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आ ज़माने आ, आजमाले आ...गायक मोहन की आवाज़ में है सपनों को सच करने का हौंसला

ताजा सुर ताल TST (27) दोस्तों, आज से ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. आज से TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें १ की जगह तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी आज से अगले २० एपिसोडस तक, जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के ६० गीतों में से पहली १० पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" तो चलिए आज के इस नए एपिसोड की शुरुआत करें, दोस्तों सुजॉय अभी भी छुट्टियों से नहीं लौटे हैं, तो उनकी अनुपस्तिथि में मैं सजीव सारथी एक बार फिर आपका स्वागत करता हूँ. इस वर्ष लगभग ४ महीनों तक सिनेमा घरों के मालिकों और फिल्म निर्माताओं के ब

ऑस्कर जीत के बाद लौटे हैं रहमान मगर इस बार रंग है "ब्लू"

ताजा सुर ताल (24) ताजा सुर ताल में आज में आज सुनिए हिंदुस्तान की अब तक की सबसे महंगी फिल्म "ब्लू" का एक गुस्ताख गीत सुजॉय - सजीव, लगता है कि अब वह वक़्त आ गया है कि हमारे यहाँ भी पारंपरिक फ़िल्मी कहानियों से आगे निकलकर हॉलीवुड की तरह नए नए विषयों पर फ़िल्में बनने लगी हैं। सजीव - किस फ़िल्म की तरफ़ तुम्हारा इशारा है सुजॉय? सुजॉय - अक्षय कुमार की नई फ़िल्म 'ब्लू'। इस ऐक्शन फ़िल्म की कहानी केन्द्रित है समुंदर के नीचे छुपे हुए ख़ज़ाने की जिसकी रखवाली कर रहे हैं शार्क मछलियाँ। अमेरिकी लेखक जोशुआ लुरी और ब्रायान सुलिवन ने इस कहानी को लिखा है और गायिका कायली मिनोग ने भी अतिथी कलाकार के रूप में इस फ़िल्म में एक गीत गाया है जो उन्ही पर फ़िल्माया गया है। सजीव - हाँ, मैने भी सुना है इस फ़िल्म के बारे में। क्यों ना थोड़ी सी जानकारी और दी जाए इस फ़िल्म से संबंधित! कहानी ऐसी है कि सागर और सैम दो भाई हैं, जिन्हे गुप्तधन ढ़ूंढने का ज़बरदस्त शौक है। सागर की पत्नी मोना के साथ वे बहामा के लिए निकल पड़ते हैं समुंदर के २०० फ़ीट नीचे छुपे किसी ख़ज़ाने को ढ़ूंढने के लिए। लेकिन उनकी मुलाक

ए आर रहमान और ढेरों युवा संगीत कर्मियों के जोश को समर्पित एक गीत

ए आर रहमान का ऑस्कर जीतना पूरे भारत के युवा संगीत कर्मियों के लिए एक अनूठी प्रेरणा बन गया है. पहले हमारे संगीत योद्धा जो अब तक फिल्म फेयर या रास्ट्रीय पुरस्कारों के सपने सजाते थे अब उनमें साहस आ गया है कि वो बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों के भी ख्वाब देख पा रहे हैं. उनमें अब ये यकीन भर गया है कि अब उनका मंच एक "ग्लोबल औडिएंस" का है और उनके यानी भारतीय अंदाज़ के संगीत के श्रोता और कद्रदान देश विदेश में फैले भारतीय ही नहीं बल्कि वो विदेशी श्रोता भी हैं जो अब तक भारतीय विशेषकर लोकप्रिय भारतीय फिल्म और गैर फ़िल्मी संगीत से जी चुराते थे. "It is being an interesting Journey till now. I have come across criticism, flattery, highs and lows" - A.R. Rahman. ए आर के इसी वक्तव्य से प्रेरित होकर आवाज़ के एक संगीत कर्मी प्रदीप पाठक ने एक गीत रचा, प्रदीप पाठक इन्टरनेट पर ही मिले संगीतकार सागर पाटिल ने जब इसे पढ़ा तो वो उसे स्वरबद्ध करने के लिए प्रेरित हुए. पुनीत देसाई ने इसे अपनी आवाज़ दी और इस तरह मात्र इंटरनेटिया प्रयासों से तैयार हुआ संगीत के बादशाह ए आर रहमान को स

माँ! तेरी जय हो। 'जय हो' का एक रूप यह भी

रहमान और भारत माता को राजकुमार 'राकू' का सलाम रहमान के गीत 'जय हो' को ऑस्कर मिलने के बाद इस गीत के ढेरों संस्करण इंटरनेट पर उपलब्ध हो गये। भारतीय राजनीतिज्ञों के ऊपर व्यंग्य कसती 'जेल हो' गीत भी चर्चा में है। हिन्द-युग्म के राजकुमार राकू' ने रहमान की इस उपलब्धि को रहमान को भारत माँ को सलाम कहा। सब अपनी-अपनी तरह से रहमान को सलाम कर रहे थे, इसी बीच राजकुमार 'राकू' और उनकी टीम ने एक नया गीत गढ़ा 'माँ! तेरी जय हो'। इस गीत को लिखा है खुद राकुमार 'राकू' ने। राकू ने संगीत विवेक अस्थाना के साथ मिलकर इस गीत को धुन दी है। संगीत-संयोजन किया है बॉलीवुड के उभरते संगीतकार विवेक अस्थाना ने। गीत में आवाज़ें हैं राजकुमार राकू (कमेंट्री), राजेश बिसेन, सुमेधा और साथियों की। आपको बताते चलें कि यह गीत आने वाली फिल्म 'कलाम का सलाम' का हिस्सा होगा। इस गीत में सभी भारतीय वाद्य-यंत्रों का इस्तेमाल किया गया है। 'माँ' से जुड़ीं भावों को पिरोने के लिए राग दुर्गा का और विजय भाव के लिए राग जयजयवंती का प्रयोग किया गया है। आवाज़ के श्रोताओं को दुबारा

"ससुराल गैन्दाफूल..."- रेखा भारद्वाज का चिर परचित अंदाज़

"नमक इश्क का", फ़िल्म ओमकारा का ये हिट गीत था जिसे गाने के बाद रेखा भरद्वाज ने कमियाबी का असली स्वाद चखा था. इस गीत के संगीतकार हैं विशाल भरद्वाज जो रेखा के पति और एक कामियाब संगीतकार होने के साथ साथ एक उत्कृष्ट निर्देशक भी हैं. नमक इश्क का गीत लिखा था गुलज़ार साहब ने जिन्हें रेखा अपना मेंटर मानती है. १९९६ में बनी गुलज़ार की फ़िल्म "माचिस" से विशाल भरद्वाज बतौर संगीतकार चर्चा में आए थे. इसी फ़िल्म में रेखा ने विशाल को सहयोग दिया था संगीत में. तत्पश्चात चाची ४२०, गोड़ मदर, हु तू तू और मकडी में उन्होंने विशाल के साथ काम किया. कभी कभार कुछ गीतों को अपनी आवाज़ भी दी. विशाल ने "मकडी" से निर्देशन में कदम रखा, और अगली फ़िल्म "मकबूल" में उन्होंने रेखा से दो बेहद दमदार "रोने दो" और "चिंगारी" गीत गवाए, २००३-०४ में उन्हीं के संगीत निर्देशन में रेखा की पहली चर्चित एल्बम "इश्का इश्का" आई. इससे ठीक दस साल पहले १९९४ में जब रेखा बुल्ले शाह के गीतों पर विशाल के निर्देशन में काम कर रही थी, उन्हीं दिनों माचिस की सिटिंग के लिए उनका गुलज

बिल्लू को कहना नही कोई हज्ज़ाम...

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11) नामांकन में आना भी एक उपलब्धि है - पंडित रवि शंकर ग्रैमी पुरस्कार विजेता उस्ताद जाकिर हुसैन को बधाई देने वालों में तीन बार ग्रैमी हुए पंडित रवि शंकर भी हैं. एक ताज़ा इंटरव्यू में पंडित जी ने कहा-"विश्व मोहन भट्ट को जब ग्रैमी मिला तब इस बाबत मीडिया में जग्रता आयी. मेरे पहले दो सम्मानों के बारे में तो मुझे भी ख़बर नही लगी देशवासियों की बात तो दूर है. कई बार जूरी के सदस्यों के वोट न मिल पाने के कारण कोई अच्छा संगीतकार विजयी होने से रह जाता है पर इससे उसके संगीत की महत्ता कम नही होती, मेरा मानना है कि नामांकन में आना भी एक बड़े सम्मान की बात है. मुझे दुःख है कि लक्ष्मी शंकर ग्रैमी नही जीत पायी, वे बेहद प्रतिभाशाली हैं.पर खुशी इस बात की है कि जाकिर ने इसे जीता." गौरतलब है कि मोहन वीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट भी पंडित रवि शंकर जी के ही शिष्य हैं. भारत रत्न पंडित रवि शंकर ऐ आर रहमान को भी बधाई देना नही भूले-"मैं हिन्दी फ़िल्म संगीतकारों का सालों से प्रशंसक रहा हूँ, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, एस डी और आर डी बर्मन, इल्ल्याराजा और अब ऐ आर रहमान जो न

खुदाया खैर...एक बार फ़िर शाहरुख़ की आवाज़ बने अभिजीत

"बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है..." शाहरुख़ खान के उपर फिल्माए गए इस गीत में आवाज़ थी अभिजीत भट्टाचार्य की. जब ये गीत आया तो श्रोताओं को लगा कि यही वो आवाज़ है जो शाहरुख़ के ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व को सहज रूप से उभरता है. पर शायद वो ज़माने लद चुके थे जब नायक अपनी फिल्मों के लिए किसी ख़ास आवाज़ की फरमाईश करता था. जहाँ शाहरुख़ के शुरूआती दिनों में कुमार सानु ने उनके गीतों को आवाज़ दी (कोई न कोई चाहिए..., और काली काली ऑंखें...), वहीँ बाद में उनकी रोमांटिक हीरो की छवि पर उदित नारायण की आवाज़ कुछ ऐसे जमी की सुनने वाले बस वाह वाह कर उठे, "डर" और "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" के गीत आज तक सुने और याद किए जाते हैं. फ़िर हीरो की छवि बदली, पहले जिस नायक का लक्ष्य नायिका को पाना मात्र होता था, वह अब अपने कैरिअर के प्रति भी सजग हो चुका था. वो चाँद तारे तोड़ने के ख्वाब सजाने लगा और ऐसे नायक को परदे पर साकार किया शाहरुख़ ने एक बार फ़िर अपनी फ़िल्म "येस् बॉस" में और यहाँ फ़िर से मिला उन्हें अभिजीत की आवाज़ का साथ और इस फ़िल्म के गीतों ने इस नायक-गायक की जोड़

रहमान के बाद अब बाज़ी मारी उस्ताद जाकिर हुसैन ने भी...

भारतीय संगीत की थाप विश्व पटल पर सुनाई दे रही है, लॉस एन्जेलेंस और लन्दन में भारत के दो संगीत महारथियों ने अपने अन्य प्रतियोगियों पर विजय पाते हुए शीर्ष पुरस्कारों पर कब्जा जमाया. जहाँ चार अन्य प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए रहमान ने एक बार फ़िर "स्लम डोग मिलिनिअर" के लिए बाफ्टा (ब्रिटिश एकेडमी ऑफ़ फ़िल्म एंड टेलिविज़न आर्ट) जीता तो वहीँ तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जिसे संगीत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है, पर अपनी विजयी मोहर लगायी.जाकिर ने अपनी एल्बम "ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट" के लिए कंटेम्पररी वर्ल्ड म्यूजिक अल्बम श्रेणी में ये पुरस्कार जीता. गोल्डन ड्रम प्रोजेक्ट में हुसैन ने रॉक बैंड "ग्रेटफुल डेड" के मिकी हार्ट के साथ जुगलबंदी की है और उनका साथ दिया नईजीरियन पर्काशानिस्ट सिकिरू एडेपोजू और जैज़ पर्काशानिस्ट प्युरेटो रिकोन ने. ये इस समूह का और ख़ुद हुसैन का दूसरा ग्रैमी है. पहली बार भी १९९१ में उन्होंने मिकी हार्ट ही के साथ टीम अप कर "प्लेनट ड्रम" नाम का एल्बम किया था जिसे १९९२ में ग्रैमी सम्मान हासिल हुआ था. दूसरी तरफ़

सुनिए "इमोशनल अत्याचार" की ये कहानी

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11) शास्त्रीय संगीत का किसी अन्य संगीत विधा से कोई मुकाबला नही है - पंडित शिव कुमार शर्मा "येहुदी मेनुहिन कितने महान फनकार थे पर मेडोना या माइकल जेक्सन को हमेशा मीडिया ने अधिक तरजीह दी. ये ट्रेंड पूरी दुनिया का है अकेले भारत का नही. भारतीय शास्त्रीय संगीत को पॉप संस्कृति या फ़िल्म संगीत से भिड़ने की आवश्यकता नही है."- ये कथन थे ५४ वर्षों से भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम अपने संतूर वादन से दुनिया भर में फहराने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा जी के. दिल्ली के पुराना किला में अपनी एक और लाइव प्रस्तुति देने आए पंडित जी ने संगीतकार ऐ आर रहमान को बधाई देते हुए कहा कि वो रहमान ही थे जिन्होंने फिल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत का ट्रेंड शुरू किया. उनसे पहले के संगीतकार धुन और prelude बनाते थे और बाकी कामों के लिए उन्हें साजिंदों पर निर्भर रहना पड़ता था. यश राज की बहुत सी सफल फिल्मों में साथी पंडित हरी प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाकर संगीत देने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा ने ये पूछने पर कि वो फ़िर से कब फिल्मों में संगीत देंगे, पंडित जी का जवाब था - "फिल्मों

मैं शायर बदनाम, महफिल से नाकाम

( पिछली कड़ी से आगे... ) बक्षी साहब ने फ़िल्म मोम की 'गुड़िया(1972)' में गीत 'बाग़ों में बहार आयी' लता जी के साथ गाया था। इस पर लता जी बताती हैं कि 'मुझे याद है कि इस गीत की रिकार्डिंग से पहले आनन्द मुझसे मिलने आये और कहा कि मैं यह गीत तुम्हारे साथ गाने जा रहा हूँ 'इसकी सफलता तो सुनिश्चित है'। इसके अलावा 'शोले(1975)', 'महाचोर(1976)', 'चरस(1976)', 'विधाता(1982)' और 'जान(1996)' में भी पाश्र्व(प्लेबैक)गायक रहे। आनन्द साहब का फिल्म जगत में योगदान यहीं सीमित नहीं, 'शहंशाह(1988)', 'प्रेम प्रतिज्ञा(1989)', 'मैं खिलाड़ी तू आनाड़ी(1994)', और 'आरज़ू(1999)' में बतौर एक्शन डायरेक्टर भी काम किया, सिर्फ यही नहीं 'पिकनिक(1966)' में अदाकारी भी की। लता की दिव्या आवाज़ में सुनिए फ़िल्म अमर प्रेम का ये अमर गीत - बक्षी के गीतों की महानता इस बात में है कि वह जो गीत लिखते थे वह किसी गाँव के किसान और शहर में रहने वाले किसी बुद्धिजीवी और ऊँची सोच रखने वाले व्यक्तिव को समान रूप से समझ आते हैं। वह कुछ ऐस

आज १५ बार सर उठा कर गर्व से सुनें-गुनें - राष्ट्रीय गान

"उस स्वतंत्रता के होने का कोई महत्व नहीं है जिसमें गलतियाँ करने की छूट सम्मिलित ना हो"-महात्मा गाँधी. आवाज़ के सभी श्रोताओं को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें. आज हम आपके लिए लाये हैं एक ख़ास पेशकश. "जन गण मन" के १५ अलग अलग रूप. सबसे पहले सुनिए सामूहिक आवाजों में राष्ट्र वंदन - 31 राज्य, 1618 भाषाएँ, 6400 जातियाँ, 6 धर्म और 29 मुख्य त्योहार लेकिन फिर भी एक महान राष्ट्र। पंडित हरी प्रसाद चौरसिया - जन गण मन संस्कृत मिश्रित बंगाली में लिखा गया भारत का राष्ट्रीय गीत है। ये ब्रह्म समाज की एक प्रार्थना के पहले पाँच बन्द हैं जिनके रचियता नोबल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्रनाथ टैगोर हैं। पंडित भीम सेन जोशी - सबसे पहले इसे 27 दिसम्बर 1911 को नैशनल कांग्रेस के कलकत्ता सम्मेलन में गाया गया। 1935 में इस गीत को दून स्कूल ने अपने विद्यालय के गीत के रूप में अपनाया। लता मंगेशकर - 24 जनवरी, 1950 को संविधान द्वारा इसे अधिकारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया। ऐसा माना जाता है कि इसकी वर्तमान धुन को राम सिंह ठाकुर जी के एक गीत से लिया गया है लेकिन इस बारे में वि

सुनिए और बूझिये कि आखिर कौन है दिल्ली ६ की ये मसकली

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (9) स्लमडॉग विशेषांक स्लम डॉग ने रचा इतिहास इस सप्ताह की ही नही इस माह की सबसे बड़ी संगीत ख़बर है ऐ आर रहमान का गोल्डन ग्लोब जीतना. आज का ये एपिसोड हम इसी बड़ी ख़बर को समर्पित कर रहे हैं. जिस फ़िल्म के लिए ऐ आर को ये सम्मान मिला है उसका नाम है स्लम डॉग मिलेनिअर. मुंबई के एक झोंपड़ बस्ती में रहने वाले एक साधारण से लड़के की असाधारण सी कहानी है ये फ़िल्म, जो की आधारित है विकास स्वरुप के बहुचर्चित उपन्यास "कोश्चन एंड आंसर्स" पर. फ़िल्म का अधिकतर हिस्सा मुंबई के जुहू और वर्सोवा की झुग्गी बस्तियों में शूट हुआ है. और कुछ कलाकार भी यहीं से लिए गए हैं. नवम्बर २००८ में अमेरिका में प्रर्दशित होने के बाद फ़िल्म अब तक ६४ सम्मान हासिल कर चुकी है जिसमें चार गोल्डन ग्लोब भी शामिल हैं. फ़िल्म दुनिया भर में धूम मचा रही है,और मुंबई के माध्यम से बदलते हिंदुस्तान को और अधिक जानने समझने की विदेशियों की ललक भी अपने चरम पर दिख रही है. पर कुछ लोग हिंदुस्तान को इस तरह "थर्ड वर्ल्ड" बनाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने को सही भी नही मानते. अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग

गोल्डन ग्लोब ए आर रहमान ने कहा "करोड़ों भारतीयों" को सलाम

बात सन् ९६ की है। ४ सालों से बिना रूके, बिना थके फिल्मों में म्युजिक देने के बाद रहमान कुछ अलग करना चाहते थे। दीगर बात है कि कलाकार सीमाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाता और फिल्मों में संगीत देना सीमा में बँधने जैसा हीं है। निर्माता-निर्देशक,कहानी-पटकथा सबकी बात सुननी होती है।तो हुआ यूँ कि स्क्रीन अवार्ड्स के लिए रहमान मुंबई आए हुए थे और एक होटल में ठहरे थे। अचानक उन्हें कुछ ख्याल आया और उन्होंने अपने बचपन के दोस्त जी० भरत को तलब किया। जी० भरत यानि भरत बाला ने रहमान के साथ लगभग १०० से ज्यादा जिंगल्स पर काम किया था। रहमान और भरत के बीच संगीत पर चर्चा हुई। बातों-बातों में उन दोनों ने अपने अगले एलबम का प्लान कर लिया। उसी साल अंतर्राष्ट्रीय ख्याति-लब्ध म्युजिक कंपनी "सोनी म्युजिक" का भारतीय संगीत-उद्योग में आना हुआ । सोनी भारतीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के बहाने बाज़ार में पाँव जमाना चाहती थी। सोनी के मैनेजिंग डायरेक्टर "विजय सिंह" के दिमाग में जिस पहले बंदे का नाम आया वह थे ए०आर० रहमान । सोनी ने रहमान के साथ तीन कैसेट्स का अनुबंध किया। रहमान ने भरत बाला के साथ ज

ताल से ताल मिला - रहमान के साथ

मोजार्ट ऑफ़ मद्रास को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाओं सहित - बात तब की है, जब रहमान "गुरू" फिल्म के गाने रिकार्ड कर रहे थे। "नुसरत" साहब के एक बहुत हीं सोफ्ट-से गाने "सजना तेरे बिना" ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था। गौरतलब बात है कि "रहमान" की गिनती नुसरत साहब के बड़े फैन्स में की जाती है। रहमान भी "सजना तेरे बिना" जैसा हीं कोई सोफ्ट-सा गाना तैयार करना चाहते थे। "नुसरत" साहब का या फिर कहिये उनकी दुआओं का यह असर हुआ कि २५ मिनट का गाना बन कर तैयार हो गया। छ:-सात मुखरों से सजे इस गाने की एडिटिंग शुरू हुई और अंतत: गाने को इसकी मुकम्मल और संतुलित लंबाई मिल गई। मज़े की बात यह है कि इस गाने से पहले रहमान ने "ऎ हैरते आशिकी" गाना भी बना लिया था. "ऎ हैरते आशिकी" के पीछे का वाक्या भी बड़ा हीं मज़ेदार है। अमीर खुसरो के एक नज़्म "ये शरबती आशिकी" ने "रहमान" पर गहरा असर किया था। रहमान इसे धुनों में उतारना चाहते थे, लेकिन फारसी की बहुलता आड़े आ रही थी। तब खेवनहार के तौर पर आए "गुलज़ार साहब" जिन्होने &qu

वो जिसने हिन्दी फ़िल्म संगीत की तस्वीर ही बदल दी...- ए आर रहमान.

बात १९९१ की है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन निर्देशक मणिरत्नम और बेहतरीन संगीतकार इल्लैया राजा की वर्षों पुरानी जोड़ी टूट चुकी थी। मणिरत्नम एक नए और फ्रेश संगीतकार की खोज में थे। हर साल की तरह उस साल भी मणिरत्नम का एक जानेमाने अवार्ड फंक्शन में जाना हुआ। समारोह शुरू होने से पहले वहाँ कुछ ऎड जिंगल्स (ad jingles) प्ले हो रहे थे। मणिरत्नम धुनों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने उस संगीतकार के कुछ और गानों की फरमाईश की। धुनों का असर बढता गया। समारोह के बाद मणिरत्नम उस संगीतकार के म्युजिक रिकार्डिंग स्टुडियो भी गए। उस गुमनाम संगीतकार ने अपना एक पुराना गीत मणिरत्नम को सुनाया, जिसे उसने बरसों पहले "कावेरी विवाद" के सिलसिले में तैयार किया था। मणिरत्नम ने तनिक भी देर न करते हुए, अपनी नई फिल्म के लिए इस गीत की माँग कर दी और साथ हीं साथ इस नए-से संगीतकार को साईन भी कर लिया। वह मकबूल फिल्म थी "बालचंदर्स कवितालय" की "रोज़ा", वह गाना था " तमिज़ा तमिज़ा ", जो हिंदी में अनुवादित होकर हुआ "भारत हमको जान से प्यारा है" और वह अनजाना सा संगीत-दिग्दर्शक था