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"ऐ मेरे वतन के लोगों" - इस कालजयी देशभक्ति गीत को न गा पाने का मलाल आशा भोसले को आज भी है

कालजयी देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों" के साथ केवल पंडित नेहरू की यादें ही नहीं जुड़ी हुई हैं, बल्कि इस गीत के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। आज गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर इसी गीत से जुड़ी कहानियाँ सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की चौथी कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 4 देशभक्ति गीतों की बात चलती है तो कुछ गीत ऐसे हैं जो सबसे पहले याद आ जाते हैं, चाहे वो फ़िल्मी हों या ग़ैर-फ़िल्मी। लता मंगेशकर की आवाज़ में एक ऐसी ही कालजयी रचना है "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा करो क़ुर्बानी"। कवि प्रदीप के लिखे और सी. रामचन्द्र द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को जब भी सुनें, रोंगटे खड़े हुए बिना नहीं रहते, आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं, हमारे वीर शहीदों के आगे नतमस्तक हुए बिना हम नहीं रह पाते। इस गीत को १९६२ के भारत-चीन युद्ध के शहीदों को समर्पित किया गया था। कहते हैं कि रेज़ांग् ला के प्रथम युद्ध में १३ - कुमाऊं रेजिमेण्ट, सी-कंपनी के आख़िरी मोर्चे में परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी के दुस्साहस और बलिदान से प्रभावित

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२६)- प्रदीप चटर्जी नाम से कोई गीतकार नहीं -हरमंदिर सिंह 'हमराज़'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में एक बार फिर आप सभी का हम स्वागत करते हैं। इस साप्ताहिक स्तंभ में हम साधारणतः 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया करते हैं। कई बार यादों के ख़ज़ानें तो नहीं शामिल हो पाते, लेकिन जो भी पेश होता है वो ईमेल के बहाने से ही होता है। हर बार की तरह इस बार भी हम आप सभी से गुज़ारिश करते हैं कि इस शीर्षक को सार्थक करने के लिए आप अपने जीवन से जुड़ी किसी यादगार घटना या संस्मरण हमारे साथ बांटिये जिसे हम इस मंच के माध्यम से पूरी दुनिया के साथ बांट सके। ईमेल भेजने के लिए हमारा आइ.डी है oig@hindyugm.com। दोस्तों, इसमें कोई शक़ नहीं कि इंटरनेट ने तथ्य तकनीकी और दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, और ऐसी क्रांति आई है, ऐसा बदलाव लाया है कि अब इंटरनेट के बिना सब काम काज जैसे ठप्प सा हो जाता है। लेकिन जिस तरह से हर अच्छे चीज़ के साथ कुछ बुरी चीज़ें भी समा जाती हैं, ऐसा ही कुछ इंटरनेट के साथ भी है। जी नहीं, हम अश्लील वेबसाइटों की बात नहीं कर रहे; हम तो बात कर रहे हैं ग़लत जानकारियों की जो इंटरनेट पर अपलोड होते रहते हैं। दरअसल बात यह है कि

मैं हूँ एक खलासी, मेरा नाम है भीमपलासी....अन्ना के इस गीत को सुनकर आपके चेहरे पर भी मुस्कान न आये तो कहियेगा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 570/2010/270 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ५७०-वीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं और जैसा कि इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं कि सी. रामचन्द्र के संगीत और गायकी से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज हम आ गये हैं इस शृंखला के अंजाम पर। आज इसकी अंतिम कड़ी में आपको सुनवा रहे हैं चितलकर और साथियों का गाया एक और मशहूर गीत। सी. रामचन्द्र के संगीत के दो पहलु थे, एक जिसमें वो शास्त्रीय और लोक संगीत पर आधारित गानें बनाते थे, और दूसरी तरफ़ पाश्चात्य संगीत पर उनके बनाये हुए गानें भी गली गली गूंजा करते थे। इस शृंखला में भी हमने कोशिश की है इन दोनों पहलुओं के गानें पेश करें। आज की कड़ी में सुनिए उसी पाश्चात्य अंदाज़ में १९५० की फ़िल्म 'सरगम' से एक हास्य गीत "मैं हूँ एक खलासी, मेरा नाम है भीमपलासी"। एक गज़ब का रॊक-एन-रोल नंबर है जिससे आज ६० साल बाद भी उतनी ही ताज़गी आती है। माना जाता है कि किसी हिंदी फ़िल्म में रॊक-एन-रोल का प्रयोग होने वाला यह पहला गाना था। और वह भी उस समय जब रॊक-एन-रोल विदेश में भी उतना लोक

ओ दिलवालों दिल का लगाना अच्छा है....शमशाद और अन्ना की जोड़ी को सलाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 569/2010/269 सी . रामचन्द्र पर केन्द्रित लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में पिछले कुछ दिनों से हम कुछ ऐसे गीत सुन रहे हैं जिनका संगीत सी. रामचन्द्र ने तैयार किए तो हैं ही, ये गानें उन्हीं की आवाज़ में भी है जिन्हें वो चितलकर के नाम से गाया करते थे। हमने उनके कुछ एकल गीत शामिल किए, और युगल गीतों की बात करें तो लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ उनके गाये हुए गानें बजाये हैं। लता और आशा के बाद अगर किसी गायिका का ज़िक्र चितलकर के साथ आना चाहिए तो वो हैं शम्शाद बेगम। शम्शाद जी ने सी. रामचन्द्र के संगीत में कुल २५ फ़िल्मों में ६२ गीत गाये हैं और उनमें से सब से लोकप्रिय रहा है 'पतंगा' फ़िल्म का "मेरे पिया गये रंगून" और 'शहनाई' फ़िल्म का "आना मेरी जान सण्डे के सण्डे"। ये दोनों ही गीत हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं। शम्शाद और चितलकर की आपस की केमिस्ट्री ग़ज़ब की थी और शम्शाद बेगम ही सी. रामचन्द्र की प्रिय गायिका थीं लता के आने के पहले तक। जिस तरह से आशा के आने के बाद, ओ. पी. नय्यर ने शम्शाद और गीता दत्त को भुला दिया

दौलत ने पसीने को आज लात मारी है.....बगावती तेवर चितलकर के स्वर और सुरों का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 568/2010/268 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कितना हसीं है मौसम', सी. रामचन्द्र को सपर्पित इस लघु शृंखला में आज हम चितलकर और साथियों का गाया एक जोश भरा गीत सुनेंगे। इस गीत के बारे में बताने से पहले आपको याद दिला दें कि कल की कड़ी में हम ज़िक्र कर रहे थे लता मंगेशकर और सी. रामचन्द्र के बीच के अनबन के बारे में। हमने कुछ कही सुनी बातें तो जानी, सी. रामचन्द्र का राजु भारतन को दिए इंटरव्यु के बारे में भी जाना; लेकिन इस चर्चा को तब तक पूरी नहीं मानी जा सकती जब तक हम लता जी से इसके बारे में ना पूछ लें। और हमारे इस काम को अंजाम दिया अमीन सायानी साहब ने जिन्होंने लता जी से इसके बारे में पूछा और लता जी ने विस्तार से बताया। लीजिए पेश है उस इंटरव्यु का वही अंश, यह प्रस्तुत हुआ था 'सरगम के सितारों की महफ़िल' रेडियो प्रोग्राम में। अमीन सायानी: सी. रामचन्द्र से क्या बात हो गई, कैसे अनबन हो गई, क्यों हो गई, और ना होती तो कितना अच्छा होता? लता मंगेशकर: (हँसते हुए) नहीं, अगर आप ऐसे सोचें तो मेरा दुश्मन कोई नहीं है, ना ही मैं किसी की दुश्मन हूँ। पर

तुम मेरी जिंदगी में तूफ़ान बन कर आये.....कहीं लता जी का इशारा चितलकर पर तो नहीं था ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 567/2010/267 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी का एक बार फिर बहुत बहुत स्वागत है। सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं। कल हमने आपसे वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच के अनबन के बारे में बताएँगे। दोस्तों, राजु भारतन लिखित लता जी की जीवनी को पढ़ने पर पता चला कि इस किताब के लिखने के दौरान भारतन साहब सी. रामचन्द्र से मिले थे और सी. रामचन्द्र ने कहा था, "she wanted to marry me, but i was already married.... all i wanted was some fun, but that was not to be.." इसी किताब में "ऐ मेरे वतन के लोगों" के किस्से के बारे में भी लिखा गया है कि शुरु शुरु में यह एक डुएट गीत के रूप में लिखा गया था जिसे लता और आशा, दोनों को मिलकर गाना था। लेकिन जिस दिन मंगेशकर बहनों को दिल्ली जाना था उस फ़ंक्शन के लिए, आशा जी ने सी. रामचन्द्र को फ़ोन कर यह कह दिया कि दीदी अकेली जा रही हैं और वो इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कहना चाहतीं। इसी गीत को प्रस्तुत करते हुए द

कारी कारी कारी अंधियारी सी रात.....सावन की रिमझिम जैसी ठडक है अन्ना के संगीत में भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 566/2010/266 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गीतों को सुनने और उनके बारे में जानने का सिलसिला जारी है। इन दिनों हम करीब से जान रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनके स्वरबद्ध और गाये हुए गानें हम शामिल कर रहे हैं उन पर केन्द्रित शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में। दोस्तों, युं तो सी. रामचन्द्र ने ज़्यादातर युगल गानें लता जी के साथ ही गाये थे, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि जब उन दोनों के बीच अनबन हो गई और लता जी ने उनके लिए गाना बंद कर दिया। इसके बारे में विस्तार से हम कल की कड़ी में चर्चा करेंगे, आज बस इतना कहते हैं कि लता का विकल्प आशा बनीं और ५० के दशक के आख़िर के कुछ सालों में अन्नासाहब ने आशा भोसले से कई गीत गवाये। तो आइए आज उन चंद सालों में सी. रामचन्द्र और आशा भोसले के संगम से उत्पन्न गीतों की बात करें। इन फ़िल्मों में जो नाम सब से उपर आता है, वह है १९५८ की फ़िल्म 'नवरंग'। आज इसी फ़िल्म से एक गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। वैसे इस फ़िल्म के दो गीत हम आपको सुनवा चुके हैं - "तू छुपी ह

ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है...कितना दर्दीला है ये युगल गीत लता चितलकर का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 565/2010/265 सी . रामचन्द्र के स्वरबद्ध किए और उन्हीं के गाये हुए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' की पाँचवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने चितलकर की आवाज़ में दो एकल गीत सुनें और बाक़ी के दो गीत उन्होंने लता जी के साथ गाया था। आइए आज एक बार फिर एक मशहूर लता-चितलकर डुएट सुना जाये। यह गीत है १९४९ की फ़िल्म 'सिपहिया' का, जिसके बोल हैं "ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है, पी जाएँ आँसूओं को, बस वो जिगर जिगर है"। गीतकार हैं राम चतुरवेदी। आइए आज अपको एक फ़ेहरिस्त दी जाये लता-चितलकर डुएट्स की। अलबेला (१९५१) - भोली सूरत दिल के खोटे, महफ़िल में मेरी कौन ये दीवाना आया, मेरे दिल की घड़ी करे टिक टिक टिक, शाम ढले खिड़की तले, शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के। आज़ाद (१८५४) - कितना हसीं है मौसम। बारिश (१९५७) - कहते हैं प्यार किस को पंछी, फिर वही चाँद वही हम वही तन्हाई। भेदी बंगला (१९४९) - आँसू ना बहाना कांटों भरी राह से। हंगामा (१९५२) - झूम झूम झूम राही प्यार की दुनिया, उल्फ़त की ज़

ज़रा ओ जाने वाले.....और जाने वाला कब लौटता है, आवाज़ परिवार याद कर रहा है आज सी रामचंद्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 564/2010/264 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस स्तंभ में। आज है ५ जनवरी, और आज ही के दिन सन् १९८२ में हमसे हमेशा के लिए जुदा हुए थे वो संगीतकार और गायक जिन्हें हम चितलकर रामचन्द्र के नाम से जानते हैं। उन्हीं के स्वरबद्ध और गाये गीतों से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर और आज इस शृंखला की है चौथी कड़ी। दोस्तों, सी. रामचन्द्र का ५ जनवरी १९८२ को बम्बई के 'के. ई. एम. अस्पताल' में निधन हो गया। पिछले कुछ समय से वे अल्सर से पीड़ित थे। २२ दिसम्बर १९८१ को उन्हें जब अस्पताल में भर्ती किया गया था, तभी से उनकी हालत नाज़ुक थी। अपने पीछे वे पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री छोड़ गये हैं। दोस्तों, अभी कुछ वर्ष पहले जब मैं पूना में कार्यरत था, तो मैं एक दिन सी. रामचन्द्र जी के बंगले के सामने से गुज़रा था। यकीन मानिए कि जैसे एक रोमांच हो आया था उस मकान को देख कर कि न जाने कौन कौन से गीत सी. रामचन्द्र जी ने कम्पोज़ किए होंगे इस मकान के अंदर। मेरा मन तो हुआ था एक बार अदर जाऊँ और उनके

कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफर है....जब चितलकर की आवाज़ को सुनकर तलत साहब का भ्रम हुआ शैलेन्द्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 563/2010/263 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार। आज ४ जनवरी है, यानी कि संगीतकार राहुल देव बर्मन की पुण्यतिथि। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम पंचम को दे रहे हैं श्रद्धांजली। आपको याद होगा पिछले साल इस समय हमने पंचम के गीतों से सजी लघु शृंखला ' दस रंग पंचम के ' प्रस्तुत किया था। और इस साल हम याद कर रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनकी कल, यानी ५ जनवरी को पुण्यतिथि है। 'कितना हसीं है मौसम' - सी. रामचन्द्र के गाये और स्वरबद्ध किए गीतों के इस लघु शृंखला की आज तीसरी कड़ी है। शुरुआती दिनों में सी. रामचन्द्र ने कई फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें से कुछ के नाम हैं 'सगाई', 'नमूना', 'उस्ताद पेड्रो', 'हंगामा', 'शगुफ़ा', '२६ जनवरी' वगेरह। पर जिन दो फ़िल्मों के संगीत से वे कामयाबी के शिखर पर पहुँचे, वो दो फ़िल्में थीं 'शहनाई' और 'अलबेला'। जैसा कि कल हमने आपको बताया था कि 'अलबेला' के गीतों ने उस फ़िल्म को चार चांद लगाये। सारे गानें हिट हुए और गली गली गूंजे। सिनेमाघरों में लोग खड़

दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम...क्या खूब प्रयोग किया राजेन्द्र कृष्ण साहब ने इस मुहावरे का गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 562/2010/262 'कि तना हसीं है मौसम' - चितलकर रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की इस लघु शृंखला की दूसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। सी. रामचन्द्र का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के पुणेताम्बे में १२ जून १९१५ को हुआ था। उनके पिता रेल्वे में सहायक स्टेशन मास्टर की नौकरी किया करते थे। अपने बेटे की संगीत के प्रति लगाव और रुझान को देख कर उन्हें नागपुर के एक संगीत विद्यालय में भर्ती करवा दिया। फिर उन्होंने पुणे में विनायकबुआ पटवर्धन से गंधर्व महाविद्यालय म्युज़िक स्कूल में संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उन दिनों मूक फ़िल्मों का दौड़ था, वे कोल्हापुर आ गये और कई फ़िल्मों में अभिनय किया। पर उनकी क़िस्मत में तो लिखा था संगीतकार बनकर चमकना। कोल्हापुर से बम्बई में आने के बाद सी. रामचन्द्र सोहराब मोदी की मशहूर मिनर्वा मूवीटोन में शामिल हो गए जहाँ पर उन्हें उस दौर के नामचीन संगीतकारों, जैसे कि हबीब ख़ान, हूगन और मीरसाहब के सहायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हूगन से उन्होंने पाश्चात्य संगीत सीखा जो बाद में उनके संगीत में नज़र आने लगा, और शायद उनका यही वेस्टर्ण स्टाइल उ

शाम ढले, खिडकी तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो....हिंदी फिल्म संगीत जगत के एक क्रान्तिकारी संगीतकार को समर्पित एक नयी शृंखला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 561/2010/261 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को एक बार फिर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! साल २०११ आपके जीवन में अपार सफलता, यश, सुख और शांति लेकर आये, यही हमारी ईश्वर से कामना है। और एक कामना यह भी है कि हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के अनमोल मोतियों को इसी तरह आप सब की ख़िदमत में पेश करते रहें। तो आइए नये साल में नये जोश के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कारवाँ को आगे बढ़ाया जाये। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के इतिहास में कुछ संगीतकार ऐसे हुए हैं जिनके संगीत ने उस समय की प्रचलित धारा को मोड़ कर रख दिया था, यानी दूसरे शब्दों में जिन्होंने फ़िल्म संगीत में क्रांति ला दी थी। जिन पाँच संगीतकारों को क्रांतिकारी संगीतकारों के रूप में चिन्हित किया गया है, उनके नाम हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचन्द्र, ओ. पी. नय्यर, राहुल देव बर्मन और ए. आर. रहमान। इनमें से एक क्रांतिकारी संगीतकार को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की आज से शुरु होने वाली लघु शृंखला। ये वो संगीतकार हैं, जो फ़िल्म जगत में आये तो थे नायक ब

आधा है चंद्रमा रात आधी.....पर हम वी शांताराम जैसे हिंदी फिल्म के लौह स्तंभ पर अपनी बात आधी नहीं छोडेंगें

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 535/2010/235 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' - इस लघु शृंखला के पहले खण्ड के अंतिम चरण मे आज हम पहुँच चुके हैं। इस खण्ड में हम बात कर रहे हैं फ़िल्मकार वी. शांताराम की। उनकी फ़िल्मी यात्रा में हम पहुँच चुके थे १९५७ की फ़िल्म 'दो आँखें बारह हाथ' तक। आज बातें उनकी एक और संगीत व नृत्य प्रधान फ़िल्म 'नवरंग' की, जो आई थी ५० के दशक के आख़िर में, साल था १९५९। इससे पहले की हम इस फ़िल्म की विस्तृत चर्चा करें, आइए आपको बता दें कि ६०, ७० और ८० के दशकों में शांताराम जी ने किन किन फ़िल्मों का निर्देशन किया था। १९६१ में फिर एक बार शास्त्रीय संगीत पर आधारित म्युज़िकल फ़िल्म आई 'स्त्री'। 'नवरंग' और 'स्त्री', इन दोनों फ़िल्मों में वसत देसाई का नहीं, बल्कि सी. रामचन्द्र का संगीत था। १९६३ में वादक व संगीत सहायक रामलाल को उन्होंने स्वतंत्र संगीतकार के रूप में संगीत देने का मौका दिया फ़िल्म 'सेहरा' में। इस फ़िल्म के गानें भी ख़ूब चले। १९६४ की में वी. शांताराम ने अपनी सुपुत्री राजश्री शा

झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए....मगर लता जी से भी तो चूक हो गयी यहाँ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 518/2010/218 'गी त गड़बड़ी वाले' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस अनोखी शृंखला की आठवीं कड़ी में आप सभी का एक बार फिर स्वागत है। जैसा कि कल हमने आपको बताया था, आज भी हम एक ऐसा गीत सुनेंगे जिसमें गायक ने उर्दू उच्चारण में गड़बड़ी की है। कल आशा जी की बारी थी, आज कठघड़े में हैं उनकी बड़ी बहन लता जी। एक फ़िल्म आयी थी साल १९५१ में - 'सगाई'। इसमें एक बड़ा ही चंचल गीत था "झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए"। उस ज़माने में सी. रामचन्द्र के इस अंदाज़ के गानें ख़ूब चले थे। हास्य रस पर आधारित इस गीत को गाया था लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, चितलकर और साथियों ने। गीत के एक अंतरे की पंक्तियाँ हैं "श्रीमती हो या बेगम, एक जान और सौ सौ ग़म, औरत को कमज़ोर ना समझो मर्दों से किस बात पे कम"। इस पंक्ति में लता जी ने "बेगम" शब्द में "ग" को उर्दू गाफ की जगह ग़ैन का उपयोग कर "बेगम" को "बेग़म" गाया है। कुछ इसी तरह की ग़लती लता जी ने बरसों बरस बाद १९९५ की सुपर डुपर हिट फ़िल्म 'दिल तो पागल है' के एक गीत में भी