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तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 09: अरशद वारसी


तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 09
 
अरशद वारसी 




’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक केन्द्रित है फ़िल्म जगत सुप्रसिद्ध अभिनेता अरशद वारसी पर।
  

रशद वारसी आज एक सफल अभिनेता हैं, उनका जन्म भी एक अच्छे खासे खाते-पीते परिवार में हुआ। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि वो बिल्कुल सड़क पर आ गए? और उस सड़क से वापस महल तक कैसे पहुँचे, यही है अरशद वारसी की कहानी जिसे आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं। अरशद वारसी के पिता अहमद अली ख़ान वारसी एक बहुत अच्छे शायर और गायक थे और उनका फ़िल्म जगत के लोगों के साथ भी थोड़ा-बहुत उठना बैठना था। वो इतने दयालु क़िस्म के इंसान थे कि वो अपने दोस्तों को कीमती उपहार दे दिया करते थे, यहाँ तक कि गाड़ियाँ तक वो किसी को उपहार में दे देते थे। इससे उनकी सशक्त आर्थिक अवस्था का पता चलता है। लेकिन अच्छे वक़्त में बहुत कम लोगों को यह ख़याल रहता है कि समय बदलते देर नहीं लगती। अहमद अली के बम्बई के ग्रान्ट रोड पर दो इमारतें हुआ करती थीं जो कानून की वजह से उनके हाथ से निकल गईं और उनमें जो फ़्लैट्स थे वो किरायेदारों के नाम हो गईं। जुहु में उनका एक बंगला था, वो भी कोर्ट केस में उनसे छिन गई। इससे उन्हें बहुत बड़ा धक्का पहुँचा। अरशद उस समय कुछ आठ बरस के रहे होंगे जब उन्हें देवलाली के एक बोर्डिंग् स्कूल में भेज दिया गया और केवल छुट्टियों में ही वो घर आते थे। अरशद के बचपन की यह विडम्बना ही कहेंगे कि उन्हें अपने माता-पिता के साथ ज़्यादा समय बिताने को नहीं मिला। साल में केवल दो बार वो घर आते, और छुट्टियाँ ख़त्म होते ही बोर्डिंग् स्कूल लौट जाते। बचपन की यादों में अरशद को ज़्यादा अपने दोस्त और सहपाठी ही याद आते हैं माता-पिता की बजाय। नौ साल की उम्र में अरशद को हज़ारों छात्रों में से चुना गया ग्रेट ब्रिटेन जाकर विश्वस्तरीय जिमनास्ट बनने की ट्रेनिंग् के लिए, पर उनके पिता ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी। इससे माता-पिता और पुत्र के बीच का फ़ासला और भी बढ़ गया। अरशद अपने माँ-बाप से दूर दूर रहने लगे। अरशद के कोमल मन पर यह बात घर कर गई कि उनके माता-पिता उनसे प्यार नहीं करते। धीरे-धीरे आलम ऐसा हुआ कि अरशद के माता-पिता को उनकी छुट्टियाँ भी याद नहीं रहती थीं और स्कूल को बेटे को जाने आने की अनुमति हेतु पत्र लिखना पड़ता है उससे वो चूक जाया करते, जिस वजह से स्कूल अरशद को घर जाने की अनुमति नहीं देते। एक बच्चे के लिए इससे अफ़सोस जनक बात और क्या हो सकती कि वो अपने आप को ख़ुद ही चिट्ठियाँ लिख कर किसी को कह देते कि शहर जाकर इन्हें वापस उन्हें ही पोस्ट कर दे। जब होस्टल अधिकारियों को इस बात का पता चला तो वो सब अरशद के बहुत करीब आ गए और उन्हें होस्टल में ही घर जैसा माहौल देने की कोशिश करने लगे।


यहाँ तक माता-पिता से सीधे सम्पर्क में ना रहते हुए भी अरशद की ज़िन्दगी वैसे ठीक-ठाक ही चल रही थी। इससे भी दर्दनाक हादसा तो अभी बाक़ी था। 18 वर्ष की उम्र एक लड़के के भविष्य के लिए क्या होती है यह विस्तार में बताना ज़रूरी नहीं। तो अरशद के 18 वर्ष की आयु में उनके पिता का हड्डी के कैन्सर के कारण देखान्त हो गया। उनकी माँ इसके दो साल के अन्दर ही किडनी ख़राब हो जाने के कारण चल बसीं। मन से पहले से ही अनाथ अरशद अब औपचारिक तौर पर अनाथ हो गया। 16 वर्ष की आयु में ही किसी तरह से दसवीं पास करने के बाद अरशद की पढ़ाई छूट गई क्योंकि माता-पिता के इलाज में पैसे पानी की तरह बह रहे थे। घर-बार सब छिन गया, और वो लोग एक कमरे में स्थानान्तरित हो गए। अरशद को धीर धीरे अपनी दुनिया उजड़ती दिख रही थी। वो काम करने लगा जब उसके मित्र बारहवीं और आगे की पढ़ाई और करीअर के सपने देख रहे थे। और काम भी क्या, घर-घर जाकर सौन्दर्य-प्रसाधन बेचना। फिर उन्होंने क्या क्या काम नहीं किए, फ़ोटो लैब में काम किया, महेश भट्ट को ’काश’ और ’ठिकाना’ जैसी फ़िल्मों में ऐसिस्ट किया, अकबर सामी के डान्स ग्रूप से भी जुड़े। उन्हें अहसास हुआ कि नृत्य में उनकी रुचि है, इसलिए उन्होंने नृत्य-निर्देशक बनने की सोची। ऐलीक़ पदमसी और भरत दाभोलकर के नृत्य-नाटिकाओं को निर्देशित करके जो कुछ पैसे मिलते उनसे वो अपनी माँ का डायलाइसिस करवाते। माँ की मृत्यु के बाद अपने भाई के साथ वो एक छोटे फ़्लैट में रहने लगे जो इतना छोटा था कि कमरे में दोनों हाथों से दो दीवारों को छुआ जा सकता है।

अरशद वारसी ने हार नहीं मानी और हमेशा यह जसबा कायम रखा कि यह वक़्त भी गुज़र जाएगा। और एक दिन आया जब जॉय ऑगस्टीन उनके घर आकर सूचित किया कि वो उनके लोगों का मनोरंजन करवाने की क्षमता को देखते हुए उन्हे एक फ़िल्म में कास्ट करना चाहते हैं। नृत्य में शौकीन अरशद ने मना कर दिया, पर जब जया बच्चन का सीधे उनके पास फ़ोन आ गया तो अरशद के हाथ-पाँव फूल गए। और इस तरह से अरशद वारसी के अभिनय से सजी पहली फ़िल्म आई ’तेरे मेरे सपने’ जो अमिताभ बच्चन के ABCL की प्रस्तुति थी। उनसे बाद तो फ़िल्मों की कतार लग गई। ’बेताबी’, ’मेरे दो अनमोल रतन’, ’हीरो हिन्दुस्तानी’, ’होगी प्यार की जीत’, ’घात’, ’मुझे मेरी बीवी से बचाओ’ जैसी फ़िल्मों में ज़्यादा कामयाबी तो उन्हें नहीं मिली पर उनकी रोज़ी-रोटी की चिन्ता दूर हो गई। और फिर आई फ़िल्म ’मुन्ना भाई एम बी बी एस’, इसके बाद क्या हुआ वह अब इतिहास है। अरशद वारसी ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी, और ज़िन्दगी ने आख़िरकार हार मान कर उन्हें गले लगाया और कहा कि तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी। आज अराशद वारसी एक सफल अभिनेता हैं और अपने बीवी बच्चों के साथ हँसी-ख़ुशी जीवन बिता रहे हैं। एक सफल, सुखद जीवन की हम अरशद वारसी को शुभकामनाएँ देते हैं!

आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य लिखिए। हमारा यह स्तम्भ प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार को प्रकाशित होता है। यदि आपके पास भी इस प्रकार की किसी घटना की जानकारी हो तो हमें पर अपने पूरे परिचय के साथ cine.paheli@yahoo.com मेल कर दें। हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। आप अपने सुझाव भी ऊपर दिये गए ई-मेल पर भेज सकते हैं। आज बस इतना ही। अगले शनिवार को फिर आपसे भेंट होगी। तब तक के लिए नमस्कार। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी  



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