameshwar Pathak, their association nourished their individual dreams that had by the time taken an united shape. Today, for the masses, Rameshwar Pathak and Dhanada Pathak are a