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क्या टूटा है अन्दर अन्दर....इरशाद के बाद महफ़िल में गज़ल कही "शहज़ाद" ने...साथ हैं "खां साहब"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४८ पि छली कड़ी में पूछे गए दो सवालों में से एक सवाल था "गुलज़ार" साहब के उस मित्र का नाम बताएँ जिसने गुलज़ार साहब के बारे में कहा था कि "कहीं पहले मिले हैं हम"। जहाँ तक हमें याद है हमने महफ़िल-ए-गज़ल की ३६वीं कड़ी में उन महाशय का परिचय "मंसूरा अहमद" के रूप में दिया था। जवाब के तौर पर सीमा जी, शरद जी और शामिख जी में बस सीमा जी ने हीं "मंसूरा अहमद" लिखा, बाकियों ने "मंसूरा" को शायद टंकण में त्रुटि समझकर "मंसूर" कर दिया। चाहते तो हम "मंसूर" को गलत उत्तर मानकर अंकों में कटौती कर देते, लेकिन हम इतने भी बुरे नहीं। इसलिए आप दोनों को भी पूरे अंक मिल रहे हैं। लेकिन आपसे दरख्वास्त है कि आगे से ऐसी गलती न करें। वैसे अगर आपने कहीं "मंसूर अहमद" पढ रखा है तो कृप्या हमें भी अवगत कराएँ ताकि हमें उनके बारे में और भी जानकारी मिले। अभी तो हमारे पास उन कविताओं के अलावा कुछ नहीं है। हाँ तो इस बात को मद्देनज़र रखते हुए पिछली कड़ी के अंकों का हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक, शामिख जी: १ अंक। अ