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तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 05 - कानन देवी

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 05   कानन देवी ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक समर्पित है फ़िल्म जगत के प्रथम दौर की मशहूर गायिका-अभिनेत्री कानन देवी को।     22  अप्रैल 1916 को कोलकाता के पास हावड़ा में एक छोटी बच्ची का जन्म हुआ। माँ ने नाम रखा क

राग भूपाली और कल्याण में ध्रुपद गीत : SWARGOSHTHI – 204 : DHRUPAD BANDISH

स्वरगोष्ठी – 204 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : ध्रुपद – 2 गुण्डेचा बन्धुओं और सहगल से सुनिए ध्रुपद के निबद्ध गीत   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का मैं कृष्णमोहन मिश्र नई लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैली परिचय’ की दूसरी कड़ी मे हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की मौजूदा शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से जो भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धांतों के अनुकूल धारा थी उसे स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन और वर्तमान में उपलब्ध संगीत शैली है, ध्रुपद अथवा ध्रुवपद। पिछली कड़ी में हमने ध्रुपद शैली के परिचय से श्रृंखला की शुरुआत की थी और इस कड़ी में आपको ध्रुपद आलाप से परिचि

‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय...’ : SWARGOSHTHI – 188 : THUMARI BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 188 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 7 : ठुमरी भैरवी पण्डित भीमसेन और सहगल की आवाज़ में सुनिए लौकिक और आध्यात्मिक भाव का बोध कराती यह कालजयी ठुमरी  ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों जारी हमारी श्रृंखला ' फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी ’ के सातवें अंक में आज हम एक कालजयी पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी संस्करण के साथ उपस्थित हैं। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरि यों का रसास्वादन कर रहे हैं जिन्हें फिल्मों में कभी यथावत तो कभी परिवर्तित अन्तरे के साथ इस्तेमाल किया गया। फिल्मों मे शामिल ऐसी ठुमरियाँ अधिकतर पारम्परिक ठुमरियों से प्रभावित होती हैं। ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख और चित्र , दृश्य माध्यम के साथ और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत होते हैं। इस श्रृंखला से

‘पिया बिन नाहीं आवत चैन...’ : SWARGOSHTHI – 182 : THUMARI JHINJHOTI

स्वरगोष्ठी – 182 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 1 : ठुमरी झिंझोटी जब सहगल ने उस्ताद अब्दुल करीम खाँ की गायी ठुमरी को अपना स्वर दिया  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला का शीर्षक है- ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’। दरअसल यह श्रृंखला लगभग दो वर्ष पूर्व ‘स्वरगोष्ठी’ में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह भी किया था। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला में थोड़ा परिमार्जन करते हुए हम इसे पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख, चित्र और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम के मिले-जुले रूप में प्रस्तुत होते हैं। आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ इस दूसरे माध्यम से प्रस्तुत होता आया है। इस अंक से हम एक न

बसन्त ऋतु और राग बहार SWARGOSHTHI – 154

स्वरगोष्ठी – 154 में आज ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन राग बहार से ‘कलियन संग करता रंगरेलियाँ...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, पिछले अंक में हमने बसन्त पंचमी के उपलक्ष्य मे राग बसन्त के माध्यम से ऋतुराज का स्वागत किया था और भारतीय संगीत के महान रत्न पण्डित भीमसेन जोशी को उनके जन्मदिवस पर स्मरण किया था। आज संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में बसन्त ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले एक और राग, बहार की चर्चा होगी। साथ ही पण्डित भीमसेन जोशी को एक बार पुनः उन्हीं की कृति के माध्यम से स्मरण करेंगे। भारतीय संगीत के विश्वविख्यात कलासाधक और सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी का जन्म भी बसन्त ऋतु में 4 फरवरी, 1922 को हुआ था। बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ मुख्य रागों की चर्चा का यह सिलसिला हमने गत सप्ताह से आरम्भ किया है। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आज हम आपसे राग बहार पर चर्चा करेंगे।       पि छले अंक में हमने आ

पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के दिव्य स्वर में सूरदास का वात्सल्य भाव

  स्वरगोष्ठी – 150 में आज रागों में भक्तिरस – 18 कृष्ण की लौकिक बाललीला का अलौकिक चित्रण ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’ ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की अठारहवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और कुछ प्रमुख भक्तिरस कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों में हमने आपसे पन्द्रहवीं शताब्दी के सन्त कवि कबीर के व्यक्तित्व और उनके एक पद- ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम सोलहवीं शताब्दी के कृष्णभक्त कवि सूरदास के एक लोकप्रिय पद- ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो...’ पर सांगीतिक चर्चा करेंगे। सूरदास के इस पद को भारतीय संगीत के अनेकानेक शीर्षस्थ कलासाधकों स्वर दिया है, परन्तु ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस अंक में हम आपको यह पद स