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ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें - गणेश चतुर्थी से जुडी एक श्रोता की यादें और एक यादगार गीत

'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की सातवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है, और आप सभी को एक बार फिर से ईद-उल-फ़ित्र की हार्दिक मुबारक़बाद। दोस्तों, कल गणेश चतुर्थी का पावन दिन है, जो महाराष्ट्र और मुंबई में दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का पहला दिन भी होता है। बड़े ही धूम धाम से यह त्योहार पश्चिम भारत में मनाया जाता है। मुझे भी दो बार पुणे में इस त्योहार को देखने और मनाने का अवसर मिला था जब मेरी पोस्टिंग् वहाँ पर थी। इस बार के 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें 'के लिए हमने जिस ईमेल को चुना है उसे लिखा है पुणे के श्री योगेश पाटिल ने। आपको याद होगा कि योगेश जी के अनुरोध पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के 'पसंद अपनी अपनी' शृंखला में हमने "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें" गीत सुनवाया था। ये वोही योगेश पाटिल हैं जिन्होंने गणेश उत्सव से जुड़ी अपने बचपन का एक संस्मरण हमें लिख भेजा है। उनका ईमेल अंग्रेज़ी में आया है, जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह का बनता है.... ******************************************************************************* नमस्ते! मैं योगेश पाटिल

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें -दूर जिबूति से आया एक स्नेह सन्देश

ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की छठी कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास प्रस्तुति में हम आप तक पहुँचा रहे हैं शृंखला 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें'। हमारे नए दोस्तों की जानकारी के लिए हम यह बता दें कि इस शृंखला के तहत हम आप ही की यादों के ख़ज़ानों को पूरी दुनिया के साथ बाँट रहे हैं। ये वो यादें हैं जो यकीनन आपकी ज़िंदगी के अविस्मरणीय क्षण हैं, जिन्हें बाँटते हुए आपको जितना आनंद आता होगा, हमें भी इन्हें पढ़ते हुए उतना ही आनंद आ रहा है। तो हमारे नए दोस्तों से भी अनुरोध है कि आप अपनी ज़िंदगी के यादगार लम्हों व घटनाओं को हमारे साथ बाँटें हमें oig@hindyugm.com पर ईमेल भेज कर। आप किसी भी विषय पर हमें ईमेल कर सकते हैं। लेकिन हो सके तो किसी पुराने गीत के साथ अगर अपनी यादों को जोड़ सकते हैं तो फिर सोने पे सुहागा वाली बात होगी। और अब आज का ईमेल। यह ईमेल पाकर हम जितने ख़ुश हुए हैं उससे भी ज़्यादा आश्चर्यचकित हुए हैं, क्योंकि यह ईमेल आया है जिबूति से। आप ने इस देश का नाम शायद सुना होगा या नहीं सुना होगा। यह अफ़्रीका महाद्वीप

ओल्ड इस गोल्ड - ई मेल के बहाने यादों के खजाने - ०५...जब खानसाब ने सुनाई गज़ल

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक अंक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। पिछले हफ़्ते की प्रस्तुति के लिए हमें दो टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं थीं। उसमें पहली टिप्पणी थी इंदु जी की जिन्होंने शरद तैलंग जी की आवाज़ में गानें सुनना चाहा हैं। तो शरद जी, इंदु जी ने जो ज़िम्मेदारी हमें सौंपी थीं, वह अब हम आपको सौंप रहे हैं। जल्द से जल्द आप अपने स्वरबद्ध किए हुए द्ष्यंत कुमार की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में रेकॊर्ड कर हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेजें। और उस प्रस्तुति की दूसरी टिप्पणी थी महेन्द्र वर्मा जी का जिन्होंने हमसे ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शामिल करने का अनुरोध किया है। तो महेन्द्र जी, इसके जवाब में हम यही कह सकते हैं कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का जो स्वरूप है, उसमें हम केवल सुनहरे दौर के फ़िल्मी गीत ही सुनवाते हैं और उनसे जुड़ी बातें करते हैं। ग़ैर फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लों के लिए 'आवाज़' का एक दूसरा स्तंभ है ' महफ़िल-ए-ग़ज़ल ' जो हर बुधवार को पेश होता है। उसमें आप अपनी पसंद पूरी कर सकते हैं और अपने सुझाव आप उस स

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (४), जब शरद तैलंग मिले रीटा गांगुली से

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक अंक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। हर हफ़्ते आप में से किसी ना किसी साथी की सुनहरी यादों से समृद्ध कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस ख़ास ख़ज़ाने को। हमें बहुत से दोस्तों से ईमेल मिल रहे हैं और एक एक कर हम सभी को शामिल करते चले जा रहे हैं। जिनके ईमेल अभी तक शामिल नहीं हो पाए हैं, वो उदास ना हों, हम हर एक ईमेल को शामिल करेंगे, बस थोड़ा सा इंतेज़ार करें। और जिन दोस्तों ने अभी तक हमें ईमेल नहीं किया है, उनसे गुज़ारिश है कि अपने पसंद के गानें और उन गानों से जुड़ी हुई यादों को हिंदी या अंग्रेज़ी में हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेजें। अगर आप शायर या कवि हैं, तो अपनी स्वरचित कविताएँ और ग़ज़लें भी हमें भेज सकते हैं। किसी जगह पर घूमने गए हों कभी और कोई अविस्मरणीय अनुभव हुआ हो, वो भी हमें लिख सकते हैं। इस स्तंभ का दायरा विशाल है और आप को खुली छूट है कि आप किसी भी विषय पर अपना ईमेल हमें लिख सकते हैं। बहरहाल, आइए अब आज के ईमेल की तरफ़ बढ़ा जाए। शरद तैलंग का नाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए कोई नया नाम नहीं

ई मेल के बहाने, यादों के खजाने - ३, देश प्रेम का जज्बा और राज सिंह जी का बचपन

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक विशेषांक में आप सभी का फिर एक बार स्वागत है! आज १४ अगस्त है और पूरा राष्ट्र इस वक़्त जुटी हुई है अपनी ६४-वीं स्वतंत्रता दिवस समारोह की तय्यारियों में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल आप इस अवसर पर ख़ास पेशकश तो सुनेंगे और पढ़ेंगे ही, लेकिन क्योंकि 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' आप ही की यादों को ताज़ा करने का स्तंभ है, इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना आज के इस अंक में आप में से ही किसी दोस्त की यादों को ताज़ा किया जाए जो देश भक्ति की भावना से सम्बंधित हो। कोई ऐसी देश भक्ति फ़िल्म जो आपने किसी ज़माने में देखी हो, जिसके साथ कई यादगार क़िस्से जुड़े हुए हो, या कोई ऐसा देश भक्ति गीत जिसने आपको बहुत ज़्यादा प्रभावित किया हो और आप उसे इस ख़ास अवसर पर सुनना और सुनवाना चाहते हों। ऐसे में अपने ख़ूबसूरत ईमेल और जगमगाती यादों के ख़ज़ाने के साथ सामने आए राज सिंह जी। तो अब मैं आपका और वक़्त ना लेते हुए राज सिंह जी का ईमेल आपके साथ शेयर करता हूँ। *********************

ओल्ड इस गोल्ड - ई मेल के बहाने यादों के खजाने - ०२

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक विशेषांक में आज दूसरी बार हमारी और आपकी मुलाक़ात हो रही है। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है हमारी अतिपरिचित और प्यारी दोस्त इंदु पुरी गोस्वामी जी की फ़रमाइश का एक गीत। जी हाँ, वो ही इंदु जी जिनकी बातें हमारे होठों पर हमेशा मुस्कुराहट ले आती है। क्या ख़ूब तरीका है उनका 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के पहेलियों का पहेली के ही रूप में जवाब देने का! लेकिन आज वो ईमेल के बहाने जो गीत हमें सुनवा रही हैं और इस गीत से जुड़ी जो यादें हमारे साथ बांट रही हैं, वो थोड़ा सा संजीदा भी है और ग़मज़दा भी। दरअसल बात ऐसी थी कि बहुत दिनों से ही इंदु जी ने हमसे इस गीत को सुनवाने का अनुरोध एकाधिक बार किया था। लेकिन किसी ना किसी वजह से हम इसे सुनवा नहीं सके। कोई ऐसी शृंखला भी नहीं हुई जिसमें यह गीत फ़िट बैठता। और शायद इसलिए भी क्योंकि अब तक हमें यह नहीं मालूम था कि इंदु जी को यह गीत पसंद किसलिए है। अगर पता होता तो शायद अब तक हम इसे बजा चुके होते। ख़ैर, देर से ही सही, हम तो अब जान गए इस ग

'ओल्ड इज़ गोल्ड' - ई-मेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें - ०१

नमस्कार दोस्तों! आज आप मुझे यहाँ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के स्तंभ में देख कर हैरान ज़रूर हो रहे होंगे कि भई शनिवार को तो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल नहीं सजती है, तो फिर यह व्यतिक्रम कैसा! है न? दरअसल बात कुछ ऐसी है कि जब से हमने 'ओल इज़ गोल्ड' को दैनिक स्तंभ से बदल कर सप्ताह में पाँच दिन कर दिए हैं, हम से कई लोगों ने समय समय पर इसे फिर से दैनिक कर देने का अनुरोध किया है। हमारे लिए यह आसान तो नहीं था, क्योंकि अपनी रोज़-मर्रा की व्यस्त ज़िंदगी से समय निकाल कर ऐसा करना ज़रा मुश्किल सा हो रहा था, लेकिन आप सब के आग्रह और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आपकी दिलचस्पी को हम नज़रंदाज़ भी तो नहीं कर सकते थे। इसलिए हमें एक नई बात सूझी। और वह यह कि कम से कम शनिवार को हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सजाएँगे ज़रूर, लेकिन उस स्वरूप में नहीं जिस स्वरूप में रविवार से गुरुवार तक सजाते हैं। बल्कि क्यों ना कुछ अलग हट के किया जाए इसमें। नतीजा यह निकला कि आज से सम्भवत: हर शनिवार की शाम यह ख़ास महफ़िल सजेगी, जो कहलाएगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें'। 'ईमेल