ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 449/2010/149 सं गीतकार सी. रामचन्द्र को क्रांतिकारी संगीतकारों की सूची में शामिल किया जाता है। ४० के दशक में जब फ़िल्म संगीत पंजाब, बंगाल और यू.पी. के लोक संगीत तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत में ढल कर लोगों तक पहुँच रही थी, ऐसे में सी. रामचन्द्र ने पाश्चात्य संगीत को कुछ इस क़दर इंट्रोड्युस किया कि जैसे फ़िल्मी गीतों की प्रचलित धारा का रुख़ ही मोड़ दिया। इसमें कोई शक़ नहीं कि उनसे पहले ही विदेशी साज़ों का इस्तेमाल फ़िल्मी रचनाओ में शुरु हो चुका था, लेकिन उन्होने जिस तरह से विदेशी संगीत को भारतीय धुनों में ढाला, वैसे तब तक कोई और संगीतकार नहीं कर सके थे। १९४७ की फ़िल्म 'शहनाई' में "आना मेरी जान मेरी जान सन्डे के सण्डे" ने तो चारों तरफ़ तहलका ही मचा दिया था। उसके बाद १९५० की फ़िल्म 'समाधि' में वो लेकर आए "ओ गोरे गोरे ओ बांके छोरे, कभी मेरी गली आया करो"। इस गीत ने भी वही मुक़ाम हासिल कर लिया जो "सण्डे के सण्डे" ने किया था। उसके बाद १९५१ में फ़िल्म 'अलबेला' में फिर एक बार "शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के" ने