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जब गमे इश्क सताता है तो हंस लेता हूँ....मुकेश की आवाज़ में बहता दर्द

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 133 आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक बहुत ही कमचर्चित गीतकार का ज़िक्र। फ़िल्म 'किनारे किनारे' का ज़िक्र छिड़ते ही जिनका नाम झट से ज़हन में आता है वो हैं संगीतकार जयदेव और गीतकार न्याय शर्मा। जी हाँ, न्याय शर्मा एक ऐसे गीतकार हुए हैं जिन्होने बहुत ही गिनी चुनी फ़िल्मों के लिए गानें लिखे हैं। जिन तीन फ़िल्मों में उन्होने गानें लिखे उनके नाम हैं - 'अंजली', 'किनारे किनारे' और 'हमारे ग़म से मत खेलो'। वैसे उनके लिखे बहुत सारे ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लें मौजूद हैं। उनका लिखा और रफ़ी साहब का गाया सब से मशहूर ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़ल है "काश ख़्वाबों में आ जाओ"। सी. एच. आत्मा और आशा भोंसले ने भी न्याय शर्मा के कई ग़ज़लों को स्वर दिया है। वापस आते हैं फ़िल्म 'किनारे किनारे' पर। "कोई दावा नहीं, फ़रियाद नहीं, तन्ज़ नहीं, रहम जब अपने पे आता है तो हँस लेता हूँ, जब ग़म-ए-इश्क़ सताता है तो हँस लेता हूँ", फ़िल्म 'किनारे किनारे' की यह ग़ज़ल एक फ़िल्मी ग़ज़ल होते हुए भी भीड़ से बहुत अलग है, जुदा है। जयदेव की धुन और संगीत