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"मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ...”, इस गीत का मुखड़ा हसरत जयपुरी ने नहीं बल्कि जयकिशन ने लिखा था।


एक गीत सौ कहानियाँ - 98
 

'मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ...' 



रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'| इसकी 98-वीं कड़ी में आज जानिए 1969 की फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ के मशहूर गीत "मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता...” के बारे में जिसे मोहम्मद रफ़ी ने गाया था। बोल हसरत जयपुरी के और संगीत शंकर-जयकिशन का।  

1968 में शंकर जयकिशन को भारत सरकार द्वारा प्रदत्त पद्मश्री पुरस्कार से समानित किए
From right to left - Rajaram, a guest, Satish Wagle, O P Ralhan, Dharmendra, Jaikshan, Bhappi Soni (in goggles) 
जाने की घोषणा हुई। इस वर्ष फ़िल्म और संगीत के क्षेत्र में जिन कलाकारों को यह सम्मान दिया गया था उनमें शामिल थे बेगम अख़तर, सुनिल दत्त, दुर्गा खोटे, एन. टी. रामाराव, और वैजयन्तीमाला। उन्हीं दिनों फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ की प्लानिंग चल रही थी। फ़िल्म के निर्माता थे सतीश वागले और राजाराम। निर्देशक थे भप्पी सोनी और संगीत निर्देशक थे शंकर-जयकिशन। पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करने शंकर-जयकिशन और इसी फ़िल्म की नायिका वैजयन्तीमाला दिल्ली पहुँच गए। तो साथ में सतीश वागले भी दिल्ली चले आए। वागले साहब शंकर-जयकिशन के साथ ही ओबरोय होटल में रुके थे। फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ की कहानी जयकिशन सुन चुके थे और उन्हें पता थी कि फ़िल्म में नायक की भूमिका में धर्मेन्द्र का नाम विजय और नायिका वैजयन्तीमाला का नाम कविता है। “कविता” नाम जयकिशन के मन-मस्तिष्क पर जैसे छा गया था और अंजाने में ही इस नाम का जाप उनके मन में चल रहा था। और इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही समय के अन्दर “कविता” पर एक पंक्ति उनके दिमाग़ में आ गया। सुबह नाशते के समय जयकिशन गुनगुना रहे थे, केवन धुन ही नहीं बल्कि शब्दों के साथ कुछ गुनगुना रहे थे। वो गुनगुना रहे थे “मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता”। सतीश वागले को धुन भी पसन्द आई और बोल भी बहुत भा गए। वो जयकिशन से बोले कि यह तो कमाल का गाना है यार! जयकिशन ने कहा कि धुन भी मेरी है और बोल भी मेरे ही हैं। अगर आपको पसन्द है तो यह तोहफ़ा है आपके लिए मेरी तरफ़ से, यह आपकी फ़िल्म का एक गाना होगा। और वापस पहुँचते ही हम इसे रेकॉर्ड करेंगे। बम्बई पहुँच कर हसरत जयपुरी साहब से अन्तरे लिखवा कर गाना पूरा करवाया गया। हसरत जयपुरी ने मुखड़े को ज़रा सा भी नहीं छेड़ा और ना ही कोई दूसरी लाइन जोड़ी। जैसा जयकिशन ने लिखा था “मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता”, वैसा ही ज्यों का त्यों रखा गया मुखड़ा। यही नहीं अन्तरे से मुखड़े पर आने वाला कनेक्टिंग्‍लाइन भी नहीं रखा गया। सीधे सीधे तीन अन्तरे लिख डाले –

“तुझे दिल के आइने में मैंने बार बार देखा,
तेरी अखड़ियों में देखा तो झलकता प्यार देखा,
तेरा तीर मैंने देखा तो जिगर के पार देखा”;

“तेरा रंग है सलौना तेरे अंग में लचक है,
तेरी बात में है जादू तेरे बोल में खनक है,
तेरी हर अदा मोहब्बत तू ज़मीन की धनक है”;

“मेरा दिल लुभा रहा है तेरा रूप सादा सादा,
ये झुकी झुकी निगाहें करे प्यार दिल में ज़्यादा,
मैं तुझ ही पे जान दूँगा है यही मेरा इरादा।“

Jaikishan & Rafi
रफी साहब की आवाज़ में गाना रेकार्ड हो गया। पर एक समस्या आ गई। 'प्यार ही प्यार' फिल्म के निर्माता, यानी सतीश वागले साहब के पार्टनर राजाराम जी को गाना ज़रा सा भी पसन्द नहीं आया। और तो और फ़िल्म के वितरक ताराचन्द बरजात्या ने भी गाने को सीधा रीजेक्ट कर दिया और इस मुद्दे पर कोई भी बहस करने से मना कर दिया। सतीश वागले को बहुत बुरा लगा। उड़ते-उड़ते ख़बर जयकिशन के कानों तक भी पहुँच ही गई कि गाना कई लोगों को बेकार लगा है। जयकिशन जी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ताराचन्द बरजात्या ने ’दाग़’ फ़िल्म के गाने को भी रीजेक्ट कर दिया था, पर वही गाना जो उन्होंने रीजेक्ट किया था आज भी लोगों को याद है, और वह गाना था “ऐ मेरे दिल कहीं और चल, ग़म की दुनिया से जी भर गया”। जयकिशन ने यह भी कहा कि बरजात्या को संगीत की कोई समझ नहीं है, इसलिए मेरी बात मानो, गाना अच्छा है और ख़ूब चलेगा। लिहाज़ा जयकिशन की बात मान ली गई और जो बात मान ली गई थी वह सच भी हो गई। आज भी यह गाना फ़िल्म के बाक़ी गीतों से ज़्यादा याद किया जाता है। 




अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 



आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 









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