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चित्रशाला - 06: फ़िल्मों में महात्मा गांधी

चित्रशाला - 06 फ़िल्मों में महात्मा गांधी 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। प्रस्तुत है फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत के विभिन्न पहलुओं से जुड़े विषयों पर आधारित शोधालेखों का स्तंभ ’चित्रशाला’। आज 30 जनवरी, शहीद दिवस है। आज ही के दिन सन् 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का देहवसान हुआ था। स्वाधीनता के बाद आज के इस दिन को राष्ट्र ’शहीद दिवस’ के रूप में पालित करता है। आइए बापू और इस देश पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आज की इस विशेष प्रस्तुति में उन फ़िल्मों की चर्चा करें जो या तो महात्मा गांधी पर आधातित हैं या जिनमें उन्हें विशिष्टता से दिखाया गया है। म हात्मा गांधी जी पर बनने वाली फ़िल्मों की चर्चा शुरू करने से पहले एक रोचक तथ्य बताना चाहता हूँ। साल 1934 में पुणे की ’प्रभात फ़िल्म कंपनी’ ने ’अमृत मंथन’ फ़िल्म की अपार सफलता के बाद संत एकनाथ पर एक फ़िल्म बनाना चाहा था। शुरुआत में इस फ़िल्म का सीर्षक ‘महात्मा’ रखा गया था, पर

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 61- पद्मश्री गायिका जुथिका रॉय और "बापू"

जब गायिका जुथिका रॉय मिलीं राष्ट्रपिता बापू से नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का मैं, आपका दोस्त सुजॉय चटर्जी, स्वागत करता हूँ। कल २ अक्टूबर, यानि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयन्ती है। इस अवसर पर आज के इस प्रस्तुति में हम एक गायिका की ज़ुबानी आप तक पहुँचाने जा रहे हैं जिसमें वो बताएंगी बापू से हुई उनकी मुलाक़ात के बारे में। दोस्तों, ५० के दशक में फ़िल्म-संगीत के क्षेत्र में लता मंगेशकर जो मुकाम रखती थीं, ग़ैर-फ़िल्मी भजनों में वह मुकाम उस समय गायिका जुथिका रॉय का था। उनकी आवाज़ आज कहीं सुनाई नहीं देती, पर उस समय उनकी मधुर आवाज़ में एक से एक लाजवाब भजन आए थे जिनके सिर्फ़ आम जनता ही नहीं बल्कि बड़े से बड़े राजनेता जैसे महात्मा गांधी, पण्डित नेहरू, सरोजिनी नायडू आदि भी शैदाई थे। जुथिका जी की आवाज़ किसी ज़माने में घर घर में गूंजती थी। भजन संसार और सुगम संगीत के ख़ज़ाने को समृद्ध करने में जुथिका जी का अमूल्य योगदान है। सन्‍ २००९ में पद्मश्री सम्मानित जुथिका रॉय तशरीफ़ लाई थीं विविध भारती के स्टुडियो में और उनके साथ साथ विविध भारती के समस्त श्रोतागण गुज़रे थे बीत

ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात... फ़ैज़ साहब के बेमिसाल बोल और इक़बाल बानो की मदभरी आवाज़

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८२ बा त तो दर-असल पुरानी हो चुकी है, फिर भी अगर ऐसा मुद्दा हो, ऐसी घटना हो जिससे खुशी मिले तो फिर क्यों न दोस्तों के बीच उसका ज़िक्र किया जाए। है ना? तो हुआ यह है कि आज से कुछ ३३ दिन पहले यानि कि २ अप्रैल के दिन महफ़िल-ए-गज़ल की सालगिरह थी। अब हमारी महफ़िल कोई माशूका या फिर कोई छोटा बच्चा तो नहीं कि जो शिकायतें करें ,इसलिए हमें इस दिन का इल्म हीं न हुआ। हाँ, गलती हमारी है और हम अपनी इस खता से मुकरते भी नहीं, लेकिन आप लोग किधर थे... आप तमाम चाहने वालों का तो यह फ़र्ज़ बनता था कि हमें समय पर याद दिला दें। अब भले हीं हमारी यह महफ़िल नाज़ न करे या फिर तेवर न दिखाए, लेकिन इसकी आँखों से यह ज़ाहिर है कि इसे हल्का हीं सही, लेकिन बुरा तो ज़रूर हीं लगा है। क्या?..... क्या कहा? नहीं लगा... ऐसा क्यों... ऐसा कैसे.... ओहो... यह वज़ह है.. सही है भाई.. जब महफ़िल में चचा ग़ालिब विराजमान हों और वो भी पूरे के पूरे ढाई महिने के लिए तो फिर कौन नाराज़ होगा.. नाराज़ होना तो दूर की बात है.. किसी को अपनी खबर हो तो ना वो कुछ और सोचे। यही हाल हमारी महफ़िल का भी था... यानि कि अनजाने में हीं हमने म

रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम

रामनवमी पर सुनिए अमीर खुसरो, कबीर, तुलसी और राकू को वैष्णव हिन्दू हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अपने भगवान श्रीराम के जन्मदिवस का त्योहार मनाते हैं। वर्ष २००९ में यह तिथि ३ अप्रैल को आयी है, इस दिवस पर रामनवमी नाम का त्यौहार मनाया जाता है। पुराण-कथाओं के अनुसार श्री राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता हैं। मान्यता है कि तीनों लोकों में धर्म की स्थापना के लिए ब्रह्म, विष्णु और महेश (शिव) नामक तीन तंत्र हैं और इनके काउँटरपार्टों की भी संकल्पना की गई है। रामनवमी का त्योहार इस बात की याद दिलाता है कि मनुष्य को धर्म में आस्था कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अधर्म कितना भी अपना अंधकार फैला ले, भगवान देर ही सही अभय प्रकाश लेकर ज़रूर अवतरित होते हैं। रामायण की कथा में महर्षि वाल्मिकी लिखते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्‍नियाँ होने के बावज़ूद उन्हें कोई पुत्र नहीं था। दशरथ को अपने राजवंश के खत्म होने का डर था। शंका से ग्रस्त राजा दशरथ को वशिष्ठ ऋषि ने आशा का छोर न छोड़ने की सलाह दी और पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का रास्ता दिखलाया। पुत्र-कामेष्टि यज्ञ के अनुष्ठान के फलस्वरूप

आज १५ बार सर उठा कर गर्व से सुनें-गुनें - राष्ट्रीय गान

"उस स्वतंत्रता के होने का कोई महत्व नहीं है जिसमें गलतियाँ करने की छूट सम्मिलित ना हो"-महात्मा गाँधी. आवाज़ के सभी श्रोताओं को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें. आज हम आपके लिए लाये हैं एक ख़ास पेशकश. "जन गण मन" के १५ अलग अलग रूप. सबसे पहले सुनिए सामूहिक आवाजों में राष्ट्र वंदन - 31 राज्य, 1618 भाषाएँ, 6400 जातियाँ, 6 धर्म और 29 मुख्य त्योहार लेकिन फिर भी एक महान राष्ट्र। पंडित हरी प्रसाद चौरसिया - जन गण मन संस्कृत मिश्रित बंगाली में लिखा गया भारत का राष्ट्रीय गीत है। ये ब्रह्म समाज की एक प्रार्थना के पहले पाँच बन्द हैं जिनके रचियता नोबल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्रनाथ टैगोर हैं। पंडित भीम सेन जोशी - सबसे पहले इसे 27 दिसम्बर 1911 को नैशनल कांग्रेस के कलकत्ता सम्मेलन में गाया गया। 1935 में इस गीत को दून स्कूल ने अपने विद्यालय के गीत के रूप में अपनाया। लता मंगेशकर - 24 जनवरी, 1950 को संविधान द्वारा इसे अधिकारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया। ऐसा माना जाता है कि इसकी वर्तमान धुन को राम सिंह ठाकुर जी के एक गीत से लिया गया है लेकिन इस बारे में वि

वैष्णव जन तो तेने कहिये,जे पीड पराई जाणे रे...

गाँधी जयंती पर विशेष - मैंने अहिंसा का पाठ अपनी पत्नी से पढा..... मैं स्वप्नंष्टा नहीं हूं। मैं स्वयं को एक व्यावहारिक आदर्शवादी मानता हूं। अहिंसा का धर्म केवल ऋषियों और संतों के लिए नहीं है। यह सामान्य लोगों के लिए भी है। अहिंसा उसी प्रकार से मानवों का नियम है जिस प्रकार से हिंसा पशुओं का नियम है। पशु की आत्मा सुप्तावस्था में होती है और वह केवल शारीरिक शक्ति के नियम को ही जानता है। मानव की गरिमा एक उच्चतर नियम आत्मा के बल का नियम के पालन की अपेक्षा करती है... जिन ऋषियों ने हिंसा के बीच अहिंसा की खोज की, वे न्यूटन से अधिक प्रतिभाशाली थे। वे स्वयं वेलिंग्टन से भी बडे योद्धा थे। शस्त्रों के प्रयोग का ज्ञान होने पर भी उन्होंने उसकी व्यर्थता को पहचाना और श्रांत संसार को बताया कि उसकी मुक्ति हिंसा में नहीं अपितु अहिंसा में है। मैं केवल एक मार्ग जानता हूं - अहिंसा का मार्ग। हिंसा का मार्ग मेरी प्रछति के विरुद्ध है। मैं हिंसा का पाठ पढाने वाली शक्ति को बढाना नहीं चाहता... मेरी आस्था मुझे आश्वस्त करती है कि ईश्वर बेसहारों का सहारा है, और वह संकट में सहायता तभी करता है जब व्यक्ति स्वयं को उसकी

स्वर और सुर की देवी - एम एस सुब्बलक्ष्मी

"जब एक बार हम अपनी कला और भक्ति से भीतर की दिव्यता से सामंजस्य बिठा लेते हैं, तब हम इस शरीर के बाहर भी प्रेम और करुणा का वही रूप देख पाते हैं...कोई भी भक्त जब इस अवस्था को पा लेता है सेवा और प्रेम उसका जीवन मार्ग बन जाना स्वाभाविक ही है." ये कथन थे स्वरों की देवी एम् एस सुब्बलक्ष्मी के जिन्हें लता मंगेशकर ने तपस्विनी कहा तो उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब ने उन्हें नाम दिया सुस्वरलक्ष्मी का, किशोरी अमोनकर ने उन्हें सातों सुरों से उपर बिठा दिया और नाम दिया - आठवाँ सुर. पर हर उपमा जैसे छोटी पड़ जाती है देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित पहली संगीत से जुड़ी हस्ती के सामने. संगीत जोगन एम् एस सुब्बलक्ष्मी पद्मा भूषण, संगीत नाटक अकेडमी सम्मान, कालिदास सम्मान जैसे जाने कितने पुरस्कार पाये जीवन में पर प्राप्त सभी सम्मान राशिः को कभी अपने पास नही रखा, सामाजिक सेवाओं से जुड़े कामो के दान कर दिया.शायद उनके लिए संगीत से बढ़कर कुछ भी नही था. united nation में हुआ उनका कंसर्ट एक यादगार संगीत आयोजन माना जाता है. १६ सितम्बर १९१६ में जन्मीं सुब्बलक्ष्मी जी का बचपन भी संगीतमय रहा. मदु