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प्रयोगधर्मी संगीतज्ञ कुमार गन्धर्व और राग नन्द

स्वरगोष्ठी – ६५ में आज ‘उड़ जाएगा हंस अकेला, जग-दर्शन का मेला...’ कुमार गन्धर्व भारतीय संगीत की एक नई प्रवृत्ति और नई प्रक्रिया के पहले कलासाधक थे। घरानों की पारम्परिक गायकी की अनेक शताब्दी पुरानी जो प्रथा थी उसमें संगीत तो जीवित रहता था, किन्तु संगीतकार के व्यक्तित्व और प्रतिभा का विसर्जन हो जाता था। कुमार गन्धर्व ने पारम्परिक संगीत के कठोर अनुशासन के अन्तर्गत ही कलासाधक की सम्भावना को स्थापित किया। ‘स्व रगोष्ठी’ के मंच पर आपका यह सूत्रधार कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आपके अभिनन्दन हेतु तत्पर है। आज आठ अप्रैल का दिन है। वर्ष १९२४ में आज के ही दिन बेलगाम, कर्नाटक के पास सुलेभवी नामक स्थान में एक संगीत-प्रेमी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ था, जिसका माता-पिता का रखा नाम तो था शिवपुत्र सिद्धरामय्या कोमकलीमठ, किन्तु आगे चल कर संगीत-जगत ने उसे कुमार गन्धर्व के नाम से पहचाना। आज के अंक में हम इन्हीं प्रयोगधर्मी संगीत-साधक द्वारा सम्पादित कुछ अनूठे कार्यों का स्मरण करते हुए उनके प्रिय राग- नन्द की चर्चा करेंगे। भारतीय संगीत के बेहद मनमोहक राग- नन्द के सौन्दर्य का आ

सुर संगम में आज - सगीत शिरोमणि कुमार गन्धर्व

सुर संगम - 30 - पंडित कुमार गंधर्व वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा "मो तिया गुलाबे मरवो... आँगना में आछो सोहायो गेरा गेराई चमेली... फुलाई सुगंधा मोहायो..." उपरोक्त पंक्तियाँ हैं एक महान शास्त्रीय गायक की रचना के| एक ऐसा नाम जिसे शास्त्रीय भजन गायन में सर्वोत्तम माना गया है, कुछ लोगों का मानना है कि वे लोक संगीत व भजन के सर्वोत्तम गायक थे तो कुछ का मानना है कि उनकी सबसे बहतरीन रचनाएँ हैं उनके द्वारा रचित राग जिन्हें वे ६ से भी अधिक प्रकार के ले व तानों को मिश्रित कर प्रस्तुत करते थे| मैं बात करा रहा हूँ महान शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित कुमार गंधर्व की जिन्हें इस अंक के माध्यम से सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि| कुमार गंधर्व का जन्म बेलगाम, कर्नाटक के पास 'सुलेभवि' नामक स्थान में ८ अप्रैल १९२४ को हुआ, माता-पिता ने नाम रखा ' शिवपुत्र सिद्दरामय्या कोमकलीमठ'| उन्होंने संगीत की शिक्षा उन दिनों जाने-माने संगीताचार्य प्रो. बी. आर. देवधर से ली| बाल्यकाल से ही सं