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वो इश्क जो हमसे रूठ गया........महफ़िल-ए-जाविदा और "फ़रीदा"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #२६ ज ब कुछ आपकी उम्मीद के जैसा हो, लेकिन ज्यादा कुछ आपकी उम्मीद से परे, तो किंकर्तव्यविमुढ होना लाज़िमी है। ऐसा हीं कुछ हमारे साथ हो रहा है। इस बात का हमें फ़ख्र है कि हम महफ़िल-ए-गज़ल में उन फ़नकारों की बातें करते हैं,जिनका मक़बूल होना उनका और हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और यही कारण है कि हमें अपने पाठकों और श्रोताओं से ढेर सारी उम्मीदें थीं और अभी भी हैं। और इन्हीं उम्मीदों के दम पर महफ़िल-ए-गज़ल की यह रौनक है। हमने सवालों का दौर यह सोचकर शुरू किया था कि पढने वालों की याददाश्त मांजने में हम सफल हो पाएँगे। पिछली कड़ी से शुरू की गई इस मुहिम का रंग-रूप देखकर कुछ खुशी हो रही है तो थोड़ा बुरा भी लग रहा है। खुशी का सबसे बड़ा सबब हैं "शरद जी" । जब तक उन्हें "एपिसोड" वाली कहानी समझ नहीं आई, तब तक उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हर बार जवाबों का पिटारा लेकर हीं हाज़िर हुए। हमें यह बात बताने में बड़ी खुशी हो रही है कि शरद जी ने पहली बार में हीं सही जवाब दे दिया और ४ अंकों के हक़दार हुए। चूँकि इनके अलावा कोई भी शख्स मैदान में नहीं उतरा इसलिए ३ अंक और २ अंकों वाले