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Showing posts from May, 2014

"हरि दिन तो बीता शाम हुई..." - जानिये गायिका राजकुमारी के इस अन्तिम गीत की दास्तान

एक गीत सौ कहानियाँ - 32   ‘ हरि दिन तो बीता, शाम हुई ...’ 'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कम सुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 32वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'किताब' के राजकुमारी की गायी लोरी "हरि दिन तो बीता शाम हुई..." के बारे में।  1977 की यादगार फ़िल्म 'किताब' आप

एक दर्द भरा नगमा हिमेश मार्का

ताज़ा सुर ताल - दर्द दिलों के  (एक्सपोस) जब से हिमेश रेशमिया संगीत निर्देशन में आये हैं, तब से हम उन्हें बहुत से मुक्तलिफ़ रूपों में देख चुके हैं, हिमेश केवल हिट गीत देने में विश्वास रखते हैं और बहुत अधिक अपने 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर जाकर काम नहीं करते हैं, बावजूद इसके उनकी धुनों में एक ख़ास मिठास हमेशा से रही है ( ओढ़नी , क्यों किसी को वफ़ा के बदले, तेरी मेरी प्रेम कहानी  आदि), हिमेश इन दिनों अपने निर्माताओं को डबल बोनान्जा बाँट रहे हैं, यानी कि जो उनकी अपनी कहानी पर फिल्म बनायेगा उसके लिए वो अभिनय भी करेगें और जाहिर है जब अभिनय करेगें तो संगीत में भी अपनी पूरी ताकत झोंक देंगें. कुछ ऐसा ही है उनकी ताज़ा पेशकश एक्सपोस  का हाल. इस एल्बम में भी हर मूड के गीत हैं और सब के साब हिमेश की पक्की छाप वाले. कुछ बहुत नया न देते हुए भी हिमेश ऐसे गीत बनाने में कामियाब हुए हैं जिनका हिट होना लगभग तय है. खासकर ये गीत जो हम आपको सुना रहे हैं इसमें वही चिर परिचित हिमेशिया माधुर्य भी है और शास्त्रीयता की मिठास भी. मोहम्मद इरफ़ान ने बहुत दिल से गाया है इसे (शुक्र है हिमेश ने खुद नहीं गाया ये गीत)

तालवाद्य घटम् पर एक चर्चा

स्वरगोष्ठी – 169 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 7 एक सामान्य मिट्टी का घड़ा, जो लोक मंच के साथ ही शास्त्रीय मंच पर भी सुशोभित हुआ     ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की सातवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे लोकवाद्य पर चर्चा करेंगे जो अवनद्ध व

"मेरी यादों में साहिर लुधियानवी" - हसन कमाल

स्मृतियों के स्वर - 02 "मेरी यादों में साहिर लुधियानवी" - हसन कमाल 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। आज से 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लायूंगा कुछ अनमोल मोतियाँ और आपके साथ बाँटूंगा हमारे इस नये स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर। हम और आप साथ मिल कर गुज़रेंगे स्मृतियों के इन हस

क्या लगाई तुमने ये कसम कसम से...

खरा सोना गीत - देखो कसम से  छेड़ छाड़ और मस्ती से भरे इस युगल गीत को फिर से याद करें हमारे प्रस्तोता अनुज श्रीवास्तव  के साथ, स्क्रिप्ट है सुजोय  की और प्रस्तुति सहयोग है संज्ञा टंडन  का. 

होंठों को मुस्कुराने और गुनगुनाने की वजह देती अरिजीत की आवाज़

ताज़ा सुर ताल - मुस्कुराने  (सिटी लाईट्स) दोस्तों पिछले करीब २ सालों से हम सब इस युवा गायक के दीवाने हो रखे हैं, उस का हर नया गीत भीतर एक गहरी हलचल पैदा कर देता है और हम सब की छुपी या जाहिर आशिकी को जैसे आवाज़ मिल जाती है. रोमानियत को गहरे से आत्मसात करती ये आवाज़ है अरिजीत सिंह की. ताज़ा प्रस्तुति में आज फिर से अरिजीत का जादू महकेगा, गीत के बोल है.. मुकुराने की वजह तुम हो...  और इस गीत को वजह और वजूद दिया है जीत गांगुली ने. कभी प्रीतम के जोड़ीदार रहे जीत के लिए खुद प्रीतम ने एक बार कहा था कि जब लोग जीत की काबिलियत को समझेगें तो उसके दीवाने हो जायेगें, प्रीतम दा की ये बात एकदम सही लग रही है आज के सन्दर्भ में. धीरे धीरे श्रोता जीत की जादू भरी धुनों में डूब रहे हैं इन दिनों. फिल्म सिटी लाईट्स का है ये गीत. इस फिल्म में हमें दुबारा दिखेगा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित निर्देशक हंसल मेहता और अभिनेता राजकुमार राव की बेमिसाल जोड़ी का नया अंदाज़. आप में से जिन दर्शकों ने इनकी ' शाहिद ' देखी हो उन्हें यक़ीनन इस फिल्म का बेहद बेसब्री से इंतज़ार होगा. फिल्म को महेश भट्ट लेकर आ रहे हैं

अनुराग शर्मा की लघुकथा ईमान की लूट

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा के स्वर में हरिशंकर परसाई के व्यंग्य " बदचलन " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा का एक लघु व्यंग्य ईमान की लूट जिसे स्वर दिया है  अनुराग शर्मा ने। प्रस्तुत कथा का गद्य " बर्ग वार्ता ब्लॉग " पर उपलब्ध है। " ईमान की लूट " का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 58 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। प्रश्न कठिन हो जाते हैं, हर उत्तर पे इतराते हैं मैं चिंता में घुल जाता हूँ, चलूँ तो पथ डिग जाते हैं।  ~ अनुराग शर्मा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "गांधीवादी ने कहा कि उसने सबसे थप्पड़ खाये हैं इसलिए वह सबसे ज़्यादा हिस्स

तुझे ओर की तम्मंना मुझे तेरी आरज़ू है....

खरा सोना गीत - जिसे तू कबूल कर ले  चंद्रमुखी के समर्पण को उभरता ये गीत है जिसमें लोक संगीत की भी महक है, जानिये इस गीत से जुडी कुछ और बातें हमारी प्रस्तोता श्वेता पाण्डेय के साथ, स्क्रिप्ट है सुजोय  की और प्रस्तुति है संज्ञा टंडन  की.  

एक सुषिर लोकवाद्य बीन, महुवर अथवा पुंगी

स्वरगोष्ठी – 168 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 6 'मन डोले मेरा तन डोले मेरे दिल का गया करार...'   नागों को भी झूमने पर विवश कर देने वाला वाद्य ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की छठीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे लोकवाद्य पर चर्चा करेंगे

"मैं हूँ ख़ुशरंग हिना" - फ़िल्म इतिहास में कोई रंग नहीं राज कपूर की फ़िल्मों के बिना

एक गीत सौ कहानियाँ - 31   ‘ मैं हूँ ख़ुशरंग हिना... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कम सुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 31वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'हिना' के लोकप्रिय शीर्षक गीत "मैं हूँ ख़ुशरंग हिना" के बारे में। रा ज कपूर न केवल एक फ़िल्मकार थे, संगीत की समझ भी उनमें उतन

दुनिया के सवालों में उलझी एक मार्मिक रचना

खरा सोना गीत - दुनिया करे सवाल तो  हमारे प्रस्तोता अनुज श्रीवास्तव के साथ आईये ताज़ा करें मीना कुमारी और लता की जुगलबंदी का ये गीत जिसे साहिर-रोशन के रचे बहतरीन गीतों में गिना जाता रहा है. स्क्रिप्ट है सुजोय की और प्रस्तुति है संज्ञा टंडन की  

एक समृद्ध तंत्रवाद्य सुरबहार

स्वरगोष्ठी – 167 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 5 तंत्रवाद्य सुरबहार से उपजते गम्भीर और गमकयुक्त सुरों की बहार   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की पाँचवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने सहयोगी सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का उल्लेख करेंगे। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे स्वरवाद्य की चर्चा करेंगे जिसका प्रचलन अब लगभग नहीं के बराबर हो रहा है। आज के सर्वाधिक प्रचलित तंत्रवाद्य स

गायिका जुथिका रॉय के पहली बार रेडियो पर गाने का अनुभव

स्मृतियों के स्वर - 01 गायिका जुथिका रॉय के पहली बार रेडियो पर गाने का अनुभव 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। आज से 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लायूंगा कुछ अनमोल मोतियाँ और आपके साथ बाँटूंगा हमारे इस नये स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर। हम और आप साथ मिल कर गुज़रेंगे स्मृतियों के इन ह