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बसन्त ऋतु की दस्तक और वाणी वन्दना

    स्वरगोष्ठी – 153 में आज पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन  ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों आज संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में चर्चा के लिए दो उल्लेखनीय अवसर हैं। आज से ठीक दो दिन बाद अर्थात 4 फरवरी को बसन्त पंचमी का पर्व है। यह दिन कला, साहित्य और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना का दिन है। इसी दिन प्रकृति में ऋतुराज बसन्त अपने आगमन की दस्तक देते हैं। इस ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त का गायन-वादन अनूठा परिवेश रचता है। आज के अंक में हम आपके लिए राग बसन्त की एक बन्दिश- ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ लेकर उपस्थित हुए हैं। यह रचना आज इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इसे पण्डित भीमसेन जोशी ने अपना स्वर दिया है। यह तथ्य भी रेखांकन योग्य है कि 4 फरवरी को इस महान संगीतज्ञ की 93वीं जयन्ती भी है। चूँकि इस दिन बसन्त पंचमी का पर्व भी है, अतः आज हम आपको वर्ष 1977 की फिल्म ‘आलाप’ से लत

भैरवी के कोमल स्वरों से आराधना

    स्वरगोष्ठी – 133 में आज रागों में भक्तिरस – 1 'भवानी दयानी महावाक्वानी सुर नर मुनि जन मानी...' भारतीय संगीत की परम्परा के सूत्र वेदों से जुड़े हैं। इस संगीत का उद्गम यज्ञादि के समय गेय मंत्रों के रूप में हुआ। आरम्भ से ही आध्यात्म और धर्म से जुड़े होने के कारण हजारों वर्षों तक भारतीय संगीत का स्वरूप भक्तिरस प्रधान रहा। मध्यकाल तक संगीत का विकास मन्दिरों में ही हुआ था, परिणामस्वरूप हमारे परम्परागत संगीत में भक्तिरस की आज भी प्रधानता है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से हम एक नई श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं, जिसका शीर्षक है- ‘रागों में भक्तिरस’। इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस नई श्रृंखला में हम आपको विभिन्न रागों में निबद्ध भक्ति संगीत की कुछ उत्कृष्ट रचनाओं का रसास्वादन कराएँगे। साथ ही उन्हीं रागों पर आधारित फिल्मी गीतों को भी हमने श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में सम्मिलित किया है। आज श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपके लिए राग भैरवी चुना है। इस र