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वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-2)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला

2016 का फ़िल्म-संगीत  
भाग-2





रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। अगले पाँच सप्ताह, हर शनिवार हम आपके लिए लेकर आएँगे वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। आइए इस लघु श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज चर्चा करते हैं उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए मार्च और अप्रैल के महीनों में।


2016 के हिन्दी फ़िल्म गीत समीक्षा की पहली कड़ी आकर पिछले सप्ताह रुकी थी ’बॉलीवूड
डायरीज़’ पर। मार्च का महीना शुरु हुआ फ़िल्म ’ज़ुबान’ से। इस फ़िल्म में तीन संगीतकार थे - आशु पाठक, मनराज पातर और इश्क बेक्टर। वरुण ग्रोवर और आशु पाठक का लिखा रशेल वरगीज़ का गीत "म्युज़िक इज़ माइ आर्ट" पाश्चात्य रंग के साथ थिरकाने वाला होने के बावजूद कर्णप्रिय है। इसी तिकड़ी का फ़िल्म का शीर्षक गीत "ध्रुवतारा" बिल्कुल अलग ही रंग का है जिसमें फ़्युज़न का रंग शामिल है, रशेल के साथ कीर्ति सरगठिया की आवाज़ है। फ़िल्मकार प्रकाश झा ’गंगाजल’ के बाद इस साल लेकर आए ’जय गंगाजल’। संगीतकार सलीम-सुलेमान और गीतकार मनोज मुन्तशिर और स्वयं प्रकाश झा के ऐल्बम में आवाज़ों की कई विविधताएँ सुनने को मिली। प्रवेश मल्लिक के गाये दो गीत - "माया ठगनी" और "धीरे धीरे" लीक से हट कर हैं। लोक-शैली की गायिकी दोनों गीतों में नज़र आई। सुखविन्दर सिंह का गाया "टेटुआ दबोच लेंगे" को सुन कर "चक दे इण्डिया" गीत की याद आई। लोक-शैली आधारित "जोगनिया नाचे बीच बजार" में बहुत दिनों बाद उदित नारायण की आवाज़ सुन कर अच्छा लगा, लेकिन इस गीत के लिए उदित जी की आवाज़ की कौन सी आवश्यक्ता थी समझ नहीं आया। कीर्ति सरगथिया का गाया "घनघोर घनन घनन" में भी ’लगान’ के "घनन घनन" और "बार बार हाँ" जैसे गीतों की छाया महसूस की जा सकती है। रीचा शर्मा की आवाज़ में मुजरा "नजर तोरी राजा बड़ी बेइमान रे" को "नजर लागी राजा तोरे बंगले पर" का आधुनिक रूप कहा जा सकता है। दिव्य कुमार की आवाज़ में "बिनु बादर बिजुरी कहाँ रे चमके" इन्हीं बोलों के मूल लोक-गीत पर आधारित है। डिस्को किंग् बप्पी लाहिड़ी की आवाज़ भी सुनाई दी इस ऐल्बम में, "सनके है सन सन बयरिया" में यूपी के लोक और पाश्चात्य संगीत का फ़्युज़न है, मज़ा नहीं आया! लेकिन सुगंधा दाते का गाया "माई री सुन ले माई" ही ऐल्बम का दिल को छूने वाला गीत है; बोल, संगीत और गायिकी, हर दृष्टि से बेहद कर्णप्रिय और सुकूनदायक रचना है। और सारंगी के इन्टरल्यूड्स ने भी गीत का स्तर बढ़ाया है। ऐल्बम के अन्तिम गीत के रूप में कबीरदास के विचार वाले "आँख खुले तो सब धन माटी" के दो संस्करण हैं - अरिजीत सिंह और अमृता फडनविस के। यह भी एक सुन्दर रचना है जिसने इस ऐल्बम के स्तर को बढ़ाने में मदद की है। "ना काहुं से दोस्ती, ना काहुं से बैर, तन्त्र मन्त्र के फेर क़िस्मत बनी रखैल" जैसे दोहे के बोलों से ही शुरु होने वाला ’ग्लोबल बाबा’ फ़िल्म का पहला गीत "बाबायोग" सुन कर फ़िल्म के अन्य गीतों के बारे में भी धारणा बन जाती है। रिपुल शर्मा, ऐग्नल जोसेफ़ और फ़ैज़न हुसैन, अर्थात् अमर-अकबर-ऐन्थनी के होते हुए भी यह ऐल्बम कोई कमाल नहीं दिखा सकी। अब कौन इन्हें समझाये कि बस "मौला" शब्द के होने से ही गीत हिट नहीं होने वाला! इस फ़िल्म में एक होली गीत भी है "होली में उड़े है गुलाल" सोना महापात्र और केसरी लाला यादव का गाया, लेकिन यह गीत भी कोई कमाल करने में असमर्थ रही।

हिमेश रेशम्मिया के अभिनय और संगीत से सजी फ़िल्म आई ’तेरा सुरूर’। लेकिन हैरानी की बात
है रही कि इस फ़िल्म के गीतों को उन्होंने ख़ुद नहीं गाया बल्कि अरिजीत सिंह, दर्शन रावल और ॠतुराज मोहन्ती जैसे गायकों से गवाया। उनकी आवाज़ बस दो गीतों में सुनाई दी। दर्शन की आवाज़ में "मैं वह चाँद जिसका तेरे बिन न कोई आसमाँ" और "बेख़ुदी मेरे दिल पे ऐसे छायी" में हिमेश का मोहर लगा हुआ है; पर दर्शन ने "बेख़ुदी" को "बेखुदी" और "ख़ुदाई" को "खुदाई" क्यों गाया समझ नहीं आया। अरिजीत की आवाज़ में "वफ़ा ने बेवफ़ाई की है" ने पिछले दो गीतों से अलग कुछ नहीं महसूस कराया। ॠतुराज मोहन्ती की आवाज़ में रॉक शैली में निबद्ध "अधूरी ज़िन्दगी है तू कर दे मुकम्मल" आज की पीढ़ी को ज़रूर भाएगी। हिमेश की आवाज़ में "तेरी याद" तो जैसे "आशिक़ बनाया आपने पार्ट टू" है। कनिका कपूर के साथ हिमेश का गाया "इश्क़ समुन्दर" गीत पल्ले नहीं पड़ा। सुनिधि चौहान और आनन्द राज आनन्द के गाए फ़िल्म ’काँटे’ का मूल गीत इतना लोकप्रिय है कि इसका रीमेक करना ख़तरे से खेलना है। बी-ग्रेड ऐडल्ट फ़िल्मों की श्रेणी में एक और फ़िल्म जुड़ी मार्च के महीने में, शीर्षक ’ओके में धोखे’। फ़िल्म के कुल छह गीतों में स्मिता अधिकारी और सावन हुसैन का गाया "मैं नशा हूँ नशा, नशे में तू झूम ले" गायन की दृष्टि से अच्छा गीत है, बोलों पर ज़्यादा ग़ौर न फ़रमाइएगा। फ़िल्म के संगीतकार हैं बाबा जागिरदार। मार्च की अन्तिम दो फ़िल्में बड़ी फ़िल्में रहीं। सिद्धार्थ कपूर - आलिआ भट्ट अभिनीत ’कपूर ऐण्ड सन्स’ में कई संगीतकार और गीतकार शामिल किए गए हैं। लेकिन जो उल्लेखनीय है वह है डॉ. देवेन्द्र काफ़िर का लिखा और तनिश्क बागची का स्वरवद्ध किया अरिजीत सिंह व असीस कौर का गाया गीत "बोलना"। आलिआ भट्ट की पिछले साल की फ़िल्म के गीत "मैं तनु समझावाँ" से इस गीत की समानता होते हुए भी अलग है और अच्छा भी। अमाल मलिक द्वारा स्वरबद्ध और गाया गीत "बुद्धू सा मन" में एक ताज़गी है। यह देख कर अच्छा लगता है कि सरदार मलिक और डबू मलिक के व्यावसायिक सफलता ना पाने के बाद तीसरी पीढ़ी के दो भाई बहुत नाम कमा रहे हैं। और इस महीने की अन्तिम फ़िल्म के रूप में प्रदर्शित हुई ’रॉकी हैण्डसम’। सनी बावरा, इन्दर बावरा और अंकित तिवारी फ़िल्म के संगीतकार हैं। अंकित ने केवल एक ही गीत को स्वरबद्ध किया है, "तू मेरे अलफ़ाज़ों की तरह", जिसे उन्होंने ख़ुद ही गाया है। कुल मिलाकर एक अच्छा गीत रहा। फ़िल्म के अन्य गीतों में श्रेया घोषाल और इन्दर बावरा का गाया "रहनुमा" में श्रेया की आवाज़ बिलकुल सुनाई दी, अच्छा प्रयोग रहा उनकी आवाज़ को लेकर। श्रेया और राहत फ़तेह अली ख़ान का गाया "ऐ ख़ुदा" कम साज़ों के इस्तमाल वाला कोमल दर्दभरा गीत रहा। और सुनिधि चौहान से "तितलियाँ" गवाने का कोई अर्थ नहीं था, यह किसी नई गायिका से भी गवाया जा सकता था।


अप्रैल का महीना शुरु हुआ फ़िल्म ’कि ऐण्ड का’ से जिसने बॉक्स ऑफ़िस पर ज़्यादा कमाल तो नहीं
दिखा सकी, पर इसके गीत-संगीत की चर्चा ज़रूरी है। वरिष्ठ गीतकार सईद क़ादरी का लिखा और मिथुन का स्वरबद्ध व गाया “मोहब्बत है यह जी हुज़ूरी नहीं” गीत बहुत कामयाब रहा। मोहब्बत के साथ जी हुज़ूरी का पहली बार इस्तमाल फ़िल्म गीतों में एक नया व सुखद प्रयोग सिद्ध हुआ। फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक आर. बाल्की, जिनके साथ संगीतकार इलैयाराजा का लम्बा साथ रहा है, इस फ़िल्म में भी एक गीत में इलैयाराजा का संगीत सुनाई दिया – “फ़ूलिश्क़ फ़ूलिश्क़ तेरा मेरा” जिसमें श्रेया घोषाल और अरमान मलिक की आवाज़ें हैं और जिसे अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा है, पर इलैयाराजा कोई नई बात इस गीत में नहीं ला सके। फ़िल्म का पार्श्वसंगीत भी इलैयाराजा ने ही तैयार किया है। फ़िल्म के बाक़ी के चार गीत फ़ूट तैपरिंग्‍पार्टी नंबर्स हैं जिन्हें कुमार ने लिखा है और मीत ब्रदर्स अनजान ने स्वरबद्ध किया है। “मोस्ट वान्टेड मुंडा...” के दो संस्करण हैं – पहले में मीत ब्रदर्स अनजान और अर्ल एडगर की आवाज़ें हैं जबकि दूसरे में मीत बरदर्स अनजान के साथ पलक मुछाल और अर्जुन कपूर की आवाज़ें हैं। “पम्प इट...” में मीत बरदर्स अनजान और यश नर्वेकर ने जिम में वर्काउट करने वाले दृश्य को साकार किया है। पर जिस गीत ने सबसे ज़्यादा धूम मचाई वह है यो यो हनी सिंह, अदिति सिंह शर्मा और जैज़ धमी का गाया “हाइ हील दे नच्चे ते तू बड़े जच्चे”। ’नील बट्टे सन्नाटा’ एक ऐसी फ़िल्म रही जो एक कम बजट फ़िल्म खोने के बावजूद दर्शकों की ख़ूब  वाह-वाही लूटी। गणित और माँ-बेटी के रिश्ते के इर्दगिर्द घूमती इस कहानी ने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। गीत-संगीत की बात करें तो नओदित संगीतकार रोहण और विनायक ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए नितेश तिवारी, मनोज यादव और श्रेयस जैन के लिखे गीतों को कम्पोज़ किया, जिनमें मोहन कन्नन का गाया “माँ” (जिसका एक हरिहरण का गाया संस्करण भी है) दिल को छू जाती है। कहीं न कहीं इस गीत में “मेरी माँ, प्यारी माँ” और “मैं कभी बतलाता नहीं” जैसे गीतों की झलक मिलती है। 22 अप्रैल को ही एक और फ़िल्म आई ’लाल रंग’ जिसमें संगीत था शिराज़ उप्पल, मैथियस डुप्लेसी, विपिन पतवा का। फ़िल्म नहीं चली और ना ही इसके गानें गूंजे, पर गाने मेलडी-प्रधान रहे। शकील सोहैल का लिखा तथा काशिफ़ अली व शिराज़ उप्पल का गाया “तुझमें लगा है मेरा मन मेरा मन” एक नर्म रुमानीयत से लवरेज़ नग़मा है जो सुकून देता है। कौसर मुनीर का लिखा व मुख़तियार अली और समीर ख़ान का गाया “ऐ ख़ुदा तुझको ख़ुद से मिलाने चला मैं” भी एक अलग ही माहौल बनाता है। विकास कुमार का लिखा व गाया पंजाबी गीत “खर्च करोड़” में संगीतकार विपिन पतवा ने मेलडी और दर्द कूट-कूट कर भरा है। समीर ख़ान का गाया “लाली, दिल से मैंने चुरा ली” गीत संगीत-संयोजन की वजह से अनोखा बन पड़ा है, साथ ही समीर ख़ान की अदायगी ने भी गीत में कशिश भरा है।

विक्रम भट्ट एक ऐसे फ़िल्मकार हैं जो बोल्ड और हॉरर फ़िल्मों के निर्माण के लिए जाने जाते रहे हैं।
2016 में उनकी दो फ़िल्में आईं – अप्रैल में ’लव गेम्स’ और सितंबर में ’राज़ रीबूट’। ’लव गेम्स’ एक थ्रिलर फ़िल्म रही जो कामुक और बोल्ड दृश्यों के लिए चर्चा में रही। फ़िल्म चाहे जैसी भी हो, विक्रम भट्ट के फ़िल्मों का संगीत मेलोडी-प्रधान होता आया है। संगीतकार जोड़ी संगीत-सिद्धार्थ जो 2009 से एक बड़ी फ़िल्म की प्रतीक्षा कर रहे थे, उनका सपना साकार हुआ इस फ़िल्म में जब उन्हें फ़िल्म के सभी गीतों को कम्पोज़ करने का मौका मिला। कौसर मुनीर के लिखे पाँच हिन्दी और विक्रम भट्ट के लिखे दो अंग्रेज़ी गीतों से सजा यह ऐल्बम फ़िल्म को बचा नहीं सके। फ़िल्म के गानों में कई नई आवाज़े ली गईं जैसे कि संगीत हल्दीपुर, सिद्धार्थ हल्दीपुर, रसिका शेखर, आँचल श्रिवास्तव, मोहन कन्नन, सोनिया सहगल, रवीन्द्र चरी। सुनिधि चौहान की आवाज़ एक गीत में गूंजी पर कुछ ख़ास असर नहीं कर सकी। कुल मिला कर एक साधारण ऐल्बम और फ़िल्म भी बकवास!! 8 अप्रैल को ’लव गेम्स’ के साथ एक और फ़िल्म रिलीज़ हुई थी ’The Blueberry Hunt’। नसीरुद्दीन शाह अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत परेश कामत और नरेश कामत का था। फ़िल्म तो कब आई और कब गई पता भी नहीं लगा, पर इस फ़िल्म के गीतों में ख़ास बात है। कीर्ति किलेदार की आवाज़ में “ज़रा ज़रा” और “जाने कहाँ हो गए तुम गुम” जैसे गीतों में लोक-शैली झलकती है और सारंगी और अन्य भारतीय साज़ों की ताने गीतों को और सुरीला बनाती हैं। तत्व कुंडलिनी की आवाज़ शास्त्रीय शैली में “सजनवा, कैसी ख़ुमारी छायी बलमवा” और पाश्चात्य रंग लिए “पफ़ दि नाइट अवे” अनूठी रचनाएँ हैं। 15 अप्रैल को प्रदर्शित हुई शाहरुख़ ख़ान अभिनीत फ़िल्म ’फ़ैन’ जिसे अच्छी रिव्यु मिली। इस फ़िल्म के गीतों की ख़ासियत यह है कि फ़िल्म में केवल एक ही गीत है, पर आठ अलग अलग भाषाओं में। हिन्दी में “जबरा फ़ैन”, जिसे नकश अज़ीज़ ने गाया, ने काफ़ी धूम मचाई। वरुण ग्रोवर के लिखे और विशाल-शेखर द्वारा स्वरबद्ध इस गीत ने लोकप्रियता के झंडे गाढ़े। पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती, बांगला, मराठी, तमिल और ओड़िया में भी यह गीत बना जिसे प्रादेशिक कलाकारों ने गाए।

29 अप्रैल को प्रदर्शित टाइगर श्रॉफ़ अभिनीत ’बाग़ी’ में पाँच गीत हैं चार अलग-अलग संगीतकारों के। अमाल मलिक के संगीत में अरमान मलिक और श्रद्धा कपूर का गाया “सब तेरा” गीत वैसे तो कर्णप्रिय है लेकिन इस गीत में इसी वर्ष अमाल मलिक के ’एअरलिफ़्ट’ फ़िल्म के लिए बनाए हुए गीत “तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है...” से बहुत ज़्यादा समानता है, इसलिए इस गीत में कोई नई बात नज़र नहीं आयी। ’बाग़ी’ में अमाल-अरमान का बस यही एक गीत है। मंज म्युज़िक के संगीत में “Lets talk about love” में कोई ख़ास बात नहीं है। मीत ब्रदर्स के दो गीत हैं, पहला – “Girl I need you” को अरिजीत सिंह और मीत ब्रदर्स की आवाज़ों के कॉनट्रस्ट ने ख़ूबसूरत जामा पहनाया है। मीत ब्रदर्स के संगीत में दूसरा गीत है “छम छम छम” जिसे मोनाली ठाकुर की आवाज़ ने सुरीला जामा पहनाया है – कुल मिला कर अच्छा नृत्य गीत। ऐल्बम का अन्तिम गीत है अंकित तिवारी के संगीत और उन्हीं की आवाज़ में – “अगर तू होता न रोते हम”। उनकी वही शैली, उनका वही अंदाज़। वही ’आशिक़ी 2’ के उनके “सुन रहा है न तू, रो रहा हूँ मैं” वाली बात! 29 अप्रैल को ही ’शॉर्टकट सफ़ारी’ फ़िल्म प्रदर्शित हुई जिसमें पाँच अलग तरह के गीत रहे और एक विविधता से भरा ऐल्बम बना। समीर-मना के संगीत में शान का गाया “सपनों से भरा पिग्गी बैंक” एक ख़ुशनुमा थिरकता गीत है जो बच्चों पर फ़िल्माया गया है। कुछ कुछ ’तारे ज़मीं पर’ के शान के ही गाए “बम बम बोले” का अंदाज़ महसूस हुआ इस गीत में। गायिका साधना सरगम और बाल कलाकार अत्रेयी भट्टाचार्य की आवाज़ों में “एक धरा के जन गण” जिसे रोहित शर्मा ने लिखा व स्वरबद्ध किया है बिना रीदम वाला गीत है जिसकी गायन शैली लीक से हट कर है। “बको सुफ़ु”, “ज़ोर लगा दे” और “डिप डिप डर” कुछ और गीत हैं जो इस ऐल्बम को तड़का लगाते हैं। यह फ़िल्म दरसल एक ऐडवेन्चर फ़िल्म है जिसमें कुछ स्कूली छात्र एक घने जंगल में भटक जाते हैं। कहानी को ध्यान में रखते हुए गीतों की शैली व बोल सटीक हैं।

तो दोस्तों, ये था 2016 के मार्च और अप्रैल के महीनों में प्रदर्शित हिन्दी फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। अगले सप्ताह इसी स्तंभ में हम 2016 के गीतों की चर्चा जारी रखेंगे। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को दीजिए अनुमति, नमस्कार!



खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी  

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