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चित्रकथा - 45: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 7)

अंक - 45

इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 7)


"हम भी हैं जोश में..." 




हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक लघु श्रॄंखला जिसमें हम बातें करेंगे वर्तमान दशक में अपना करीअर शुरु करने वाले शताधिक नायकों की। प्रस्तुत है ’इस दशक के नवोदित नायक’ श्रॄंखला की सातवीं कड़ी।




स श्रॄंखला की सातवीं कड़ी में आज जिस नायक का ज़िक्र सबसे पहले करने जा रहे हैं, उन्होंने अपने आप को बहुत ही कम समय में ना केवल सिद्ध किया बल्कि बड़ी तेज़ रफ़्तार से सफलता की सीढ़ियाँ चढते चले जा रहे हैं। सुशान्त सिंह राजपुत का जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ और पुर्णिया ज़िला उनके पूर्वजों का ज़िला है। वर्ष 2002 में जब सुशान्त मात्र 16 वर्ष के थे, तब उनके माँ के दुनिया से चले जाने से उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा और उसी साल उनका पूरा परिवार पटना से दिल्ली स्थानान्तरित हो गया। पढ़ाई-लिखाई में अच्छे सुशान्त को Delhi College of Engineering में इंजिनीयरिंग् पढ़ने का मौक़ा मिला। भौतिक विज्ञान में सुशान्त National Olympiad Winner रह चुके हैं। यही नहीं उन्होंने कुल ग्यारह इंजिनीयरिंग् एन्ट्रान्स की परीक्षाएँ उत्तीर्ण हुए थे। इतने मेधावी होने के बावजूद सुशान्त ने इंजिनीयरिंग् की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर अभिनय के क्षेत्र में क़दम रख दिया। पढ़ाई के दिनों में ही उन्होंने शियामक दावर के डान्स क्लासेस में दाख़िला ले लिया था और एक अच्छे डान्सर बन गए थे। डान्स क्लास में कुछ अन्य साथियों के फ़िल्मों के प्रति रुझान का असर उन पर भी हुआ और वो भी बैरी जॉन के ड्रामा क्लासेस जॉइन कर ली। जल्दी ही सुशान्त को शियामक ने अपने डान्स ट्रूप में शामिल कर लिया और वर्ष 2005 में उन्हें ’फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार’ समारोह में बतौर पार्श्व नर्तक के रूप में नृत्य करने का मौका मिल गया। इसके बाद उन्हें और भी कई महत्वपूर्ण फ़ंकशनों में डान्स के मौके मिले और एक में तो उन्होंने ऐश्वर्या राय को भी अपने कंधे पर उठाया था। फ़िल्मों में ब्रेक की उम्मीद से सुशान्त मुंबई चले आए और नादिरा बब्बर की ’एकजुट थिएटर’ में भर्ती हो गए जहाँ पे वो ढाई साल तक रहे और इस दौरान उन्हें कई टीवी विज्ञापनों में अभिनय के मौके मिले। 2008 में ’बालाजी टेलीफ़िल्म्स’ की नज़र सुशान्त पर पड़ी और उनकी प्रतिभा को परखते हुए उन्हें ’किस देश में है मेरा दिल’ धारावाहिक में प्रीत जुनेजा का किरदार निभाने का अवसर दे दिया। कहानी के अनुसार उनके किरदार को जल्दी ही मरना था, लेकिन तब तक वो उस धारावाहिक में इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि उनकी मौत को दर्शकों ने ग्रहण नहीं किया और पब्लिक डिमान्ड पर उन्हें शो में वापस लाना पड़ा। इसके बाद 2009 में ’पवित्र रिश्ता’ और 2010 में ’ज़रा नचके दिखा’ और ’झलक दिखला जा’ में उन्हें ख़ूब प्रसिद्धी हासिल हुई। ’पवित्र रिश्ता’ की अपार सफलता के बावजूद सुशान्त ने फ़िल्मों में अपनी क़िस्मत आज़माने के लिए टीवी को अल्विदा कह दिया और विदेश जाकर एक फ़िल्म मेकिंग् कोर्स में भर्ती हो गए। वर्ष 2013 में सुशान्त सिंह राजपुत ने अभिषेक कपूर के ’काइ पो चे’ फ़िल्म के लिए ऑडिशन दिया और उनका निर्वाचन हो गया तीन नायकों में से एक नायक के किरदार के लिए। बाकी के दो नायक थे अमित साध और राजकुमार राव। चेतन भगत के मशहूर उपन्यास ’The 3 Mistakes of My Life’ पर आधारित इस फ़िल्म को अपार सफलता मिली और सुशान्त अपनी पहली फ़िल्म में ही एक सफल अभिनेता के रूप में उभरे। इस फ़िल्म के लिए उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा हुई। उनकी दूसरी फ़िल्म थी परिनीति चोपड़ा के साथ ’शुद्ध देसी रोमान्स’, जिसने एक बार बॉक्स ऑफ़िस पर कामयाबी के झंडे दाढ़ दिए और सुशान्त बन गए हर फ़िल्म प्रोड्युसर के चहेते नायक। 2014 में राजकुमार हिरानी ने अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म ’पीके’ में सुशान्त को एक छोटा सा पर सुन्दर किरदार निभाने का मौका दिया और इस तरह से सुशान्त को आमिर ख़ान और अनुष्का शर्मा के साथ काम करने का मौक़ा मिला। 2015 में दिबाकर बनर्जी की फ़िल्म ’डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी’ के लिए सुशान्त को ही चुना गया ब्योमकेश के चरित्र के लिए। रजत कपूर के रूप में ब्योमकेश की जो छवि दर्शकों के दिलों में बरसों से बैठी है, उसे किसी और से प्रतिस्थापित करना आसान नहीं। लेकिन सुशान्त के जानदार और शानदार अभिनय को लोगों ने ख़ूब सराहा। ब्योमकेश एक बाद सुशान्त नज़र आए क्रिकेट कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के किरदार में। 2016 की फ़िल्म ’एम. एस. धोनी’ को ना केवल व्यावसायिक सफलता मिली बल्कि आलोचनात्मक सफलता भी मिली। इस फ़िल्म के लिए सुशान्त को फ़िल्मफ़ेअर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए नामांकन मिला। हाल ही में सुशान्त नज़र आए कृति सानोन के साथ फ़िल्म ’राबता’ में। यह फ़िल्म ख़ास नहीं चली। अभी 2017-18 में सुशान्त सिंह राजपुत की कई महत्वपूर्ण फ़िल्में आने वाली हैं; इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन सभी फ़िल्मों में सुशान्त अपने अभिनय के जल्वों से सबका दिल जीत लेंगे।

1980 में जम्मु में जन्मे विद्युत जामवाल एक आर्मी अफ़सर के बेटे हैं। इस वजह से वो भारत के कई प्रान्तों में रह चुके हैं। तीन वर्ष की आयु से उन्होंने केरल के पलक्कड के एक आश्रम में कलरिपयट्टु का प्रशिक्षण लिया जो उनकी माँ चलाती थीं। दुनिया भर में घूम कर विद्युत ने अलग अलग तरह के मार्शल आर्टिस्ट्स को ट्रेन किया है और इन सभी का मूल कलरिपयट्टु में ही है। मार्शल आर्ट्स में दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने के बाद विद्युत 2008 में मुंबई आए फ़िल्मों में अपनी क़िस्मत आज़माने। शुरुआत उन्होंने मॉडेलिंग् से की। जल्दी ही इंडस्ट्री की नज़र उनकी आकर्षक कदकाठी पर पड़ी और तेलुगू फ़िल्म ’शक्ति’ में अभिनय का मौका मिल गया। इसके बाद निशिकान्त कामत की हिन्दी फ़िल्म ’फ़ोर्स’ में विष्णु के किरदार के लिए चुन लिया गया जिसके लिए हज़ारों युवकों ने ऑडिशन दिया था। ’फ़ोर्स’ में जॉन एब्रहम भी थे, लेकिन दर्शकों को विद्युत जामवाल के ऐक्शन सीन्स ने मन्त्रमुग्ध कर दिया। इस फ़िल्म ने 2012 के लगभग सभी पुरस्कार समारोहों में Most Promising Debut का पुरस्कार विद्युत को दिलवाया। इस फ़िल्म के बाद विद्युत जामवाल कई तेलुगू और तमिल फ़िल्मों में अभिनय किया और दक्षिण में भी उन्हें ख़ूब पसन्द किया गया। हिन्दी में उनकी अगली फ़िल्म आई ’कमांडो’ जिसमें उन्होंने अपने सारे ऐक्शन ख़ुद ही निभाए और दर्शकों को अद्भुत ऐक्शन्स के ज़रिए अचम्भित किया। फ़िल्म के रिलीज़ से पहले केवल प्रोमोज़ के द्वारा ही दर्शकों में खलबली मचा दी और ट्रेलर लौन्च के एक सप्ताह के भीतर दस लाख से ज़्यादा हिट्स आए यूट्युब पर। हालाँकि फ़िल्म को बहुत अधिक सफलता नहीं मिल पायी लेकिन विद्युत के ऐक्शन के चर्चे ख़ूब हुए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विद्युत के ऐक्शन की ख़ूब तारीफ़ें हुईं और उनकी तुलना ब्रुस ली और टोनी जा से होने लगी। उनकी कामुकता के आधार पर उन्हें Most Desirable, Fittest Men with Best Bodies, और Sexiest Men Alive जैसे ख़िताब प्राप्त हुए। ’कमांडो’ की सफलता के बाद विद्युत नज़र आए टिग्मांशु धुलिया की फ़िल्म ’बुलेट राजा’ में। टिग्मांशु ने अपनी अगली फ़िल्म ’यारा’ में भी विद्युत को ही चुना है जो बहुत जल्दी रिलीज़ होने वाली है। इस फ़िल्म के अलावा भी विद्युत कई और प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में उनकी कई फ़िल्में रिलीज़ होने वाली हैं। देखना यह है कि वो सफलता की कितनी सीढ़ियाँ चढ़ पाते हैं।

पाक़िस्तानी अभिनेता इमरान अब्बास मूलत: एक पाक़िस्तानी टेलीविज़न अभिनेता हैं और मॉडल रह चुके हैं। ’मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान’, ’ख़ुदा और मोहब्बत’, ’मेरा नसीब’, ’पिया के घर जाना है’, ’दिल-ए-मुज़तर’, ’शादी और तुम से?’, ’अलविदा’, और ’मेरा नाम यूसुफ़ है’ जैसी पाकिस्तानी धारावाहिकों में अभिनय करते हुए इमरान बहुत मशहूर हो चुके थे। साल 2013 में उन्हें पाक़िस्तानी फ़िल्म ’अंजुमन’ में बतौर नायक ब्रेक मिला जो एक रोमान्टिक ड्रामा फ़िल्म थी। इमरान अब्बास की ख़ूबसूरती और अभिनय का ज़िक्र सरहद के इस पार भी आ पहुँचा और अगले ही साल उन्हें बॉलीवूड की हॉरर फ़िल्म ’Creature 3D' में बिपाशा बासु के विपरीत नायक का रोल मिल गया। इस फ़िल्म के लिए उन्हें Best Male Debut का फ़िल्मफ़ेअर का नामांकन मिला था। इस फ़िल्म में "मोहब्बत बरसा देना तू सावन आया" गीत ख़ूब लोकप्रिय हुआ था और इमरान व बिपाशा की केमिस्ट्री की भी चर्चा हुई थी। साथ ही फ़िल्म के कामोत्तेजक सीन्स भी सुर्ख़ियों में रही। इमरान अब्बास ने लाहौर के National College of Arts से architecture की पढ़ाई की और वो उर्दू शायरी भी लिखते हैं। 1947 में बटवारे के बाद उनका परिवार लाहौर में ही बस गया था। ’Creature 3D' के बाद इमरान अगली फ़िल्म ’जानिसार’ में नज़र आए जो मुज़फ़्फ़र अली निर्देशित फ़िल्म थी। 2015 में इमरान ’Abdullah: The Final Witness’ में सादिया ख़ान के साथ नज़र आए। इस फ़िल्म को कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाया गया था जो 2016 में प्रदर्शित हुआ। इसी वर्ष करण जोहर की फ़िल्म ’ऐ दिल है मुश्किल’ में भी इमरान अब्बास को एक किरदार निभाने का मौका मिला। इमरान अब्बास ने बहुत कम उम्र में ही काफ़ी सफलता हासिल कर ली है। अभी तो उनके सामने एक बहुत लम्बी पारी इन्तज़ार कर रही है। टेलीविज़न और फ़िल्मों के बीच सही ताल मेल बनाए रखते हुए वो निरन्तर अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर होते चले जा रहे हैं। हाल में भारत और पाक़िस्तान के बीच संबंध में कड़वाहट की वजह से पाक़िस्तानी कलाकार बॉलीवूड में दाख़िल नहीं हो पा रहे हैं। इस वजह से क्या इमरान अब्बास को फिर कभी किसी बॉलीवूड फ़िल्म में बतौर नायक काम करने को नहीं मिलेगा? कह नहीं सकते। लेकिन अभिनेता तो अभिनेता होता है। चाहे भारत हो या पाक़िस्तान, अपने अभिनय के जादू से वो दर्शकों के दिलों पर यूंही राज करते रहेंगे जैसे कि अब तक करते आए हैं।

तमिल, तेलुगू और हिन्दी सिनेमा में समान रूप से छाने वाले राना डग्गुबाती का जन्म चेन्नई में हुआ था। उनके पिता डग्गुबाती सुरेश बाबू तेलुगू फ़िल्मों के निर्माता रहे हैं। उनके दादा तमिल फ़िल्म इंडस्ट्री के जानेमाने निर्माता डी. रामानयडु हैं। राना के चाचा वेंकटेश और चचेरे भाई नागा चैतन्य भी फ़िल्मों के अभिनेता हैं। हैदराबाद पब्लिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद राना ने तेलुगू फ़िल्म जगत में क़दम रखा। बॉलीवूड में राना के पहले क़दम पड़े ’दम मारो दम’ फ़िल्म में जो 2011 में बनी थी। उनके इस हिन्दी डेब्यु को "धमाकेदार" माना गया, इतना ज़्यादा कि उन्हें उस साल का ’The Most Promising Newcomer of 2011' का ख़िताब दिया गया ’दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की तरफ़ से। 2012 में राना डग्गुबाती को ’10th Most Desirable Man of India' का ख़िताब मिला। इसके बाद तेलुगू और कुछ तमिल फ़िल्मों में अभिनय के बाद उनकी अगली हिन्दी फ़िल्म आई 2016 की ’बाहूबली’ जो बहुत कामयाब रही। इस फ़िल्म में राना ने ’भल्लालदेव’ का किरदार निभाया था। इस चरित्र में उनकी भूमिका कुछ हद तक खलनायक की थी। लेकिन उन्हें फ़िल्म समीक्षकों की भूरी भूरी प्रशंसा मिली। 2017 में ’बाहूबली 2’ भी ख़ूब चली। राना डग्गुबाती के अभिनय से सजी कुछ और हिन्दी फ़िल्में हैं - ’डिपार्टमेण्ट’, ’ये जवानी है दीवानी’, ’बेबी’, और ’दि ग़ाज़ी अटैक’। राना डग्गुबाती को ’दम मारो दम’ के लिए ’ज़ी सिने अवार्ड्स’ के अन्तर्गत Best Male Debut और IIFA Awards के अन्तर्गत ’बाहूबली’ के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार मिला है। राना दक्षिण में जितने लोकप्रिय हैं, उतनी ही तेज़ी से वो हिन्दी फ़िल्म जगत में भी नाम कमा रहे हैं। देखना यह है कि क्या भविष्य में वो इन तीनों इंडस्ट्री पर एक समान राज कर पाते हैं या नहीं। राष्ट्रीय पुरस्कार और फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड से समानित राजकुमार राव भी इस पीढ़ी के एक तेज़ी से सफलता की पायदान चढ़ने वाले अभिनेता हैं। राजकुमार राव का असली नाम है राजकुमार यादव। अहिरवाल, गुड़गाँव, हरियाणा के एक अहिरवाल परिवार में जन्मे और पले बढ़े राजकुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय से आर्ट्स में स्नातक की डिग्री प्राप्त की अन्द फिर अभिनय सीखने के लिए Film and Television Institute of India में भर्ती हो गए। यहाँ की पढ़ाई पूरी करते ही उन्होंने मुंबई का रुख़ किया फ़िल्मों में करीयर बनाने के लिए। 2010 में उनका यह सपना पूरा हुआ जब उन्हें ’लव, सेक्स और धोखा’ फ़िल्म में अभिनय करने का मौका मिला। इस फ़िल्म में उनका रोल बड़ा नहीं था। इसके बाद और भी कई फ़िल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाते हुए इन्डस्ट्री में उन्होंने दो साल गुज़ार दिए। 2013 की जिस फ़िल्म से उन्हें प्रसिद्धी मिली, वह थी ’काई पो चे’, जिसके लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कारों के तहत ’श्रेष्ठ सह-अभिनेता’ के पुरस्कार का नामांकन मिला था। उपर हम बता चुके हैं कि यह फ़िल्म सुशान्त सिंह राजपुत के करीअर की भी पहली महत्वपूर्ण फ़िल्म थी। 2013 का वर्ष राजकुमार राव के लिए बहुत अच्छा रहा। ’काई पो चे’ के बाद इसी वर्ष ’शाहिद’ फ़िल्म में शाहिद आज़्मी की भूमिका अदा करते हुए उन्हें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का और साथ ही फ़िल्मफ़ेअर के अन्तर्गत Critics Best Actor का पुरस्कार भी। 2014 में राजकुमार राव ने रोमान्टिक कॉमेडी ’क्वीन’ और ड्रामा ’सिटीलाइट्स’ में मुख्य नायक का किरदार निभाया। 2016 की फ़िल्म ’अलीगढ़’ में एक पत्रकार की सशक्त भूमिका बख़ूबी निभाने की वजह से फ़िल्मफ़ेअर के तहत सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के पुरस्कार के लिए दूसरी बार नामांकन मिला। राजकुमार राव की कुछ और महत्वपूर्ण फ़िल्मों के नाम हैं ’रागिनी एम एम एस’, ’गैंग्स ऑफ़ वासेपुर 2’, ’चिट्टागौंग’, ’तलाश’, ’डॉली की डोली’, ’हमारी अधूरी कहानी’, ’राबता’, ’बहन होगी तेरी’, ’बरेली की बरफ़ी’। राजकुमार राव अपने हर चरित्र में सही तरीके से उतर जाने के लिए मशहूर हैं। इसके लिए उन्हें कई बार अपने शारीरिक गठन को भी बदला है। उदाहरण के तौर पर ’ट्रैप्ड’ फ़िल्म के लिए उन्होंने 22 दिनों के अन्दर 7 किलो वज़न कम किया है, जबकि ’बोस: डेड ऑर अलाइव’ में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की भूमिका के लिए उन्होंने 11 किलो वज़न बढ़ाया है। सुना जा रहा है कि उनकी आने वाली फ़िल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन से उम्र में अधिक दिखने के लिए वो अपनी दाढ़ी बढ़ा रहे हैं।


जलंधर पंजाब के एक बिज़नेस फ़ैमिली में जन्में करण कुन्द्रा घर के सबसे छोटे बेटे हैं। तीन बड़ी बहनों का प्यार-दुलार पा कर बड़े हुए करण ने अपनी स्कूलिंग् राजस्थान के अजमेर के मायो कॉलेज से पूरी की और आगे चल कर अमरीका से MBA किया। वापस आकर वो टेलीविज़न जगत से जुड़े और एकता कपूर की ’कितनी मोहब्बत है’ धारावाहिक में अर्जुन पुंज की भूमिका अदा करते हुए घर घर में चर्चित हो उठे। एक मॉडल और अभिनेता होने के साथ साथ करण एक बिज़नेसमैन भी हैं और उनका एक अन्तराष्ट्रीय कॉल सेन्टर भी है। जलंधर का 'Insignia Shopping Mall' भी उनका ही है। 2008 में ’कितनी मोहब्बत है’ से अभिनय सफ़र शुरु करते हुए करण ने 2009 में एक और धारावाहिक ’दिल की तमन्ना है’ में भी अभिनय किया औए 2010 में ’झलक दिखला जा’ में नज़र आए। फ़िल्म जगत में करण कुन्द्रा का पदार्पण हुआ 2011 की फ़िल्म ’प्योर पंजाबी’ में जिसमें उन्होंने प्रेम की भूमिका निभाई। 2012 की फ़िल्म ’हॉरर स्टोरी’ में नील की भूमिका को लोगों ने सराहा। फिर उसके बाद ’जट रोमान्टिक’, ’मेरे यार कमीने’, ’कंट्रोल भाजी कंट्रोल’ जैसी हास्य फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद 2017 में ’मुबारकाँ’ में उन्होंने मनप्रीत संधु की यादगार भूमिका निभाई। 2018 में उनकी अगली फ़िल्म '1921' बन कर तैयार होने जा रही है। करण कुन्द्रा को फ़िल्मों में अभी तक वो कामयाबी नहीं मिली है जो कामयाबी उन्हें टेलीविज़न पर मिली। लेकिन उनकी लगन और मेहनत आगे चल कर फ़िल्मों में रंग लाएगी और उन्हें छोटे परदे के साथ-साथ बड़े परदे पर भी शोहरत हासिल होगी, कुछ ऐसी ही उम्मीद हर करते हैं। विवान शाह नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक के छोटे बेटे हैं। देहरादून के ’दून स्कूल’ से 2009 में स्नातक करने के बाद विवान ने अपना फ़िल्मी सफ़र शुरु किया 2011 की फ़िल्म ’सात ख़ून माफ़’ से जिसमें उन्होंने अरुण कुमार की भूमिका अदा की। उस समय वो मात्र 21 वर्ष के थे। इस फ़िल्म के बाद विवान ने फ़िल्मकार विशाल भारद्वाज के साथ तीन फ़िल्मों में साइन किया। ये फ़िल्में अभी बन नहीं पायी हैं। 2014 में फ़राह ख़ान ने अपनी बड़ी फ़िल्म ’हैप्पी न्यु यीअर’ में विवान को एक अच्छा रोल दिया। रोहन की भूमिका में विवान को इस फ़िल्म में शाहरुख़ ख़ान, दीपिका पडुकोणे, अभिषेक बच्चन, सोनू सूद, बोमन इरानी और जैकी श्रॉफ़ जैसे मंझे हुए अभिनेताओं के साथ काम करने का मौका मिला और उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। 2015 की फ़िल्म ’बॉम्बे वेल्वेट’ में टोनी की भूमिका में और 2017 की फ़िल्म ’लाली की शादी में लड्डू दीवाना’ में लड्डू की भूमिका में विवान शाह को लोगों ने पसन्द किया। उनके अभिनय क्षमता की प्रशंसा हुई, और अभिनय क्षमता हो ना कैसे जब वो नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक जैसे दिग्गज अदाकारों के बेटे हैं। देखना यह है कि भविष्य में विवान किस तरह से अपनी अलग पहचान इस इंडस्ट्री में बना पाते हैं।

आख़िरी बात

’चित्रकथा’ स्तंभ का आज का अंक आपको कैसा लगा, हमें ज़रूर बताएँ नीचे टिप्पणी में या soojoi_india@yahoo.co.in के ईमेल पते पर पत्र लिख कर। इस स्तंभ में आप किस तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं, यह हम आपसे जानना चाहेंगे। आप अपने विचार, सुझाव और शिकायतें हमें निस्संकोच लिख भेज सकते हैं। साथ ही अगर आप अपना लेख इस स्तंभ में प्रकाशित करवाना चाहें तो इसी ईमेल पते पर हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े किसी भी विषय पर लेख हम प्रकाशित करेंगे। आज बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नए अंक के साथ इसी मंच पर आपकी और मेरी मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार, आपका आज का दिन और आने वाला सप्ताह शुभ हो!




शोध,आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग : कृष्णमोहन मिश्र  



रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

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