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‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ शहीद-ए-आजम को नमन

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 39 एक गीत सौ कहानियाँ – 23 बलिदानी भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत : ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर गत वर्ष 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक स्तम्भ आरम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत हर अंक में वे किसी फिल्मी या गैर-फिल्मी गीत की विशेषताओं और लोकप्रियता पर चर्चा करते थे। यह स्तम्भ 20 अंकों के बाद मई 2012 में स्थगित कर दिया गया था। गत जनवरी माह से हमने इस स्तम्भ का प्रकाशन ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ श्रृंखला के अन्तर्गत पुनः शुरू किया है। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ की 23वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहे हैं, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का अत्यन्त चर्चित गीत- ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला...’ के बारे में कुछ विस्मृत विवरण। यह गीत सरदार भगत सिंह का सर्वप्रिय गीत था, जिसे गाते हुए उन्होने 23 मार्च, 1931 को देश की खातिर अपने दो अन्य साथियों के साथ स्वयं का बलिदान किया था। आज के इस अंक के माध्यम से हम इसी गीत के बहाने इन तीनों बलिदानियों को नमन करते हैं। 

गायिका नूरजहाँ के गाये अनमोल गीत

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 35 कारवाँ सिने-संगीत का ‘आजा तुझे अफ़साना जुदाई का सुनाएँ...’ : नूरजहाँ   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ के अन्तर्गत हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य और हिन्दी फिल्मों के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। सुजॉय चटर्जी ने अपनी इस पुस्तक में भारतीय सिनेमा में आवाज़ के आगमन से लेकर देश की आज़ादी तक के फिल्म-संगीत की यात्रा को रेखांकित किया है। आज के अंक में हम विभाजन से पूर्व अपनी गायकी से पूरे भारत में धाक जमाने वाली गायिका और अभिनेत्री नूरजहाँ का ज़िक्र करेंगे। ज हाँ एक तरफ़ ए.आर. कारदार और महबूब ख़ान देश-विभाजन के बाद यहीं रह गए, वहीं बहुत से ऐसे कलाकार भी थे जिन्हें पाक़िस्तान चले जाना पड़ा। इनमें एक थीं नूरजहाँ। भार

गायक मुकेश फिल्म ‘अनुराग’ में बने संगीतकार

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 34 स्मृतियों का झरोखा : ‘किसे याद रखूँ किसे भूल जाऊँ...’   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों का झरोखा’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का पाँचवाँ गुरुवार है और नए वर्ष की नई समय सारिणी के अनुसार माह का पाँचवाँ गुरुवार हमने आमंत्रित अतिथि लेखकों के लिए सुरक्षित कर रखा है। आज ‘स्मृतियों का झरोखा’ का यह अंक आपके लिए पार्श्वगायक मुकेश के परम भक्त और हमारे नियमित पाठक पंकज मुकेश लिखा है। पंकज जी ने गायक मुकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहन शोध किया है। अपने शुरुआती दौर में मुकेश ने फिल्मों में पार्श्वगायन से अधिक प्रयत्न अभिनेता बनने के लिए किये थे, इस तथ्य से अधिकतर सिनेमा-प्रेमी परिचित हैं। परन्तु इस तथ्य से शायद आप परिचित न हों कि मुकेश, 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनुराग’ के निर्माता, अभिनेता और गायक ही नहीं संगीतकार भी थे। आज के ‘स्मृतियों का झरोखा’ में पंकज जी ने मुकेश के कृतित्व के इन्हीं पक्षों, विशेष रूप से उनकी संगीतकार-प्र

गणतन्त्र दिवस पर विशेष : ‘बॉम्बे टॉकीज़’, ‘क़िस्मत’ और अनिल विश्वास

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 33   स्मृतियों का झरोखा  : गणतन्त्र दिवस पर विशेष ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है...’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों का झरोखा’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज से प्रत्येक माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘स्मृतियों का झरोखा’ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख किया करेंगे। आज के अंक में हम ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘क़िस्मत’ की निर्माण-प्रक्रिया और उसकी सफलता के बारे में कुछ विस्मृत यादों को ताजा कर रहे हैं। ‘ बॉ म्बे टॉकीज़’ की दूसरी फ़िल्म ‘क़िस्मत’ तो एक ब्लॉकबस्टर सिद्ध हुई। अशोक कुमार और मुमताज़ शान्ति अभिनीत इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस के पहले के सारे रेकॉर्ड्स तोड़ दिए। पूरे देश में कई जगहों पर जुबिलियाँ मनाने के अलावा कलकत्ते के ‘चित्र प्लाज़ा’ थिएटर में यह फ़िल्म लगातार 196 हफ़्त

मैंने देखी पहली फिल्म प्रतियोगिता का परिणाम

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 30 मैंने देखी पहली फ़िल्म : कृष्णमोहन मिश्र बैंड वाले मेरे पसन्द के गीत की धुन नहीं बजाते थे भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का मैं सजीव सारथी नए वर्ष 2013 में हार्दिक स्वागत करता हूँ। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया था। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के इस समापन अंक में हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ संचालक मण्डल के सदस्य कृष्णमोहन मिश्र का गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। कृष्णमोहन जी ने 1955 में मोतीलाल और निगार सुल्ताना अभिनीत फिल्म ‘मस्ताना’ देखी थी। इस फिल्म के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण और संगीतकार मदनमोहन थे। इस संस्मरण के साथ-साथ हम आपके प्रतियोगी संस्मरणों के परिणामों की घोषणा भी करेंगे। उ म्र के पहले दशक की कि