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दीवाना मस्ताना हुआ दिल, जाने कहाँ होके बहार आई...ओल्ड इस गोल्ड की ऐतिहासिक 200वीं कड़ी पर सभी श्रोताओं का आभार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 200 औ र दोस्तों, देखते ही देखते आ गयी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की दूसरी हीरक जयंती, यानी कि 'डबल डायमंड जुबिली'। जी हाँ, आज है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का कड़ी नंबर २००। भगवान के आशिर्वाद से, आप सभी की दुआओं से हम इस पड़ाव तक आ पहुँचे हैं। लेकिन ये अभी हमारी मंज़िल नहीं है। अगर इसी तरह से आप का साथ रहा और उपरवाले की मेहरबानी बनी रही, तो हम ऐसे कई और शतक लगाने की कोशिश करते रहेंगे। जब तक आप सुनते व पढ़ते रहेंगे, हम भी सुनाते व लिखते रहेंगे। और हाँ, अगर आप में से कोई 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए पुराने गीतों पर आलेख लिखने के शौकीन हों तो हमें ज़रूर बताएँ। हमें बेहद ख़ुशी हो रही है कि आशा जी पर केन्द्रित शृंखला को हम अपनी २००-वीं कड़ी के साथ सम्पन्न कर रहे हैं। क्योंकि आज का एपिसोड बहुत महत्व रखता है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस सफ़र के लिए, तो हमने सोचा कि क्यों न उस गायक के साथ आशा जी का गाया हुआ कोई गीत सुनवाया जाए जिनके साथ आशा जी के करीयर के सब से ज़्यादा युगल गीत हैं। जी हाँ, बिल्कुल ठीक समझे आप! मोहम्मद रफ़ी के साथ आशा जी के सब से ज़्यादा गानें

चल री सजनी अब क्या सोचें...सुनकर मुकेश के इस गीत कौन न रो पड़े...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 61 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की ६१-वीं कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। हिंदी फ़िल्मों में विदाई गीतों की बात करें तो सब से पहले "बाबुल की दुआयें लेती जा" ज़्यादातर लोगों को याद आती है। लेकिन इस विषय पर कुछ और भी बहुत ही ख़ूबसूरत गीत बने हैं और ऐसा ही एक विदाई गीत आज हम चुन कर ले आये हैं। मुकेश की आवाज़ में यह है फ़िल्म 'बम्बई का बाबू' का गाना "चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा ना बह जाये रोते रोते"। मेरे ख़याल से यह गाना फ़िल्म संगीत का पहला लोकप्रिय विदाई गीत होना चाहिए। 'बम्बई का बाबू' १९६० की फ़िल्म थी। इससे पहले ५० के दशक में कुछ चर्चित विदाई गीत आये तो थे ज़रूर, जैसे कि १९५० में फ़िल्म 'बाबुल' में शमशाद बेग़म ने एक विदाई गीत गाया था "छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा", १९५४ में फ़िल्म 'सुबह का तारा' में लता ने गाया था "चली बाँके दुल्हन उनसे लागी लगन मोरा माइके में जी घबरावत है", और १९५७ में मशहूर फ़िल्म 'मदर इंडिया' में शमशाद बेग़म ने एक बार फिर गाया "पी के घ