Skip to main content

"एक राधा एक मीरा..." - इसी गीत के दम पर लिखी गई थी ’राम तेरी गंगा मैली’ की कहानी


एक गीत सौ कहानियाँ - 68
 

'एक राधा एक मीरा...' 




रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 68-वीं कड़ी में आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं आशा फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार, संगीतकार व गायक रवीन्द्र जैन को जिनका 9 अक्टुबर 2015 को निधन हो गया। गीत है लता मंगेशकर का गाया फ़िल्म ’राम तेरी गंगा मैली’ का, "एक राधा एक मीरा, दोनो ने श्याम को चाहा..."। रवीन्द्र जैन के जितने सुन्दर बोल हैं इस गीत में, उतना ही सुरीला है उनका इस गीत का संगीत।



"तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, संग गा ले, तो ज़िन्दगी हो जाए सफल", कुछ ऐसा कहा था रवीन्द्र जैन ने फ़िल्म ’चितचोर’ के एक गीत में। ज़िन्दगी, जिसने रवीन्द्र जैन के साथ एक बहुत ही अफ़सोस-जनक मज़ाक किया उनसे उनकी आँखों की रोशनी छीन कर, उसी ज़िन्दगी को जैन साहब ने एक चुनौती की तरह लिया और अपनी ज़िन्दगी को सफल बना कर दिखाया। ज़िन्दगी ने तो उनसे एक बहुत बड़ी चीज़ छीन ली, पर उन्होंने इस दुनिया को अपने अमर गीत-संगीत के माध्यम से बहुत कुछ दिया। रवीन्द्र जैन जैसे महान कलाकार और साधक शारीरिक रूप से भले इस संसार को छोड़ कर चले जाएँ, पर उनकी कला, उनका काम हमेशा अमर रहता है, आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दिखाता है। रवीन्द्र जैन के लिखे गीतों की विशेषता यह रही कि उनमें कभी किसी तरह का सस्तापन या चल्ताउ क़िस्म के बोल नज़र नहीं आए। चाहे फ़िल्म चले ना चले, चाहे गीत चले ना चले, उन्होंने कभी अपने गीतों के स्तर और अर्थपूर्णता के साथ समझौता नहीं किया। यूं तो मीराबाई के अपने लिखे भजनों की कमी नहीं है, और ना ही राधा-कृष्ण के उपर बनने वाले गीतों की संख्या कुछ कम है, पर हमारे प्यारे दादु ने ऐसे दो गीत लिख कर हमें दिए जिनमें मीराबाई और राधा के कृष्ण-प्रेम में जो अन्तर है उन्हें उजागर किया बड़े ही सुन्दर शब्दों में। ये दोनों गीत इतने लोकप्रिय हुए कि चाहे कितनी ही बार क्यों न इन्हें सुन ले, इनकी ताज़गी वहीं की वहीं बरकरार है। इनमें पहला गीत है फ़िल्म ’गीत गाता चल’ का "श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम, लोग करे मीरा को यूंही बदनाम", और दूसरा गीत है "एक राधा एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अन्तर क्या दोनों की प्रीत में बोलो, एक प्रेम दीवानी, एक दरस दीवानी..."।


जिस दिन रवीन्द्र जैन के बेटे का जन्म हुआ था, उसी दिन उन्हें राज कपूर से यह ख़ुशख़बरी मिली थी कि जैन साहब को 'राम तेरी गंगा मैली' के लिए गीतकार-संगीतकार चुन लिया गया है। आगे रवीन्द्र जैन साहब की ज़ुबानी पढ़िए - "राज साहब को एक दिन ऐसे ही मैंने कह दिया था कि राज साहब, एक दिन में दो अच्छी ख़बरें मिलना तो मुश्किल है, तो 'राम तेरी गंगा मैली' मिल गई, सबसे बड़ी ख़बर है, उनके मन में यह बात कैसे बैठ गई थी, उन्होंने मुझे बुलाया और शिरडी ले गए, शिरडी ले जाके कृष्णा भाभी को उन्होंने फ़ोन किया था, तब मुझे पता चला कि मेरे लिए वो बेटा माँगने आए थे। राज साहब को जो पसंद आ गया न, या उनके मेण्टल लेवेल पे जो फ़िट बैठ गया न, उनको लगता था कि मेरा काम होनेवाला है। उसका बड़ा पर्सोनल केयर करते थे और हर तरह से ख़ुश रखते थे और 'he knew how to take out the work', और कैसे डील करना है अपने कम्पोज़र से, अपने नए आर्टिस्ट्स से, किस तरह 'best of their capability' काम कराना है, वो बहुत अच्छी तरह जानते थे। एक बार, हमारे कॉमन फ़्रेण्ड थे टी. पी. झुनझुनवाला साहब, वो इन्कम टैक्स कमिशनर थे, मुंबई में भी थे, लेकिन बेसिकली दिल्ली में रहते थे। तो वहाँ उनकी बिटिया की शादी थी। तो जैसे शादियों में संगीत की महफ़िल होती है, मैं भी गया था, मैं, हेमलता, दिव्या (रवीन्द्र जैन की पत्नी), टी.पी. भाईसाहब, हम सब लोग वहाँ पे थे। टी.पी. साहब ने ज़िक्र किया कि दादु, राज साहब को गाना सुनाओ। यह गीत मैंने 'जीवन' फ़िल्म के लिए लिखा था, 'राजश्री' वालों के लिए। दो ऐसे गीत हैं जो दूसरी फ़िल्म में आ गए, उसमें से एक है 'अखियों के झरोखों से' का टाइटल सॉंग, सिप्पी साहब के लिए लिखा था जो 'घर' फ़िल्म बना रहे थे, लेकिन वो कुछ ऐसी बात हो गई कि उनके डिरेक्टर को पसन्द नहीं आया, उनको गाना ठंडा लगा। तो मैंने राज बाबू को सुना दिया तो उन्होंने यह टाइटल रख लिया। फिर सिप्पी साहब ने वही गाना माँगा मुझसे, मैंने कहा कि अब तो मैंने गाना दे दिया किसी को। बाद में ज़रा वो नाख़ुश भी हो गए थे। तो यह गाना 'जीवन' फ़िल्म के लिए, प्रशान्त नन्दा जी डिरेक्ट करने वाले थे, उसके लिए "एक राधा एक मीरा" लिखा था मैंने। तो राज साहब वहाँ बैठे थे। तो यह गाना जब सुनाया तो राज साहब ने दिव्या से पूछा कि यह गीत किसी को दिया तो नहीं? मैंने कहा कि नहीं, दिया तो नहीं! राज साहब तीन दिन थे और तीनो दिन वो मुझसे यह गाना सुनते रहे। और टी.पी. भाईसाहब से सवा रुपय लिया और मुझे देकर कहा कि आज से यह गाना मेरा हो गया, मुझे दे दो। अब राज साहब को यह कौन पूछे कि इसका क्या करेंगे, न कोई कहानी है, न कोई बात। तो वहीं उन्होंने यह गीत तय कर लिया, फिर मुझे बम्बई बुलाया, कुछ गानें सुने, 'and he gave me a token of Rs 5000' कि तुम आज से RK के म्युज़िक डिरेक्टर हो गए।"

इस तरह से "एक राधा एक मीरा" वह गीत था जिसकी बदौलत राज कपूर ने रवीन्द्र जैन को RK Camp में एन्ट्री दी, और यही नहीं इसी गीत को ही आधार बनाकर 'राम तेरी गंगा मैली' की कहानी भी लिखी गई। कितनी मज़ेदार व आश्चर्य कर देने वाली बात है कि राज कपूर को एक गीत इतना अच्छा लगा कि गीत के भाव को लेकर पूरी की पूरी फ़िल्म बना डाली! और इस गीत के तो वाकई क्या कहने। राधा और मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम में अन्तर को शायद इससे सुन्दर अभिव्यक्ति नहीं मिल सकती। रवीन्द्र जैन ने जिस काव्यात्मक तरीके से इस अन्तर को व्यक्त किया है, इस गीत के लिए दादु को शत शत नमन।


एक राधा एक मीरा,
दोनों ने श्याम को चाहा,
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो,
एक प्रेम दीवानी, एक दरस दीवानी।

राधा ने मधुबन में ढूंढा,
मीरा ने मन में पाया,
राधा जिसे खो बैठी वो गोविन्द
मीरा हाथ बिकाया,
एक मुरली एक पायल
एक पगली एक घायल
अन्तर क्या दोनों की प्रीत में बोलो,
एक सूरत लुभानी, एक मूरत लुभानी।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
राधा के मनमोहन,
राधा नित शृंगार करे,
और मीरा बन गई जोगन,
एक रानी एक दासी
दोनों हरि प्रेम की प्यासी,
अन्तर क्या दोनों की तृप्ति में बोलो,
एक जीत न मानी, एक हार न मानी।

तो आइए सुनते हैं राग किरवानी पर आधारित यह गीत :- 


फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' : "एक राधा एक मीरा...' : लता मंगेशकर : रवीन्द्र जैन 



अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल भेजें soojoi_india@yahoo.co.in के पते पर। 


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 




Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की