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Showing posts from June, 2014

सुरीली बाँसुरी के पर्याय पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया

स्वरगोष्ठी – 174 में आज व्यक्तित्व – 4 : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया ‘देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, विश्वविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, जिन्होने एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी के मोहक सुरों के बल पर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका को फहराया है। चौरसिया जी की बाँसुरी ने शास्त्रीय मंचों पर तो संगीत प्रेमियों को सम्मोहित किया ही है, फिल्म संगीत के प्रति भी उनका लगाव बना रहा। उन्होने सुप्रसिद्ध सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमार शर

संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए

स्मृतियों के स्वर - 04 संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियारों से। दोस्तों, आ

संगीतकार मदनमोहन के राग आधारित गीत

स्वरगोष्ठी – 173 में आज व्यक्तित्व – 3 : फिल्म संगीतकार मदनमोहन ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ...’    ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, फिल्म संगीत-प्रेमियों के बीच “गजल-सम्राट” की उपाधि से विभूषित यशस्वी संगीतकार, मदनमोहन। उनके संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे। विभिन्न

"कल तेरी बज़्म से दीवाना चला जायेगा...", क्या अपने अन्तिम समय का आभास हो चला था शक़ील बदायूंनी को?

एक गीत सौ कहानियाँ - 34   ‘आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले . ..’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 34-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'राम और श्याम' के गीत "आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले" के बारे में।  जावेद बदायूंनी हि न्दी सिने संगीत जग

हेमन्त कुमार : शास्त्रीय, लोक और रवीन्द्र संगीत के अनूठे शिल्पी

स्वरगोष्ठी – 172 में आज व्यक्तित्व – 2 : हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय उपाख्य हेमन्त मुखर्जी ‘जाग दर्द-ए-इश्क जाग, दिल को बेकरार कर..’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की दूसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ में हम आपसे संगीत के कुछ ऐसे साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने मंच अथवा विभिन्न प्रसारण माध्यमों पर प्रदर्शन से इतर संगीत के प्रचार, प्रसार, शिक्षा, संरक्षण या अभिलेखीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है। इस श्रृंखला में हम फिल्मों के ऐसे संगीतकारों की भी चर्चा करेंगे जिन्होंने लीक से हट कर कार्य किया। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, बांग्ला और हिन्दी फिल्म के यशस्वी गायक और संगीतकार, हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय जिन्हें हिन्दी फिल्मों के क्षेत्र में हम हेमन्त कुमार के नाम से जानते और याद करते है। बांग्ला और हिन्दी फिल्म संगीत जगत पर पूरे 45 वर

संगीतकार जयदेव को याद करते हुए कुछ गायक और संगीतकार

स्मृतियों के स्वर - 03 जयदेव को याद करते हुए कुछ गायक और संगीतकार रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियारों से। तो आइये आज इसकी तीसरी

संगीत के प्रचार, प्रसार और संरक्षण में संलग्न एक साधक

स्वरगोष्ठी – 171 में आज व्यक्तित्व – 1 : पण्डित विश्वनाथ श्रीखण्डे   ‘छवि दिखला जा बाँके साँवरिया ध्यान लगे मोहे तोरा...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आपके प्रिय स्तम्भ की आज से एक नई लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ आरम्भ हो रही है। इस श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ ऐसे संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे जिन्होंने मंच अथवा विभिन्न प्रसारण माध्यमों पर प्रदर्शन से इतर संगीत के प्रचार, प्रसार, शिक्षा, संरक्षण या अभिलेखीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हम भारतीय संगीत के उच्चकोटि के कलाकार होने के साथ ही संगीत के शास्त्रीय और प्रायोगिक पक्ष के विद्वान पण्डित विश्वनाथ वि. श्रीखण्डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करेंगे। वर्ष 1983 से 1993 तक उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में सचिव पद पर रहते हुए उन्होने भारतीय संगीत के प्रचार-प्रसार के साथ ही अभिलेखीकरण का उल्लेखनी