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"यह कहाँ आ गए हम..." और "हम कहाँ खो गए..." गीतों का आपस में क्या सम्बन्ध है?

एक गीत सौ कहानियाँ - 58   ‘ यह कहाँ आ गए हम...’ रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 58-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’सिलसिला’ के मशहूर गीत "ये कहाँ आ गए है..." के बारे में जिसे लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन ने गाया था।   फ़ि ल्म ’सिलसिला’ यश

‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : SWARGOSHTHI – 199 : RAG BHATIYAR

स्वरगोष्ठी – 199 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 8 : राग भटियार पण्डित राजन मिश्र ने एस. जानकी के साथ भटियार के स्वरों में गाया- 'आयो प्रभात सब मिल गाओ...' ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। अब हम इस लघु श्रृंखला के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। इस श्रृंखला में अभी तक आपने 1943 से 1960 के बीच में बनी कुछ फिल्मों के ऐसे गीत सुने जो रागों पर आधारित थे और इन्हें किसी फिल्मी पार्श्वगायक या गायिका ने नहीं बल्कि समर्थ शास्त्रीय गायक या गायिका ने गाया था। छठे दशक के बाद अब हम आपको सीधे नौवें दशक में ले चलते है। इस दशक में भी फिल्मी गीतों में रागदारी संगीत का हल्का-फुल्का प्रयास किया गया था। ऐसा ही एक प्रयास संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने 1985 की फिल्म ‘सुर संगम’ में किया था। इस फिल्म के मुख्य चरित्र के लिए उन्होने सुविख्यात गायक पण्डित राजन मिश्र (युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र में से एक) से पार्श्वगायन कराया था। आज के अंक में हम

"वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा..." - किस बात पर ख़फ़ा हुए थे लता और रफ़ी एक दूजे से?

एक गीत सौ कहानियाँ - 37   ‘ वो हैं ज़रा ख़फ़ा ख़फ़ा . ..’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 37-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'शागिर्द' के गीत "वो हैं ज़रा ख़फ़ा-ख़फ़ा" के बारे में।  य ह वर्ष 1967 की बात है। निर्माता सुबोध मुखर्जी बना रहे थे फ़िल्म &#

फिल्म 'सौ साल बाद' का रागमाला गीत

प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 6 राग भटियार, आभोगी, मेघ मल्हार और बसन्त बहार में पिरोया गया रागमाला गीत ‘एक ऋतु आए एक ऋतु जाए...’ फिल्म : सौ साल बाद (1966) गायक : लता मंगेशकर और मन्ना डे गीतकार : आनन्द बक्शी संगीतकार : लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल आलेख : कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन   आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव से हमें radioplaybackindia@live.com पर अवश्य अवगत कराएँ। 

चार रागों का मेल हैं इस रागमाला गीत में

स्वरगोष्ठी – 120 में आज रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 6 ‘एक ऋतु आए एक ऋतु जाए...’ संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक का साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’। आज हम आपके लिए जो रागमाला गीत प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे हमने 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौ साल बाद’ से लिया है। इस गीत में चार रागों- भटियार, आभोगी कान्हड़ा, मेघ मल्हार और बसन्त बहार का प्रयोग हुआ है। गीत के चार अन्तरे हैं और इन अन्तरों में क्रमशः स्वतंत्र रूप से इन्हीं रागों का प्रयोग किया गया है। इसके गीतकार आनन्द बक्शी और संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं। इ स श्रृंखला के पिछले अंकों में आपने कुछ ऐसे रागमाला गीतों का आनन्द लिया था, जिनमें रागों का प्रयोग प्रहर के क्रम से था या ऋतुओं के क्रम से हुआ था। परन्तु आज के रागमाला गीत में रागों का क्रम प्रहर अथवा ऋतु के क्रम में नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म ‘सौ साल बाद’ के इस रागमाला गीत में