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राग सोहनी : SWARGOSHTHI – 296 : RAG SOHANI




स्वरगोष्ठी – 296 में आज


नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 9 : राग सोहनी का गीत

“प्रेम जोगन बन के, सुन्दर पिया ओर चली...”




‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे राग सोहनी पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट ही मुख्य मार्ग लाटूश रोड (वर्तमान गौतम बुद्ध मार्ग) पर संगीत के वाद्ययंत्र बनाने और बेचने वाली दूकाने थीं। उधर से गुजरते हुए बालक नौशाद घण्टों दूकान में रखे साज़ों को निहारा करते थे। एक बार तो दूकान के मालिक गुरबत अली ने नौशाद को फटकारा भी, लेकिन नौशाद ने उनसे आग्रह किया की वे बिना वेतन के दूकान पर रख लें। नौशाद उस दूकान पर रोज बैठते, साज़ों की झाड़-पोछ करते और दूकान के मालिक का हुक्का तैयार करते। साज़ों की झाड़-पोछ के दौरान उन्हें कभी-कभी बजाने का मौका भी मिल जाता था। उन दिनों मूक फिल्मों का युग था। फिल्म प्रदर्शन के दौरान दृश्य के अनुकूल सजीव संगीत प्रसारित हुआ करता था। लखनऊ के रॉयल सिनेमाघर में फिल्मों के प्रदर्शन के दौरान एक लद्दन खाँ थे जो हारमोनियम बजाया करते थे। यही लद्दन खाँ साहब नौशाद के पहले गुरु बने। नौशाद के पिता संगीत के सख्त विरोधी थे, अतः घर में बिना किसी को बताए सितार नवाज़ युसुफ अली और गायक बब्बन खाँ की शागिर्दी की। कुछ बड़े हुए तो उस दौर के नाटकों की संगीत मण्डली में भी काम किया। घर वालों की फटकार बदस्तूर जारी रहा। अन्ततः 1937 में एक दिन घर में बिना किसी को बताए माया नगरी बम्बई की ओर रुख किया।



उस्ताद  बड़े  गुलाम  अली  खाँ 
भारतीय फिल्मों के इतिहास में 1960 में प्रदर्शित, बेहद महत्त्वाकांक्षी फिल्म- ‘मुगल-ए-आजम’, एक भव्य कृति थी। इसके निर्माता-निर्देशक के. आसिफ ने फिल्म की गुणबत्ता से कोई समझौता नहीं किया था। फिल्म के संगीत के लिए उन्होने पहले गोविन्द राम और फिर अनिल विश्वास को दायित्व दिया, परन्तु फिल्म-निर्माण में लगने वाले सम्भावित अधिक समय के कारण बात बनी नहीं। अन्ततः संगीतकार नौशाद तैयार हुए। नौशाद ने फिल्म में मुगल-सल्तनत के वैभव को उभारने के लिए तत्कालीन दरबारी संगीत की झलक दिखाने का हर सम्भव प्रयत्न किया। नौशाद और के. आसिफ ने तय किया कि अकबर के नवरत्न तानसेन की मौजूदगी का अनुभव भी फिल्म में कराया जाए। नौशाद की दृष्टि विख्यात गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पर थी, किन्तु फिल्म में गाने के लिए उन्हें मनाना सरल नहीं था। पहले तो खाँ साहब ने फिल्म में गाने से साफ मना कर दिया, परन्तु जब दबाव बढ़ा तो टालने के इरादे से, एक गीत के लिए 25 हजार रुपये की माँग की। खाँ साहब ने सोचा कि एक गीत के लिए इतनी बड़ी धनराशि देने के लिए निर्माता तैयार नहीं होंगे। यह उस समय की एक बड़ी धनराशि थी, परन्तु के. आसिफ ने तत्काल हामी भर दी। नौशाद ने शकील बदायूनी से प्रसंग के अनुकूल गीत लिखने को कहा। गीत तैयार हो जाने पर नौशाद ने खाँ साहब को गीत सौंप दिया। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने ठुमरी अंग की गायकी में अधिक प्रयोग किए जाने वाले राग सोहनी, दीपचन्दी ताल में निबद्ध कर गीत- ‘प्रेम जोगन बन के...’ को रिकार्ड कराया। रिकार्डिंग से पहले खाँ साहब ने वह दृश्य देखने की इच्छा भी जताई, जिस पर इस गीत को शामिल करना था। मधुबाला और दिलीप कुमार के उन प्रसंगों को देख कर उन्होने अपने गायन में कुछ परिवर्तन भी किये। इस प्रकार भारतीय फिल्म-संगीत-इतिहास में राग सोहनी के स्वरों में ढला एक अनूठा गीत शामिल हुआ। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग सोहनी के स्वरों में पिरोया यह गीत नौशाद और के. आसिफ को इतना पसन्द आया कि उन्होने खाँ साहब को दोबारा 25 हजार रुपये भेंट करते हुए एक और गीत गाने का अनुरोध किया। खाँ साहब का फिल्म में राग रागेश्री, तीनताल में निबद्ध दूसरा गीत गाया - ‘शुभ दिन आयो राजदुलारा...’। ये दोनों गीत फिल्म संगीत के इतिहास के सर्वाधिक उल्लेखनीय किन्तु सबसे खर्चीले गीत सिद्ध हुए। लीजिए, आप उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग सोहनी के स्वरों में ढला यह गीत सुनिए।

राग सोहनी : ‘प्रेम जोगन बन के...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ : फिल्म – मुगल-ए-आजम


पण्डित  उल्हास  कशालकर 
राग सोहनी मारवा थाट का बेहद लोकप्रिय राग है। सुप्रसिद्ध मयूरवीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने राग सोहनी के बारे में बताया कि राग सोहनी का प्रयोग खयाल और ठुमरी, दोनों प्रकार की गायकी में किया जाता है। ठुमरी अंग में इस राग का प्रयोग अधिक होता है। इस राग का प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है। पहले प्रकार, औडव-षाड़व जाति के अन्तर्गत आरोह में ऋषभ और पंचम तथा अवरोह में पंचम का प्रयोग नहीं किया जाता। राग के दूसरे स्वरूप के आरोह में ऋषभ और अवरोह में पंचम का प्रयोग नहीं होता। राग सोहनी में उन्हीं स्वरों का प्रयोग होता है, जिनका राग पूरिया और मारवा में भी किया जाता है। किन्तु इसके प्रभाव और भावाभिव्यक्ति में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। राग सोहनी का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गान्धार होता है। धैवत पीड़ा की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होता है। ‘नी सां रे(कोमल) सां’ की स्वर संगति से तीव्र पुकार का वातावरण निर्मित होता है। संवादी गान्धार कुछ देर के लिए इस उत्तेजना को शान्त कर सुकून देता है। वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग के प्राणतत्त्व होते हैं, जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। रात्रि के तीसरे प्रहर में राग सोहनी के भाव अधिक स्पष्ट होते हैं। इस राग में मींड़ एवं गमक को कसे हुए ढंग से मध्यलय में प्रस्तुत करने से राग का भाव अधिक मुखरित होता है। यह चंचल प्रवृत्ति का राग है। श्रृंगार के विरह पक्ष की सार्थक अनुभूति कराने में यह राग समर्थ है। राग सोहनी, कर्नाटक संगीत के राग हंसनन्दी के समतुल्य है। यदि राग हंसनन्दी में शुद्ध ऋषभ का प्रयोग किया जाए तो यह ठुमरी अंग के राग सोहनी की अनुभूति कराता है। तंत्रवाद्य पर राग मारवा, पूरिया और सोहनी का वादन अपेक्षाकृत कम किया जाता है। अब हम आपको राग मारवा के यथार्थ शास्त्रीय स्वरूप की अनुभूति कराने के लिए सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित उल्हास कशालकर के स्वर में राग सोहनी में निबद्ध दो खयाल रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। मध्यलय खयाल के बोल हैं – “जियरा रे कल नाहि पावे....” और द्रुतलय खयाल के बोल हैं – “देख वेख मन ललचाए...”। यह रिकार्डिंग हमें लखनऊ की सुप्रसिद्ध संगीत संस्था ‘आकर्षण’ के सौजन्य से प्राप्त हुई है। इस संस्था ने 2007 में प्रोफेसर कृष्णकुमार कपूर की स्मृति में आयोजित संगीत सभा में पण्डित उल्हास कशालकर को आमंत्रित किया था। आप राग सोहनी के खयाल सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग सोहनी : “जियरा रे...” और “देख वेख मन ललचाए...” पण्डित उल्हास कशालकर




संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 296वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1960 में प्रदर्शित राग आधारित गीतों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हिन्दी फिल्म के एक गीत का अंश सुनवाते हैं। इस गीत के अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 297वें अंक की पहेली का उत्तर सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पाँचवीं श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। नये वर्ष 2017 के पहले और दूसरे अंक में हम वर्ष के महाविजेताओं की घोषणा करेंगे।






1 – गीत का यह अंश सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?

2 – गीत के इस अंश में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए।

3 – क्या आप इस पार्श्वगायक की आवाज़ को पहचान सकते हैं? हमे उनका नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर इस प्रकार भेजें कि हमें शनिवार, 17 दिसम्बर 2016 की मध्यरात्रि से पूर्व तक अवश्य प्राप्त हो जाए। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर भेजने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। इस पहेली के विजेताओं के नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 298वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रकाशित और प्रसारित गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ क्रमांक 294 की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मदर इण्डिया’ से एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछा था। आपको इनमें से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – खमाज, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायक – मन्ना डे

इस बार की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागियों में से वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। आप सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की हार्दिक बधाई। 


अपनी बात

मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर अपने सैकड़ों पाठकों के अनुरोध पर जारी लघु श्रृंखला “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” के आज के अंक में आपने राग सोहनी के स्वरों में पिरोये एक गीत और खयाल का रसास्वादन किया। इस श्रृंखला के लिए हमने संगीतकार नौशाद के आरम्भिक दो दशकों की फिल्मों के गीत चुने हैं। श्रृंखला के आलेख को तैयार करने के लिए हमने फिल्म संगीत के जाने-माने इतिहासकार और हमारे सहयोगी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग लिया है। गीतों के चयन के लिए हमने अपने पाठकों की फरमाइश का ध्यान रखा है। यदि आप भी किसी राग, गीत अथवा कलाकार को सुनना चाहते हों तो अपना आलेख या गीत हमें शीघ्र भेज दें। हम आपकी फरमाइश पूर्ण करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। आपको हमारी यह श्रृंखला कैसी लगी? हमें ई-मेल swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले रविवार को एक नए अंक के साथ प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीतानुरागियों का हम स्वागत करेंगे।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  
यो प्लेबैक इण्डिया 

Comments

Unknown said…
क्रीष्णमोहनजी, आपने नौशाद, बडे गुलाम अलीखां के बारेमें बहुत रसप्रद बातें कह दी। खांसाबकी कहानी की तो बात ही कमाल है कैसे उनसे दो गाने फील्मके लिये गानेसे मंजुर किया। पं. उल्हास कशालकरजी का गाया राग सोहनी बहुत पसंद आया।
आप और आपके सहयोगी सुजाॅय चेटर्जीका भी बहुत धन्यवाद।

विजया राजकोटिया

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