अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा
मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहाँ से आज की महफ़िल में सुनेंगे आदमी की पहचान कैसे होलगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में.. मादर-ए-वतन से दूर होने के ज़फ़र के दर्द को हबीब की आवाज़ ने कुछ यूँ उभारा
चाहा था एक शख़्स को... कहकशाँ-ए-तलबगार में आशा की गुहार
परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी
मेरा दिल तड़पे दिलदार बिना.. राहत साहब की दर्दीली आवाज़ में इस ग़मनशीं नज़्म का असर हज़ार गुणा हो जाता है
मोहब्बत की कहानी आँसूओं में पल रही है.. सज्जाद अली ने शहद-घुली आवाज़ में थोड़ा-सा दर्द भी घोल दिया है
इसी को प्यार कहते हैं.. प्यार की परिभाषा बता रहे हैं हसरत जयपुरी और हुसैन बंधु
है जिसकी रंगत शज़र-शज़र में, ख़ुदा वही है.. कविता सेठ ने सूफ़ियाना कलाम की रंगत ही बदल दी हैं
यह ऐसी प्यास है जिसे मुद्दत से मिले मयखाना... सुनते हैं फिर एक बार जगजीत सिंह को
आओ फिर से दिया जलाएं.... आव्हान उन सबके लिए जो किसी भी तरह की प्रेरणा चाहते हैं
नाज़ था खुद पर मगर ऐसा न था...... 'कहकशाँ’ में आज छाया की माया
छल्ला कालियां मर्चां, छल्ला होया बैरी.. छल्ला से अपने दिल का दर्द बताती विरहणी को आवाज़ दी शौक़त अली ने
तुम बोलो कुछ तो बात बने....जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश आज ’कहकशाँ’ में
आज की महफ़िल में सुनिए क्यों संगीतकार खय्याम दस वर्ष की छोटी उम्र में घर से भाग गए?
खुशी ने मुझको ठुकराया है... आइये, सुनते हैं आज बेगम अख्तर की जीवन यात्रा!
आज की महफ़िल में सुनिये क्या कहते हैं गुलज़ार साहब त्रिवेणियों के बारे में!
जब रफ़ी साहब अपनी आवाज़ के जादू में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल सुनाते हैं
अँखियाँ नूं चैन न आवे...बाबा नुसरत की रूहानी आवाज़ आज महफ़िल ए कहकशां में
बम बम बम भोला..! रसन पिया अपनी रचना में गा कर सुनाते हैं शिव पार्वती विवाह वृत्तान्त के समय किस तरह नाग को देख पंडित तक काँप जाते हैं।
"सातों बार बोले बंसी" और "जाने दो मुझे जाने दो" जैसे नगीनों से सजी है आज की "गुलज़ार-आशा-पंचम"-मयी महफ़िल
मेरा दिल तड़पे दिलदार बिना.. राहत साहब की दर्दीली आवाज़ में इस ग़मनशीं नज़्म का असर हज़ार गुणा हो जाता है
तुम बोलो कुछ तो बात बने....जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश आज ’कहकशाँ’ में
"रसन बचे जो भुजंगन से, सो कोटिन लक्ष निछावर पावे..." रसन पिया को खिराज आज ’कहकशाँ’ में
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है.. "मीर" के एकतरफ़ा प्यार की कसक और हरिहरण की आवाज़ 'कहकशाँ’ की अन्तिम कड़ी में
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं.. ताहिरा सैय्यद ने कुछ यूँ आवाज़ दी दाग़ की दीवानगी और मस्तानगी को
परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी
अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में.. मादर-ए-वतन से दूर होने के ज़फ़र के दर्द को हबीब की आवाज़ ने कुछ यूँ उभारा
मेरा दिल तड़पे दिलदार बिना.. राहत साहब की दर्दीली आवाज़ में इस ग़मनशीं नज़्म का असर हज़ार गुणा हो जाता है
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