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इसकी टोपी उसके सर - प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में

स्मृतियों के स्वर - 12 प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में इसकी टोपी उसके सर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के

‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ : SWARGOSHTHI – 189 : THUMARI PILU AND DES

स्वरगोष्ठी – 189 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 8 : ठुमरी पीलू और देस एकल और युगल रूप में श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों हमारी जारी श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के आठवें अंक में आज हमने एक ऐसी पारम्परिक ठुमरी का चयन किया है, जिसे कई सुविख्यात गायक-गायिकाओं ने गाया है। इस ठुमरी को एकल और युगल, दोनों रूप में प्रस्तुत किया गया है। आमतौर पर ठुमरी एकल रूप में ही गायी जाती है। परन्तु नृत्य-प्रस्तुतियों में या युगल कलाकारों की प्रस्तुतियों में ठुमरी का युगल गायन भी परिलक्षित होता है। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का रसास्वादन भी कर रहे हैं जिन्हें फिल्मों में कभी यथावत तो कभी परिवर्तित अन्तरे के साथ इस्तेमाल किया गया। फिल्मों मे शामिल ऐसी ठुमरियाँ अधिकतर पार

"तुम जियो हज़ारों साल...", आशा जी के जन्मदिन पर यही कह कर उन्हें शुभकामनाएँ देते हैं

एक गीत सौ कहानियाँ - 40   ‘तुम जियो हज़ारों साल... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्युटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ' ।  इसकी 40वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'सुजाता' के गीत "तुम जियो हज़ारों साल..." के बारे में।  फ़ि ल्म-संगीत की एक ख़ास बात यह रही है कि इसमें मानव जीवन के हर रंग को

हेमन्त कुमार : शास्त्रीय, लोक और रवीन्द्र संगीत के अनूठे शिल्पी

स्वरगोष्ठी – 172 में आज व्यक्तित्व – 2 : हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय उपाख्य हेमन्त मुखर्जी ‘जाग दर्द-ए-इश्क जाग, दिल को बेकरार कर..’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की दूसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ में हम आपसे संगीत के कुछ ऐसे साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने मंच अथवा विभिन्न प्रसारण माध्यमों पर प्रदर्शन से इतर संगीत के प्रचार, प्रसार, शिक्षा, संरक्षण या अभिलेखीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है। इस श्रृंखला में हम फिल्मों के ऐसे संगीतकारों की भी चर्चा करेंगे जिन्होंने लीक से हट कर कार्य किया। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, बांग्ला और हिन्दी फिल्म के यशस्वी गायक और संगीतकार, हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय जिन्हें हिन्दी फिल्मों के क्षेत्र में हम हेमन्त कुमार के नाम से जानते और याद करते है। बांग्ला और हिन्दी फिल्म संगीत जगत पर पूरे 45 वर

आशा भोसले की 81वीं जयन्ती पर विशेष

स्वरगोष्ठी – 136 में आज रागों में भक्तिरस – 4 राग दरबारी और भक्तिगीत : 'तोरा मन दर्पण कहलाए...'   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान रागों और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे राग पर चर्चा करेंगे जो भक्तिरस के साथ-साथ श्रृंगाररस का सृजन करने में भी समर्थ है। आज हम आपसे राग दरबारी कान्हड़ा के भक्ति-पक्ष पर चर्चा करेंगे और इसके साथ ही सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले की आवाज़ में, राग दरबारी पर आधारित, फिल्म ‘काजल’ से एक बेहद लोकप्रिय भक्तिगीत प्रस्तुत करेंगे। यह भी संयोग है कि आज ही आशा भोसले का 81वाँ जन्मदिवस है। इसके अलावा आज की कड़ी में आप विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज से राग दरबारी कान्हड़ा में निबद्ध एक भक्तिगीत सुनेंगे।  सं गीत के क्षेत

इक अनजाने की तस्वीर आँखों में लिए फिरता हुस्न

खुद ढूँढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उस परवाने की...दिलकश नशीली आवाज़ आशा जिसे निखारा ओ पी नैयर की तर्ज ने तो दिशा दी मजरूह के शब्दों में...आज खरा सोना गीत (ओल्ड इस गोल्ड रिवाइवल) में आज प्रस्तुत है इस गीत की कहानी, प्रस्तुतकर्ता मीनू सिंह के साथ, सुजॉय चटर्जी  की कलम और संज्ञा टंडन के निर्देशन में आनंद लें इस प्रस्तुति का 

"ऐ मेरे वतन के लोगों" - इस कालजयी देशभक्ति गीत को न गा पाने का मलाल आशा भोसले को आज भी है

कालजयी देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों" के साथ केवल पंडित नेहरू की यादें ही नहीं जुड़ी हुई हैं, बल्कि इस गीत के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। आज गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर इसी गीत से जुड़ी कहानियाँ सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की चौथी कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 4 देशभक्ति गीतों की बात चलती है तो कुछ गीत ऐसे हैं जो सबसे पहले याद आ जाते हैं, चाहे वो फ़िल्मी हों या ग़ैर-फ़िल्मी। लता मंगेशकर की आवाज़ में एक ऐसी ही कालजयी रचना है "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा करो क़ुर्बानी"। कवि प्रदीप के लिखे और सी. रामचन्द्र द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को जब भी सुनें, रोंगटे खड़े हुए बिना नहीं रहते, आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं, हमारे वीर शहीदों के आगे नतमस्तक हुए बिना हम नहीं रह पाते। इस गीत को १९६२ के भारत-चीन युद्ध के शहीदों को समर्पित किया गया था। कहते हैं कि रेज़ांग् ला के प्रथम युद्ध में १३ - कुमाऊं रेजिमेण्ट, सी-कंपनी के आख़िरी मोर्चे में परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी के दुस्साहस और बलिदान से प्रभावित

छोटी सी कहानी से, बारिशों के पानी से - 'एक गीत सौ कहानियाँ' की पहली कड़ी में यादें पंचम के इस कालजयी गीत की

गुलज़ार हमेशा कहते थे कि पिक्चराइज़ करने के लिए उन्हें उस वक़्त कम्पोज़र के साथ बैठना बहुत ज़रूरी है जब गाना कम्पोज़ हो रहा हो वरना वो पिक्चराइज़ नहीं कर पाते। उन्हें इमेजेस मिलते हैं जब गाना कम्पोज़ हो रहा होता है। पर पंचम नें चाल चली और गुलज़ार के साथ बैठ कर इस गीत को कम्पोज़ करने से इन्कार कर दिया।

तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है ...."लम्स तुम्हारा" यूं मुझमें ठहर जाता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 716/2011/156 आ ज रविवार की शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं, नमस्कार! पिछले हफ़्ते आपनें सजीव सारथी की लिखी कविताओं की किताब ' एक पल की उम्र लेकर ' से चुन कर पाँच कविताओं पर आधारित पाँच फ़िल्मी गीत सुनें, इस हफ़्ते पाँच और कविताओं तथा पाँच और गीतों को लेकर हम तैयार हैं। तो स्वागत है आप सभी का, लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' की छठी कड़ी में। इस कड़ी के लिए हमने चुनी है कविता ' लम्स तुम्हारा '। उस एक लम्हे में जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा दुनिया सँवर जाती है मेरे आस-पास धूप छूकर गुज़रती है किनारों से और जिस्म भर जाता है एक सुरीला उजास बादल सर पर छाँव बन कर आता है और नदी धो जाती है पैरों का गर्द सारा हवा उड़ा ले जाती है पैरहन और कर जाती है मुझे बेपर्दा खरे सोने सा, जैसा गया था रचा उस एक लम्हे में जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा कितना कुछ बदल जाता है मेरे आस-पास। हमारी ज़िंदगी में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे मिल कर अच्छा लगता है, जिनके साथ हम दिल की बातें शेयर कर सकते हैं। और ऐसे लोगों में एक ख़ास इंसान ऐसा होता है

"नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर.." - ठुमरी जब लोक-रंग में रँगी हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 686/2011/126 'ओ ल्ड इज गोल्ड' पर जारी श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" के दूसरे सप्ताह में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ| पिछले अंकों में हमने आपके साथ "ठुमरी" के प्रारम्भिक दौर की जानकारी बाँटी थी| यह भी चर्चा हुई थी कि उस दौर में "ठुमरी" कथक नृत्य का एक हिस्सा बन गई थी| परन्तु एक समय ऐसा भी आया जब "ठुमरी" की विकास-यात्रा में थोड़ा व्यवधान भी आया| इस शैली के पृष्ठ-पोषक नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के कारण बन्दी बना लिया गया| नवाब को बन्दी बना कर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के मटियाबुर्ज नामक स्थान पर भेज दिया गया| नवाब यहाँ पर मृत्यु-पर्यन्त (1887) तक स्थायी रूप से रहे| नवाब वाजिद अली शाह के लखनऊ छूटने से पहले तक "ठुमरी" की जड़ें जमीन को पकड़ चुकी थीं| इस दौर में केवल संगीतज्ञ ही नहीं बल्कि शासक, दरबारी, सामन्त, शायर, कवि आदि सभी "ठुमरी" की रचना, गायन और उसके भावाभिनय में प्रवृत्त हो गए थे| वाजिद अली शाह के रिश्ते